शिव और पार्वती के समान शक्तिशाली हैं भगवान कार्तिकेय

शुद्ध सनातन धर्म में पांच महान घटनाओं का वर्णन लगभग सभी पुराणों और दोनों महा काव्यों – रामायण और महाभारत में किया गया है । ये घटनाएं हैं समुद्र मंथन, श्री हरि विष्णु का वामन अवतार, मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण, वशिष्ठ और विश्वामित्र का संघर्ष और भगवान श्री कार्तिकेय का जन्म, इन पांचों घटनाओं का शुद्ध सनातन धर्म में विशेष महत्व है, इसमें भी भगवान कार्तिकेय के जन्म की कथा और उनके जन्म के उद्देश्य को विशेष महत्व दिया गया है, भगवान कार्तिकेय या स्कंद का जन्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष के छठे दिन हुआ था, इसलिए इस दिवस को स्कंद षष्ठी भी कहा जाता है ।

कौन हैं भगवान स्कंद :

 भगवान शिव और माता पार्वती के महान और उन्हीं के समान शक्तिशाली पुत्र हैं भगवान स्कंद । इन्हें ही उत्तर भारत में कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है । उत्तर भारत में कार्तिकेय को भगवान गणेश का छोटा भाई भी माना जाता है । कार्तिकेय भगवान को ही दक्षिण भारत में भगवान सुब्रह्मण्यम और मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है । भगवान कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति और सबसे महान योद्धा का दर्जा प्राप्त है ।

क्यों हुआ भगवान स्कंद का जन्म :

भगवान कार्तिकेय या स्कंद के जन्म के उद्देश्यों को लेकर अलग- अलग ग्रंथों में अलग – अलग बातें कहीं गई हैं। लेकिन प्रमुख रुप से कार्तिकेय के जन्म का उद्देश्य असुरराज तारकासुर का वध था । तारकासुर को यह वरदान प्राप्त था कि वो सिर्फ शिव और शक्ति के पुत्र के द्वारा ही मारा जा सकता था । दक्षिण भारत की कथाओं के अनुसार तारकासुर के अलावा दो अन्य राक्षस भी थे जिनका नाम सुरपद्म और सिंहमुख था, जो तारकासुर  के भाई थे और उसकी तरह ही शक्तिशाली थे । सुरपद्म ने शिव की तपस्या कर यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे सिर्फ शिव की शक्ति से उत्पन्न पुत्र के  द्वारा ही मारा जा सकता था । जब शिव की शक्ति से कार्तिकेय का जन्म हुआ तब उन्होंने तारकासुर और सिंहमुख को मार डाला । लेकिन सुरपद्म से युद्ध करते वक्त सुरपद्म के शरीर से एक मयूर और एक मुर्गे की उत्पत्ति हुई । इस मयूर को स्कंद ने अपना वाहन बना लिया और मुर्गे को अपने ध्वज़ पर बिठा दिया । यह मुर्गा भगवान स्कंद की स्तुति करने लगा । इसके अलावा कार्तिकेय के जन्म का एक कारण यह भी था कि इंद्र ने देवसेना को वरदान दिया था कि उनका विवाह एक परम शक्तिशाली पुरुष से किया जाएगा । वो परम शक्तिशाली पुरुष कार्तिकेय या स्कंद ही थे ।

वाल्मीकि रामायण में है भगवान स्कंद के जन्म की कथा :

वाल्मीकि रामायण के बाल कांड में भगवान कार्तिकेय या भगवान स्कंद के जन्म की कथा विस्तार से कही गई है । जब विश्वामित्र के आदेश से श्री राम ताड़का राक्षसी का वध करते हैं और मिथिला के लिए प्रयाण करते हैं तब मार्ग में विश्वामित्र उन्हें मां गंगा के अवतरण और भगवान कार्तिकेय के जन्म की कथा बताते हैं । वाल्मीकि रामायण के अनुसार हिमवान के घर गंगा और उमा का जन्म होता है। उमा यानि पार्वती अपनी कठोर तपस्या के द्वारा भगवान शिव को प्राप्त करती हैं । भगवान शिव और पार्वती के समागम की प्रक्रिया इतनी लंबी हो जाती है और शिव और पार्वती से कोई भी संतान होने की संभावना धूमिल होने लगती हैं तब देवतागण भयभीत हो जाते हैं। देवताओं को लगता है कि अगर शिव और पार्वती के इस महासमागम की प्रक्रिया से कोई संतान होगी तो उस संतान के तेज को संसार धारण करने में असक्षम हो जाएगा । सभी देवता पहले ब्रम्हा के पास जाते हैं और उनसे भगवान शिव से इस महासमागम को रोकने के लिए प्रार्थना करने को कहते हैं।

