सनातन धर्म में जिन महान तपस्वियों का वर्णन है उनमें माता पार्वती का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है । हरतालिका तीज की कथा लगभग सभी पुराणों और महाकाव्यों में माता पार्वती की कठोर तपस्या का वर्णन किया गया है । भगवान शिव को अपने पति के रुप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने ऐसी कठोर तपस्या की थी जिसे आज भी कोई नहीं कर सकता है । माता पार्वती की तपस्या का वर्णन महाभारत और रामायण में भी है । जबकि हरतालिका तीज की कथा लिंग महापुराण में दी गई है ।
Table of Contents
वैरागी शिव को सासांरिक बनाने वाली तपस्या
- पुराणों, महाभारत और रामायण की कथा के मुताबिक जब शिव की पत्नी सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था तब उन्होंने अगले जन्म में भी शिव को ही प्राप्त करने का संकल्प लिया था । लेकिन माता सती से वियोग के बाद भगवान शिव पूर्ण रुप से वैरागी हो गए थे और संसार को छोड़ कर समाधि में लीन हो गए थे ।
- ऐसे में जब सृष्टि के परिचालन में मुश्किलें होने लगीं और तारकासुर नामक राक्षस ने तीनों लोकों पर अपना कब्जा कर लिया तब ब्रम्हा जी के संकल्प से माता सती का पुनर्जन्म हुआ और उन्होंने माता पार्वती के रुप में हिमालय राज के यहां जन्म लिया ।माता पार्वती ने ही बाद में संसार के कल्याण के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखा .
- तारकासुर को यह वरदान था कि उसकी मृत्यु भगवान शिव के पुत्र के द्वारा ही हो । ऐसे में यह आवश्यक था कि वैरागी शिव फिर से सांसारिक हो जाएं और विवाह बंधन में बंध कर एक पुत्र को जन्म दें जो तारकासुर को मारने में सक्षम हों । माता पार्वती ने सृष्टि के कल्याण हेतु ही भगवान शिव की ऐसी कठोर तपस्या की कि वो फिर से सांसारिक हो गए और माता पार्वती को उन्होंने अपनी पत्नी के रुप में स्वीकार किया ।
कार्तिकेय के जन्म हेतु माता पार्वती ने की तपस्या
कार्तिकेय का जन्म ही तारकासुर के वध के लिए हुआ था । लेकिन कार्तिकेय का जन्म तब ही संभव था जब भगवान शिव विवाह बंधन में बंधे । इसी हेतु ब्रम्हा जी ने माता पार्वती के अंदर भगवान शिव के प्रति प्रेम उत्पन्न किया और माता पार्वती ने कठोर तपस्या आरंभ की ।
माता पार्वती की तपस्या और हरतालिका तीज व्रत का ही अंतिम परिणाम था कि भगवान शिव ने आखिरकार उनकी इस इच्छा को पूर्ण किया और माता पार्वती से विवाह किया । इसी विवाह के बाद कार्तिकेय का जन्म हुआ और कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर संसार का कल्याण किया ।
अतुल्य है शिव और पार्वती का प्रेम
- भगवान शिव और माता पार्वती का प्रेम संसार में अतुलनीय है । भगवान शिव एकमात्र ऐसे ईश्वरीय सत्ता हैं जो अपनी पत्नी पार्वती को हमेशा बराबर का दर्जा देते हैं। जहां भगवान विष्णु के चरणों में माता लक्ष्मी का वास है, ब्रम्हा जी भी माता सावित्री से अलग रहते हैं वहीं भगवान शिव माता पार्वती को अपने बराबर का आसन देते हैं ।
- दूसरे, भगवान शिव माता पार्वती को संसार के सारे रहस्यों की कथा सुनाते रहते हैं ताकि माता पार्वती हमेशा शिक्षित और ज्ञान से परिपूर्ण रहें। भगवान शिव माता पार्वती को इसके लिए कथाएं सुनाते रहते हैं। कई पुराणों , रामचरितमानस, व्रतों की कथाएं भगवान शिव और माता पार्वती के संवादों से ही रची गई हैं। माता पार्वती प्रश्न करती हैं और भगवान शिव उन्हें कथाओं के द्वारा उत्तर देते हैं। हरतालिका तीज की कथा भी ऐसे ही संवाद का परिणाम है ।
- कई विद्याओं और खेलों की रचना भी भगवान शिव और माता पार्वती के संवादों से ही हुई हैं । माता पार्वती के प्रति भगवान शिव का यह प्रेम ही है जिसकी वजह से आज हम सारे व्रतों के महात्मय, पुराणों की कथाएं और ज्योतिषशास्त्र और तंत्रशास्त्र जैसी विद्याओं का रहस्य जान पाए हैं ।
भगवान शिव ने खोला प्रसन्न होने का राज़
