Hanuman, Sita wanted to commit ‘suicide’|हनुमान और सीता क्यों आत्महत्या करना चाहते थे ?

सनातन हिंदू धर्म में आत्महत्या को महापाप माना गया है, लेकिन सनातन हिंदू धर्म में कई ऐसे प्रसंग भी हमारे सामने आते हैं, जो मानवीय कमजोरियों को दिखाते हैं। ऐसे ही एक प्रसंग में वाल्मीकि रामायण और कम्ब रामायण में हनुमान जी और सीता के द्वारा आत्महत्या करने का विचार भी शामिल हैं। लंका में वो कौन सी परिस्थितियाँ सामने आ गई थीं कि सीता और हनुमान दोनों ही आत्महत्या करने के लिए तैयार हो गए थे। किसने सीता और हनुमान दोनों को आत्महत्या के लिए मजबूर किया और कैसे सीता और हनुमान ने आत्महत्या के विचार का त्याग किया?

हनुमान, सीता और सनातन हिंदू धर्म में आत्महत्या

हालांकि वेदों विशेषकर ऋग्वेद में कहीं भी आत्महत्या से संबंधित कोई विचार नहीं है। लेकिन पौराणिक आख्यानों में भगवान शिव की पहली पत्नी सती के द्वारा अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में आत्मदाह द्वारा आत्महत्या करने का प्रमाण मिलता है। वाल्मीकि रामायण में भी कई बार श्रीराम माता सीता के वियोग और लक्ष्मण के मूर्छित होने के प्रसंगों में अपने जीवन के त्याग के बारे में विचार करते हैं। लेकिन चूंकि वो सभी मानवीय गुणों से संपन्न हैं इसलिए वो आत्महत्या के विचार को त्याग देते हैं।

श्रीराम की निराशा के अलावा वाल्मीकि रामायण के दो स्थानों पर ऐसी परिस्थितियों का वर्णन है जब सीता और हनुमान दोनों ही आत्महत्या जैसे विचार में फँस जाते हैं। हालांकि दोनों ही जल्द ही निराशा के भँवर से बाहर निकलते हैं लेकिन कुछ वक्त के लिए ऐसी स्थिति सामने आ जाती है कि हनुमान और सीता दोनों आत्महत्या के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं।

सीता आत्महत्या क्यों करना चाहती थीं?

सीता को सनातन धर्म की सबसे सबल और महान नारी के रुप में दिखाया गया है जिनके संघर्षों और उदात्त चरित्र की प्रेरणा आज भी संसार की सभी स्त्रियों के लिए आदर्श है। लेकिन सीता को इतने दुख सहने पड़े कि कई बार वो भी निराशा के भँवर में फँस गईं। वाल्मीकि रामायण के ‘सुंदरकांड’ में कई स्थानों पर सीता श्रीराम के वियोग में आत्महत्या का विचार करती हैं ।

वाल्मीकि रामायण के ‘सुंदरकांड’ में प्रसंग है कि जब माता सीता से मिलने के लिए रावण आता है और उन्हें धमकाते हुए दो मास का वक्त दे कर चला जाता है। रावण की धमकी और श्रीराम के वियोग से माता सीता व्याकुल हो उठती हैं और कहती हैं –

साहंत्युक्ता प्रियेणैव रामेन विदितात्मना || 5.26.51
प्राणांस्त्यक्ष्यामि पापस्य रावनस्य गता वशम् |

अर्थः-  “मैं अपने प्रियतम और आत्मज्ञानी श्रीराम से बिछुड़ गई हूँ और पापी रावण के चंगुल में फंस गई हूँ। अतः अब मैं अपने प्राणों का परित्याग कर दूंगी।”

सीता के इस आत्महत्या के विचार के बाद उनसे मिलने राक्षसी त्रिजटा आती हैं और सभी राक्षसियों को अपने उस स्वप्न के बारे में बताती है जिसमें उसने रावण का वध और श्रीराम के विजय की घटना  देखी थी। हालांकि इससे माता सीता को थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन फिर से वो श्रीराम के वियोग से भर जाती हैं। एक बार फिर वो प्राण त्याग करने के लिए तैयार हो जाती हैं –

