हिंदू धर्म

मां को गुलामी से छुडाने वाले गरुड़ की जन्म कथा

शुद्ध सनातन धर्म सिर्फ मानवों का धर्म नहीं है बल्कि इसमें पूरे ब्रम्हांड और प्रकृति का समावेश है । शुद्ध सनातन धर्म का दायरा मानवों के साथ साथ वृक्ष, पशु और पक्षियों तक है । यही वजह है कि सभी ईश्वरीय सत्ताओं के साथ उनके वाहनरुप में पशु और पक्षियों को दर्शाया गया है ।सभी देवी – देवता के साथ कोई न कोई पशु, पक्षी, वृक्ष, तीर्थ स्थान, नदी संयुक्त है ।

प्रमुख देवताओं के वाहन :

ज्यादातर ईश्वरीय सत्ताओं के वाहन और ध्वज किसी न किसी पशु या पक्षी से जुड़े हुए हैं। जहां भगवान शिव के वाहन के रुप में नंदी बैल की पूजा की जाती है वहीं मां दुर्गा के वाहन के रुप में सिंह को दिखाया जाता रहा है । भगवान श्री हरि विष्णु के साथ भी दो प्राणियों को दिखाया जाता रहा है । पहले हैं शेषनाग जिन पर भगवान विष्णु शयन करते हैं और छत्र के रुप में शेगनाग के हजारों फन भगवान श्री हरि विष्णु के उपर छाया करते हैं। दूसरे पक्षीराज गरुड़ हैं जो भगवान श्री हरि विष्णु के वाहन है और उनकी ध्वजा पर गरुड़ का चिन्ह ही अंकित रहता है । यह एक संयोग ही है कि शेषनाग और गरुड़ दोनों के पिता एक ही हैं और दोनों एक दूसरे के सौतेले भाई हैं ।

गरुड़ के जन्म की कथा :

महाकाव्य महाभारत और कई अन्य पौराणिक कथाओं में भगवान श्री हरि विष्णु के वाहन गरुड़ जी की अद्भुत कथा का वर्णन है । कथाओं के अनुसार महर्षि कश्यप की दो पत्नियां विनता और कद्रू थी । ये दोनों ही सगी बहनें थीं और दक्ष प्रजापति की पुत्रियां भी थीं । एक बार दोनों ही पत्नियों ने ऋषि कश्यप से संतान प्राप्ति का वरदान मांगा। महर्षि ने दोनों को विकल्प दिया । पहला विकल्प था एक हजार संतानों का और दूसरा विकल्प था दो सबसे शक्तिशाली और महान पुत्रों के वरदान का ।

नागों की उत्पत्ति :

कद्रू ने अपने पति कश्यप से एक हजार नागपुत्रों का वरदान मांग लिया । विनता को दो शक्तिशाली पुत्रों का वरदान मिला।  जल्द ही कद्रू के गर्भ से एक हजार नागपुत्रों का जन्म हुआ जिनमें शेषनाग, नागराज,वासुकि, एरावत, तक्षक, कर्कोटक आदि का जन्म हुआ । इनमें शेषनाग जी सबसे महान और सात्विक स्वभाव के थे। उन्होंने ब्रम्हा से वरदान प्राप्त कर विष्णु जी की भक्ति प्राप्त की और विष्णु जी के कहने पर उनके शयन के लिए पलंग का कार्य करने लगे ।

भगवान सूर्य के सारथि अरुण का जन्म :

इधर विनता ने दो अंडों को पैदा किया । लेकिन पांच सौ वर्षों तक इन दोनों ही अंडो से कोई भी जीव नहीं निकला। अपनी सौत कद्रू के द्वारा लगातार व्यंग्य बाणों से आहत होकर विनता ने एक अंडे को अपने हाथ से फोड़ दिया । इस अंडे से एक आधे अधूरे प्राणी ने जन्म लिया । इस प्राणी के अंग पूरी तरह से विकसित नही हो पाए थे । उसने निकलते ही क्रोध में अपनी माता को शाप दे दिया और कहा कि तुमने मुझे वक्त से पहले ही अंडे से निकाल दिया क्योंकि तुम्हें अपनी सौत कद्रू से जलन हो रही थी । अब तुम अगले पांच सौ वर्षों तक अपनी सौत की दासी बन कर रहोगी ।

