Mahabali Anjaniputra hanuman

सबसे ज्ञानी और विद्वान हैं हनुमान जी

शुद्ध सनातन धर्म में महावीर हनुमान जी को संकटमोचक के रुप में जाना जाता है । भगवान महावीर हनुमान जी के असंभव पराक्रमों की चर्चा न केवल रामायण और दूसरी रामकथाओं में बल्कि महाभारत और कई अन्य महान ग्रंथों में भी की गई है, लेकिन बलवान और अजर अमर महावीर हनुमान जी के व्यक्तित्व का एक दूसरा पहलू भी है जिसके तहत वो सभी ईश्वरीय सत्ताओं में सबसे ज्यादा ज्ञानी और विद्वान माने गए हैं। 

ज्ञान के सागर हैं हनुमान :

तुलसीदास जी ने अपने ‘हनुमान चालीसा’ का प्रारंभ ही उन्हें “ज्ञान गुण सागर” कह कर किया है – 

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जय कपिस तिंहु लोक उजागर ।।

तुलसीदास जी ने महावीर हनुमान जी को ज्ञान और गुणों का सागर कहा है । वास्तविक ज्ञान वही होता है जिससे आप ईश्वर को देख और पहचान सकते हैं। जिस वक्त माता जानकी को रावण हर कर ले जाता है और श्री राम एक सामान्य मानव की तरह वन में माता सीता के लिए विलाप कर रहे थे उस वक्त भगवान शिव की अर्धांगिनी माता सती तक को उनके ईश्वर होने का शक हो गया था । लेकिन महावीर हनुमान ही वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने तुरंत पहचान लिया था कि श्री राम सामान्य मानव नहीं बल्कि साक्षात श्री हरि विष्णु के अवतार हैं और माता सीता के लिए उनका विलाप बस एक लीला मात्र है

ज्ञानियों में सबसे प्रथम हैं महावीर हनुमान:

गोस्वामी तुलसीदास जी ‘सुंदरकांड’ के प्रारंभ में ही महावीर हनुमान जी की स्तुति करते हुए उन्हें ज्ञानियों में सबसे प्रथम कह कर उनकी वंदना करते हैं – 

अतुलित बलधामं हेमशलैभदेहं।
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामअग्रगण्यम ।।

‘वाल्मीकि रामायण’ में भी जब ‘किष्किंधाकांड’ में श्रीराम के पास सुग्रीव के दूत बन कर ब्राह्म्ण के वेष में हनुमान जी जाते हैं तो श्रीराम उनकी संवाद शैली से अत्यंत प्रभावित होते हैं और लक्ष्मण जी को कहते हैं कि ये कोई बहुत बड़े ज्ञानी हैं और शास्त्रों के ज्ञाता हैं – 

तम् अभ्यभाष सौमित्रे सुग्रीव सचिवम् कपिम् ।
वाक्यज्ञम् मधुरैः वाक्यैः स्नेह युक्तम् अरिन्दम ।। 4-3-27

अर्थात – हे सुमित्रानंदन ये वाक्यों के ज्ञाता और मधुर वचन बोलने वाले सुग्रीव के सचिव हैं। तुम इनसे वार्तालाप करो । 

न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ\-\-यजुर्वेद धारिणः ।
न अ\-\-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् ।। 4-3-28

अर्थात – हे लक्ष्मण क्या जिसे ऋग्वेद का ज्ञान न हो , जिसे यजुर्वेद स्मरण में न हो और जो सामवेद का विद्वान न हो ऐसी बातें कर सकता है ?

