शुद्ध सनातन धर्म में दो महान ग्रंथो रामायण और महाभारत दोनों में ही भगवान श्री हरि विष्णु के दो महावतारों श्री राम और श्रीकृष्ण की अद्भुत लीलाओं और पराक्रमों को वर्णन है । वैष्णव मत प्राचीनकाल से ही इन दोनों ही ग्रंथों को अपने मत के सबसे महान ग्रंथों मे शामिल करता रहा है। लेकिन बहुत ही कम लोगों को पता है कि इन दोनों ही ग्रंथों में देवाधिदेव महादेव शिव की महिमा का भी उतने ही विस्तार से वर्णन किया गया है । दरअसल अगर गौर से देखें तो पूरी महाभारत के दो ही प्रमुख नायक हैं – पहले भगवान कृष्ण और दूसरे देवाधिदेव महादेव शिव ।
रामायण में शिव भक्ति :
रामायण के दो पात्र श्रीराम और रावण दोनों ही भगवान शिव के महान भक्त के रुप में दिखाए गये हैं। जहां रावण को उस काल का सबसे महान शिव भक्त कहा गया है वहीं रावण को एक प्रकांड विद्वान के रुप में भी दिखाया गया है । रावण ने ही शिव भक्ति में शिवतांडव स्त्रोत की रचना की थी जिसे आज भी मंदिरों में और शिवालयों में गाया जाता है ।
भगवान श्री राम को भी शिव के भक्त के रुप में दिखाया गया है । रामकथाओं में शिव को राम का प्रिय और श्रीराम को शिव का प्रिय दिखाया गया है । रामसेतु बनाने से पहले तमिलनाडु में समुद्र तट पर भगवान श्री राम के द्वारा शिव लिंग की स्थापना का भी वर्णन आता है । रामेश्वर स्थित शिवलिंग की महिमा प्राचीन काल से ही चली आ रही है ।
महाभारत में शिव भक्ति :
व्यास रचित महाभारत में एक नही कई पात्रों को महान शिव भक्त के रुप में दिखाया गया है । महाभारत में शिव जी के द्वारा सक्रिय भूमिका दिखाई गई है । महाभारत में शिव जी के द्वारा त्रिपुर राक्षसों के वध की कथा कई स्थानों पर दिखाई गई है । कैसे भगवान शिव ने त्रिपुर राक्षसों को एक ही बाण से मार गिराया था और शिव कैसे आदि और अनंत हैं यह बार बार दिखाया गया है ।
महाभारत में शिव जी कई स्थानों पर संसार का रचयिता , पालनकर्ता और संहारकर्ता के रुप में दिखाया गया है । भगवान शिव के विवाह, गंगा को अपनी जटाओं में लेना , उनके पुत्र कार्तीकेय का जन्म , स्वयं भगवान शिव के जन्म की कथा , समुद्र मंथन में भगवान शिव के द्वारा हलाहल विष के पान की कथाएं विस्तार से दी गई हैं । इसके अलावा कई पात्रों को भगवान शिव के महान भक्त के रुप में भी दिखाया गया है ।
भगवान शंकर के महान भक्त श्रीकृष्ण :
महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण को भगवान शिव के महान भक्त के रुप में दिखाया गया है । भगवान कृष्ण को महाभारत में नारायण का अवतार कहा गया है । कथा है कि नारायण रुप में भगवान विष्णु ने बद्रिकाश्रम में भगवान शिव की तपस्या की थी और उनसे कई वरदान प्राप्त किये थे। यह कथा आदि पर्व, वन पर्व और द्रोण पर्व में कई बार बताई गई है ।
जब अर्जुन जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा ले लेते हैं तो कृष्ण चिंतिंत हो जाते हैं क्योंकि जयद्रथ भगवान शिव का भक्त था और उसे वरदान प्राप्त था । ऐसे मे श्रीकृष्ण अपने साथ स्वप्न में अर्जुन को कैलाश पर्वत पर ले जाते हैं । श्रीकृष्ण भगवान शिव की स्तुति करते हैं और भगवान शिव से अर्जुन को विजय का आशीर्वाद दिलाते हैं । भगवान शिव अर्जुन को पाशुपातास्त्र को जाग्रत कर उसका इस्तेमाल करने की इजाजत दे देते हैं ।
भगवान शिव का महान भक्त अर्जुन :
जिस प्रकार श्रीकृष्ण नारायण के अवतार हैं उसी प्रकार अर्जुन भी भगवान विष्णु के ही नर रुप के अवतार हैं। नर और नारायण दोनों ने ही बद्रिकाश्रम में भगवान शिव की तपस्या की थी और उनसे कई वरदान प्राप्त किये थे ।
वन पर्व में अर्जुन के द्वारा भगवान शिव के साथ युद्ध कर उन्हें प्रसन्न करने की भी कथा मिलती है । जब भगवान शिव भील के रुप में आकर एक शूकर को मारते हैं और उसी शूकर को अर्जुन भी अपने बाण से मारते थे । दोनों के बीच शूकर पर आधिपत्य को लेकर युद्ध होता है । अर्जुन की वीरता से प्रसन्न होकर भगवान शिव उन्हें पाशुपातास्त्र देते हैं ।
