भगवान श्री हरि विष्णु के वाहन गरुड़ जी

सनातन धर्म में भगवान श्री हरि विष्णु को सर्व व्यापक माना गया है। वो कहीं भी और कभी भी अपने वाहन गरुड़ के द्वारा पहुंच सकते हैं। लेकिन आखिर भगवान श्री हरि विष्णु के वाहन गरुड़ की उत्पत्ति कैसे हुई। कहा जाता है कि ऋषि कश्यप की दो पत्नियों कद्रू और विनता से नागों और गरुड़ भगवान की उत्पत्ति हुई है। ऋषि कश्यप ने एक बार अपनी दोनों पत्नियों से पूछा कि उन्हें कैसी संतानें चाहिए। तो कद्रू ने उनसे एक हजार पुत्रों की कामना की जबकि विनता ने उनसे दो ओजस्वी पुत्रों की ही कामना की। वक्त आने पर कद्रू को कश्यप ने एक हजार अंडे दिए जिसे उन्होंने संभाल कर रखा।

विनता के पुत्र हैं सूर्य के सारथि अरुण :

वक्त आने पर इन अंडो से एक हजार प्रकार के सांपो की उत्पत्ति हुई। लेकिन कश्यप ने जो दो अंडे विनता को संभाल कर रखने के लिए दिए थे उससे कोई भी संतान नहीं उत्पन्न हुई। ऐसे में विनता के सब्र का बांध टूट गया और उसने एक अंडे को फोड़ दिया। इससे एक अधबने इंसान का जन्म हुआ। इस अधबने इंसान ने अपनी माता को असमय पैदा करने के लिए शाप दे दिया और कहा कि वो अपनी सौत कद्रू की दासी बन जाएगी I लेकिन साथ ही इस पुत्र ने ये भी कहा कि वो धैर्य रखे और दूसरे अंडे से उत्पन्न जीव के प्रगट होने का इंतजार करे । इस अधबने जीव को भगवान सूर्य ने अपना सारथी बना लिया जिसे हम अरुण देवता के रुप मे जानते हैं।

गरुड़ के जन्म की कथा :

वक्त आने पर दूसरे अंडे से गरुड़ जी का जन्म हुआ। लेकिन गरुड़ जी को बचपन से ही अपनी माता के दासी होने का दुख झेलना पड़ता था। एक बार गरुड़ जी ने अपनी सौतेली माता से पूछा कि कैसे वो उनकी मां को दासी होने से मुक्त कर सकते हैं तो उनकी सौतेली मां ने कहा कि अगर वो अमृत का कलश लाकर उसको दे दे तो वो उनकी माता को मुक्त कर देंगे। गरुड़ जी ने अमृत कलश उठा लिया और जब वो जाने लगें तो देखा कि भगवान विष्णु साक्षात अमृत कलश लेने के लिए उनके पास खड़े हो गए हैं। तब गरुड़ ने उन्हें अमृत कलश ले जाने की वजह बताई और कहा कि वो अपनी माता को मुक्त कराने के लिए ऐसा कर रहे हैं तो भगवान के साथ खड़े इंद्र देव ने कहा कि वो अमृत कलश ले जाएं लेकिन वो कुछ ऐसा उपाय कर देंगे कि नाग और उनकी माता कद्रू अमृत का पान नहीं कर सकेंगे।

फिर ऐसा  ही हुआ भी। कद्रू ने अमृत कलश देख कर विनता को मुक्त तो कर दिया लेकिन जब तक वो अमृत का पान खुद करती या फिर अपने नाग पुत्रों को करा पाती तब तक इंद्र कलश ले कर उड़ गए। इसके बाद जब नागों ने इसका बदला विनता से लेने की कोशिश की तब गरुड़ जी ने नागों का विनाश कर दिया। इसके बाद से ही नागो और गरुड़ जी के वंशजो के बीच आज भी दुश्मनी जारी है। लेकिन गरुड़ जी की मातृ भक्ति को देखकर भगवान विष्णु ने उन्हें अपना वाहन बना लिया।

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