नूनम् व्यकरणम् कृत्स्नम् अनेन बहुधा श्रुतम् ।
बहु व्याहरता अनेन न किंचित् अप शब्दितम् ।।4-3-29

अर्थात – हे लक्ष्मण निश्चय ही इन्होंने (महावीर हनुमान जी ने) व्याकरण को बहुत ही अच्छे तरीके से पढ़ा है और इनके द्वारा बोले गए शब्दों में कोई भी दोष दिखाई नहीं देता ।

वचन और वाणी के सिद्ध हनुमान जी :

‘वाल्मीकि रामायण’ में हनुमान जी को “वाक्य विशारद” कहा गया है । हनुमान जी को लिए “कोविद” शब्द का इस्तेमाल किया गया है । “कोविद” का अर्थ होता है जो तुरंत वाक्यों की रचना करने में कुशल हों। ‘किष्किंधाकांड’ में ही जब श्रीराम और लक्ष्मण जी को सुग्रीव उनकी तरफ आते देखते हैं तो भयभीत हो जाते हैं। वो हनुमान जी को इन दोनों के बारे में पता करने के लिए भेजते हैं । उस वक्त हनुमान जी के अलावा विद्वान जाम्बवंत जी भी सुग्रीव के साथ ही थे लेकिन चूंकि हनुमान जी ‘वाक्य विशारद’ के साथ साथ मधुर वाणी बोलने में सिद्ध थे इसलिए सुग्रीव हनुमान जी को ही श्रीराम के पास दूत बनाकर भेजते हैं – 

ततः तु भय संत्रस्तम् वालि किल्बिष शन्कितम् ।
उवाच हनुमान् वाक्यम् सुग्रीवम् वाक्य कोविदः ।। 4-2-13

अर्थात – हनुमान जो वाक्य बनाने में सिद्ध थे उन्होंने सुग्रीव को भय छोड़ने के लिए कहा जो वालि के भय से भयभीत रहते थे । यहां हनुमान जी के लिए ‘वाक्य-कोविद’ कहा गया है । ‘वाक्य-कोविद’ का अर्थ ही यही होता है जो मधुर वाक्य रचना में सिद्ध हो । 

क्यों राम ने बनाया हनुमान जी को अपना दूत :

श्री राम हनुमान जी के ज्ञान से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने काफी पहले ही उन्हें अपना दूत बना कर माता सीता के पास भेजने का मन बना चुके थे। ‘किष्किंधाकांड’ में हनुमान जी के वाक्य चातुर्य और मधुर वचन बोलने में प्रवीणता को देख कर वो लक्ष्मण जी से कहते हैं – 

एवम् विधो यस्य दूतो न भवेत् पार्थिवस्य तु ।
सिद्ध्यन्ति हि कथम् तस्य कार्याणाम् गतयोऽनघ ।।4-3-34

अर्थात – हे लक्ष्मण देखो अगर किसी के पास हनुमान की तरह का विद्वान दूत न हो तो कोई भी राजा अपने कार्यों और उद्देश्यों को कैसे पूरा कर सकता है । 

मधुर वचन के माहिर हनुमान जी :

हनुमान जी जब माता सीता के पास भी जाते हैं तो आशंकित माता सीता को पहले भयमुक्त करने के लिए श्रीराम की कथा सुनाते हैं – 

रामचंद्र गुन बरनै लागा ।
सुनतहिं सीता कर दुख भागा ।।

किसी भी नारी के पास जाने के लिए जो विनम्रता भाषा में होनी चाहिए वह सिर्फ महावीर हनुमान जी में ही थी । महावीर हनुमान जी यह जानते थे कि माता सीता रावण की कैद में हैं । रावण मायावी है और थोड़ी देर पहले ही रावण ने माता सीता को धमकी दी थी । ऐसे में महावीर हनुमान जी पहले माता सीता को यह विश्वास दिलाते हैं कि वो कोई मायावी राक्षस नहीं बल्कि वो श्रीराम के दूत हैं – 

रामदूत मैं मातु जानकी । सत्य सपथ करुना निधान की ।।

माता सीता महावीर हनुमान जी के द्वारा बोले गये मधुर वचनों से इतनी प्रसन्न होती हैं कि वो हनुमान जी को पुत्र कह कर अजर अमर होने का वरदान देती हैं – 

