मृत्यु क्या है और क्यों हम सबको एक दिन मरना ही है

संसार में जो भी जन्म लेता है उसकी एक न एक दिन मृत्यु अवश्य होती है। कहते हैं कि मृत्यु अटल है। देवताओं को छोड़कर सभी प्राणियों को एक न एक दिन मरना ही है। मरने के बाद हम कहां चले जाते हैं, क्यों मरने के बाद फिर कोई वापस नहीं लौटता? अध्यात्म और धर्म से लेकर विज्ञान तक आज भी इस रहस्य को सुलझा नहीं सके हैं।

क्या शिव हैं मृत्यु के ईश्वर ?

मृत्यु की देवी

आमतौर पर यह मान्यता है कि भगवान शिव संहार के देवता है। लेकिन शुद्ध सनातन धर्म के अनुसार शिव प्राणियों की रोजमर्रा होने वाली मृत्यु के लिए जिम्मेवार नहीं है। भगवान शिव सृष्टि के संहार की ईश्वरीय सत्ता हैं। जब संसार में लय हो जाता है तब शिव प्रलय के द्वारा सृष्टि का अंत करते हैं और इसके बाद फिर से सृष्टि का निर्माण ब्रह्मा जी के द्वारा किया जाता है ।

क्या यमराज के हाथों हमारी मृत्यु होती है?

आमतौर पर यह भी मान्यता है कि यमराज हमारी मृत्यु के कारण हैं। जब मनुष्य की मृत्यु हो जाती है तब यमदूत हमारे प्राणों को लेने आते हैं और यमलोक ले जाते हैं। वहीं हमारे पाप और पुण्य का फैसला होता है और हमारे कर्मों के अनुसार हमें स्वर्ग या नरक मिलता है । जब हमारे पाप या पुण्यों की मात्रा का क्षय हो जाता है तब हम फिर से पृथ्वी पर जन्म लेते हैं।

लेकिन शुद्ध सनातन धर्म के अनुसार यमराज भी मृत्यु के कारक देवता नहीं हैं। यमराज के यमदूत जब हमारी मृत्यु हो जाती है तब हमारे प्राणों को लेने आते हैं और यमलोक ले जाते हैं। यमराज एक तरीके से धर्मराज हैं जो यमलोक में हमारे पाप और पुण्य का फैसला करते हैं।

मृत्यु एक देवी हैं और वही हमें मारती हैं

शुद्ध सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथों के अनुसार मृत्यु ब्रम्हा की पुत्री का नाम है। उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी से हुई है। वही ब्रह्मा जी के आदेश के अनुसार हमारे प्राणों का हरण करती हैं जिसके बाद यमदूत हमें यमलोक ले जाते हैं। मृत्यु देवी के जन्म की कथा महाभारत के द्रोण पर्व के अध्याय 52 से 54 में दी गई है।

 महाभारत में है मृत्यु की देवी के जन्म की कथा

महाभारत के द्रोण पर्व में जब अभिमन्यु का वध हो जाता है तब युधिष्ठिर शोक से संतप्त हो जाते हैं। युधिष्ठिर को शोक में डूबा हुआ देख कर श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास वहां आते हैं और युधिष्ठिर को समझाने का प्रयास करते हैं। व्यास जी उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि मृत्यु अटल है। मृत्यु से देवता गंधर्व और भी नहीं बच सकते हैं फिर अभिमन्यु तो एक मनुष्य था। व्यास समझाते हुए कहते हैं कि देखो कैसे हजारों राजा ‘मृत’ नाम धारण कर पृथ्वी पर सदा के लिए सो गए हैं।

इसके बाद व्यास जी युधिष्ठिर को मृत्यु की उत्पत्ति की कथा सुनाते हैं जो समस्त पापों का नाश करने वाली है। यह कथा मंगल करने वाली है और वेदों के अध्ययन जैसी ही पवित्र है। व्यास कहते है कि सभी मनुष्यों को प्रतिदिन इस कथा का श्रवण करना चाहिए।

अकम्पन और उनके पुत्र हरि की मृत्यु की कथा :

व्यास जी महाभारत में युधिष्ठिर को सतयुग की एक कथा बताते हैं। वो कहते हैं कि सतयुग में अकम्पन नाम का एक महान राजा था जो अपने पराक्रम में इंद्र के तुल्य था। एक बार अकम्पन शत्रु सेना से घिर गए। अपने पिता को शत्रुओं से घिरा देख उनका पुत्र हरि उन्हें बचाने आया । लेकिन हरि शत्रुओं से लड़ता हुआ मारा गया । अपने पुत्र को मारा हुआ देख कर अकम्पन शोक संतप्त हो गए। अकम्पन को शोक से घिरा देख देवर्षि नारद वहां आए और उन्होंने उसके शोक को दूर करने के लिए मृत्यु की उत्पत्ति की कथा बताई ।

