गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं :
गणेश चतुर्थी : शुद्ध सनातन धर्म में भगवान गणेश के जन्म को लेकर अनेक कथाएं हैं। ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन भगवान गणेश जी का जन्म हुआ था । भगवान गणेश को सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूज्य होने का गौरव प्राप्त है । लेकिन उनका जन्म कैसे हुआ और कैसे बने वो प्रथम देव इसकी अलग अलग ग्रंथों में अलग अलग कथाएं हैं । लिंग पुराण की कथा के अनुसार भगवान शिव के ही अंश हैं भगवान गणेश, कथा है कि एक बार दैत्यों के अत्याचारों से त्रस्त होकर देवता गण भगवान शिव के पास पहुंचें और उनसे प्रार्थना की कि वो उनके विघ्नों को हर लें। तब चतुर्थी ( गणेश चतुर्थी ) के दिन भगवान शिव ने गणपति का स्वरुप धारण कर लिया । वो गजमुख थे और युद्ध कला में माहिर थे।
चूंकि भगवान शिव के इस स्वरुप का अवतरण भाद्रपद चतुर्थी के दिन हुआ था इसलिए इस दिन को ही गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है । भगवान शिव ने अपने इस स्वरुप को गणेश का नाम दिया और आदेश दिया कि वो देवताओं के विघ्नों को हरें और दैत्यों का नाश करें ।
माता पार्वती के पुत्र हैं गणेश :
- शिव पुराण की कथा के अनुसार भगवान गणेश जी की उत्पत्ति माता पार्वती के तन से हुई है ।
- कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती स्नान कर रही थीं। तब उन्होंने अपने द्वार की रक्षा के लिए एक बालक को उत्पन्न किया ।
- इस बालक ने भगवान शिव को अपने ही द्वार पर रोक लिया । इसके बाद देवताओं से गणेश जी का युद्ध शुरु हो गया ।
- देवताओं को जब गणेश जी ने पराजित कर दिया तब शिव जी ने क्रोध में आकर गणेश जी का सिर काट दिया ।
- माता पार्वती ने अपने पुत्र का सिर कटा देखा तो क्रोधित हो गईँ । तब भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर उस बालक पर लगा दिया ।
- इसके बाद से यह बालक गणेश के नाम से प्रसिद्ध हो गया । यह घटना भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन हुई थी तब से इस दिन को गणेश चतुर्थी के नाम पर मनाया जाता है ।
विष्णु के स्वरुप हैं गणेश :
गणेश चतुर्थी पर यह कथा शुद्ध सनातन आपको बता रहा है, ब्रम्हवैवर्त पुराण के अनुसार गणेश विष्णु जी के अवतार हैं । कथा के अनुसार माता पार्वती ने तपस्या कर विष्णु से उनके जैसे पुत्र का वरदान प्राप्त किया, तब भगवान विष्णु ने गणेश जी के रुप मे उनके घर पर जन्म लिया। जिस दिन विष्णु जी ने गणेश के रुप में जन्म लिया उस दिन से ही गणेश चतुर्थी मनाने की प्रथा शुरु हुई है।
माता लक्ष्मी के पुत्र हैं गणेश :
कथाओं के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी जी को अभिमान हो गया कि वो माता पार्वती से श्रेष्ठ हैं। तब भगवान विष्णु ने मुस्कुराते हुए माता लक्ष्मी को कहा कि उनके तो कोई संतान ही नहीं हैं तब वो माता पार्वती से श्रेष्ठ कैसे हो सकती हैं क्योंकि माता पार्वती की दो संतानें कार्तिकेय और गणेश हैं।
तब माता लक्ष्मी ने माता पार्वती से आग्रह किया कि वो गणेश जी को उनका पुत्र बनाने के लिए दे दें। माता पार्वती ने एक शर्त रखी। माता पार्वती ने माता लक्ष्मी से कहा कि उनका पुत्र गणेश छोटा बालक है और उसे हर वक्त भूख लगी रहती हैं। जबकि लक्ष्मी चंचला हैं वो एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमती रहती हैं । ऐसे में गणेश जी का ध्यान कौन रखेगा ।
तब माता लक्ष्मी ने माता पार्वती को वचन दिया कि जहां भी वो जाएंगी उनके साथ गणेश जी हमेशा रहेंगें । इस शर्त पर माता पार्वती जी ने गणेश जी को माता लक्ष्मी को पुत्र के रुप मे अपनाने की इजाजत दे दी। इसके बाद से हमेशा माता लक्ष्मी के साथ विष्णु की पूजा हो न हो लेकिन भगवान गणेश उनके साथ पुत्र रुप में हमेशा रहते हैं और माता लक्ष्मी की पूजा बिना गणेश की पूजा के पूरी नहीं हो सकती है ।
शनि के प्रकोप से बच न सके गणेश जी :
पौराणिक कथाओं के अनुसार गणेश जी का सिर पहले एक मानव का सिर था । जब गणेश जी का जन्म हुआ तो सभी देवी देवता माता पार्वती और शिव जी को बधाई देने के लिए कैलाश पधारे । भगवान शनि गणेश जी को देखने से बच रहे थे क्योंकि शनि की दृष्टि अमंगलकारी होती है । माता पार्वती की जिद पर जब शनि ने भगवान गणेश जी को देखा तो उनका सिर तत्काल कट कर गिर गया । तब भगवान विष्णु ने एक हाथी के बच्चे का सिर लगा कर गणेश जी को यह स्वरुप प्रदान किया ।
खंडित देवता हैं गणेश जी :
वैसे शुद्ध सनातन धर्म में खंडित देवता की पूजा नहीं की जाती । लेकिन गणेश जी एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनके अंग खंडित हैं लेकिन फिर भी वो सर्वप्रथम पूज्य देवता हैं । गणेश जी का सिर तो एक हाथी का है ही जिसे कटने के बाद लगाया गया था । उनका एक दांत भी टूटा हुआ है इसलिए उन्हें एकदंत भी कहा जाता है । गणेश जी का दांत दरअसल परशुराम जी के युद्ध के दौरान उस वक्त टूटा था जब उन्होंने परशुराम जी को शिव जी से मिलने से रोक दिया था।
कथा के अनुसार विष्णु के अवतार परशुराम जी भगवान शिव के भक्त थे और उनके दर्शन के लिए कैलाश आए। लेकिन गणपति ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया। क्रोध में आकर परशुराम जी गणेश जी पर अपने फरसे से वार कर दिया । इसके फलस्वरुप भगवान गणेश जी का एक दांत टूट गया । बाद में भगवान विष्णु ने गणेश और परशुराम जी के युद्ध को रोका ।
महाभारत के रचयिता गणेश :
वैसे तो गणेश जी भगवान शिव के गणों के पति हैं और गणपति कहलाते हैं । लेकिन वो युद्ध में महावीर होने के साथ-साथ सबसे बुद्धिमान देवता भी हैं।शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश को बुद्धि, तर्क और व्याकरण का देवता माना जाता है । हाथी का बड़ा सिर उनकी बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना जाता है कथा के अनुसार वेद व्यास जी ने महाभारत लिखने के लिए गणेश जी की प्रार्थना की थी । गणेश जी ने अपने एक टूटे दांत से ही महाभारत को लिखा था ।
माता पिता के भक्त हैं गणेश :
शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश अपने पिता भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे बड़े भक्त हैं। जब कार्तिकेय और गणेश में श्रेष्ठ होने की प्रतियोगिता हुई थी तब गणेश जी अपनी मातृ और पितृ भक्ति से ही विजयी हुए थे ।