वैसे तो भगवान बुद्ध को भगवान श्री हरि विष्णु का अवतार बनाने के लिए लेकर कई मतभेद भी हैं और सनातन धर्म और बौद्ध संप्रदाय से जुडी कई शाखाएं इसका खंडन भी करती रही हैं। परंतु शुदध् सनातन धर्म के कई मूल पौराणिक ग्रंथों और अन्य महान संतो के द्वारा यह स्थापित किया गया है कि भगवान बुद्ध ही श्री हरि विष्णु के नवम अवतार हैं ।
श्रीमद् भागवतम् में भगवान बुद्ध का वर्णन :
शुद्ध सनातन धर्म के एक महत्वपूर्ण और महान पौराणिक ग्रंथ श्री मद् भागवतम् में जिन दस अवतारों का वर्णन किया गया है वो हैं – मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंग, वामन, परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार , बाकि के सभी ग्रंथो में अवतारों के नाम लगभग एक से ही हैं लेकिन सिर्फ नवम अवतार को लेकर कई भ्रांतियां है । कुछ ग्रंथों में नवम अवतार के रुप में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी को रखा जाता है , तो कहीं विठ्ठल को तो कहीं जगन्नाथ भगवान को यहां आश्चर्यजनक बात यही है कि नवम अवतार को कृष्ण का समकालीन या कृष्ण का ही कोई और रुप बता दिया जाता है – जैसे विठ्ठल और भगवान जगन्नाथ जो भगवान कृष्ण के ही एक अन्य रुप- नाम हैं । अब भगवान जगन्नाथ अगर नवम अवतार हैं तो कृष्ण भी उसी काल में अवतरीत हैं। तो भगवान श्री हरि विष्णु अपने दो – दो अवतारो में क्यों आएंगे ये विवादित प्रश्न हैं ।
जयदेव रचित दशावतारम में हैं बुद्ध का वर्णन :
वैसे बुद्ध को नवम अवतार के रुप में जयदेव कृत दशावतारम ग्रंथ में भी है जिसे सिक्खो के पवित्रतम ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में स्थान प्राप्त है । आदि गुरु शंकराचार्य ने भी भगवान बुद्ध को नवम अवतार माना है ।
बौद्ध धर्म ग्रंथों में है भगवान कृष्ण की कथा :
अब हम देखते हैं कि बौद्ध धर्म में क्या स्थिति है। जातक कथाएं जिसमें तथागत बुद्ध की 500 से भी अधिक पूर्व जन्मों का वर्णन है उसमें एक कथा घटजातक के नाम से प्रसिद्ध है । घट जातक में भगवान श्री कृष्ण के जीवन का पूरा वर्णन है । इसमें भगवान श्री कृष्ण को अपने पुत्र वियोग का सामना करने पर घटपंडित नामक उनसे छोटे भाई से शिक्षा मिलती है ।
यह भी कहा जाता है कि भगवान बुद्ध के शिष्यो में सारीपुत्त कृष्ण के ही पुनर्जन्म थे । इसके अलावा जब बुद्ध के कबीले शाक्य और कुल्य कबीले के बीच युद्द की स्थिति आती है तब भगवान बुद्ध भी कृष्ण की तरह युद्ध भूमि में उपदेश देते हैं । फर्क सिर्फ इतना ही है कि कृष्ण युद्ध करने का उपदेश देते हैं जबकि बुद्ध युद्ध की व्यर्थता का उपदेश देते हैं ।
सनातन धर्म की शाखा है बौद्ध संप्रदाय :
बौद्ध धर्म को हमेशा सनातन धर्म के विपरीत रखा गया है औऱ कहा गया है कि बुद्ध सनातन धर्म के सिद्धांतो के एकदम विपरीत थे । लेकिन बुद्ध के उपदेशों धम्मपद से ज्ञात होता है कि बुद्ध ब्राह्णणों का आदर करते थे। बुद्ध ने वर्णव्यवस्था को भी समाप्त नहीं किया था बस ब्राह्णणों से उपर क्षत्रियों को रखा था ।
इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि बौद्ध धर्म हिंदू देवताओं को नहीं मानता है तो फिर अशोक सम्राट के नाम के पहले देवानांप्रिय अर्थात देवताओं का प्रिय क्यों लगाया जाता था । और तो और बौद्ध धर्म पर लिखी अधिकांश पुस्तकों का प्रारंभ सरस्वती वंदना से होता है । देवी तारा भी बौद्ध तंत्र संप्रदाय वज्रयान की प्रमुख देवी हैं।
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