हरतालिका तीज की कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की लेकिन उन्हें भी शायद ही पता था कि आखिर उनके किस कार्य विशेष ने भगवान शिव को उनके विवाह करने के लिए बाध्य कर दिया।
उनके किस कार्य विशेष ने भगवान शिव के अंदर माता पार्वती के लिए प्रेम उत्पन्न कर दिया । हरतालिका तीज की कथा ही माता पार्वती और भगवान शिव के संवाद से शुरु होती है जिसमें भगवान शिव माता पार्वती के पूर्वजन्मों का स्मरण कराते हुए उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होने की बात कहते हैं।
इसके बाद से ही हरतालिका तीज रखने वाली नारियों के पति अपनी पत्नियों के अनुसार काम करते हैं और प्रसन्न रहते हैं ऐसी मान्यता का विकास हुआ।
व्रत कथा (Vrat Katha)
लिंग पुराण की कथा के मुताबिक भगवान शिव माता पार्वती को उनकी ही कठोर तपस्या की याद दिलाते हुए कहते हैं कि एक बार तुमने भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को जब हस्त नक्षत्र था तब उस पूरे दिन तुमने मेरी घनघोर तपस्या की थी । उस दिन तुमने निर्जला व्रत कर दूसरे दिन व्रत का परायण किया था । तुम्हारी इस तपस्या से मेरा सिंहासन डोल गया था और मैंने तुम्हारे सामने प्रगट होकर तुम्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान दिया था । वैसे तो माता पार्वती की तपस्या का वर्णन कई पौराणिक ग्रंथो में किया गया है लेकिन हरतालिका तीज व्रत की कथा सिर्फ लिंग महापुराण में ही दी गई है जो पुराणों में अत्यंत प्राचीन और प्रामाणिक माना जाता है ।
बारह वर्षो की कठिन तपस्या
माता पार्वती के अंदर ब्रम्हा जी ने बचपन से ही भगवान शिव के प्रति प्रेम उत्पन्न कर दिया था । लेकिन नारद जी ने माता पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से कराने की सलाह हिमालय राज को दे दी । इस समाचार को सुन कर माता पार्वती दुखी हो गईं और वो अपनी सखी के साथ वन में चली गईं । वहीं उन्होंने बारह वर्षों तक बालूका से शिव लिंग बना कर भगवान शिव की कठिन तपस्या की । भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया के पूरे दिन निर्जला और निराहार रह कर माता पार्वती ने बालुका से भगवान शिव की अराधना कर उनका पूजन किया और भगवान प्रसन्न हो गए । चूंकि तृतीया के दिन इस व्रत को रखा गया था इसलिए इसे हरतालिका तीज अर्थात हरतालिका तृतीया भी कहा जाता है ।
नारी अधिकार का पर्व
स्त्री को अपना इच्छित वर चुनने का अधिकार होना चाहिए। यही आधुनिक समाज की भी धारणा है । लेकिन सनातन काल से शुद्ध सनातन धर्म में यह प्रथा चली आ रही है कि स्त्री अपना पति स्वयं चुन सकती हैं।
इसके लिए वो गंधर्व विवाह कर सकती हैं या स्वंयवर के द्वारा अपने पति को चुन सकती हैं। माता पार्वती की तपस्या भी इसी धारणा को सिद्ध करती है । जब पिता हिमालय ने माता पार्वती का विवाह करने के लिए भगवान विष्णु को वचन दे दिया तब माता पार्वती ने इस वचन को नहीं माना और अपने इच्छित वर भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए तपस्या करने लगीं ।
उनकी तपस्या के फलस्वरुप भगवान शिव तो प्रसन्न हुए ही माता पार्वती के पिता हिमालय राज ने भी अपनी पुत्री के इस अधिकार को मान्यता दी ।
उनकी इस तपस्या के फलस्वरुप ही उनका विवाह भगवान शिव से हुआ । इस अर्थ में हरतालिका तीज व्रत को नारी सम्मान से भी जोड़ा जा सकता है । हरतालिका तीज इस मायने में आधुनिक नारीवादी आंदोलनों की कसौटी पर भी खरी उतरती है । हरतालिका तीज स्त्री को यह अधिकार देती है कि वो किसी को भी अपना पति बनाने में स्वयं सक्षम है ।
क्यों करें :
हरतालिका तीज हरेक स्त्री को उसके अधिकार की याद दिलाता है कि उसे अपने वर को स्वयं चुनने का अधिकार है । माता पार्वती के प्रति इसी सम्मान को प्रदर्शित करने के लिए और अपने भावी पति या वर्तमान पति के प्रति प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए इस व्रत को करना चाहिए । इस व्रत के दौरान पतियों को भी अपनी पत्नी के प्रति प्रेम का प्रदर्शन करते हुए भगवान शिव की तरह उनकी हर इच्छा पूरी करनी चाहिए ।