वैवास्ति दोषो मम नूनमत्र |

वध्याहमस्याप्रियदर्शनस्य |

अर्थः- “मैं इस दुष्ट रावण के हाथ से मारी जाने वाली हूँ। इसलिए यहां आत्महत्या करने से भी मुझे कोई दोष नहीं प्राप्त होगा।”

दुखी सीता श्रीराम के वियोग में आत्महत्या करने के कई विकल्पों पर भी सोचने लगती हैं और उनका विलाप बढ़ता चला जाता है –

सा जीवितं क्षिप्रमहं त्यजेयं |

विषेण शस्त्रेण शितेन वापि |

विषस्य दाता न हि मेऽस्ति कश्चि |

च्छस्त्रस्य वा वेश्मनि राक्षसस्य || 5.28.16

अर्थः- “मैं शीघ्र ही किसी तीखे शस्त्र अथवा विष से अपने प्राण त्याग दूंगी, परंतु इस राक्षस के यहां मुझे कोई शस्त्र और विष देने वाला भी नहीं है।”

इस शोक में सीता फाँसी लगाकर आत्महत्या करने का भी विचार करती हैं –

सा शोकतप्ता बहुधा विचिन्त्य |

सीताथ वेण्युद्ग्रथनं गृहीत्वा |

उद्भुध्य वेण्युद्ग्रथनेन श्रीघ्र |

महं गमिष्यामि यमस्य मूलम् || 5.28.17

अर्थः- शोक से संतप्त हुई सीता ने इसी प्रकार बहुत कुछ विचार करके अपनी चोटी को पकड़ कर यह निश्चय किया कि “मैं शीघ्र ही इस चोटी से फाँसी लगाकर यमलोक पहुँच जाउँगी।”

इसके बाद माता सीता अशोक के वृक्ष के निकट जाकर उसकी शाखा को पकड़ कर आत्महत्या के लिए तैयार हो गईं।

कम्ब रामायण में सीता के द्वारा आत्महत्या का विचार

———————————————————————

तमिल भाषा में लिखे गए महान कम्ब रामायण में भी माता सीता के द्वारा आत्महत्या करने के विचार का वर्णन किया गया है । कम्ब रामायण के सुंदरकांड में इसका जो वर्णन किया गया है उसका अनुवाद इस प्रकार है –

“वे अद्भुत गुणविशिष्ट रामचंद्र अपने धनुष से राक्षसों का वध करके जब मुझे इस कारागार से मुक्त करेंगे , तब यदि वो यह कह दें कि ‘’तुम मेरे गृह में आने के योग्य नहीं हो तब मैं अपने इस पातिव्रत्य धर्म को किस प्रकार प्रमाणित कर सकूंगी? अतः प्राणत्याग करना ही मेरा धर्म है।‘’ ये सोच कर सीता उस माधवी के वृक्ष के नीचे आ गईं।

रामचरितमानस में माता सीता के द्वारा आत्महत्या का प्रयास

——————————————————————–

तुलसीदास रचित ‘रामचरितमानस’ में भी सीता श्रीराम के वियोग में प्राणत्याग करने की बातें कहती हैं-

त्रिजटा सन बोलि कर जोरीं। मातु बिपत्ति संगिनि तैं मोरी।।

तजौं देह करुं बेगि उपाई । दुसह बिरहु अब नहीं सही जाई ।।

आनु काठ रचु चिता बनाई । मातु अनल पुनि देहि लगाई ।।

सत्य करहिं मम प्रीति सयानी । सुनैं को श्रवण सूल सम बानी ।।

अर्थात – माता सीता ने त्रिजटा से हाथ जोड़ कर कहा कि “हे माता! इस विपत्ति में आप ही मेरी साथी हैं। शीघ्र ही कुछ ऐसा उपाय कीजिए कि मैं अपने इस देह का त्याग कर सकूं। अब श्रीराम का विरह मुझसे सहा नहीं जाता । आप लकड़ियां लेकर एक चिता बनाइये और फिर उस पर मुझे बिठा कर आग लगा दीजिए। मेरे इस अनुरोध का आप सत्य कर दिखाइये क्योंकि मुझे अब रावण के इस शूल जैसी वाणी को सहने की शक्ति नहीं है।‘’

