भगवान गणेश के अवतार के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। सच ये है कि चारों युगों में भगवान गणेश के अलग- अलग अवतार हुए हैं। हम आम तौर पर यही जानते रहे हैं कि विष्णु धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। लेकिन भगवान विष्णु के अवतारों के अलावा कई ऐसी ईश्वरीय सत्ताएं भी है जो विशेष प्रयोजनों को पूर्ण करने के लिए अवतार लेती हैं। भगवान शिव, देवी दुर्गा, माँ लक्ष्मी और कई ऐसे देवी देवता हैं जिन्होंने संसार की रक्षा और कल्याण के लिए अवतार लिए हैं।भगवान गणेश के अवतार भी संसार के कल्याण और रक्षा के लिए हुए हैं।
श्रीदुर्गा सप्तशती में आद्या शक्ति अपने अवतारों के बारे में बताती हैं और कहती हैं –
यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ।
तदा तदावतीर्याहं करिष्यामि संक्षयम ।।
अर्थात – “भविष्य में जब-जब दानवों के द्वारा आतंक मचाया जाएगा, तब -तब मैं अवतार लेकर तुम सबकी रक्षा करुंगी ।”
भगवान शिव के भी कई अवतार हुए हैं। ऐसे में भगवान गणेश के अवतार के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं। भगवान गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है। वो विघ्नेश्वर के रुप में पूजे जाते हैं। भगवान गणेश समस्त विघ्नों को दूर करने वाले होने की वजह से विघ्नहर्ता के रुप में भी पूजित होते है।
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गणेश के अवतार की सच्ची कहानी
गणेश के अवतार को आदिदेव कहा जाता है यानी वो देवता जो सबसे पहले उत्पन्न हुए हैं। वेदों में गणपति की स्तुति की गई है। आदिदेव गणपति की पूजा शिव और पार्वती ने भी की थी । रामचरितमानस में शिव और पार्वती के विवाह के अवसर पर दोनों के द्वारा गणपति की पूजा का उल्लेख मिलता है –
‘मुनि अनुशासन गनपति हि पूजेहु शंभु भवानि।
कोउ सुनि संशय करै जनि सुर अनादि जिय जानि’।
इसका अर्थ यही है कि गणपति आदिदेव हैं और शिव और पार्वती से भी पहले उत्पन्न हुए हैं। ये गणपति ही कभी ऋषि कश्यप के यहां अवतरीत होते हैं तो कभी सिर्फ माँ पार्वती के शरीर से उत्पन्न होते हैं तो कभी शिव और पार्वती दोनों के द्वारा उत्पन्न होते हैं।
गणेश जी की उत्पत्ति का रहस्य
‘स्कंद पुराण’ के अनुसार गणेश जी की उत्पत्ति देवी पार्वती के शरीर के मैल से हुई है। ‘मत्स्य पुराण’ के अनुसार गंगाजल से पहले गणेश जी की उत्पत्ति हुई और बाद में माता पार्वती ने उन्हें अपने पुत्र के रुप में अपना लिया । ‘लिंग पुराण’ के अनुसार गणेश जी की उत्पत्ति भगवान शिव से हुई है। शिव ने ही असुरों को मारने के लिए गणेश जी की रचना की थी।
‘वाराहपुराण’ के अनुसार गणेश जी की उत्पत्ति भगवान शिव की हँसी से हुई थी। भगवान शिव के गणेश के प्रति लगाव से पार्वती को जलन हुई और उन्होंने गणेश जी के सिर को हाथी के सिर का बना दिया । ‘वामन पुराण’ के अनुसार भगवान गणेश की उत्पत्ति माँ पार्वती के शरीर से हुई है। नेपाल की कुछ कथाओं के अनुसार भगवान गणेश स्वयं उत्पन्न हुए हैं और स्वयंभू कहे जाते हैं।
गणेश हरेक युग में अवतार लेते हैं
दरअसल गणेश विघ्नों को हरने के लिए हरेक युग में अवतार लेते हैं। ‘गणेश पुराण’ में दी गई कथा के अनुसार कृतयुग या सतयुग मे भगवान गणेश ‘महोत्कट’ के रुप मे अवतरीत होते हैं। सतयुग में उनके माता पिता का नाम अदिति और कश्यप बताया जाता है । इस युग में भगवान गणेश का सिर हाथी का नहीं होता है और न ही मूषक उनका वाहन होता है। सतयुग में गणेश सिंह की सवारी करते हैं।
