सृष्टि के रचयिता

Shiva the creator of Universe।भगवान शिव हैं सृष्टि के रचयिता, कहलाते हैं आदिदेव

सृष्टि के रचयिता को लेकर जितना गहन दर्शन सनातन धर्म के पास है, वैसा गहरा दर्शन शायद ही किसी और अन्य धर्म के पास है। ऋग्वैदिक युग से से लेकर पौराणिक युग तक सृष्टि की उत्पत्ति के विषय पर सभी ग्रंथों में बहुत कुछ लिखा गया है। सनातन धर्म के ऋषियों ने सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में अलग- अलग विचार दिये हैं।

ऋग्वेद का ‘नासदीय सूक्त’, सृष्टि की उत्पत्ति निराकार सत् औऱ असत् से परे किसी अन्य शक्ति को मानता है । श्रीमद्भागवत पुराण और अन्य कई वैष्णव पुराणों के अनुसार भगवान श्रीहरि विष्णु ही सृष्टि के आदिदेव हैं। ‘सांख्य दर्शन’ तो सृष्टि की उत्पत्ति में ईश्वर का कोई योगदान नहीं मानता । सांख्य दर्शन के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति और विकास बिना ईश्वर के ही हुई है और यह विकास के विभिन्न चरणों से होकर आज इस अवस्था में पहुंची है। वैशेषिक दर्शन सृष्टि की उत्पत्ति परमाणुओं के मेल से बताता है । वेदान्त दर्शन ईश्वर को एक निराकार ब्रह्म के रुप मे मानता है और इस दर्शन के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति उसी ब्रह्मा की इच्छा का परिणाम है।

सृष्टि की उत्पत्ति और सनातन धर्मग्रंथ

आमतौर पर सनातन धर्म के सभी ग्रंथो में सृष्टि की उत्पत्ति और इसके विनाश की प्रक्रिया एक विशेष विषयवस्तु रही है। ऋग्वेद के नासदीय सूक्त, हिरण्यगर्भ सूक्त और पुरुष सूक्त में सृष्टि की उत्पत्ति और इसके निर्माण की अवस्थाओं को लेकर ऋचाएं हैं। यजुर्वेद और अर्थववेद में भी सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में जानकारी दी गई है। महाकाव्यों में महाभारत में सृष्टि की उत्पत्ति को लेकर कई अलग- अलग दर्शन दिये गए हैं जिसमें श्रीमद्भगवद्गीता का दर्शन, मार्कण्डेय मुनि के द्वारा भगवान बालमुकुंद के द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन आदि प्रमुख हैं।

‘श्रीमद्भागवत’ के द्वितीय स्कंध में भी सृष्टि की उत्पत्ति का विस्तार से वर्णन किया गया है। ‘श्रीमद्भागवत’ सृष्टि का आदि पुरुष नारायण को मानता है। शाक्त ग्रँथों में ‘आद्या शक्ति’ को सृष्टि की उत्पत्ति का कारण बताया गया है। जैन ग्रंथो में सृष्टि की उत्पत्ति बिना किसी ईश्वर के ही हुई है और बौद्ध ग्रंथ भी ईश्वर के बिना ही सृष्टि की उत्पत्ति का सिद्धांत बताते हैं।

भगवान विष्णु हैं सृष्टि के रचयिता

  वैष्णव मत परंपराओं के अनुसार भगवान विष्णु ने ही सृष्टि की उत्पत्ति और रचना के लिए अपने नाभि कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति की और सृष्टि के संहार के लिए भगवान शिव को उत्पन्न किया। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार विष्णु अवतार श्रीकृष्ण ने अपना विश्व रुप दिखाया और अर्जुन को बताया कि सारी सृष्टि उन्हीं से उत्पन्न होती है और उन्हीं में लीन हो जाती है। वैष्णव मत परंपरा के ही महान ग्रंथ श्रीमद्भागवत में नारायण विष्णु को सृष्टि का मूल बताया गया है और द्वितीय स्कंध में इसकी पूरी जानकारी विस्तार से दी गई है।

श्रीमद्भागवत में गया है कि सृष्टि के पहले चारों तरफ तम या अंधकार था । उस वक्त चारों तरफ जल ही जल था। तभी अचानक उस जल से एक दिव्य कमल प्रगट हुआ । उस कमल पर एक पुरुष बैठा था जिन्हें ब्रह्मा कहा गया। ब्रह्मा ने देखा कि कहीं कुछ भी नहीं है। वो कहां से आए और इस कमल का मूल स्थान कहां है, उन्हें कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था। तब उन्होंने अपने मन में ध्यान किया तो वहां उन्हें एकार्णव जल में शेषनाग की शय्या पर नारायण विष्णु दिखे। नारायण ने ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण का आदेश दिया। इसके बाद ब्रह्मा जी ने रुद्र और अन्य देवताओं के साथ इस सारी सृष्टि की रचना की।

