शिव को 3 अंक से प्रेम

भगवान शिव को 3 अंक से प्रेम क्यों है

वैसे शुद्ध सनातन धर्म में सभी अंको को शुभ माना गया है । जहां दूसरे धर्मों में 13 अंक को अशुभ माना गया है वहीं हिंदू धर्म में 13 अंक यानि त्रियोदशी तिथि को भी शुभ माना गया है और भगवान शिव को अर्पित किया गया है । इसी प्रकार शिव को 3 अंक से प्रेम को लेकर भी सनातन धर्म में कई रहस्य रहे हैं । विशेष कर भगवान को अंक तीन से जोडा जाता रहा है । हालांकि भगवान को किसी भी एक अंक से जोड़ना सही नहीं है लेकिन फिर भी तीन का अंक ऐसा है जो भगवान शिव की भक्ति के दौरान बार बार हमारे सामने आ जाता है । 

शिव को 3 अंक से प्रेम :

शैव मत के अनुसार भगवान शिव के 3 नेत्र हैं।  भगवान शिव का तीसरा नेत्र संहार का कारक माना जाता है । इसके खुलते ही प्रलय की शुरुआत हो जाती है । भगवान शिव का तीसरा नेत्र यूं तो हमेशा बंद रहता है लेकिन जब कभी शिव को अत्यधिक क्रोध आता है तो यह तीसरा नेत्र पल भर के लिए खुलता है और जो भी सामने आता है भस्म हो जाता है । कामदेव को भोलेनाथ ने अपने तीसरे नेत्र से ही भस्म किया था।  मृत्यु के भय से मुक्त कराने वाले महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव को त्रिनेत्र धारी कह कर ही संबोधित करता है । मंत्र का अर्थ है कि तीनों नेत्रों वाले मृत्युंजय हमें मृत्यु का भय से मुक्त रखें। इसी प्रकार शिव को 3 अंक से प्रेम को भगवान शिव के तीनों नेत्र सिर्फ भय के कारक नहीं है बल्कि उनसे जीवनदायिनी करुणा का भी प्रसार होता है । 

भगवान शिव का अस्त्र त्रिशूल अपने नाम से ही तीन अंक का रहस्य खोलता है। त्रिशूल में तीन शूल होते हैं । त्रिशूल को भगवान शिव हमेशा अपने साथ धारण करते हैं । कहा जाता है कि काशी नगर त्रिशूल पर विराजित है। भोलेनाथ जिस भी पापी पर अपना त्रिशूल चलाते हैं वो बच नहीं पाता है। महादेव का ये त्रिशूल तीनो तापों का हरण करने वाला भी माना जाता है । कहा जाता है कि त्रिशूल के तीनो शूल सत्, रज और तमो गुण का प्रतिनिधित्व करते हैं

शिव को 3 अंक से प्रेम

भगवान शिव की भक्ति बहुत सरल है, उन्हें किसी विशेष प्रसाद या फूल – पत्र चढ़ाने की आवश्यकता नहीं है । उन्हें सिर्फ बेलपत्र चढ़ा कर ही प्रसन्न किया जा सकता है गौर कीजिएगा तो बेलपत्र में भी तीन पत्ते ही होते हैं आयुर्वेद में बेलपत्र के तीनो पत्तो को कफ, वात और पित्त का नाशक भी माना जाता है और औषधियों का देवता और सबसे प्रथम वैद्य भी माना जाता है । 

भगवान शिव को त्रिपुरांतक भी कहा जाता है। नटराज मुद्रा त्रिपुर राक्षस के वध की घटना को दर्शाती है। त्रिपुर यानि तीन नगरों का अंत करने वाले महादेव त्रिपुरांतक कहे जाते हैं । यहां भी स्पष्ट है कि तीन अंक से किस प्रकार से जुड़ा हुआ है । 

महादेव की अराधना के लिए वैसे तो कोई निश्चित विधि विधान, मूहूर्त की आवश्यकता ही नहीं है । महादेव तो किसी भी वक्त पूजा करने से प्रसन्न हो जाते हैं । फिर भी दिन के चार प्रहरों में 3 प्रहर को भगवान शिव की अराधना के लिए श्रेष्ठ माना गया है । ऐसा माना जाता है कि 3 प्रहर यानि शाम के वक्त भगवान शिव अपने गण -दूतो और प्रेत – पिशाचों के साथ संसार का भ्रमण करने के लिए निकलते हैं और जिसे भी उनकी भक्ति करते देखते हैं उसे वरदान देते हैं । वाल्मीकि रामायण में भी कश्यप ऋषि के द्वारा उनकी पत्नी दिति को सायंकाल में प्रेम करने की मनाही करते दिखाया गया है जिसमें उन्होंने इस तथ्य के बारे में बताया है कि सायंकाल में महादेव भ्रमण करते हैं ऐसे वक्त में प्रेम या कामवासना से मुक्त होकर महादेव की अराधना करनी चाहिए । रावण ने भी शिव तांडव स्त्रोत के अंत के श्लोक में लिखा है कि भगवान शिव के इस स्त्रोत्र को सायंकाल में पढ़ने पर लक्ष्मी सदा स्थिर रहती हैं। अर्थात महादेव की अराधना 3 प्रहर मे करने के लाभ है । लेकिन गौर कीजिए कि चार प्रहरो में तीसरा प्रहर ही महादेव की अराधना के लिए श्रेष्ठ है । यहां भी तीन का अंक महादेव से जुड़ा हुआ है । 

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