अलावार और नयनार संतों ने दक्षिण भारत जो भक्ति की धारा चलाई उसे वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य और माध्वाचार्य ने दक्षिण भारत के कोने कोने में फैला दिया। अब बारी उत्तर भारत की थी। दक्षिण भारत से उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन का लाने वाली महान आत्मा का नाम था स्वामी रामानंदाचार्य। उन्ही के लिए यह कहा जाता है कि “उपजी द्रविड़ भक्ति रामानंद लाये”। सन 1300 के करीब जब उत्तर भारत जात पांत, उंच नीच और छुआ छूत जैसी खराब प्रथाओं से ग्रस्त था तब रामानंदाचार्य जी ने राम भक्ति का उपदेश दिया। राम की भक्ति का द्वार उन्होंने दलित और स्त्रियों सबके लिए खोल दिया।
” जात -पांत ना पूछै कोई, हरि को भजे सो हरि को होय ” – रामानंदाचार्य
रामानंद जी 12 महान शिष्यों में दलित और स्त्रियां भी थीं। संत कबीरदास, संत रैदास. धन्ना जाट, पीपा, सुरसरीऔर पद्मावति उनके प्रमुख शिष्यों में एक थे। कहा जाता है कि रामानंद जी ने राम नाम का मंत्र बनारस के एक पेड़ पर चढ कर दिया था ताकि राम का नाम सभी जाति- धर्म. स्त्री – पुरुष अपना सकें। बनारस के श्रीमठ को ही उन्होंने राम नाम आंदोलन का मुख्य केंद्र बनाया और यह घोषणा की राम सबके लिए हैं चाहे वो राम को निराकार ब्रम्ह के रुप में पूजना चाहे या फिर वो भगवान राम की मूर्ति बना कर पूजे लेकिन राम घट- घट में हैं और सबके लिए हैं। रामानंद जी के इसे सिद्धांत को समन्वयवादी सिद्धांत कहा जाता है