गणेश विघ्नहर्ता

गणेश विघ्नहर्ता या विघ्न करने वाले विघ्नकर्ता | गणेश चतुर्थी

भगवान गणेश को मंगल मूर्ति और विघ्नहर्ता कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गणेश हमारे सारे विघ्नों को हर लेते हैं और हमारी जिंदगी में शुभ ही शुभ करते हैं। इसमें कोई शक भी नहीं है कि गणेश आज एक मंगलकारी देवता के रुप में पूजित होते हैं और हमारी जिंदगी में शुभ भी करते हैं।

गणेश कैसे बने विघ्नहर्ता से विघ्नकर्ता

लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं रहा है । गणेश एक विघ्न करने वाले देवता के रुप में हमारे शास्त्रों में नज़र आते हैं। उनके विघ्नहर्ता से विघ्नकर्ता होने की कथा बड़ी रोचक है।

ऊँ गजनानं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्भो फलचारु भक्षणम।
उमासुतं शोक विनाशकारकम् , नामामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।

अर्थः- हम उस हाथी के मुख वाले देवता को जो भूतों और गणों से सेवित हैं, जो कपित्थ ( एक कड़वा फल) और जम्भो( एक जामुन जैसा मीठा फल) फलों को सु्ंदरता के साथ भक्षण करते हैं, जो उमा अर्थात पार्वती के पुत्र हैं , जो शोक और विनाश के कारक अर्थात जिनकी वजह से शोक और विनाश हो सकते हैं और नहीं भी हो सकते, उन विघ्न के ईश्वर विघ्नेश्वर के चरण कमलों में हम नमन करते हैं।

इस श्लोक में हाथी के मुख वाले इन देवता को शोक और विनाश का कारक बताया गया है और साथ ही इन्हें विघ्नेश्वर अर्थात विघ्नों का ईश्वर भी बताया गया है।

वेदों में गणेश का जिक्र ?

जिन्हें हम आज गणेश के रुप में पूजते हैं वो विघ्नों के देवता कैसे थे?  इसके लिए हमें गणेश जी के इवोल्यूशन को देखना पड़ेगा । गणेश जी का एक नाम विनायक भी है । विनायक अर्थात जिसका कोई नायक नहीं हो अर्थात जिसका कोई पिता नहीं हो। विनायक की उत्पत्ति अंबिका देवी से मानी जाती है। अब ये विनायक कैसे गणेश या गणपति बन गए इसकी शास्त्रोक्त व्याख्या जरुरी है। वेदों, रामायण और महाभारत में भगवान गणेश का कोई जिक्र नहीं है। ऋ्ग्वेद में एक मंत्र आता है जिसे आज भी पंडित जन गणेश जी की पूजा में इस्तेमाल करते हैं वो इस प्रकार है –

ऊँ गणानां गणपति गंगह्वा महे..

ये दरअसल गणेश जी का मंत्र नहीं है बल्कि ये वैदिक काल में गणों अर्थात आम समुदाय के देवता बृहणस्पति का मंत्र है।

विनायक कौन हैं? क्या वो गणेश हैं ?

श्रवणेन सुराः सर्वे प्रीयन्ते सम्प्रश्रृण्वताम् ।
विनायकाश्च शाम्यन्ति गृहे तिष्ठन्ति यस्य वै ।।

वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि जो भी वाल्मीकि रामायण का पाठ अपने घर में करता है उन्हें विनायको के द्वारा उत्पन्न किए गए विघ्न नहीं सताते हैं। लेकिन महाभारत मे पहली बार विनायकों के जन्म की कथा वन पर्व में आती है। कथा है कि पांच ऋषियों के एक समूह ने पांचजन्य नामक अग्नि पुरुष को प्रगट किया । इन्ही पांचजन्य से 15 विनायकों का जन्म हुआ जो यज्ञों का विध्वंस करते थे। ये यज्ञों में उत्पात मचाने के लिए प्रगट हुए थे। इन विनायकों को महाभारत के शांति पर्व में भूत- पिशाच और राक्षसों से जोड़ा गया है जो विघ्न करने वाली बुरी शक्तियां थीं।

स्कंद और विनायक में संबंध

महाभारत में ही स्कंद या कार्तिकेय की उत्पत्ति की भी कथा है । कार्तिकेय को महाभारत में उत्पात करने वाले देवता के रुप में ख्याति मिली है । कार्तिकेय के साथ सप्तमातृका देवियां ( काकी , हलिमा, मालिनी, ब्रहम्ता, आर्या , लालका,और वैमित्रा ) और 18 ग्रहों को जोड़ा गया है । ये सभी बच्चों को खाने वाली देवियां थी और ये ग्रह बच्चों को 16 वर्ष की उम्र से पहले तक कई बीमारियों से ग्रस्त कर देते थे।

ब्रह्मांड पुराण में कार्तिकेय के साथ बुरी शक्तियों में सप्तमातृकाओं, गणों और विनायकों को एक साथ दिखाया गया है जो उत्पात मचाने मे माहिर थे। लेकिन जैसे ही स्कंद या कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति बनाया गया और वो महासेनानी के रुप में सिंहासन पर बैठे वो शुभ करने वाले देवता बन गए और विघ्न करने का कार्य विनायकों और सप्तमातृकाओं के पास आ गया । महाभारत में इन मातृकाओं की संख्या भी बढ कर 185 तक पहुंच गई ।

