Holi 2021

Holi 2021: होली के त्यौहार | होली पर्व पर किस देवता की पूजा करें ?

होली हिंदुओं का एक प्राचीन और सनातन धर्म का पवित्र त्यौहार है। होली का त्यौहार कब से मनाया जा रहा है ये कोई नहीं जानता है। होली के त्यौहार या पर्व पर किस विशेष देवता की पूजा करनी चाहिए इस पर भी कोई एकमत नहीं है। लेकिन यह जरुर है कि होली ही संभवतः एकमात्र ऐसा बड़ा त्यौहार है, जिसे सभी वर्ण और जाति के लोग समानता के भाव से मनाते हैं।

सनातन धर्म या हिंदू धर्म में त्यौहार या पर्व क्यों मनाए जाते हैं?

सनातन धर्म के लगभग सभी त्यौहार या पर्व मुख्यतः तीन कारणों से मनाए जाते हैं।

  1. ईश्वरीय सत्ता के अवतरण के अवसर पर त्यौहार या पर्व मनाया जाता है, जैसे रामनवमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आदि
  2. ईश्वरीय सत्ता के किसी पराक्रम या विजय के अवसर त्यौहार या पर्व पर मनाया जाता है जैसे दशहरा जो देवी दुर्गा और श्रीराम के विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  3. किसी तिथि विशेष के दिन सनातन धर्म से जुड़ी कोई विशेष पवित्र घटना घटित हुई हो
    • जैसे धनतेरस : इस दिन समुद्र मंथन से धन्वंतरी निकले थे
    • अक्षय तृतीया : इस दिन द्रौपदी को भगवान सूर्य ने अक्षय पात्र दिया था
    • रक्षाबंधन : इस दिन दैत्यराज बलि ने माता लक्ष्मी से रक्षाबंधन बंधवाया था
    • शिवरात्रि : इस तिथि पर शिव और पार्वती का विवाह हुआ था
    • विवाह पंचमी : इस दिन श्रीराम सीता का विवाह हुआ था

4. किसी की तपस्या पूर्ण होने के उपलक्ष्य में भी त्यौहार या पर्व मनाए जाते हैं। जैसे पार्वती जी ने शिव को प्राप्त करने के लिए तपस्या की। उनकी तपस्या पूर्ण होने पर ‘तीज’ मनाया जाता है। जिस तिथि को सावित्री ने अपने पति सत्यवान को मृत्यु के मुंह से वापस लाने में सफलता प्राप्त की थी, उस तिथि पर ‘वट- सावित्रि’ का पर्व मनाया जाता है।

सनातन धर्म या हिंदू धर्म, प्रकृति और मनुष्यों की गतिविधियों से बहुत गहरा जुड़ा हुआ है। मनुष्य जिन सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को करता है, उसके प्रारंभ या उसकी समाप्ति को भी त्यौहार या पर्व के रुप में मनाता है। मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल, ओणम, नवान्न आदि पर्व फसलों से जुड़े हैं। फसलों के कटने पर जो आर्थिक समृद्धि आती है उससे जो प्रसन्नता मिलती है वही त्यौहार के रुप में बदल जाती है। जो हमें प्राप्त होता है, वही हम ईश्वर को समर्पित भी कर देते हैं। समर्पण का यही भाव त्यौहार या पर्व कहलाता है जिसमें सामाजिक भागीदारी बड़े स्तर पर होती है।

होली त्यौहार का यह नाम कैसे पड़ा ?

