भगवान सूर्य

ब्रह्मांड की उत्पत्ति के देवता भगवान सूर्य

भगवान सूर्य को शुद्ध सनातन धर्म में सिर्फ एक ग्रह नहीं माना गया है बल्कि भगवान भास्कर सूर्य को जगत की उत्पत्ति का सबसे महत्वपूर्ण देवता माना गया है। भगवान शिव और श्री हरि विष्णु की आंखे बताया गया है जिससे ये दोनों ही ईश्वरीय सत्ताएं संसार के सभी प्राणियों के कार्यों को देखती हैं।

भगवान सूर्य की ऋग्वेद में महिमा :

भगवान श्री सूर्य की महिमा ऋग्वेद की प्रारंभ की ऋचाओं से ही मिलनी शुरु हो जाती हैं और उन्हें ऋग्वेद में एक महान देवता के रुप में दिखाया गया है। भगवान सूर्य पदार्थ जगत यानि की प्रकृति को उत्पन्न करने वाला कहा गया है। सूर्य को ही सभी प्राणियों का जीवनदाता माना गया है । सूर्य भगवान की स्तुति ऋग्वेद में अनेक ऋचाओं में मिलती है और कई ऋचाओं में उन्हें सभी जीवित प्राणियों की आत्मा कहा गया है – 

सूर्य आत्मा जगतस्तथुषश्च I
ऋद्वेद

सूर्य शब्द का मूल है “सृ ” धातु । जिसका अर्थ है- गति । इसकी उत्पत्ति ‘षु’ धातु से भी मानी जाती है जिसका अर्थ होता है प्रेरणा। अर्थात प्रेरक परमात्मा ही सूर्य है ।

भगवान सूर्य त्रिदेवों में एक हैं :

 वैसे तो हम त्रिदेवों में ब्रम्हा, विष्णु और महेश को जानते हैं लेकिन त्रिदेवों की एक और श्रेणी है जिसमें सूर्य, वायु और इंद्र को त्रिदेव माना जाता है। वैदिक ग्रंथों में तो सूर्य की महिमा इतनी ज्यादा है कि एक स्थान पर सूर्य को ही ब्रम्हा, विष्णु और रुद्र का रुप माना गया है – 

एष ब्रम्हा च विष्णुश्च रुद्र एष हि भास्करः ।।
सूर्योपनिषद्

भगवान सूर्य वंश और कृपा:

  •  पुराणों के अनुसार पृथ्वी पर मानव जाति का विस्तार करने वाले प्रथम मनु भी सूर्य के ही पुत्र हैं। उन्ही से सूर्य वंश की शुरुआत होती है । सूर्य वंश में ही इक्ष्वाकु, नहुष, ययाति, दशरथ जैसे महान राजा पैदा हुए । भगवान सूर्य के पुत्र मनु ने ही अयोध्या की स्थापना की थी ।
  • स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु ने सूर्य वंश में भगवान श्री राम के रुप में जन्म लिया था। भगवान सूर्य और बारह आदित्यों में प्रथम माना जाता है और भगवान श्री हरि विष्णु को भी आदित्यों की श्रेणी में रखा जाता है।
  • सुग्रीव को सूर्य पुत्र माना जाता है । महावीर हनुमान जी के गुरु के रुप में भगवान सूर्य को सम्मान प्राप्त है । महाभारत के वन पर्व में जब पांडवों को जब वनवास मिलता है तब युधिष्ठिर भगवान सूर्य की वंदना करते हैं। युधिष्ठिर को भगवान सूर्य की अक्षयपात्र प्रदान करते हैं जिससे द्रौपदी असंख्य लोगों को भोजन करा सकती थी । कर्ण को सूर्य पुत्र कहा जाता है ।  

सबसे ज्यादा त्यौहार :

भगवान श्री हरि विष्णु के अलावा सिर्फ भगवान सूर्य ही ऐसे देवता है जिनकी श्रद्धा में सबसे ज्यादा त्यौहार मनाए जाते हैं। मकर संक्रांति, पोंगल, अचला सप्तमी, छठ पूजा, अयतार पूजा , रथ सप्तमी आदि त्योहार भगवान सूर्य को ही समर्पित हैं। भगवान सूर्य प्रत्येक मास में अपनी राशि बदलते हैं। इस लिए उनसे जुड़े कम से कम एक त्यौहार तो जरुर होते हैं। इसके अलावा सूर्य सप्तमी का त्यौहार भी पूरे देश में मनाया जाता है। सप्तमी के दिन ही भगवान सूर्य का जन्म हुआ था । 

भगवान सूर्य की जन्म की कथा :

