Ram Laxman Sita ji with Kevat

भगवान से मित्रता से मोक्ष मिलता है

सनातन धर्म में भक्ति के नौ प्रकार बताए गये हैं जिन्हें नवधा भक्ति भी कहते हैं। इस प्रकार की भक्ति में ईश्वर से प्रति मित्रता का भाव रख कर उनकी उपासना की जाती है। सनातन धर्म में ऐसे कई भक्त हुए हैं जिन्होंने ईश्वर के प्रति अपनी मित्रता का भाव रख कर भी ईश्वरीय कृपा प्राप्त की है।

भगवान से मित्रता से मोक्ष की प्राप्ति होती है :

भगवान श्री राम ने अनेक ऐसे भक्त हुए हैं जिनकी मित्रता ने भक्ति के ऐसे मानदंड स्थापित किए है भगवान से मित्रता से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। भगवान श्री राम के मित्रों में केवट, निषाद, सुग्रीव प्रमुख रुप में आते हैं। भगवान श्री राम जब वनवास के लिए जा रहे थे तब उस वक्त केवट ने ही उन्हें सरयू पार कराया था। भगवान से केवट में पारितोषिक के रुप में उनके चरणामृत मांग लिया। जिसे पी कर केवट ने अपने दस हजार पूर्वजों के साथ साथ खुद को भी मुक्त करा लिया था। निषादराज को भी भगवान श्री राम ने अपने मित्र का दर्जा दिया और उसे भी भवसागर पार करा दिया। सुग्रीव तो भगवान श्री राम के अनन्य मित्र थे जिनकी रक्षा के लिए भगवान ने अपने उपर बालि को छिप कर मारने का कलंक भी अपने माथे ले लिया था।

भगवान से मित्रता से मोक्ष

भगवान से मित्रता से मोक्ष श्री कृष्ण की भी मित्र भाव से पूजा करने वाले भक्तों की संख्या कई है। सुदामा, उद्धव , अर्जुन भगवान से सबसे प्रिय मित्रों में एक रहे हैं। सुदामा तो भगवान के बाल सखा थे और उनकी दरिद्रता को भगवान ने सिर्फ सूखे चने खा कर ही खत्म कर दी थी। उद्धव जी को भक्ति का ज्ञान भगवान से मित्रता के फलस्वरुप ही प्राप्त हुआ था। अर्जुन के लिए भगवान ने तो महाभारत तक करवा दिया और साथ ही भगवान ने गीता का ज्ञान देकर अर्जुन को मोह और माया के बंधनों से मुक्त भी कर दिया था। भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाल सखाओं की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को भी उठा लिया था। यही वजह है कि वैष्णव मत में सख्य भाव का भक्ति में अप्रतिम स्थान है।

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