होली त्यौहार वैदिक काल से प्रचलित था, लेकिन इसे किसी और नाम से मनाया जाता था। होली त्यौहार या पर्व को ऋग्वैदिक काल में ‘नवात्रैष्टि यज्ञ’ कहा जाता था। इस ‘नवात्रैष्टि पर्व’ के अवसर पर खेतों से अधपके अन्न के दानों को लाकर देवताओं को हविष्य के रुप में यज्ञ में समर्पित किया जाता था। यह पर्व मुख्यतः महिलाएं अपने परिवार के सुख और समृद्धि के लिए मनाती थीं और फाल्गुन पूर्णिमा की रात को चंद्र देवता की अराधना भी करती थीं। इस लिए ‘नवात्रैष्टि पर्व’ का एक नाम पूर्ण ‘चंद्र पर्व’ भी पड़ गया।

‘होला ‘अर्थात् ‘अन्न’ से बना है होली का त्यौहार

कालांतर में अन्न के लिए ‘होला’ शब्द भी प्रयुक्त किया जाने लगा। शब्द में इस परिवर्तन से ‘नवात्रैष्टि यज्ञ’ ‘होलाका’ या ‘होलिकोत्सव’ या ‘होली पर्व’ में बदल गया। फाल्गुन पूर्णिमा जिसे हिंदू पांचांग की आखिरी तिथि भी माना जाता है, उस तिथि को ही यज्ञकुंड में देवताओं को अन्न समर्पित कर होली का त्यौहार मनाने की परंपरा शुरु हुई। फाल्गुन पूर्णिमा की अगली तिथि चैत्र प्रतिपदा होती है, जो हिंदू पांचांग के अनुसार नववर्ष के शुरुआत की तिथि है।

सृष्टि के प्रारंभ से जुड़ा है होली त्योहार

  • कहा जाता है कि ‘चैत्र प्रतिपदा’ के दिन ही पृथ्वी के पहले राजा स्वयंभु मनु का भी जन्म हुआ था जिन्होंने अयोध्या की स्थापना कर पूरी पृथ्वी पर मानवों के शासन की शुरुआत की थी। कुछ ग्रंथों के अनुसार मनु का जन्म फाल्गुन पूर्णिमा( होली के दिन) के दिन हुआ था। कुछ के अनुसार चैत्र मास की तृतीया के दिन मनु का जन्म हुआ था, इसलिए इन तिथियों को ‘मन्वादितिथि’ भी कहा जाता है।
  • यह मतभेद इसलिए भी है, क्योंकि एक नहीं बल्कि 14 मनु हुए हैं। कुछ ग्रंथों के अनुसार स्वयंभु मनु का जन्म चैत्र तृतीया को हुआ था। एक दूसरे मनु सावर्णि का जन्म फाल्गुन पूर्णिमा( होली त्योहार) के दिन हुआ था। तीसरे मनु स्वारोचिष का जन्म चैत्र पूर्णिमा को हुआ था। इस लिए इन तीनों तीथियों को संयुक्त रुप में मन्वादि अर्थात मनुओं के जन्म की तिथियां माना जाता है।
  •  इन तिथियों से ही विभिन्न मनुष्यों के शासन के युगों की शुरुआत भी मानी जाती है इसलिए इन तिथियों के आधार पर विभिन्न मन्वंतरों की शुरुआत मानी गई है। लेकिन फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि हिंदू पांचाग की आखिरी तिथि है, इसलिए हिंदू अपने वर्ष के आखिरी दिन को होली के उत्सव के रुप में मनाते हैं।
 भगवान विष्णु के अवतरण का पर्व है होली का त्यौहार
  • भगवान श्रीहरि विष्णु वैदिक काल में बहुत कम दिखाई देते हैं। वैदिक काल के प्रमुख देवता के रुप में इंद्र को ही सबसे बड़े और पराक्रमी देवता के रुप में दिखाया गया है। इंद्र ही सभी असुरों के नाशक बताए गए हैं। शम्बर, नमुचि, वृत्रासुर आदि के संहारक के रुप में इंद्र ही प्रमुख देवता के रुप में सामने आते हैं।
  • लेकिन, वैदिक काल के अंत होते- होते भगवान विष्णु प्रबल रुप से सृष्टि के रक्षक और पालक के रुप में स्थापित होने लगते हैं। इंद्र के विपरीत विष्णु पृथ्वी पर दूसरे स्वरुपों में अवतार ले सकते हैं। यह एक बिल्कुल नई बात थी।
  • इंद्र के पास छल था, वज्र था और इंद्रजाल की शक्ति थी। विष्णु के पास छल से ज्यादा बेहतर लीला करने का गुण था। शस्त्र के रुप में वज्र से ज्यादा शक्तिशाली चक्र था और इंद्रजाल से ज्यादा प्रभावी मायाजाल था। इसके अलावा विष्णु अवतार भी ग्रहण कर सकते थे।
  • हालांकि वैदिक ग्रंथों की शुरुआत में वो बस सृष्टि की रक्षा और पालन ही करते देखे गए। जैसे उनके मत्स्य अवतार, कच्छप अवतार, मोहिनी अवतार का उद्देश्य देवताओं की सहायता करना था। या तो वो पृथ्वी को प्रलय से उबारने के लिए मत्स्य अवतार के रुप में सामने आये या फिर देवताओं को अमृत लेने में सहायता करने के लिए कच्छप और मोहिनी अवतार लेकर प्रगट हुए।
  • वो पृथ्वी को रसातल से निकालने के लिए वाराह अवतार के रुप में भी प्रगट हुए। परंतु इन सारे कार्यों में राहु- केतु का वध छोड़कर वो दैत्य, राक्षसों और अधर्मियों के विनाश के लिए मुख्य रुप से प्रगट नहीं हुए और न ही उन्होंने अपने किसी भक्त की पुकार पर कोई अवतार लिया। लेकिन, उनके इन सारे पराक्रमों से यह स्पष्ट होने लगा कि वो धर्म की संस्थापना के लिए इंद्र से ज्यादा महान ईश्वरीय सत्ता हैं।

