शुद्ध सनातन धर्म में महावीर हनुमान जी को चिरंजीवी अर्थात अजर अमर कहा जाता है । वैसे शास्त्रों को पढ़ने से यही लगता है कि जिस किसी ने भी पृथ्वी पर जन्म लिया है उसे कभी न कभी मृत्यु का वरण करना ही पड़ता है । यहां तक कि भगवान श्री हरि विष्णु के सभी अवतारों को चाहे वो श्री राम हों या श्री कृष्ण एक न एक दिन उन्हें इस लोक को त्याग कर अपने लोक में जाना ही पड़ा था । तो क्या सच में इस नियम का उल्लंघन कर किसी को अमर बनाया जा सकता है या फिर उसे सिर्फ चिर काल के लिए दीर्घजीवी बनाया जा सकता है ।
चिरंजीव और अमरता में क्या फर्क है :
शास्त्रों की मानें तो कोई भी अमर नहीं हो सकता है । सभी पुराणों में यह कथा आती है कि दैत्यों ने ब्रम्हा और भगवान शिव की उपासना की और अमरता का वरदान मांगा । लेकिन ब्रम्हा और भगवान शिव ने किसी को भी सीधे अमरता का वरदान नहीं दिया । इसके बदले में दैत्यों और दानवों ने किसी विशेष परिस्थिति के अंतर्गत अपनी मृत्यु होने का वरदान मांग लिया । जैसे महिषासुर ने यह वरदान मांगा था कि उसका वध किसी भी मनुष्य, देवता, गंधर्व ,राक्षस, किन्नर, पशु और पक्षी के द्वारा न हो । ऐसे में वो नारी के द्वारा वध से मुक्त होने का वरदान मांगना भूल गया । इसके फलस्वरुप स्त्री शक्ति मां दुर्गा ने उसका वध कर दिया ।
हिरण्यकश्यप का वध :
हिरण्यकश्यप ने भी ब्रम्हा से वरदान मांगा था कि उसकी मृत्यु न तो दिन में और न ही रात में, न आकाश में न पृथ्वी पर और न ही जल में हो। न घर के बाहर और न ही घर के अंदर हो। न इंसान और न ही पशु से हो। न तो किसी अस्त्र से और न ही किसी शस्त्र से हो । न तो किसी प्राणी के गर्भ से जन्में प्राणी से हो ।ऐसे में भगवान श्री हरि विष्णु ने न तो नर और न ही पशु अर्थात आधे नर और आधे पशु के नृसिंह रुप में अवतार लिया । हिरण्यकश्यप को न तो घर के अंदर और न ही घर के बाहर अर्थात घर की चौखट पर मार डाला । उसका वध नृसिंह भगवान ने न तो अस्त्र से और न ही शस्त्र से बल्कि उसे अपने नाखूनों से मार डाला । उसका वध न तो दिन में और न ही रात में अर्थात सायंकाल में कर दिया गया ।
अमरता का वरदान किसी को नहीं है :
पौराणिक कथाओं के अनुसार किसी को भी प्रकृति के नियम के अनुसार अमर नहीं किया जा सकता है। सिर्फ वही प्राणी अमर हो सकता है जिसने अमृत का पान किया है। अमृत का पान सिर्फ देवताओं के अलावा राहु और केतु ने किया था और वही सिर्फ अमर हैं।
अमरता के स्थान पर तीन प्रकार के वरदान दिये गये हैं ।पहला वरदान इच्छा मृत्यु का है और दूसरा वरदान चिरंजीवी होने का है और तीसरा वरदान अवध्य होने का है । इच्छा मृत्यु का वरदान महाभारत में भीष्म पितामह को मिला था । चिरंजीवी होने का वरदान मार्कण्डेय ऋषि, महावीर हनुमान जी , अश्वत्थामा, व्यास आदि को मिला है जबकि अवध्य होने का वरदान मुख्य रुप से कृपाचार्य को मिला है । लेकिन चिरंजीवी , अवध्य और इच्छा मृत्यु का अर्थ अमर होना नहीं है । इनकी भी मृत्यु तय है । जैसे अश्वत्थामा को श्रीकृष्ण ने 3000 साल तक जीवित रहने का शाप दिया था । अर्थात तीन हज़ार वर्षों तक अश्वत्थामा जीवित रहेगा । चिरंजीवी होने का अर्थ यही होता है कि वो लंबे वक्त तक जीवित रहेगा लेकिन अमर नहीं होगा। इस हिसाब से अश्वत्थामा की मृत्यु हो चुकी है क्योंकि महाभारत के हुए तीन हजार सालों से ज्यादा हो चुके हैं ।
कृपाचार्य को अवध्य कहा गया है अर्थात कृपाचार्य का वध किसी अस्त्र या शस्त्र से नहीं किया जा सकता है । लेकिन महाभारत में ऐसे कई पात्र हैं जो अवध्य थे लेकिन कृष्ण ने चतुराई से उनका वध करवा दिया ।
क्या हनुमान जी अमर हैं :
यह प्रश्न बहुत ही सूक्ष्म है। वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी के अमर होने की कोई भी बात कहीं भी नहीं कही गई है। लेकिन तुलसीदास रचित रामचरितमानस में और कई अन्य परवर्ती कथाओ में कहीं हनुमान जी को अमर कहा गया है, तो कहीं चिरंजीवी तो कहीं अवध्य। आखिर सत्य क्या है इसकी विवेचना जरुरी है। एक बात और अमरता से तात्पर्य सिर्फ शरीर का जीवित रहना नहीं है बल्कि यश और सम्मान का सनातन काल के लिए स्थिर होना भी एक प्रकार की अमरता ही है।
