भगवान शिव के महान भक्त श्री कृष्ण – अर्जुन

शुद्ध सनातन धर्म के महान शास्त्रों में ईश्वरीय सत्ताओं द्वारा एक दूसरे से सहयोग लेने और सत्य की विजय और धर्म की संस्थापना के लिए प्रयासों का कई स्थानों पर वर्णन किया गया है, विशेषकर त्रिदेवों ब्रम्हा, विष्णु और शिव के आपसी सहयोग और सामंजस्य के जरिए विश्व का कल्याण किया जाता रहा है । वैसे सभी त्रिदेव विश्व कल्याण के लिए स्वयं समर्थ रहे हैं लेकिन संसार को सामंजस्य भावना का अनुकरण कराने  लिए तीनों ही ईश्वरीय सत्ताएं एक दूसरे से मिल कर कार्य करती रही हैं। 

महाभारत में शिव की स्तुति :

महाभारत में वैसे तो कई स्थानों पर देवाधिदेव महादेव की स्तुति की गई है लेकि वन पर्व और द्रोण पर्व में भगवान शिव की स्तुति विशेषकर की गई है । वन पर्व में जब अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव भील का वेष धारण करके आते हैं और अर्जुन से उनका युद्ध होता है तो अर्जुन के पराक्रम से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपने मूल स्वरुप में दर्शन देते हैं । अर्जुन भगवान शिव की स्तुति करते हैं और भगवान शिव प्रसन्न होकर उन्हें पशुपातास्त्र देने का वचन देते हैं। 

अभिमन्यु का वध :

महाभारत के द्रोण पर्व में जब अभिमन्यु का वध हो जाता है और उसके वध का मूल कारण जयद्रध को बताया जाता है तब अर्जुन दूसरे ही दिन जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा ले लेते हैं।  जयद्रथ को भगवान शिव ने यह वरदान दिया था कि वो महाभारत के युद्ध में अर्जुन को छोड़कर सभी शेष पांडवो को हरा सकता है । ऐसे में जब अर्जुन त्रिगर्त नरेश की ललकार पर युद्ध भूमि से दूर चले गए थे तब द्रोण ने चक्रव्यूह की रचना की । अभिमन्यु को युधिष्ठिर और भीम यह आश्वासन देते हैं कि वो व्यूह तोड़ने के बाद उसके पीछे उसकी सहायता के लिए आएंगे, लेकिन जयद्रथ युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव को चक्रव्यूह के द्वार पर ही रोक देता है और बिना किसी की सहायता की वजह से अभिमन्यु युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं । 

अर्जुन की प्रतिज्ञा :

अर्जुन को जब यह समाचार मिलता है तब वो इस सारे षड़यंत्र के लिए जयद्रथ को जिम्मेवार मानते हैं और बना कृष्ण से सलाह किये बिना अगले दिन सूर्यास्त से पहले जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा कर लेते हैं । अर्जुन यह प्रतिज्ञा करते हैं कि अगर कल सूर्यास्त से पहले वो जयद्रथ का वध नहीं करेंगे तो वो आत्मदाह कर लेंगे

कृष्ण की चिंता :

जब कृष्ण अर्जुन को प्रतिज्ञा लेते देखते हैं तो वो चिंतित हो जाते हैं। उन्हें पता था कि द्रोण और कर्ण मिलकर जयद्रथ को बचा सकते हैं और अर्जुन को दिन पर युद्ध में रोक सकते है । हो सकता है कि अर्जुन की प्रतिज्ञा भंग हो जाए और उन्हे आत्मदाह करना पड़े।  श्रीकृष्ण अर्जुन से सबसे ज्यादा स्नेह करते थे। वो इतने चिंतित हो जाते हैं कि वो भी युद्ध में अपने शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा को तोड़ कर अर्जुन की सहायता के लिए तैयार हो जाते हैं । लेकिन फिर श्रीकृष्ण को यह अहसास हो जाता है कि भगवान शिव अर्जुन की इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में सहयोग दे सकते हैं । 

श्री कृष्ण का अर्जुन को स्वप्न में कैलाश ले जाना :

श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा कर एक बिस्तर पर सुला देते हैं और स्वप्न में गरुड़ पर सवार होकर अर्जुन के स्वप्न में आते हैं। अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण कैलाश पर ले जाते हैं जहां भगवान शिव निवास करते हैं। वहां अर्जुन और श्री कृष्ण को भगवान शिव दर्शन देते हैं और उनके आगमन का कारण पूछते हैं । 