कार्तिकेय के जन्म में देवताओं का षड़यंत्र :

ब्रम्हा जी के साथ सभी देवता भगवान शिव के पास जाते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं –

न लोका धारयिष्यन्ति तव तेजः सुरोत्तम !
ब्राह्मेण तपसा युक्तो देव्या सह तपश्चर !! 1-36-18
त्रैलोक्यहितकामार्थं तेजस्तेजसि धारय !
रक्ष सर्वानिमान् लोकान्नालोकं कर्तुमर्हसि !! 1-36-19

अर्थात: हे महादेव आपके इस तेज से उत्पन्न संतान को यह संसार धारण करने में असमर्थ होगा । आपसे प्रार्थना है कि आप देवी उमा के साथ यौगिक क्रियाओं को ही कीजिए । आपसे प्रार्थना है कि आप अपने अंदर ही अपने तेज को धारण रखें  ताकि इस ब्रम्हांड की रक्षा की जा सके ।

इसके बाद भगवान शिव और देवी उमा अपने महासमागम को बंद कर देते हैं। लेकिन भगवान शिव देवताओं से पूछते हैं कि मेरे अंदर जो तेज है उसे तो मैं धारण कर सकता हूं लेकिन जो मेरे तेज का भाग स्खलित हो गया है उसे किसी को तो धारण करना ही होगा । तब भगवान शिव ने अपने तेज को पृथ्वी और पर्वतों पर फैला दिया ।

अग्नि से कार्तिकेय का जन्म :

इसके बाद देवताओं ने अग्नि और वायु से निवेदन किया कि वो पृथ्वी को शिव के तेज से नष्ट होने से बचाएं और इसे धारण करें ।

तदग्निना पुनर्व्याप्तं संजातं श्वेतपर्वतम् !
दिव्यं शरवणं चैव पावकादित्यसंनिभम् !!
यत्र जातो महातेजाः कार्तिकेयोऽग्निसंभवः !

इसके बाद अग्नि देव में भगवान शिव के तेज को धारण किया और फिर अग्नि से भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का भविष्य में जन्म संभव हुआ । लेकिन अभी कार्तिकेय का जन्म पूरी तरह से नहीं होता है ।

पार्वती का देवताओं को शाप :

देवताओं के स्वार्थ की वजह से देवी पार्वती के गर्भ से कार्तिकेय का जन्म संभव नहीं हो पाया । इससे देवी पार्वती देवताओं से रुष्ट हो जाती हैं और शाप देती हैं कि देवताओं की पत्नियां कभी भी संतान पैदा करने में सक्षम नहीं होंगी । चूंकि पृथ्वी ने शिव के तेज को धारण किया था इसलिए देवी पार्वती ने पृथ्वी को भी शाप दिया कि उसके गर्भ से जो भी उत्पन्न होगा वो पृथ्वी में ही वापस मिल जाएगा । इसके अलावा भी देवी उमा पृथ्वी को अनेक पति होने का शाप देती हैं । भगवान शिव और माता पार्वती इसके बाद हिमालय में चले जाते हैं ।

कार्तिकेय के जन्म की प्रक्रिया :

इसके बाद सभी देवता ब्रम्हा जी के पास जाते हैं और उनसे आग्रह करते हैं भगवान शिव से हमें देवताओं के लिए सेनापति मिलना था लेकिन भगवान शिव और देवी उमा ने तो वैराग्य धारण कर लिया है ।

तप्यमाने तदा देवे सेन्द्राः साग्निपुरोगमाः !
सेनापतिमभीप्सन्तः पितामहमुपागमन् !!

देवतागण ब्रम्हा जी से पूछते हैं कि अब हमें क्या करना चाहिए –

यदत्रानंतरं कार्यं लोकानां हितकाम्यया !
संविधत्स्व विधानज्ञ त्वं हि नः परमा गतिः !!