वेदों के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई

ऋग्वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। इस महान ग्रंथ में हमें सबसे पहली बार सृष्टि की उत्पत्ति से जुड़े प्रश्न मिलते हैं। ऋग्वेद का ‘नासदीय सूक्त’ सबसे पहले सृष्टि के पूर्व की स्थिति का वर्णन करता है। नासदीय सूक्त के छह ऋचाओं में कहा गया है कि जब न तो सत् था और न ही असत्, जब न पृथ्वी थी और न आकाश था, न दिन थी न रात था, न मृत्यु थी और न ही अमरता थी तो क्या था?

इसके आगे कहा गया है कि जब कुछ भी नहीं था तो चारो तरफ तम ही तम या अंधकार ही अंधकार था। उस अंधकार में शायद कोई था जो अपनी निज सत्ता के साथ विराजमान था। वो कौन है इसे कोई नहीं जानता क्योंकि सभी कुछ उसके बाद आया । शायद उसने ही सृष्टि को बनाया लेकिन क्या उसने ही सृष्टि को बनाया ये हम नहीं जानते , तो क्या जिसने सृष्टि को बनाया वो इसे जानता है , तो इसे भी पक्के तौर पर नहीं कह सकते।

क्या उस सृष्टिकर्ता को भी पता है कि उसने ही इस सृष्टि को बनाया तो ये भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता । क्या वही इस सृष्टि का अध्यक्ष है , ये भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता । अगर वो इस सृष्टि का निर्माता नहीं हो तो फिर किसने इस सृष्टि का निर्माण किया। ये सारे प्रश्न ऋषि नासदीय सूक्त में करता है। ऋषि कहता है कि उस तम के साथ जो भी विराजमान था , उसने इच्छा की कि वो एक से बहुत हो जाए। और इस प्रकार सृष्टि की निर्माण की प्रक्रिया शुरु हो गई। लेकिन ऋषि ने उस सृष्टिकर्ता को कोई नाम नहीं दिया। बाद के ग्रंथों में अपने अपने मतों के अनुसार किसी ने उस पुरुष को ब्रह्मा कहा, शाक्त संप्रदाय ने आद्या शक्ति नारी कहा, वैष्णव संप्रदाय ने उस सृष्टिकर्ता को नारायण कहा , शैव मत ने उस सृष्टिकर्ता को सदाशिव नाम दिया।

ब्रह्मा जी ने की सृष्टि की रचना

महाभारत और अन्य पौराणिक ग्रंथों से पता चलता है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की है। उन्हीं के मानस पुत्रों कश्यप, मरीची, अत्रि, दक्ष आदि की संतानों ने सृष्टि में विभिन्न प्राणियों को जन्म दिया और सृष्टि  का विस्तार किया।

सारे ग्रंथ ब्रह्मा जी को सृष्टि का रचयिता तो बताते हैं ,लेकिन यह भी कहते हैं कि ब्रह्मा जी से परे भी कोई ऐसी ईश्वरीय सत्ता हैं, जिन्होंने ब्रह्मा जी को जन्म दिया और उन्हें सृष्टि की रचना का कार्य सौंपा। किसी ने उस शक्ति को निराकार बताया, तो किसी ने भगवान विष्णु को ब्रह्मा का जन्मदाता बताया तो किसी ने भगवान शिव को ही ब्रह्मा और विष्णु सहित सारी सृष्टि का उत्पत्ति कर्ता बताया ।

सृष्टि के रचयिता शिव हैं

‘शिव पुराण’ और ‘लिंग पुराण’ आदि से यह पता चलता है कि परमेश्वर का निराकार रुप अलिंग अर्थात निराकार सदाशिव या शिव हैं। निराकार परमब्रह्म स्वरुप सदाशिव ने एक से द्वितीय होने की इच्छा की और उनका मूर्तिमान स्वरुप प्रगट हुआ। इन्हें ही शिव पुराण और अन्य शास्त्रों में ईश्वर, शम्भु, परमपुरुष, शिव, शंकर या महेश्वर कहते हैं।

सदाशिव से अम्बिका की उत्पत्ति

निराकार से साकार रुप धारण करने वाले परमपुरुष महेश्वर सदाशिव के वामअंग से आठ भुजाओं वाली नारी शक्ति अम्बिका प्रगट हुईँ। इन अंबिका से ही नारी शक्ति का सृजन हुआ है और यही माया हैं जो संसार को अपने प्रभाव में रखती हैं और संसार के सारे कार्यों को संचालित करती हैं।