अष्ट विनायको से एक विनायक की कथा

मानवगृहसूत्र में पहली बार 15 विनायकों की संख्या घट कर 8 विनायकों या अष्ट विनायकों के रुप में रह गई। गणेश को भी अष्ट विनायक के रुप में पूजा जाता है। याज्ञवलक्य स्मृति में आठ विनायक एक विनायक के रुप में बदल जाते हैं लेकिन अभी भी ये विनायक विघ्न करने के कार्य में कई मातृका देवियों के साथ कार्य कर रहे होते हैं। विनायक के साथ वैसे तो कई बुरी शक्तियों से संपन्न मातृका देवियां कार्य करती थी और ये सभी ग्राम देवियों के रुप में पूजी जाती थीं। आज भी हरेक गांव में सात पिंडों वाला एक ग्राम देवी मंदिर होता है। इसमें दो और पिंड होते हैं जिनमें एक शिव के गण वीरभद्र का होता है और दूसरा विनायक का।

दरिद्रता की देवी ज्येष्ठा अलक्ष्मी

इन देवियों में एक नाम उभर कर आता है जिन्हें विनायिका या ज्येष्ठा अलक्ष्मी भी हैं। ज्येष्ठा अलक्ष्मी को दरिद्रता की देवी माना जाता है और उन्हें लक्ष्मी की बहन भी कहा जाता है । ज्येष्ठा अलक्ष्मी का मूल वेदों की देवी निऋति से है जो मृत्यु और बीमारियों की देवी हैं। यही ज्येष्ठा अलक्ष्मी विनायिका या विनायक की माता के रुप में भी सामने आती है। गौर करने वाली बात ये है कि ये सभी मातृका देवियां आधे इंसान और आधे जानवर के रुप में कल्पित की गईं। ज्येष्ठा अलक्ष्मी को गजानन मुखी, हस्तिमुखा आदि जाता है । वायुपुराण में कई जानवरों के सिरों वाली महिला गणों के बारे में बताया गया है जिन्हें गजवक्रत्रा और गजानन कहा गया है । स्कंद पुराण गजस्य , गजवक्त्र और गजमुखी नामों वाले महिला गणों की जानकारी देता है।

विनायक अंबिका के पुत्र हैं

चूंकि विनायक इन गजमुखी देवियों के साथ जुड़े हुए थे इस लिए याज्ञवलक्य स्मृति में गणेश या विनायक को सप्त मातृकाओं के साथ जोड़ा गया है । याज्ञवलक्य के अनुसार विनायक अंबिका देवी के पुत्र हैं। गोभिल स्मृति ग्रंथ कहता है कि किसी भी पूजा से पहले सप्त मातृकाओं और गणेश की पूजा करनी जरुरी है। कात्यायन स्मृति भी गणेश जी को सप्तमातृकाओं के जोड़ता है।

 विनायक कैसे बने गणपति गणेश?

  • विनायक का एक नाम वक्रतुंड भी है। विनायक का ही एक और नाम दंतिन भी है। बौधानयन धर्मशास्त्र में श्राद्ध के तर्पण के एक मंत्र में गणपति को भी हस्तिमुख या हाथी के मुख वाला, वक्रतुंड और लंबोदर कहा गया है ।
  • वायुपुराण कहता है कि विनायक गजरुपी है( गजरुपी विनायकः) । वायुपुराण विनायका को विघ्नेश भी कहता है ( गजरुपिणा विघ्नेशो) । मत्स्य पुराण विनायक को गजवक्रत्रम या गज को सिर वाला कहता है।
  • विष्णुधर्मोत्तरपुराण भी विनायक को गजवक्त्र कहता है । भागवत पुराण में विनायक एकदंत कहते गए हैं। जो गणेश जी का भी एक नाम है। भागवत पुराण में ही विनायक को गजानन कहा गया है।
  • इस प्रकार विनायक ही गणपति, गणाधिपति , वक्रतुंड और एकदंत के रुप में पूजे जाते थे। यही गणपति बाद में जब शुभ देवता के रुप में प्रसिद्ध हुए तो गणेश नाम से पूजित हुए और इन्हें माता पार्वती ( विनायक अंबिका से उत्पत्न हुए) से उत्पन्न हुआ बताया गया ।

गणेश बन गए विघ्नहर्ता

विनायक कैसे गणेश बन कर शुभ देवता के रुप में बदल गए और विघ्नकर्ता से विघ्नहर्ता के रुप मे बदले इसकी कथा गणेश पुराण और विनायक पुराण ( तमिल भाषा) में मिलती है । कथा ये है कि राजा अभिनंदन ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उसने इंद्र के लिए यज्ञ का भाग नहीं रखा। इस पर इंद्र ने यज्ञ का विध्वंस करने के लिए काल को नियुक्त किया। काल ने विघ्नासुर नामक दैत्य का रुप धारण किया।

विघ्नासुर ने यज्ञ में विघ्न डालना शुरु किया तो एक ब्राहम्ण के आह्वान पर गणेश जी ने विघ्नासुर को भगा दिया । इसके बाद से किसी भी यज्ञ में जिसमें गणेश जी का आह्वान नहीं किया जाता है तो विघ्नासुर आकर यज्ञ में विघ्न करना शुरु कर देता है। यहीं से गणेश जी को विघ्नहर्ता की उपाधि मिली । यही कथा विनायकपुराण विनायक के नाम से आती है। और विनायक और गणेश एक मान लिये जाते हैं और दोनों ही विघ्नहर्ता के रुप में एक देवता बन जाते हैं।  

विनायक पुराण( तमिल) कथा में गणेश विघ्नासुर को अपना सहयोगी बना लेते हैं और कहते हैं कि जो भी गमेश की पूजा के किये बिना यज्ञ करेगा उस यज्ञ को विघ्नासुर नष्ट कर देगा। इसलिए अगर गणेश जी की पूजा पहले नहीं की जाएगी तो वो हमारे लिये विघ्नहर्ता से विघ्नकर्ता बनने में देरी नहीं करते हैं।

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