मार्कण्डेय पुराण में भगवान सूर्य के जन्म की कथा मिलती है । हालांकि अन्य कई पुराणों में भी उनके जन्म की कथा है लेकिन मार्कण्डेय पुराण की कथा की महिमा ज्यादा है । कथा के अनुसार सृष्टि से पहले चारों ओर घोर अंधकार था । उस समय परम कारण स्वरुप वृहत अण्डा प्रगट हुआ । उसके भीतर जगत के सृष्टा ब्रम्हा विराजमान थे। उन्होंने एक अंडे का भेदन किया। सभी देवताओं से पहले या आदि में प्रगट होने के कारण उन्हें आदित्य कहा गया । लेकिन सूर्य का तेज इतना प्रबल था कि ब्रम्हा जी के लिए सृष्टि का निर्माण करना असंभव हो गया । इसके बाद ब्रम्हा जी ने सूर्य से प्रार्थना की कि वो अपने तेज को समेट लें और फिर से सूक्ष्म रुप में  जाएं ताकि वो सृष्टि का निर्माण कर सकें ।

अदिति से जन्म :

जिन सूर्य ने पहली बार जन्म लिया था उन्होंने तो अपना तेज समेट लिया ताकि ब्रम्हा सृष्टि का निर्माण कर सकें । अब सूर्य सूक्ष्म रुप में विराजमान थे । लेकिन इसके आगे की कथा फिर शुरु होती है जिसके बाद सूर्य पूर्ण रुप से प्रगट होते हैं। कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष की तेरह पुत्रियों का विवाह ऋषि कश्यप से हुआ कश्यप की तेरह पत्नियों में अदिति, दिति दनु, खसा . विनता. कद्रू सुरसा प्रमुख हैं । 

  • अदिति से इंद्र, वरुण, मित्र , धाता, भग आदि देवताओं का जन्म हुआ और अदिति देवताओं की माता कहलाईं । दिति से दैत्यों का जन्म हुआ। दनु से दानवों का जन्म हुआ । खसा से राक्षसों और यक्षों का जन्म हुआ । 
  • कालांतर में देवताओं का राक्षसों, दैत्यों, दानवों से संग्राम शुरु हो गया । इसमें देवता अपने ही सौतेले भाइयों से पराजित हो गए । तब देवताओं की माता ने सूक्ष्म रुप धारी तेजवान सूर्य की अराधना की । भगवान सूर्य प्रसन्न हुए और उन्होंने अदिति से वदान मांगने को कहा । अदिति ने सूर्य से पुत्र रुप में जन्म लेने का वरदान मांगा ताकि देवताओं को युद्ध में विजय मिले। 
  • इसके बाद अदिति के गर्भ में सूर्य प्रवेश करते हैं। गर्भवती अदिति प्रतिदिन सूर्य की अराधना करती और उपवास रखने लगीं। अदिति को उपवास करते देख उनके पति कश्यप नाराज हो गए और कहा कि क्यों गर्भ में स्थित अपने इस अंडे को मार रही हो ( मारित- अण्डम ) । अपने पति के कहने पर अदिति ने अपने गर्भ से उस अंडे को निकाल दिया । इस अंडे से सूर्य प्रगट हो गए । 

चूंकि कश्यप ने मारित -अण्डम कहा था इस लिए अदिति ने अपने पुत्र का नाम मार्तण्ड रखा  और इसी पुत्र को सूर्य के सारे अधिकार प्राप्त हुए । 

क्या मार्तण्ड से अलग हैं

मार्कण्डेय पुराण से तो ऐसा ही लगता है कि वास्तविक सूर्य सूक्ष्म रुप से ब्रम्हांड में स्थित हैं और जिन सूर्य को हम रोज सौरमंडल में देखते हैं वो उनके अंशावतार मार्तण्ड हैं। इन मार्तण्ड के जन्म के बाद देवताओं को युद्ध में दानवों और दैत्यों पर विज मिली । 

अन्य धर्मों में भी महिमा : 

भगवान सूर्य को न सिर्फ सनातन हिंदू धर्म बल्कि जैन बौद्ध के अलावा दुनिया के लगभग सभी धर्मों में सम्मान प्राप्त है। यूनानी धर्म में भगवान सूर्य को हेलियस कहा जाता है। न केवल भारत बल्कि दुनिया के कई देशों में भगवान सूर्य को समर्पित मंदिर हैं। भगवान सूर्य रथ पर सवार हैं और उनके रथ को सात घोड़े खींचते हैं। ये सात घोड़े सात दिनों या सात रंगों के प्रतीक हैं। सूर्य के रथ का सारथि अरुण है जो प्रातः काल का स्वरुप है। भारत में बिहार में मनाया जाने वाला छठ पर्व ही एक ऐसा त्योहार है जिसमें डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। भगवान सूर्य योग से भी जुडे हैं और सूर्य नमस्कार को योग के सर्वोत्तम आसनों में एक माना जाता है।

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