हनुमान जी का लंका जाना पहले से तय था?

श्रीराम कथा में महावीर हनुमान जी के जिन महान कार्यों का वर्णन है उसमें उनके द्वारा समुद्र लांघ कर लंका जाना, माता जानकी का पता लगाना, रावण को प्रभु श्री राम के प्रताप और शक्ति के बारे में अवगत कराना और लंका दहन मह्त्वपूर्ण हैं। लेकिन एक प्रश्न हमेशा उठता है कि क्या ये महज एक संयोग था कि हनुमान जी को लंका जाने का मौका मिला या फिर इसमें किसी प्रकार की कोई नियति थी। क्या पहले से ये सब पूर्व निर्धारित था ।

हनुमान जी का लंका जाना सिर्फ एक संयोग नहीं था

वाल्मीकि रामायण को अगर ध्यान से पढ़ा जाए तो बहुत सारी बातें ऐसी दिखती हैं जिससे स्पष्ट हो जाता है कि महावीर हनुमान जी का लंका जाना महज एक संयोग नहीं था बल्कि एक प्रकार से ये पूर्व निर्धारित था। इसकी पहली झलक हमें तब ही मिल जाती है जब सबसे पहले प्रभु श्री राम और महावीर हनुमान जी का मिलन होता है। जब सुग्रीव हनुमान जी को प्रभु श्री राम के बारे में जानकारी लेने के लिए दूत बनाकर भेजते हैं तभी प्रभु श्री राम को हनुमान जी की कई क्षमताओं के बारे में पता चल जाता है –

ततः तु भय संत्रस्तम् वालि किल्बिष शन्कितम् |
उवाच हनुमान् वाक्यम् सुग्रीवम् वाक्य कोविदः || ४-२-१३

भावार्थः-  हनुमान जी जो वाक्य विशारद हैं सुग्रीव को भयभीत देख कर कुछ कहते हैं।

हनुमान जी ज्ञानियों में अग्रगण्य माने गए हैं क्योंकि वो वाक्य विशारद हैं। वाल्मीकि ने उन्हें कोविद कह कह उनकी प्रशँसा की है । सभी वेदों के ज्ञाता हैं। किसी भी दूत की सबसे पहली खासियत यही होनी चाहिए कि वो वाक्य रचना में चतुर हो। समय और परिस्थितियों को देख कर कठोर या मृदु वाक्य बोल सकता है ।

हनुमान जी और श्रीराम का मिलन

जब हनुमान जी श्री राम के पास जाते हैं तो जिस प्रकार से वो उनका परिचय पूछते हैं श्री राम उनके ज्ञान और व्यक्तित्व से प्रभावित होते हैं और जान जाते हैं कि महावीर हनुमान जी से बेहतर संदेश वाहक कोई नहीं है –

न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ–यजुर्वेद धारिणः |
न अ–साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् || ४-३-२८

भावार्थः-  जो ऋग्वेद,. यजुर्वेद और सामवेद का ज्ञाता होगा वही इस प्रकार से बात कर सकता है

नूनम् व्यकरणम् कृत्स्नम् अनेन बहुधा श्रुतम् |
बहु व्याहरता अनेन न किंचित् अप शब्दितम् || ४-३-२९ 

भावार्थः- निश्चित तौर पर हनुमान व्याकरण और शब्द रचना का ज्ञाता हैं तभी इन्होंने एक भी शब्द गलत नहीं बोला।

श्रीराम स्वयं हनुमान जी के ज्ञान और बात करने के तरीके से इतने विस्मित हो गए थे कि उन्होंने भी लक्ष्मण से यही कहा था कि जिस भी राजा के पास ऐसा दूत होगा वो भाग्यशाली होगा । उसके कोई भी कार्य कभी नहीं रुकेंगे । वाल्मीकि रामायण में श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं –

एवम् विधो यस्य दूतो न भवेत् पार्थिवस्य तु |
सिद्ध्यन्ति हि कथम् तस्य कार्याणाम् गतयोऽनघ || ४-३-३४

अर्थः- जिस राजा के पास ऐसा दूत न हो उसके कोई भी कार्य कैसे सिद्ध हो सकते हैं? दूसरे शब्दों में हरेक राजा के पास हनुमान जैसा ज्ञानी दूत अवश्य होना चाहिए

सुग्रीव को भी सिर्फ हनुमान जी पर भरोसा था

जब सुग्रीव सारे वानरों को माता सीता की खोज के लिए विभिन्न दिशाओं में भेज रहे थे तो उस वक्त उन्हें भी यही विश्वास था कि सिर्फ हनुमान जी ही वो वीर हैं जो माता सीता का पता लगा सकते हैं –

विशेषेण तु सुग्रीवो हनूमति अर्थम् उक्तवान् |
स हि तस्मिन् हरि श्रेष्ठे निश्चितार्थो अर्थ साधने || ४-४४-१ 

अर्थः- सुग्रीव ने विशेषकर हनुमान जी से माता सीता की खोज करने के लिए बातचीत की। सुग्रीव जानते थे कि वही एकमात्र वीर हैं जो सीता की खोज कर सकने में समर्थ हैं।

अब्रवीत् च हनूमंतम् विक्रंतम् अनिल आत्मजम् |
सुग्रीवः परम प्रीतः प्रभुः सर्व वन ओकसाम् || ४-४४-२

अर्थः- समस्त जंगलों के राजा सुग्रीव ने विशेषकर हनुमान जी को इस कार्य से लिए चुना और वायुपुत्र हनुमान जी से कहा ।

