सनातन धर्म के महान ग्रंथों वाल्मिकी रामायण और श्री रामचरितमानस में भगवान श्री राम के दो महान भक्तों हनुमान जी और विभीषण जी की बड़ी महिमा गाई गई है। दोनों ही भगवान श्री राम के महान कार्यों के सहयोगी रहे और रावण के वध में दोनों की ही बड़ी भूमिका रही है।
रामचरितमानस में जब हनुमान जी लंका जाते हैं तो वहां विभीषण के साथ उनकी मुलाकात होती है । हनुमान जी ही हनुमान जी को माता सीता के अशोक वाटिका में होने का पता बताते हैं और साथ ही अशोक वाटिका में प्रवेश करने की जुगत भी बताते हैं।
तुलसी रचित रामचरितमानस में वर्णन है कि जब हनुमान जी माता सीता की खोज में भटक रहे होते हैं तब उन्हें श्री राम भक्त विभीषण जी का घर दिखता है-
मंदिर मंदिर प्रति कर सोधा। देखे जहं तहं अगनित जोधा।
गएउ दसानन मंदिर माहि। अति बिचित्र कही जात सो नाहीं।।
अर्थात : हनुमान जी लंका के हरेक घर में जाकर देखते हैं जहां उन्हें कई योदधा दिखे। हनुमान जी रावणन के महल में भी जाते हैं जो देखने में अति विचित्र है
सयन किए देखा कपि तेहिं। मंदिर महुं न दिखी वैदेही।I
भवन एक पुनि दिख सुहावा।हरि मंदिर तहं भिन्न बनावा।I
अर्थात : हनुमान जी ने रावण को वहां शयन करते देखा लेकिन उस महल में कहीं भी माता सीता नज़र नहीं आईं। लेकिन उन्हें एक ऐसा भवन दिखा जो भगवान श्री हरि के मंदिर की तरह था
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाई। नव तुलसिका वृंद तहं देखी हरष कपिराई।
अर्थात : उस मंदिर में श्री राम के धनुष बाण अंकित थे। वहां तुलसी के छोटे पौधों को देख कर हनुमान जी की खुशी की सीमा नहीं रही
इसके बाद हनुमान जी विभीषण से मिलते हैं और दोनों के बीच भगवान श्री राम के गुणों को लेकर वार्तालाप होती है। इसके बाद की कहानी में हनुमान जी की माता सीता से मुलाकात और लंका में रावण के दरबार में हनुमान जी को कैद करके लाने का वर्णन है। रावण जब हनुमान जी को मारने की आज्ञा देता है तो एक बार विभीषण जी दरबार में आते हैं और हनुमान जी के प्राणों की रक्षा करते हैं। इसके बाद हनुमान जी के द्वारा लंका दहन का प्रसंग आता है ।
वाल्मीकि रामायण में नहीं है वर्णन
लेकिन आश्चर्य की बात है कि वाल्मिकी जी इस पूरे प्रसंग का कही भी उल्लेख नहीं करते हैं। सिर्फ एक प्रसंग है जहां विभीषण जी रावण द्वारा हनुमान जी को मारने की आज्ञा का विरोध करते नज़र आते हैं और हनुमान जी के प्राणों की रक्षा करते हैं। लेकिन वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में हनुमान जी और विभीषण के बीच कोई संवाद नहीं दिखाया गया है। तो क्या वाल्मीकि जी ने जानबूझ कर यह प्रसंग छोड़ दिया या फिर तुलसी ने इस प्रंसग को किसी अन्य रामायण या फिर लोकश्रुतियों से उठाया है ये शोध का विषय है।