भगवान श्री कृष्ण द्वारा महादेव शिव की स्तुति :

श्री कृष्ण और अर्जुन के द्रोण पर्व के अध्याय 80 में भगवान शिव का दर्शन करते हैं और उन्हें प्रणाम करते हैं –

वासुदेवस्तु तं दृष्ट्वा जगाम शिरसा क्षितिम ।
पार्थेन सह धर्मात्मा गृणन ब्रम्ह सनातनम ।।

अर्थात – अर्जुन सहित धर्मात्मा वासुदेवनंदन कृष्ण ने भगवान शिव को देखा पृथ्वी पर माथा टेक कर प्रणाम किया और उन सनातन ब्रम्ह स्वरुप भगवान शिव की स्तुति करने लगे –

लोकादिं विश्वकर्माणमजमीशानमव्ययम् ।
मनसः परमं योनिं खं वायुं ज्योतिषां निधिम ।।
स्रष्टारं वारिधराणां भुवश्च प्रकृतिं पराम ।
देवदानवयक्षाणां मानवानां च साधनम ।।
योगानां च परं धाम दृष्टं ब्रम्हविदां निधिम ।
चराचरस्य स्रष्टारं प्रतिहर्तारमेव च ।।
कालकोपं महात्मानं शक्रसूर्यगुणोदयम ।
ववन्दे तं तदा कृष्णो वाञ्गनोबुद्धिकर्मभि ।।

अर्थात – वे(शिव) जगत के आदि कारण, लोकस्रष्टा,अजन्मा, ईश्वर, अविनाशी, मन की उत्पत्ति के प्रधान कारण ,आकाश और वायुस्वरुप ,तेज के आश्रय, जल की सृष्टि करने वाले, पृथ्वी के भी परम कारण , देवताओं, दानवों और यक्षों के भी प्रधान कारण, संपूर्ण योगों के परम आश्रय, ब्रम्हवेत्ताओं की प्रत्यक्ष निधि, चराचर जगत की सृष्टि और संहार करने वाले , इंद्र के ऐश्वर्य आदि और सूर्यदेव के प्रताप आदि गुणों को प्रगट करने वाले परमात्मा थे ।उनके क्रोध में काल का निवास था । उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने मन, वाणी, बुद्धि और क्रिया के द्वारा भगवान शिव की स्तुति की । 

श्री कृष्ण और अर्जुन की शिव की एक साथ स्तुति :

इसके बाद भगवान शिव कृष्ण और अर्जुन से पूछते हैं कि हे नर श्रेष्ठों आपका आगमन किस प्रयोजन से हुआ है ।आप जिस भी कार्य के लिए आए हैं मैं वह सब सिद्ध कर दूंगा, मैं आप दोनों को सब कुछ दे सकता हूं । भगवान शिव का यह वचन सुनकर  तब श्री कृष्ण और अर्जुन आनंदित होकर  हाथ जोड़ कर भगवान शिव की अराधना करने लगते हैं – 

नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च ।
पशूनां पतये नित्यमुग्राय च कपर्दिने ।।
महादेवाय भीमाय त्रयम्बकाये च शान्तये ।
ईशानाय मखघ्नाय नमोSस्तवन्धकघातिने।।
कुमारगुरवे तुभ्यं नीलग्रीवाय वेधसे ।
पिनाकिने हविष्याय सत्याय विभवे सदा ।।
विलोहिताय ध्रूमाय व्याधायानपराजिते ।
नित्यनीलशिखंडाये शूलिने दिव्यचक्षुषे ।।
हन्त्रे गोप्त्रे त्रिनेत्राय व्याधाय वसुरेतसे ।
अचिन्तयायाम्बिकाभर्ते सर्वदेवस्तुताय च ।।
वृषध्वाजय मुण्डाय जटिने ब्रम्हचारिणे ।
तप्यमानाये सलिले ब्रम्हण्यायाजिताय च ।।
विश्वात्मने विश्वसृजे विश्वमावृत्य तिष्ठते ।
नमो नमस्ते सेव्याय भूतानां प्रभवे सदा ।।
ब्रम्ह वक्त्राय सर्वाय शंकराय शिवाय च ।
नमोस्तुते वाचस्पतये प्रजानां पतये नमः ।।
नमो विश्वस्य पतये महतां पतये नमः ।
नमः सहस्त्रशिरसे सहस्त्रभुजमृत्यवे ।।
सहस्त्रनेत्रपादाय नमोSसंख्येयकर्मणे ।
नमो हिरण्यवर्णाय हिरण्यकवचाय च ।
भक्तानुकंपिने नित्यं सिध्यतां नो वरः प्रभु।।