हालांकि वाल्मीकि रामायण, कम्ब रामायण और तुलसी रचित रामचरितमानस तीनों में ही हनुमान जी सीता के इस शोक को समाप्त कर उनमें नए जीवन का संचार कर देते हैं। लेकिन इस प्रसंग से ठीक पहले स्वयं हनुमान जी भी इतने निराश हो जाते हैं कि वो भी आत्महत्या करने के लिए तैयार हो गए थे।

हनुमान जी के द्वारा सीता की मृत्यु की आशँका

वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड के इस प्रसंग में महावीर हनुमान जी के द्वारा आत्महत्या करने से संबंधित विचार को दिखाया गया है। प्रसंग यह है कि जब हनुमान जी लंका में माता सीता को खोजने में असफल रहते हैं तो वो बहुत निराश हो जाते हैं। हनुमान जी को यह भी आशंका हो जाती है, कि माता सीता का निधन हो चुका है –

भूयिष्ठम् लोडिता लन्का रामस्य चरता प्रियम् |

न हि पश्यामि वैदेहीम् सीताम् सर्व अन्ग शोभनाम् || 5.13.3

अर्थः- “मैंने श्रीराम का प्रिय करने के लिए कई बार लंका को छान मारा लेकिन सर्वांग सुंदरी विदेहनंदिनी सीता मुझे कहीं दिखाई नहीं देती हैं।”

हनुमान जी को यह भी आशँका हो जाती है कि कहीं रास्ते में ही रावण से छूट कर सीता समुद्र में ही तो नहीं गिर पड़ीं ?

क्षिप्रम् उत्पततो मन्ये सीताम् आदाय रक्षसः || ५-१३-७

बिभ्यतो राम बाणानाम् अन्तरा पतिता भवेत् |

अर्थः- हनुमान जी सोचते हैं कि – ‘’मैं तो समझता हूं कि श्रीराम के बाणों से भयभीत वह राक्षस रावण जब सीता को लेकर शीघ्रता पूर्वक आकाश में उछला था, उस समय कहीं बीच में ही सीता छूट कर गिर पड़ी हों?’’

अथवा ह्रियमाणायाः पथि सिद्ध निषेविते || 5.13.8

मन्ये पतितम् आर्याया हृदयम् प्रेक्ष्य सागरम् |

अर्थः- ‘’अथवा ये भी संभव है कि जब आर्या सीता आकाशमार्ग से ले जायी जा रही हों उस समय समुद्र को देखकर भय के मारे उनका ह्रदय ही फटकर नीचे गिर पड़ा हो?’’

उपरि उपरि वा नूनम् सागरम् क्रमतः तदा || 5.13.10

विवेष्टमाना पतिता समुद्रे जनक आत्मजा |

अर्थः- “ऐसा भी हो सकता है कि जिस समय रावण उन्हें समुद्र के उपर होकर ला रहा हो ,उस समय जनककुमारी सीता छटपटा कर समुद्र में गिर पड़ी हों । अवश्य ऐसा ही हुआ होगा।“

हनुमान जी को ऐसा लगने लगता है कि हो सकता है कि रावण की राक्षसियों ने उन्हें अपना आहार बना लिया हो या फिर स्वयं नरभक्षी रावण ने ही उन्हें मार कर खा लिया हो । यह सोचते हुए हनुमान जी इस निश्चय पर पहुंच जाते हैं कि माता सीता का निधन हो चुका है –

सम्पूर्ण चन्द्र प्रतिमम् पद्म पत्र निभ ईक्षणम् || 5.13.13

रामस्य ध्यायती वक्त्रम् पन्चत्वम् कृपणा गता |

अर्थः- ‘’हाय! श्रीरामचंद्र जी के पूर्ण चंद्रमा समान मनोहर और प्रफुल्ल  कमलदल के समान नेत्रों वाले मुख का चिंतन करती हुई दयनीया सीता इस संसार से चल बसीं।‘’