तब ब्रम्हा जी कहते हैं –

ज्येष्ठा शैलेन्द्रदुहिता मानयिष्यति तं सुतम् !
उमायास्तद्बहुमतं भविष्यति न संशयः !! १-३७-८

हिमवान की बड़ी पुत्री गंगा अग्नि के द्वारा धारण किये गए शिव के तेज को धारण करें । अपनी बड़ी बहन के द्वारा धारण किये गए शिव के इस तेज पर देवी उमा भी प्रसन्न होंगी ।

गंगा द्वारा शिव के तेज का धारण करना :

इसके बाद मां गंगा अग्नि के द्वारा धारण किये गए तेज को अपने गर्भ में धारण करती हैं । लेकिन गंगा भी शिव के इस तेज को धारण करने में असमर्थ हो जाती हैं और इस ताप से जलने लगती हैं । तब अग्नि उनसे इस भ्रूण को हिमालय की भूमि पर डालने के लिए कहते हैं । हिमालय से यह भ्रूण लुढ़कते हुए पृथ्वी पर आता है और धीरे – धीरे छह शिशु रुपों में बदल जाता है । इस शिश के पालन के लिए इंद्र छह कृतिकाओं को आदेश देते हैं –

तं कुमारं ततो जातं सेन्द्राः सहमरुद्गणाः !
क्षीरसंभावनार्थाय कृत्तिकाः समयोजयन् !!

सभी कृतिकाएं इन शिशुओं  को दुग्धपान कराती हैं और यह एक बालक के रुप में बदल जाता है । इसके बाद यह शिशु  संसार में कार्तिकेय के नाम से प्रसिद्ध होता है –

ततस्तु देवताः सर्वाः कार्तिकेय इति ब्रुवन् !
पुत्रस्त्रैलोक्यविख्यातो भविष्यति न संशयः !! १-३७-२५

इसके बाद देवताओं ने कार्तिकेय का नाम स्कंद रखा क्योंकि ये गर्भ से बाहर निकल गया था –

स्कंद इत्यब्रुवन् देवाः स्कन्नं गर्भपरिस्रवात् !
कार्तिकेयं महाबाहुं काकुत्स्थ ज्वलनोपमम् !! १-३७-२७

महाभारत में भी है कार्तिकेय के जन्म की कथा :

महाभारत के वन पर्व में भी कार्तिकेय के जन्म की विस्तार से कथा है । यह कथा युधिष्ठिर से मार्कण्डेय ऋषि कहते हैं । वाल्मीकि रामायण के मुकाबले यह कथा बहुत ही अलग है । कथा के मुताबिक देवताओं और दैत्यों के बार बार होने वाले युद्धों से परेशान होकर इंद्र को देवताओं के लिए एक महासेनापति की आवश्यकता हुई ।

देवसेना को इंद्र का वरदान :

इंद्र इस बात पर विचार कर ही रहे थे कि उन्हें एक पर्वत पर एक नारी के विलाप का स्वर सुनाई पड़ा । इंद्र ने देखा कि केशि नामक महादानव एक स्त्री का हरण कर लिये जा रहा है । वह स्त्री विलाप करते हुए कह रही थी कि मुझे जो भी बचाएगा वो वीर मेरा पति होगा । इंद्र केशि का वध कर देते हैं और प्रजापति की पुत्री देवसेना को आश्वासन देते हैं कि वो उनके लिए सुयोग्य पति को जरुर दिलाएंगे ।

अग्नि का सप्त ऋषियों की पत्नी पर मोहित होना :

एक बार जब सप्त ऋषियों ने यज्ञ किया तब देवताओं का भाग लेने के लिए अग्नि देव पधारें । उन्होंने सप्त ऋषियों की पत्नियों को देखा तो उन पर मोहित हो गए । लेकिन अग्नि भय के मारे अपनी कामवासना को दबा गए । यह बात दक्ष की पुत्री स्वाहा को पता चल गई । वो अग्नि को अपना पति बनाना चाहती थीं । सो अग्नि को प्रसन्न करने के लिए वो सप्त ऋषियों की पत्नियों का वेष बना कर छह बार गईं । अग्नि को समझा कर उनके साथ समागम भी कर लिया । लेकिन अत्रि की पत्नी अरुंधति का वेष वो बना नहीं पाईं क्योंकि अरुंधति महान पतिव्रता नारी थीं । स्वाहा ने छह बार अग्नि के साथ समागम किया और हरेक बार वो अग्नि के तेज को एक कुंड में डाल देती थीं । अग्नि के इन छह तेजों से एक पुत्र का जन्म हुआ जिसके छह सिर थे । छठे दिन उस बालक को इंद्र के आदेश पर लोक मातृकाओं ने दुग्ध पिलाया और वो संसार में कार्तिकेय के नाम से प्रसिद्ध हो गया ।