सभी देवताओं ने दिया हनुमान जी को वरदान :
परवर्ती कथाओं में ऐसी कथाएं हैं कि बाल्यकाल में हनुमान जी एक बार भगवान सूर्य को लाल फल समझ कर उसे खाने के लिए आकाश की तरफ उड़ चले। भगवान सूर्य यह देख कर घबरा जाते हैं और इंद्र को सहायता के लिए पुकारते हैं। इंद्र बालक हनुमान जी पर अपना वज्र चला देते हैं और हनुमान जी मूर्छित हो जाते हैं। ऐसे देख कर उनके पिता वायुदेव क्रोधित हो जाते हैं और संसार में वायु का प्रवाह रोक देते हैं। ऐसे में वायुदेव के क्रोध को शांत करने के लिए कई देवतागण हनुमान जी को फिर से होश में लाते हैं और कई प्रकार के वरदान देते हैं।
इंद्र हनुमान जी को अपने वज्र के प्रहार से मुक्त होने का वरदान देते हैं । अर्थान हनुमान जी वज्रांग हो जाते हैं ।वरुण और यमराज उन्हें अपने पाश और दंड के प्रहारों से मुक्त होने का वरदान देते हैं । कुबेर के वरदान से हनुमान जी पर किसी भी प्रकार की गदा के प्रहार का असर नहीं होता था ।
भगवान शिव ने हनुमान जी को अपने सारे शिवास्त्रों के असर से मुक्त कर दिया था तो सभी अस्त्रों और शस्त्रों के निर्माता भगवान विश्वकर्मा ने पुत्र स्वरुप हनुमान जी को अपने सभी अस्त्रों और शस्त्रो से अजेय होने का वरदान दिया था । यहां तक कि ब्रम्हा ने भी हनुमान जी को ब्रम्हास्त्र जैसे अचूक महाविनाशकारी अस्त्र के प्रभाव से मुक्त कर दिया था। तभी तो जब हनुमान जी पर मेघनाद ने ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया था तब उन पर इसका असर नहीं हुआ था लेकिन हनुमान जी ने ब्रम्हा के अस्त्र की मर्यादा के लिए खुद को मूर्छित कर लिया था-
ब्रम्हअस्र तेहिं साधा। कपि मन किन्हीं विचार।
जौ न ब्रम्हसर मानिउं । महिमा मिटहिं अपार।।
लेकिन क्या इन वरदानों में कहीं भी यह बात सिद्ध होती है कि महावीर हनुमान जी अमर हैं।
लेकिन सुंदरकांड में तुलसीदास जी माता सीता जी के द्वारा महावीर हनुमान जी को अजर अमर होने का वरदान देते दिखाते हैं । जब अशोक वाटिका में महावीर हनुमान जी माता जानकी को श्रीराम का संदेश देते हैं तो भाव विह्वल माता जानकी उनको अपना पुत्र कहते हुए अजर अमर रहने का वरदान देती हैं –
अजर अमर गुननिधि सुत होउ।
करहुं बहुत रघुनाथ छोहु।।
माता जानकी ने हनुमान जी को अजर ( बुढ़ापे से रहित) और अमर होने का वरदान दिया था। सुंदरकांड की ये चौपाई एक तरफ जहां माता जगदंबा सीता जी की अपार दैवी शक्ति होने का अहसास कराती हैं। जहां अमरता का वरदान देने की शक्ति ब्रम्हा के पास भी नहीं हैं वहीं माता सीता अपने पुत्र स्वरुप हनुमान जी को अमरता का वरदान दे देती हैं, वहीं साथ में बजरंग बली की अपार भक्ति को भी दर्शाता है। लेकिन इस अजरता और अमरता के पीछे एक शर्त है । वह शर्त है कि जब तक श्री राम की प्रीति हनुमान जी पर रहेगी तब तक वो अजर अमर रहेंगे । अब यह तो संभव ही नहीं था कि श्रीराम की अपने सबसे प्रिय भक्त पर से कभी प्रीति खत्म होगी सो इस हिसाब से महावीर हनुमान जी अजर और अमर रहेंगे ।
जब तक श्रीराम का नाम है तब तक हनुमान हैं :
माता सीता ने महावीर हनुमान जी को अजरता और अमरता का वरदान देने के पीछे जो शर्त रखी थी वो बहुत ही गहरे अर्थों वाली है । क्योंकि इसका जवाब हमें दूसरे श्लोंकों से मिल जाता है ।एक श्लोक में श्री राम हनुमान जी से कहते हैं –
चरिष्यति कथा लोके च मामिका तावत भविता कीर्तिः शरीरे प्यत्वस्था ।
लोकहि यावतश्थास्यन्ति तावत श्थास्यन्ति में कथाः ।।
जब तक संसार में मेरी कथा का श्रवण होता रहेगा तब तक संसार में तुम्हारी सशरीर उपस्थिति रहेगी ।
अनंत काल तक रहेंगे हनुमान जी :
कई अन्य स्थानों पर भी यही वर्णन है कि जब तक संसार में राम कथा का वाचन होता रहेगा तब तक महावीर हनुमान जी सशरीर इस संसार में चिरंजीवी बन कर रहेंगे। अब यह तो तय है कि संसार में राम कथा का वाचन कभी भी खत्म नहीं हो सकता ऐसे में महावीर हनुमान जी भले ही शास्त्रोक्त तरीके से अमर नहीं हों लेकिन चिरंजीवी होकर वो अनंतकाल तक रहेंगे ही क्योंकि राम कथा तो अनंत काल तक चलेगी ।