द्रोण पर्व में जयद्रथ वध की प्रतीज्ञा लेने के बाद स्वप्न में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कैलाश पर्वत पर ले जाते हैं जहां अर्जुन भगवान शिव की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न करते हैं और पाशुपातास्त्र से इस्तेमाल करने की अनुमति लेते हैं ।
अर्जुन जब द्रोण का वध करता है तो उसके आगे आगे भगवान शिव अपना त्रिशूल लेकर चलते हैं और शेष सेना का संहार करते हैं। यह कथा द्रोण पर्व में दी गई है।
शिव भक्त द्रौपदी :
द्रौपदी को पूरे महाभारत मे भगवान श्रीकृष्ण की सखी और भक्त के रुप में दिखलाया गया है । लेकिन महाभारत में कथा है कि पूर्वजन्म में द्रौपदी भगवान शिव की भक्त थी । भगवान शिव की तपस्या के फलस्वरुप ही उसे अगले जन्म में पांच पतियों का वरदान प्राप्त होता है।
शिव भक्त शिखंडी :
महाभारत में भीष्म पितामह के वध का कारण शिखंडी को बताया गया है । कथा है कि शिखंडी पूर्व जन्म में काशिराज की पुत्री अम्बा थी जिसका हरण भीष्म पितामह ने अपने भाई विचित्रवीर्य के लिए कर लिया था । लेकिन अम्बा शल्य को पसंद करती थी । भीष्म अम्बा को राजा शल्य के पास भेज देते हैं । लेकिन राजा शल्य उन्हें अपनाने से इंकार कर देते हैं । अम्बा वापस भीष्म के पास जाती हैं और उनसे पत्नी के रुप में अपनाने का आग्रह करती हैं। भीष्म इंकार कर देते हैं । अम्बा भीष्म के वध की प्रतिज्ञा लेकर भगवान शिव की अराधना करती हैं और भगवान शिव प्रसन्न होकर उसे अगले जन्म में भीष्म के वध का वरदान देते हैं।
महादेव भक्त द्रुपद :
राजा द्रुपद को जब द्रोण के शिष्य अर्जुन पराजित कर बंदी बना लेते हैं तब उस अपमान से आहत होकर द्रुपद भी भगवान शिव की शरण में जाते हैं। भगवान शिव की कड़ी तपस्या करते हैं। भगवान शिव प्रसन्न होकर द्रुपद को एक कन्या का वरदान देते हैं । इस वरदान के फलस्वरुप द्रुपद के यहां शिखंडी का जन्म होता है । शिखंडी के जन्म के बाद ही धृष्टध्युम्न और द्रौपदी का जन्म होता है । धृष्टध्युम्न ही द्रोण का वध करते हैं। शिखंडी भीष्म का वध करते हैं और द्रुपद का बदला पूरा करते हैं।
जयद्रथ की शिव भक्ति :
दुर्योधन का बहनोई जयद्रथ एक बार द्रौपदी के अपहरण का प्रयास करता है तो पांडव उसे कड़ी सजा देते हैं और उसका सिर मूंड देते हैं। इस अपमान से आहत जयद्रथ भगवान शिव की उपासना करता है । भगवान शिव से वो वरदान मांगता है कि वो पांडवों को पराजित कर सकें । भगवान शिव उसे वरदान देते हैं कि वो एक दिन के लिए अर्जुन को छोड़कर सभी चारों भाइयों को पराजित कर सकता है । महाभारत के युद्ध में जिस दिन चक्रव्यूह की रचना होती है और अर्जुन त्रिगर्तों की सेना को पराजित करने के लिए युद्ध क्षेत्र में दूर निकल जाता है उस दिन जयद्रथ पांडवों के शेष चारों भाइयों को पराजित करता है । इसी दौरान अभिमन्यु का वध भी होता है । जयद्रथ शिव जी के वरदान के फलस्वरुप ऐसा करने में सफल होता है । जब अर्जुन को अपने पुत्र के वीरगति को प्राप्त होने की खबर मिलती है तब वह जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा करता है । अर्जुन भगवान शिव की कृपा से जयद्रथ का वध करता है ।
अश्वत्थामा की शिव भक्ति :
द्रोण पुत्र अश्वत्थामा भी भगवान शिव का महान भक्त था । उसने अपने पिछले जन्म में भी भगवान शिव की कड़ी तपस्या की थी और कई वरदान प्राप्त किये थे । इस जन्म में जब उसके पिता का वध होता है और दुर्योधन को भीमसेन मार डालते हैं तब वो एक बार फिर से भगवान शिव की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न करता है और पांचालों के विनाश का वरदान प्राप्त करता है । भगवान शिव के वरदान के फलस्वरुप ही वो शिखंडी, धृष्टध्युम्न, द्रौपदी के पांचों पुत्रों और कई अन्य वीरों की हत्या कर देता है ।
शिव भक्त गांधारी :
महाभारत में दुर्योधन की माता गांधारी को महान शिव भक्त दिखाया गया है । भगवान शिव की कृपा से ही उसे सौ पुत्रों का वरदान प्राप्त होता है । भगवान शिव की कृपा से ही दुर्योधन का आधा उपरी शरीर वज्र का बन जाता है । भगवान शिव की भक्तन गांधारी हमेशा सत्य का पालन करती थीं और महान पतिव्रता नारी थीं ।