अजर -अमर गुननिधि सुत होउ ।
करहुं बहुत रघुनायक छोहुं ।।
सर्वश्रेष्ठ पुरुष हैं महावीर हनुमान

महावीर हनुमान जी अतुलित बल से संपन्न हैं और साथ में ही सबसे ज्यादा ज्ञानी पुरुष भी हैं। इसीलिए जब वाल्मीकि रामायण के ‘युद्ध कांड’ में भगवान श्रीराम का राजतिलक हो रहा था तब भगवान श्री राम ने एक हार माता सीता को दिया और कहा कि जो उन्हें जीवन के हरेक क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ लगे वह माला वो उसी पुरुष को दे दें । तब माता सीता वह हार न तो भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न को देती हैं और न ही वहां मौजूद सुग्रीव, विभीषण और अंगद को देती हैं। माता सीता की नज़र में अगर श्री राम के बाद कोई सर्वश्रेष्ठ पुरुष था तो वो उनके पुत्र स्वरुप महावीर हनुमान जी ही थे । देखिए यह प्रसंग ‘वाल्मीकि रामाय़ण’ में किस प्रकार दिया गया है

मणिप्रवरजुष्टन् च मुक्ताहारमनुत्तमम् ।
सीतायै प्रददौ रामश्चन्द्ररश्मिसमप्रभम् ।।
अरजे वाससी दिव्ये शुभान्याभरणानि च ।
वाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड

अर्थात – श्रीराम माता सीता को मणियों से पूरित एक मुक्ताहार देते हैं जिसमें कई प्रकार के रत्न और मणि लगे हुए थे और जिसकी आभा चंद्र्मा की किरणो के जैसी थी । 

तामिङ्गितज्ञः सम्प्रेक्ष्य बभाषे जनकात्मजाम् ।
प्रदेहि सुभगे हारन् यस्य तुष्टासि भामिनि ।।
तेजो धृतिर्यशो दाक्ष्यं सामर्थ्यं विनयो नयः ।
पौरुषन् विक्रमो बुद्धिर्यस्मिन्नेतानि नित्यदा ।।
वाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड 

अर्थात – श्रीराम माता जानकी से कहते हैं कि इस हार को उस व्यक्ति को दे दो जिससे तुम प्रसन्न हो और जिसमें तुम्हें सबसे ज्यादा तेज , दृढ़ता, प्रसिद्धि, वीरता,विनम्रता और बुद्धिन नज़र आती हो । 

ददौ सा वायुपुत्राय तन् हारमसितेक्षणा ।
हनूमान्स्तेन हारेण शुशुभे वानरर्षभः ।।
चन्द्रांशुचयगौरेण श्वेताभ्रेण यथाचलः ।

अर्थात – तब श्याम नेत्रों वाली माता सीता ने वह हार वायुपुत्र हनुमान जी को दे दिया । तब हनुमान जी ने माता सीता के द्वारा दिए गये उस हार को धारण किया और वो अद्भुत शोभा पाने लगे । 

विद्या और बुद्धि भी देते हैं हनुमान :

महावीर हनुमान जी खुद तो ज्ञानियो में सबसे प्रथम हैं ही साथ ही वो अपने भक्तों को भी बल के साथ साथ बुद्धि और सिद्धियां देने के लिए जाने जाते हैं । भक्तों पर कृपा करते ही हनुमान जी उनके सभी कुछ प्रदान करने में सक्षम हैं । इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘हनुमान चालीसा’ में उनके लिए कहा है – 

बल बुद्धि विद्या देहु मोही.. हरहु कलेष विकार

अर्थात : वो माता जानकी के आशीर्वाद से अपने भक्तों को सारी सिद्धियां और निधियां भी दे देते हैं
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ।
अस वर दीन जानकी माता ।।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Translate »