न भूमौ न अंतरिक्षे वा न अंबरे न अमर आलये |
न अप्सु वा गति संगम् ते पश्यामि हरि पुम्गव || ४-४४-३

अर्थः- हे हनुमान मैं तुम्हें छोड़कर किसी को भी नहीं देखता जो उन स्थानों पर भी विचरण कर सकते हैं जहां शत्रु एक दूसरे के मार्गों को रोक सकने में समर्थ हों। तुम उन स्थानों पर भी जा सकते हो जहां पक्षी जा सकते हैं, तुम जल के अंदर भी विचरण कर सकते हो। जहां कोई नहीं जा सकता तुम वहां भी पहुंच सकते हो ।

श्रीराम ने भी सिर्फ हनुमान जी को ही अंगूठी दी

प्रभु श्री राम ये जानते थे कि भविष्य में माता सीता को खोजने में हनुमान जी से बेहतर कोई नही हो सकता है और अगर भविष्य में लंका में रावण के पास दूत बनाकर भेजना हो तो भी हनुमान जी से बेहतर कोई ज्ञानी और चतुर नहीं हो सकता है ।

यही वजह थी कि जब सुग्रीव वानरों को माता सीता की खोज में चारों तरफ भेज रहे थे उस वक्त श्री राम ने भी यह देखा कि सुग्रीव विशेषकर हनुमान जी पर ही यह भरोसा कर रहे थे । सुग्रीव जानते थे कि हनुमान ही माता सीता का पता लगा सकते हैं। सुग्रीव के इस भरोसे को देख कर ही श्रीराम ने भी सिर्फ हनुमान जी को ही माता सीता के देने के लिए अपनी मुद्रिका दी –

ददौ तस्य ततः प्रीतः स्व नामांक उपशोभितम् |
अंगुलीयम् अभिज्ञानम् राजपुत्र्याः परंतपः || ४-४४-१२

अर्थः- तब शत्रुओं के नाशक श्रीराम ने प्रसन्नतापूर्वक अपने नाम से अंकित मुद्रिका हुनुमान जी को दे दी ताकि वो माता सीता को इसे पहचान के रुप में दिखा सकें ।

जाम्बवंत को भी हनुमान जी पर ही विश्वास था

यहां तक कि जब सारे वानर समुद्र किनारे पहुंचे तब जाम्बवंत ने भी सिर्फ हनुमान जी को ही चुना और उन्हें उनकी शक्ति का अहसास करा कर लंका जाने के लिए प्रेरित किया। जब अंगद जाने को तैयार थे तब भी जाम्बवंत ने अंगद को जाने से मना कर दिया।

हनुमान के अलावा कौन समुद्र लांघ सकता था?

हालांकि स्वयं वाल्मीकि रामायण के मुताबिक हनुमान जी के अलावा अंगद, सुग्रीव और कुछ अन्य वानर भी थे जो समुद्र पार कर लंका जा सकते थे।वाल्मीकि रामायण में उन वानरों के नाम दिये गये हैं जो समुद्र पार कर लंका जा सकते थे –

कुमुद अन्गदयोः वा अपि सुषेणस्य महा कपेः |
प्रसिद्धा इयम् भवेत् भूमिः मैन्द द्विविदयोः अपि || ५-३-१५

भावार्थः- हनुमान जी कहते हैं कि – इस भूमि अर्थात लंका को अंगद, सुषेण , मैन्दा और द्विवीद जैसे वानर जीत सकते हैं

विवस्वतः तनूजस्य हरेः च कुश पर्वणः |
ऋक्षस्य केतु मालस्य मम चैव गतिः भवेत् || ५-३-१६

 भावार्थः- हनुमान जी लंका को देख कर कहते हैं कि लंका में मेरे अलावा सूर्य पुत्र सुग्रीव, कुशपर्वण और वानरों के प्रधान ऋक्ष पहुंच सकते हैं

सिर्फ लंका जाने से कार्य सिद्ध नहीं होते

लेकिन लंका जाने से भर से समाधान नहीं मिल सकता था। वहां एक ऐसे दूत को भेजना लाभदायक होता जो न केवल शक्तिशाली हो, बल्कि ज्ञानी और वाक् चातुर्य से समृद्ध भी हो। ऐसे में हनुमान जी से ज्यादा शक्तिशाली, ज्ञानी और चतुर कोई भी नहीं था ।

इस बात की पुष्टि स्वयं वाल्मीकि रामायण के इस श्लोक से ही हो जाती है जब जाम्बवंत हनुमान जी के बारे में बताते हुए उन्हें समुद्र पार करने के लिए प्रेरित करते हैं –

वीर वानर लोकस्य सर्व शास्त्र विदाम् वर |
तूष्णीम् एकांतम् आश्रित्य हनुमन् किम् न जल्पसि || ४-६६-२

 भावार्थः- अर्थात हे सभी लोको में सबसे वीर वानर, आप सभी शास्त्रों के ज्ञाता है। फिर आप क्यों इस प्रकार एकांत धारण करके बैठे हैं

हनुमन् हरि राजस्य सुग्रीवस्य समो हि असि |
राम लक्ष्मणयोः च अपि तेजसा च बलेन च || ४-६६-३

भावार्थः- अपने शक्ति और तेज में हे हनुमान आप वानरों के राज सुग्रीव और स्वयं श्री राम और लक्ष्मण की बराबरी कर सकते हैं   

स्पष्ट है कि हनुमान जी का लंका जाना इसीलिए पहले से तय था क्योंकि वो न केवल सर्व शक्ति मान थे बल्कि ज्ञानिनाम अग्रगण्यम भी थे

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