हनुमान जी के द्वारा आत्महत्या का विचार

अशोक वाटिका में प्रवेश के पहले हनुमान जी सारी लंका में भ्रमण करते हैं लेकिन उन्हें कहीं भी माता सीता के दर्शन नहीं होते हैं। हनुमान जी अपनी इस असफलता पर निराश हो जाते हैं और जब यह लगने लगता है कि माता सीता का निधन हो चुका है, तब वो भी आत्महत्या करने के लिए तैयार  हो जाते हैं । हनुमान जी को लगता है कि वापस श्रीराम के पास लौटना व्यर्थ है –

यदि सीताम् अदृष्ट्वा अहम् वानर इन्द्र पुरीम् इतः || 5.13.20

गमिष्यामि ततः को मे पुरुष अर्थो भविष्यति |

अर्थः- हनुमान जी विचार करते हैं कि ‘’यदि मैं सीता को देखे बिना ही यहां से वानरराज की पुरी किष्किंधा को लौट जाउँगा तो मेरा पुरुषार्थ ही क्या रह जाएगा?’’

गत्वा तु यदि काकुत्स्थम् वक्ष्यामि परम् अप्रियम् || 5.13.23

न दृष्टा इति मया सीता ततः त्यक्ष्यन्ति जीवितम् |

अर्थः हनुमान जी विचार करते हैं कि ‘’यदि मैं वहां जाकर श्रीराम को यह कठोर बात कह दूं कि माता सीता का दर्शन नहीं हो सका , तो वो भी प्राणों का त्याग कर देंगे।‘’

हनुमान जी को लगता है कि अगर श्रीराम ने माता सीता के वियोग में  प्राण त्याग दिये तो उनका अनुसरण लक्ष्मण भी करेंगे । इसके बाद सुग्रीव और अन्य वानर भी अपनी जान दे देंगे। हनुमान यहां तक सोचते हैं कि अयोध्या में जब यह सूचना मिलेगी कि श्रीराम और लक्ष्मण ने प्राण त्याग दिया है तो अयोध्या के राजकुल के सभी सदस्यों के साथ साथ सारी अयोध्या की जनता अपने प्राणों का त्याग कर देगी।

हनुमान जी विचार करते हैं कि अगर वो लंका में ही रहें तो माता सीता के मिलने की आशा में सभी प्राण धारण किये रहेंगे । हनुमान जी विचार करते हैं कि उन्हें संन्यास धारण कर यहीं लंका में रहना चाहिए ।

हनुमान जी के द्वारा आत्महत्या के विकल्पों पर विचार

हनुमान जी वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में निराशा की अवस्था में आत्महत्या के कई विकल्पों पर भी विचार करने लगते हैं –

चिताम् कृत्वा प्रवेक्ष्यामि समिद्धम् अरणी सुतम् |

उपविष्टस्य वा सम्यग् लिन्गिनम् साधयिष्यतः || 5.13.41

शरीरम् भक्षयिष्यन्ति वायसाः श्वापदानि च |

अर्थः- ‘’अथवा सागर के किनारे जहां फलों की अधिकता होती है , मैं चिता बना कर जलती हुई आग में प्रवेश कर जाउँगा अथवा आमरण अनशन के लिए बैठकर लिंगधारी जीवात्मा का शरीर से वियोग कराने के प्रयत्न में लगे हुए मेरे शरीर को कौवे तथा हिंसक जंतु अपना आहार बना लेंगे ।‘’

इदम् अपि ऋषिभिर् दृष्टम् निर्याणम् इति मे मतिः || 5.13.43

सम्यग् आपः प्रवेक्ष्यामि न चेत् पश्यामि जानकीम् |

अर्थः- ‘’यदि मुझे जानकी जी का दर्शन नहीं हुआ तो मैं खुशी – खुशी जल समाधि ले लूँगा। मेरे विचार से इस तरह जल समाधि के द्वारा परलोक गमन करना ऋषियों की दृष्टि से भी उत्तम है ।‘’