  • महाभारत की कथा के अनुसार देवर्षि नारद अकम्पन को मृत्यु के देवी के जन्म की कथा बताते है। देवर्षि नारद कहते हैं कि जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की उस वक्त संहार की कोई भी व्यवस्था नहीं थी। अतः इस जगत को प्राणियों से भरा और मृत्यु से रहित देख कर ब्रह्मा जी चिंतित हो गए ।
  • पितामह ब्रह्मा की चिंता धीरे- धीरे क्रोध में बदल गई । इस क्रोध के फलस्वरुप उनकी इंद्रियों से अग्नि की उत्पत्ति हो गई । ब्रह्मा जी से निकले इस अग्नि ने समस्त प्राणियों का संहार शुरु कर दिया।
  • ब्रह्मा जी के द्वारा उत्पन्न अग्नि के द्वारा समस्त सृष्टि का नाश होते देख कर एकादश रुद्रों में एक स्थाणु रुद्र वहां आए और उन्होंने ब्रह्मा जी से इस विनाश को रोकने की प्रार्थना की । स्थाणु रुद्र ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि वो अपने इस अग्नि तेज को अपने अंदर वापस ले लें और प्राणियों का संहार बंद कर दें।
ब्रह्मा जी की क्रोधाग्नि के शांत होने से प्रगट हुई देवी :
  • जब स्थाणु रुद्र ने ब्रह्मा जी से क्रोधाग्नि के तेज के उपसंहार की प्रार्थना की तब ब्रह्मा जी तैयार हो गए। अपने क्रोधाग्नि को अपने अंदर लेते वक्त ब्रह्मा जी की संपूर्ण इंद्रियों से एक नारी का जन्म हुआ । उस नारी का रंग काला और लाल था। वह नारी ब्रह्मा जी की इंद्रियों से निकल कर दक्षिण दिशा में जा कर खड़ी हो गई ( दक्षिण दिशा को ही प्रवेश द्वार माना जाता है) ।
  • ब्रह्मा जी ने उस नारी को मधुर वाणी में ‘मृत्यु’ कह कर पुकारा। ब्रह्मा जी ने उस मृत्यु नाम की नारी को समस्त प्राणियों का संहार करने का आदेश दिया ब्रह्मा जी ने मृत्यु से कहा कि “तू मेरी संहार बुद्धि से मेरे क्रोध के द्वारा प्रगट हुई है , इसलिए मूर्ख और विद्वान सभी का संहार करती रह, मेरी आज्ञा से तुझे यह कार्य करना होगा और इससे तूझे कल्याण की प्राप्ति होगी।”
  • जब ब्रह्मा जी ने मृत्यु देवी को समस्त प्राणियों का संहार करने की आज्ञा दी तब देवी रोने लगीं। उनकी आंसुओं को ब्रह्मा जी ने अपने दोनों हाथों में ले लिया । इन आंसुओं से ही रोग और व्याधियों का जन्म हुआ । ब्रह्मा जी ने देवी को बहुत मनाने का प्रयास किया लेकिन उसने संहार कार्य करने से मना कर दिया।

मृत्यु की देवी के द्वारा कठोर तपस्या :

मृत्यु देवी ने ब्रह्मा जी से कहा कि “मैं एक नारी हूं और आप क्यों मुझे ऐसे पापकर्म में लगाना चाहते हैं। यह एक क्रूर कर्म है और इसको करने में मुझे कभी भी शांति नहीं मिलेगी। “मैं कैसे किसी के पिता, भाई, माता , पुत्री आदि को मारुंगी। अगर मैंने ऐसा किया तो सभी लोग मेरे अनिष्ट की बात करेंगे

इसके बाद देवी तपस्या करने के लिए धेनुकाश्रम चली गईं। वहां कई करोड़ वर्षों तक तपस्या करने के बाद कई और पवित्र स्थानों पर जाकर तपस्या की और ब्रह्मा जी को एक बार फिर प्रसन्न किया, ब्रह्मा जी ने इस कठोर तपस्या का कारण पूछा तो उसने कहा कि वो प्राणियों का वध नही करना चाहती है। मृत्यु ने ब्रह्मा जी से प्राणियों का वध न करवाने का वरदान मांगा।

ब्रह्मा जी का वरदान :

ब्रह्मा जी ने मृत्यु देवी को वरदान दिया कि उसे किसी भी प्राणी के वध का पाप नहीं लगेगा । प्राणियों का वध नहीं करेंगी बल्कि इसमें उनकी सहायता लोकपाल, यमराज और कई प्रकार के रोग करेंगे । ब्रह्मा जी ने मृत्यु की देवी को कहा कि उसके जिन आंसुओं को ब्रह्मा जी ने अपने हाथों में लिया था उससे कई प्रकार के रोग उत्पन्न होंगे। इन रोगों से ही प्राणियों का नाश होगा।

ऐसे होती है प्राणियों की मृत्यु ब्रह्मा जी के वरदान को पाकर निश्चिंत हो गईं, मृत्यु की आंसुओं से पैदा हुए व्याधियों से रोगों का जन्म होता है और यही रोग प्राणियों को मार डालते हैं। सभी प्राणी स्वयं ही अपने आप को मारते हैं। नारद जी युधिष्ठिर को इस प्रकार समझाते हुए अभिमन्यु के वध से उत्पन्न शोक को त्यागने की बात करते हैं।

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