महाभारत, द्रोण पर्व , अध्याय 80

अर्थात: श्री कृष्ण और अर्जुन बोले – भव (सबकी उत्पत्ति करने वाले ), शर्व (संहारकारी), रुद्र (दुख दूर करने वाले ), वरदाता, पशुपति सदा उग्र रुप में रहने वाले जटाजूटधारी भगवान शिव को नमस्कार है ।

महान देवता, भयंकर रुपधारी, त्रिनेत्र धारण करने वाले, शांति स्वरुप, सबका शासन करने वाले , दक्ष के यज्ञ के नाशक, तथा अंधकासुर का विनाश करने वाले भगवान शंकर को नमस्कार है । 

हे प्रभु ! आप कुमार कार्तिकेय के पिता, कंठ में नील चिन्ह धारण करने वाले लोकसृष्टा, पिनाक धनुष धारण करने वाले, हविष्य के अधिकारी, सत्य स्वरुप और सर्वत्र व्यापक हैं ।आपको सदैव नमस्कार है । 

हे शिव आप विशेष लोहित और धूम्रवर्ण वाले हैं, मृगव्याध स्वरुप, समस्त प्राणियों को पराजित करने वाले, त्रिशूलधारी, दिव्यलोचन, संहारक, पालक, त्रिनेत्रधारी, पापरुपी मृगों के बधिक, हिरण्यरेता (अग्नि), अचिन्त्य, अंबिकापति, संपूर्ण देवताओं द्वारा प्रशंसित,वृषभ चिन्ह से युक्त ध्वजा धारण करने वाले, मुंडित मस्तक, जटाधारी, ब्रम्हचारी, जल में तप करने वाले, ब्राह्मण भक्त, अपराजित, विश्वात्मा, विश्वसृष्टा, विश्व को व्यापत करके स्थित सबके सेवन करने के योग्य तथा समस्त प्राणियों के कारणभूत हैं । आपको बार बार नमस्कार है ब्राह्ण जिनके मुख हैं, उन सर्वस्वरुप कल्याणकारी भगवान शिव को नमस्कार है । वाणी के अधिश्वर और प्रजाओं के पालक आपको नमस्कार है । 

विश्व के स्वामी और महापुरुषों के पालक भगवान शिव को नमस्कार है, जिनके हजारों सिर और हजारों भुजाएं हैं , जो मृत्यु स्वरुप है और जिनके नेत्र और पैर भी हजारों की संख्या में हैं तथा जिनके कर्म असंख्य हैं उन भगवान शिव को नमस्कार है । सोने के समान जिनका रंग है ,जो सोने के कवच धारण करते हैं । उन भक्तवत्सल भगवान शिव को मेरा नमस्कार है । हे प्रभों आप हमें इच्छित वर दें । 

कृष्ण और अर्जुन की शिव की एक साथ स्तुति

भगवान शिव का कृष्ण- अर्जुन को वर देना  :

कृष्ण- अर्जुन को वर देना

भगवान शिव, श्रीकृष्ण और अर्जुन की स्तुति से प्रसन्न हो जाते हैं और वर मांगने के लिए कहते हैं ।तब भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को वर मांगने के लिए कहते हैं। अर्जुन भगवान शिव से पशुपातास्त्र को वास्तविक रुप में प्राप्त करने का वरदान मांगते हैं, भगवान शिव अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न होकर वही पशुपातास्त्र देते हैं जो उन्होंने पहले अर्जुन की तपस्या से प्रसन्न होकर देने का वचन दिया था भगवान शिव इस बार पशुपातास्त्र को अर्जुन के उपयोग के लिए जाग्रत कर देते हैं । इसके बाद स्वप्न में ही श्रीकृष्ण अर्जुन को लेकर वापस कुरुक्षेत्र लौट जाते हैं और अगले दिन अर्जुन जयद्रथ का वध कर देते हैं

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