त्रेतायुग में गणेश पार्वती के पुत्र के रुप में जन्म लेते हैं। त्रेतायुग में गणेश को पार्वती के शरीर के मैल से उत्पन्न बताया गया है, इसलिए उन्हें पार्वती तनया भी कहा जाता है। इस युग में भी गणेश का सिर हाथी का नहीं है । त्रेतायुग में गणेश मयूर की सवारी करते हैं। इसी वजह से गणपति को ‘मयूरेश्वर’ भी कहा जाता है ।
गणेश पुराण में ही ये कथा भी है कि ‘मयूरेश्वर गणपति’ अपनी सवारी मयूर को अपने भाई कार्तिकेय को भेंट कर देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके पहले स्कंद या कार्तिकेय का वाहन मुर्गा था और वो विघ्न करने वाले देवता के रुप में प्रसिद्ध थे। जैसे ही गणेश ने अपना वाहन मयूर कार्तिकेय को भेंट किया वैसे ही कार्तिकेय भी विघ्नों को हरने वाले देवता के रुप में प्रसिद्ध हो गए।

कार्तिकेय से जुड़े हैं भगवान गणेश
कार्तिकेय के जन्म की कथा वाल्मीकि रामायण और महाभारत दोनों में आती है। लेकिन महाभारत में उनके जन्म के साथ ही उत्पात शुरु हो जाते हैं। कार्तिकेय के साथ ‘सप्तमातृकाएं’ जुड़ जाती है । कार्तिकेय के शरीर से 18 ग्रहों की भी उत्पत्ति होती है। ये ‘सप्तमातृकाएं’ बुरी शक्तियां हैं, जो बच्चों को खा जाती है। कार्तिकेय के शरीर से निकले 18 ग्रहों को ‘स्कंदग्रह’ भी कहा जाता है। ये ‘स्कंदग्रह’ भी बच्चों को बीमार करने का कार्य करते है।
हालांकि महाभारत में ही इंद्र के द्वारा कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति बना दिया जाता है, लेकिन इसके बाद भी वो अशुभता के प्रतीक ही बने रहते हैं। ‘गणेश पुराण’ में ‘मयूरेश्वर गणपति’ के द्वारा अपना वाहन मयूर देने का अर्थ ये भी है कि, कार्तिकेय अब भगवान गणेश की तरह शुभता के प्रतीक बन जाते हैं।
द्वापर युग मे गणेश जी भगवान शिव और माता पार्वती दोनों से ही जन्म लेते हैं। शैव आगम की कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माँ पार्वती हाथी और हथिनी का रुप धारण करके प्रेम कर रहे थे, उनके इसी प्रेम के परिणाम स्वरुप जो पुत्र प्राप्त हुआ वो ‘गजानन’ कहलाए। इस युग में ‘गजानन’ के नाम से प्रसिद्ध गणेश जी का वाहन मूषक बना ।
कलियुग में फिर आएंगे गणेश जी
कलियुग में भगवान गणेश जी फिर से एक नया अवतार लेंगे । इस बार उनका नाम ‘धूमकेतु विनायक’ होगा। उनका शऱीर कैसा होगा इसका वर्णन तो नहीं दिया गया है लेकिन उनका वाहन इस बार एक अश्व होगा। धूमकेतु विनायक संसार में कल्याण के लिए कार्य करेंगे और दुष्टों का संहार करेंगे।एक बार फिर गणेश अपने विघ्नकर्ता और विघ्नहर्ता रुप में नज़र आएंगे।
गणेश जी की उत्पत्ति की कथा
लेकिन आम धार्मिक समुदाय में भगवान गणेश की उत्पत्ति की जो सबसे लोकप्रिय कथा है, वो है माता पार्वती के शरीर से उनके जन्म लेने की कथा । कथा है कि माता पार्वती भगवान शंकर के गणों से उब गईं। ये गण हमेशा भगवान शिव की ही आज्ञा मानते थे ।इसलिए माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से एक बच्चे का सृजन किया और उसे द्वार पर रक्षा करने के कार्य में सौंप दिया।
जब भगवान शंकर माता पार्वती से मिलने के लिए आए तो उस बच्चे ने उनका मार्ग रोक दिया। भगवान शंकर सहित सभी गणों और देवताओं से उस बच्चे का युद्ध हुआ। उस बच्चे ने शिव के सभी गणो और देवताओं को पराजित कर दिया । भगवान शंकर ने क्रोध से उस बच्चे का सिर काट दिया। इस पर माता पार्वती क्रोधित हो गईं ।
माता पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए उस बच्चे के सिर पर हाथी के बच्चे का सिर लगा दिया गया । तभी इस इस बच्चे का नाम गजानन पड़ा । भगवान शिव ने गजानन को अपने गणों का प्रमुख बना दिया और इसके बाद से वो गणपति या गणेश के नाम से संसार में विख्यात हो गए।