हनुमान जी के द्वारा आत्महत्या के विचार का त्याग

—————————————————————–

हनुमान जी ज्ञानियों में सबसे प्रथम माने गए हैं। हालांकि वो शोक में आत्महत्या जैसे महापाप के विचार से जरुर घिर जाते हैं, लेकिन तुरंत उनके विवेक ने उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और उन्होंने आत्महत्या का विचार त्याग दिया –

विनाशे बहवो दोषा जीवन् प्राप्नोति भद्रकम् || 5.13.47

तस्मात् प्राणान् धरिष्यामि ध्रुवो जीवति सम्गमः |

अर्थः- ‘’इस जीवन का नाश करने में बहुत से दोष हैं। जो पुरुष जीवित रहता है , वह कभी न कभी अवश्य कल्याण का भागी होता है। अतः मैं अपने प्राणों को धारण किये रहूँगा। जीवित रहने पर  अभिष्ट वस्तु अथवा सुख की प्राप्ति अवश्यम्भावी है।‘’

हनुमान जी इस विचार के बाद एक बार फिर उत्साह से भर जाते हैं और माता सीता के खोज के लिए तत्पर हो जाते हैं –

यावत् सीताम् न पश्यामि राम पत्नीम् यशस्विनीम् || 5.13.52

तावद् एताम् पुरीम् लन्काम् विचिनोमि पुनः पुनः |

अर्थः- ‘’जब तक मैं यशस्विनी श्रीराम की पत्नी सीता का दर्शन नहीं कर लूँगा, तब तक मै इस लंका पुरी में बार बार उनकी खोज करता रहूँगा।‘’

इसके बाद हनुमान जी को अशोकवाटिका दिखाई पड़ती है। हनुमान जी अशोकवाटिका में प्रवेश करते हैं और वहां उनके शोक को दूर करने वाली माता सीता के दर्शन प्राप्त होते हैं।

रामचरितमानस में हनुमान जी की आत्महत्या के विचार का उल्लेख नहीं है

कम्ब रामायण में भी हनुमान जी इसी प्रकार प्राणों का त्याग करने का विचार करते हैं। लेकिन कालिदास के रघुवंशम और तुलसी के रामचरितमानस में ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता है। तुलसीदास के हनुमान जी कभी निराश नहीं दिखाई देते । तुलसीदास के हनुमान जी ज्ञानियों के ज्ञानी हैं । इसके अलावा रामचरितमानस में हनुमान जी और विभीषण की मुलाकात का वर्णन है । विभीषण स्वयं हनुमान जी को माता सीता का पता बता देते हैं, इसलिए उन्हें निराशा का सामना भी नहीं करना पड़ता और न ही उन्हें आत्महत्या के विचार आते हैं –

पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥

तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता॥2॥

अर्थः- “फिर विभीषणजी ने, श्री जानकीजी जिस प्रकार वहाँ (लंका में) रहती थीं, वह सब कथा कही। तब हनुमान्‌जी ने कहा- ‘हे भाई ! सुनो, मैं जानकी माता को देखता चाहता हूँ’ ।”

जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवन सुत बिदा कराई॥

करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥3॥

अर्थः- विभीषणजी ने ( सीता माता के दर्शन की) सब युक्तियाँ (उपाय) कह सुनाईं। तब हनुमान्‌जी विदा लेकर चले। फिर वही (पहले का मसक सरीखा) रूप धरकर वहाँ गए, जहाँ अशोक वन में (वन के जिस भाग में) सीताजी रहती थीं।

जब हनुमान जी को विभीषण ने माता जानकी का पता ही बता दिया तो फिर हनुमान जी की निराशा और आत्महत्या के प्रसंग को डालने का सवाल ही नहीं था, यही वजह थी कि तुलसीदास ने अपनी रामचरितमानस में ऐसा कोई प्रसंग नहीं डाला।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Translate »