बाद मे उस प्राणी ने अपनी मां विनता को कहा कि अगले अंडे को फोड़ना मत । उससे जो बलशाली पुत्र निकलेगा वहीं तुम्हे इस गुलामी से मुक्ति दिलायेगा । वह प्राणी इसके बाद अंतरिक्ष में चला गया और सूर्य भगवान के सारथि अरुण के नाम से विख्यात हुआ । प्रातकाल में जो सूर्य उदय से पहले लालिमा दिखती है वही अरुण है ।

विनता का सौत कद्रू की दासी बनना :

विनता ने अपने दूसरे अंडे को संभाल कर रखा और वक्त आने पर उससे एक महान बलशाली पक्षी का जन्म हुआ जिसका नाम गरुड़ पड़ा । लेकिन उससे पहले ही विनता एक शर्त की वजह से अपनी सौत की दासी बन गई । महाभारत की कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन से उच्छश्रैवा अश्व बाहर निकला तो उसके वैभव की कथा सुन कर दोनों सौतें उसे देखने के लिए गईं। विनता ने कद्रू को कहा कि यह अश्व तो पूरी तरह से सफेद रंग का है । तो कद्रू ने कहा कि नहीं इसकी पूंछ का रंग तो काला है । चलो दोनों ही शर्त लगाते हैं कि अगर पास से देखने पर अश्व के पूंछ का रंग जिसके कहे मुताबिक होगा दूसरे को उसका दासत्व स्वीकार करना होगा

मां कद्रू का पुत्र नागों को शाप :

कद्रू ने अपने नाग पुत्रों को बुलाया और कहा कि कल जब हम उच्छैश्रवा अश्व को नजदीक से देखने जाएंगे तब तुम लोग अश्व की पूंछ पर खुद को लपेट लेना ताकि उसकी पूंछ का रंग काला हो जाए । कुछ नागों ने यह असत्य कार्य करने से इंकार कर दिया । इस पर कद्रू ने अपने उन नाग पुत्रों को शाप दे दिया कि जनमेजय के यज्ञ में उनका संहार हो जाएगा। लेकिन कर्कोटक नाग ने अपनी मां की बात मान ली और जब कद्रू और विनता उच्छैश्रवा को देखने गईं तब उसकी पूंछ पर खुद को लपेट लिया। कद्रू ने विनता को दिखा दिया कि अश्व की पूंछ काली है। विनता को कद्रू की दासी बनने को मजबूर होना पड़ा।

भगवान गरुड़ का जन्म :

इधर दासी विनता अपने इस दूसरे अंडे से जीव के बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगी । समय आने पर इससे एक महान और इंद्र के समान शक्तिशाली पक्षी का जन्म हुआ जो गरुड़ के नाम से विख्यात हुआ ।

लेकिन प्रश्न उठता है कि आखिर कश्यप ऋषि तो इंसान थे और उनकी पत्नी विनता भी नारी थीं तो फिर उनसे एक पक्षी का जन्म कैसे हुआ ।

इंद्र से भी बढ़कर है गरुड़ :

महाभारत की कथा के अनुसार एक बार ऋषि कश्यप एक यज्ञ कर रहे थे जिसमे यज्ञ की लकड़ी अर्थात समिधा लाने का कार्य इंद्र और बालखिल्य ऋषियों को सौंपा गया था । इंद्र अपनी शक्ति से बहुत सारी लकड़ियां पल भर में ले आएं । लेकिन बालखिल्य ऋषि कद और शारीरिक शक्ति में कमजोर थे उसलिए थोडी ही लकड़ियों को लाने में उन्हें वक्त लग गया । इंद्र ने बालखिल्य ऋषियों का मजाक उड़ाया तब बालखिल्य ऋषियों ने यज्ञ के द्वारा यह कामना की कि इंद्र से भी शक्तिशाली किसी और इंद्र की उत्पत्ति हो ।

इसके बाद इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने बालखिल्यों से क्षमा मांगी और ऋषि कश्यप से अपने इंद्र बने रहने का उपाय पूछा । तब कश्यप ने कहा कि मेरी पत्नी वनिता के गर्भ से इंद्र जैसा ही पुत्र पैदा होगा लेकिन वो देवता नहीं बल्कि पक्षियों का इंद्र होगा । इस प्रकार विनता के अंडे से पक्षिराज गरुड़ का जन्म हुआ । 