इंद्र की पराजय और कार्तिकेय की विजय :

कार्तिकेय के तेज को देख कर सभी देवता भयभीत हो गए और इंद्र से प्रार्थना की कि इस बालक वो मार डालें । लेकिन स्कंद ने इंद्र को भी पराजित कर दिया और इंद्र ने उन्हें अपनी सेना का सेनापति बनाया और देवसेना के साथ उनका विवाह करा दिया । स्वाहा ने सप्त ऋषियों की पत्नियों को निर्दोष साबित करने के लिए अपना राज़ खोल दिया कि वो ही स्कंद की असली माता हैं ।

शिव और पार्वती के पुत्र स्कंद :

महाभारत की कथा के अनुसार स्वयं शिव ने अग्नि के भीतर और पार्वती ने स्वाहा के भीतर प्रवेश कर यह समागम किया था इस लिए स्कंद भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कहलाये । आश्चर्य की बात यह है कि वाल्मीकि रामायण में जहां गंगा और अग्नि के द्वारा स्कंद की उत्पत्ति होती है यहां गंगा का स्थान स्वाहा ले लेती हैं ।

महाभारत में स्कंद का रौद्र रुप :

वाल्मीकि रामायण में जहां स्कंद एक सामान्य तेजस्वी रुप में प्रगट होते हैं वहीं महाभारत में वो जन्म के साथ ही महा रौद्र रुप धारण कर लेते हैं और सभी पर्वतों को नष्ट करने लगते हैं । उनके जन्म के साथ कई उत्पात होने लगते हैं। स्त्री पुरुषों का स्वभाव बदल जाता है । ग्रह, दिशाएं और आकाश जलने लगते हैं । सप्त ऋषियों को ऐसा लगा कि उनकी पत्नियों ने अग्नि के साथ समागम कर लिया था जिससे स्कंद की उत्पत्ति हुई तो उन सभी ने अपनी पत्नियों का त्याग कर दिया । बाद में ऋषि विश्वामित्र के द्वारा रहस्य को प्रगट किया जाता है कि सप्त ऋषियों की पत्नियां नहीं बल्कि स्वाहा ही उन सबसे वेष में थी तब जाकर ऋषि अपनी पत्नियों को अपनाते हैं ।

लोकमातृकाओं द्वारा स्कंद को पुत्र बनाना :

जब स्कंद को इंद्र भी पराजित करने में डरने लगे तो उन्होंने लोक मातृकाओं को स्कंद को पराजित करने के लिए भेजा । लेकिन स्कंद को देख कर वो भी भयभीत हो गईं और उन्होंने स्कंद को अपना पुत्र बना लिया । लोकमातृकाओं ने उन्हें अपना दूध पिला कर अपना पुत्र बना लिया ।

देवसेना और स्कंद का विवाह :

इंद्र को जब स्कंद पराजित कर देते है तो इंद्र प्रसन्न होकर उन्हें अपनी सेना का महासेनापति बना लेते है। इंद्र को लगता है कि स्कंद ही देवसेना के पति होने के योग्य हैं । इंद्र देवसेना और स्कंद का विवाह कराते हैं । 

पुराणो में स्कंद के जन्म का वर्णन :

महाभारत और वाल्मीकि रामायण दोनों में ही स्कंद के जन्म का कोई निश्चित उद्देश्य नहीं दिया गया है । लेकिन स्कंद पुराण और अन्य कुछ पुराणों की कथा के मुताबिक स्कंद या कार्तिकेय का जन्म तारकासुर के वध के लिए हुआ था । तारकासुर ने तपस्या द्वारा यह वरदान प्राप्त किया था कि उसे शिव और पार्वती के पुत्र के द्वारा ही मारा जाए । इसीलिए कार्तिकेय का जन्म शिव और पार्वती के द्वारा हुआ और तारकासुर का वध संभव हुआ ।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Translate »