‘नृसिंह’ भगवान से जुड़ा है होली का त्यौहार

पुराणों की कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप एक शक्तिशाली और अत्याचारी दैत्य था जिसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का महान भक्त था। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के प्रति अपनी शत्रुता रखता था और अपने पुत्र प्रह्लाद को विष्णु भक्ति से रोकने के लिए उस पर भी अत्याचार करने लगा। हिरण्यकश्यप को यह वरदान था कि न तो दिन में, न रात में, न घर के बाहर, न घर के अंदर, न किसी हथियार से और न ही किसी मनुष्य, जानवर, देवता या देवी से उसका वध किया जा सकता था। किसी प्राणी के गर्भ से जन्म लेने वाला भी उसका वध नहीं कर सकता था। हिरण्यकश्यप का वध न तो जल में, न आकाश में और न ही पृथ्वी पर किया जा सकता था।

जब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र पर अत्याचारों की सीमा पार कर दी तो भगवान श्रीहरि विष्णु एक खँभे से प्रगट हुए (किसी प्राणी के गर्भ से नहीं), उनका स्वरुप आधे सिंह और आधे मानव का (नृसिंह) था। उन्होंने घर के न तो बाहर और न ही अंदर अर्थात घर की चौखट पर हिरण्यकश्यप को अपनी गोद में (न तो जल, न आकाश और न ही पृथ्वी) रख कर सायं काल में ( न तो दिन और न ही रात) अपने नाखूनों से ( बिना किसी हथियार के) मार डाला। हिरण्यकश्यप के वध और भगवान नृसिंह के इसी अवतरण के उल्लास में होली पर्व को मनाने की प्रथा शुरु हुई। लेकिन होली के पहले भी एक और अन्य पर्व मनाया जाता है जो हिरण्यकश्यप की बहन होलिका से जुड़ा है।

होलिका क्यों जलाई जाती है ?