गरुड़ का मां को दासत्व से मुक्त कराना :

गरुड़ ने जन्म के साथ ही अपनी मां विनता को अपनी सौतेली मां कद्रू की दासी के रुप में देखा । इसका उपाय उन्होंने अपने सौतेले नाग भाइयों से पूछा तो नागों ने कहा कि अगर वो अमृत कलश लेकर आ सके तो विनता दासी होने से मुक्त हो जाएगी । गरुड़ अपनी मां को दासत्व से मुक्त कराने के लिए अमृत लाने के लिए निकल पड़े । देवताओं ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन्होंने देवताओं को भी पराजित कर दिया और अमृत का कलश उठा कर चल पड़े । गरुड़ जी ने अमृत पिया नही बस वो अपनी मां को इस गुलामी से मुक्त कराना चाहते थे।

भगवान विष्णु की मुलाकात :

जब गरुड़ जी अमृत का कलश उठा कर आकाश मार्ग से जा रहे थे तब रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु ने दर्शन दिया । भगवान विष्णु उनके अमृत न पीने के संकल्प को देख कर प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने को कहा । गरुड़ ने पहला वरदान यह मांगा कि वो भगवान विष्णु की ध्वज मे अंकित रहे । दूसरा वरदान यह मांगा कि वह अमृत पिये बिना ही अजर अमर बन जाए । भगवान विष्णु ने गरुड़ जी को ये दोनों ही वरदान दे दिये । इसके बाद गरुड़ जी ने भी श्री हरि विष्णु से कोई वरदान मांगने को कहा । भगवान श्री हरि ने गरुड़ जी से यही वरदान मांगा को वो उनके वाहन हो जाएं । इसके बाद से गरुड़ जी भगवान विष्णु के वाहन बन गए ।

इंद्र और गरुड़ की मित्रता :

इंद्र ने गरुड़ जी को अमृत का अपहरण करते देख उन पर वज्र चला दिया । लेकिन गरुड़ जी पर वज्र का कोई असर ही नहीं हुआ । इंद्र समझ गए कि ये कोई बहुत बलशाली ईश्वरीय सत्ता हैं । ऐसे में इंद्र ने गरुड़ जी से मित्रता कर ली । इंद्र ने गरुड़ जी से अमृत का अपहरण न करने की गुजारिश की । तब गरुड़ जी ने आश्वासन दिया कि वो जब भी अमृत कलश को पृथ्वी पर रखें तब ही इंद्र उस पर वापस अपना कब्जा कर सकते हैं । इंद्र से गरुड़ जी ने यह वरदान मांगा कि सर्प उनके भोजन सामग्री बन जाएँ । इसके बाद गरुड़ जी अमृत कलश लेकर आते हैं और नागों से कहते हैं कि तुम लोग अमृत पीने के लिए स्नान करके आ जाओं । नाग स्नान करने के लिए जाते है और गरुड़ जी जैसे ही अमृत कलश पृथ्वी पर रखते हैं , इंद्र उसे उठा कर ले जाते हैं । जब इंद्र अमृत कलश उठा रहे होते हैं उसी वक्त कुछ अमृत की बूंदे पृथ्वी पर बिछी कुशा पर गिर जाती है ।

नागों की जीभ के दो टुकड़े होना :

जब नाग स्नान जप करके आते हैं और अमृत कलश को गायब देखते हैं तब वो परेशान होकर कुश को ही चाटने लगते हैं । इस वजह से सांपो की जीभ दो हिस्सों में फट जाती है । आज भी सांपो की जीभ दो हिस्सों में फटी रहती है । इस प्रकार महान गरुड़ जी अमृत लाने का अपना वचन भी पूरा करते हैं । और अपनी मां विनता को कद्रू के पांच सौ वर्षों की गुलामी से मुक्त भी कराते हैं । महान गरुड़ जी को आज हम भगवान विष्णु के महान भक्त के रुप जानते हैं लेकिन वो इतने महान मातृभक्त भी थे यह आज भी बहुत कम लोगों को मालूम है । 
 

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