‘शिव पुराण’ के अनुसार शिव और अंबिका ने सृष्टि के निर्माण हेतु एक अन्य पुरुष की इच्छा की। तब सदाशिव महेश्वर ने अपने वामअंग पर अमृत को लगाकर एक पितांबर धारी पुरुष की उत्पत्ति की, जो सर्वव्यापक और सत्वगुणो के साथ था। इस पुरुष ने सदाशिव से अपना परिचय पूछा तो शिव ने उस पुरुष की सर्वव्यापकता के आधार पर ‘विष्णु’ नाम दिया।

शिव से उत्पन्न हुए हैं विष्णु

भगवान शिव से उत्पन्न विष्णु जी ने निराकार सदाशिव महेश्वर की कठोर तपस्या की तो उनके शरीर के अंगों से जलधाराएं निकलने लगीं। भगवान विष्णु के अंगो से निकले इस जल से सारा आकाश व्याप्त हो गया और इसके बाद इसी जलसमुद्र में विष्णु जी ने दीर्घकाल तक शयन किया। जल अर्थात ‘नार’ में शयन करने की वजह से भगवान विष्णु का एक अन्य नाम ‘नारायण’ हो गया।नारायण से भी प्रकृति स्वरुप चौबीस तत्व उत्पन्न हुए जो संसार की रचना के मूल तत्व बनें ।

भगवान शिव से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति

‘शिव पुराण’ के अनुसार जब भगवान विष्णु जल के समुद्र में शयन कर रहे थे, तो भगवान सदाशिव महेश्वर की इच्छा से उनकी नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ। भगवान शिव ने अपने शरीर के दाहिने अंग से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति की और उन्हें कमल पर विराजमान कर दिया। ब्रह्मा जी अपनी उत्पत्ति के कारणों को लेकर विस्मय में थे और सोंच ही रहे थे, कि उनका पिता कौन है, तभी आकाशवाणी हुई कि ‘तप करो तब पता चलेगा कि तुम कहां से उत्पन्न हुए हो?’

विष्णु और ब्रह्मा के बीच विवाद

जब 12 वर्षों तक ब्रह्मा जी ने तपस्या की तो सदाशिव की इच्छा से भगवान विष्णु शयन से जागे। दोनों के बीच इस बात को लेकर विवाद शुरु हो गया कि कौन सृष्टि का मूल है और दोनों में कौन बड़ा है । दोनों को ही भगवान शिव की लीला से यह पता नहीं चल पा रहा था कि किसने किसको उत्पन्न किया है।

भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का रहस्य

  • भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो ही रहा था, कि भगवान सदाशिव महेश्वर एक ज्योतिर्लिंग रुपी स्तंभ के रुप में प्रगट हो गये, जिसका उपर से नीचे तक कोई भी ओर -छोर नहीं था। ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने इसके मूल का पता लगाने के लिए घोर प्रयत्न किया ,लेकिन दोनों को ही इसमें सफलता नहीं मिली। इसके बाद दोनों ही सदाशिव भगवान महेश्वर की प्रार्थना करने लगे।
  • भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर भगवान सदाशिव महेश्वर प्रगट हुए और उन्होंने दोनों को बताया कि वो दोनों ही भगवान शिव के वामअंग और दाहिने अंग से उत्पन्न हुए हैं। भगवान शिव ही सृष्टि के आदिदेव हैं और उन्हीं से निराकार और साकार सभी तत्वों की उत्पत्ति हुई है।
  • शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना का आदेश दिया और साथ में भगवान विष्णु को सृष्टि के पालन करने के लिए कहा । भगवान शिव ने कहा कि उनकी आद्या शक्ति उमा से ही सरस्वती का प्रागट्य होगा जो ब्रह्मा जी के साथ सृष्टि की रचना करेंगी । देवी उमा से ही महालक्ष्मी का उदय हुआ और वो विष्णु जी के साथ सृष्टि के पालन कार्य में लगीं।

भगवान शिव और उमा देवी से रुद्र और काली की उत्पत्ति

सदाशिव ने सृष्टि के संहार के लिए खुद अपने ही एक अन्य स्वरुप को प्रगट किया, जिन्हें भगवान रुद्र कहा गया और उनकी आद्याशक्ति उमा से भगवती काली का प्रागट्य हुआ । भगवती काली और रुद्र ने सृष्टि के संहार का कार्य संभाला ।

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