 हिरण्यकश्यप की बहन का नाम ‘होलिका’ था जिसके पास एक वस्त्र था जिसे अग्नि जला नहीं सकती थी। हिरण्यकश्यप के मृत्यु के एक दिन पहले ‘होलिका’ अपने भांजे की हत्या के लिए वस्त्र को ओढ़कर अग्नि में बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और ‘होलिका’ ही मृत्यु को प्राप्त हुई।यही वजह है कि होली के एक दिन पहले रात को सूखी लकडियों को जला कर होलिका दहन का उत्सव मनाया जाता है।

भगवान कृष्ण के जुड़ा है होली का त्यौहार

भगवान विष्णु के महान अवतार श्रीकृष्ण ने इसी दिन पूतना राक्षसी का भी वध किया था। कथा है कि भगवान श्रीकृष्ण जब बालक थे तो उनके मामा और शत्रु कंस ने उन्हे मारने के लिए पूतना नामक एक राक्षसी को भेजा। पूतना राक्षसी ने अपने स्तनों पर विष लगा कर कृष्ण को दूध पिला कर मारने की कोशिश की।लेकिन भगवान ने अपनी बाल्यवस्था में ही पूतना को मार डाला। यह घटना इसी दिन हुई थी और होली के त्यौहार का महत्त्व और भी ज्यादा बढ़ गया।

कामदेव के पुनर्जन्म का उत्सव है होली का त्योहार

वाल्मीकि रामायण, महाभारत और लगभग सभी पुराणों में भगवान शिव के द्वारा कामदेव को भस्म कर देने की कथा आती है। कथा यह है कि भगवान शिव माता सती के दाह के बाद वैरागी हो गए थे। भगवान शिव को पुनः सांसारिक जीवन में लाने के लिए देवताओं में कामदेव को तैयार किया कि वो अपने मोहक बाणों से शिव के अंदर संसार के प्रति काम और मोह की भावना उत्पन्न कर दें।

लेकिन भगवान शिव ने कामदेव को अपने क्रोध से भष्म कर दिया।

कामदेव की पत्नी रति के विलाप और प्रार्थना के बाद भोलेनाथ का दिल पिघल गया और उन्होंने कामदेव को नया जीवन दे दिया। भगवान शिव ने कामदेव को वरदान देते हुए कहा कि वो अब अंग( शरीर ) के रुप में उपस्थित होकर संसार को आकर्षित करना छोड़ कर अनंग( बिना शरीर धारण किये हुए) होकर ही संसार को मोहित करते रहेंगे। लेकिन वसंत के मौके पर कामदेव शरीर धारण कर सकेंगे। इसीलिए वसंत के प्रारंभ से अंत तक कामदेव ( जिन्हें मदन भी कहा जाता है) के शरीर धारण करने की खुशी में ‘मदनोत्सव’ मनाया जाता है। वसंत के दौरान प्रकृति में नए फूल, पत्ते और फल आने लगते हैं। सारी प्रकृति सुंदर होकर सभी प्राणियों के अंदर काम भावना उत्पन्न करने के लिए सक्रिय हो जाती है। कहा जाता है कि कामदेव को होली के दिन ही फिर से नया जीवन मिला था और इसलिए होली के दिन खूब उत्सव मनाया जाता है।

भगवान शिव से जुड़ा है होली का त्यौहार

संभवतः होली के दिन रंग लगाने और अपने शरीर को नए तरीके से सजाने की प्रथा भगवान शिव के गणों ने ही शुरु की थी। कहा जाता है कि होली के दिन भगवान शिव के गण भांग , धतूरा खाकर बाहर निकलते हैं और होली का उत्सव मनाते हैं। भगवान शिव के गण अपने शरीरों पर राख, चंदन आदि लगा कर विचित्र वेष भूषा बना लेते हैं। संभवतः उनके इस विचित्र श्रृंगार और वेष भूषा ने ही होली के दिन रंग, गुलाल, राख आदि लगाकर विचित्र वेष भूषा बना कर होली का त्यौहार मनाने की प्रथा शुरु हुई होगी।

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