भगवान विष्णु

जानें, भगवान विष्णु के 4 अवतार : ‘ नर ‘ ‘ नारायण ‘ हरि और कृष्ण

नर – नारायण, हरि, कृष्ण, हरि आदि कितने ही नामों से हम ईश्वर को पुकारते हैं, ऐसी मान्यता है कि ये सभी नाम भगवान विष्णु के हैं जिन्हें भगवान श्री कृष्ण के लिए भी प्रयोग किया जाता है. वैसे सच भी है कि हरि अनंत हरि कथा अनंता लेकिन क्या सच में ये सारे नाम भगवान विष्णु और भगवान श्रीकृष्ण के ही हैं, या ये कोई और ही ईश्वरीय सत्ताएं हैं। क्या संबंध है इन नामों का भगवान विष्णु से –

नर नारायण हरि कृष्ण हरि कितने नामों से हम ईश्वर को पुकारते हैं

एक भगवान या कई भगवान :

भगवान श्री हरि विष्णु के रहस्यो को उनकी कृपा से ही जाना जा सकता है। भगवान श्री हरि  विष्णु को नारायण भी कहा जाता  है। भगवान श्री कृष्ण को भगवान श्री विष्णु का पूर्ण अवतार भी कहा जाता है। महाभारत में भगवान श्री कृष्ण खुद को नारायण का अवतार भी मानते हैं और अर्जुन को नर का अवतार घोषित करते हैं। फिर ब्रम्हैववर्त पुराण में कृष्ण से ही विष्णु की उत्पत्ति बताई गई है। 

ईश्वर का सर्वोच्च रुप कौन हैं :

वैष्णव मत के अलग – अलग संप्रदायों में भगवान विष्णु और उनके अवतारों की सर्वोच्चता को लेकर कई मत हैं। रामानंदी संप्रदायों का मानना है कि श्रीराम सर्वोच्च हैं और विष्णु भी श्रीराम के अवतार ही हैं। श्रीराम ही जगत से सृष्टिकर्ता, पालक और संहारकर्ता हैं।

ब्रम्हवैवर्त पुराण विष्णु के अवतार कृष्ण को न मान कर कृष्ण का अवतार विष्णु को मानता है । इस पुराण के अनुसार गोलोक वासी कृष्ण ही सृष्टि के आदि देव हैं। गोलोक वासी कृष्ण ही सृष्टि के रचयिता है, पालन भी वही करते हैं और प्रलयकाल में सृष्टि का संहार भी वही करते हैं। इन्ही कार्यों के लिए गोलोक वासी कृष्ण ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव को रचा है । 

विष्णु, राम और कृष्ण में कौन हैं श्रेष्ठ :

ऐसे में संशय होना स्वाभाविक है कि आखिर कौन है जिन्हें हम वैष्णव मत में सर्वप्रथम ईश्वरीय सत्ता मानें। क्या विष्णु को आदिदेव मानना उचित है क्या वही नारायण भी हैं , कृष्ण भी हैं , हरि भी हैं और नर भी हैं। या भगवान श्री कृष्ण परमब्रम्ह हैं जिनसे भगवान विष्णु का भी प्राक्ट्य हुआ है, नर- नारायण और हरि भी उनके ही स्वरुप हैं। क्या पूर्ण परमब्रम्ह कृष्ण कोई अलग सत्ता हैं जिनसे द्वापर युग में महाभारत के भगवान श्री कृष्ण ने अवतार लिया है। क्या कृष्ण विष्णु और नारायण के अवतार न होकर परमब्रम्ह श्री कृष्ण जो गोलोक वासी हैं उनके अवतार हैं। ये प्रश्न वैष्णव मत में बहुत वर्षों से हल नहीं किये जा सके हैं। 

नारायणी गीता में छिपा है विष्णु के अवतारों का रहस्य :

नारायणी गीता महाभारत में भीष्म और  युधिष्ठिर के संवाद को कहा जाता है । महाभारत के शांति पर्व में जब युधिष्ठिर शर शय्या में पड़े भीष्म के पास जाते हैं और भक्ति का ज्ञान लेते हैं तब भीष्ण उन्हें जो ज्ञान देते हैं वो गीता की तरह ही प्रसिद्ध होता है और इसे नारायणी कहा जाता है।इसी संवाद में वो विष्णु, नारायण, नर, कृष्ण और हरि के बीच के संबंधो का रहस्य बताते हैं ।

धर्म के पुत्र नर, नारायण, कृष्ण और हरि :

 भीष्ण के अनुसार ब्रम्हा के ह्दय से धर्म का उदय हुआ। धर्म की पत्नी दक्ष की पुत्री रुचि थी। धर्म और रुचि के गर्भ से चार पुत्रों का जन्म हुआ  जिन्हें नर, नारायण, हरि और कृष्ण कहा गया। इन चारों को भी भगवान श्री विष्णु के चार स्वरुप माना जाता है । भगवान श्री विष्णु ने जगत में धर्म और रुचि के पुत्रों के रुप में जन्म लेकर दो उद्देश्य तय किये। नर और नारायण के रुप में भगवान विष्णु ने संसार में सुख और शांति की स्थापना के लिये तप का मार्ग सुझाया और स्वयं नर और नारायण के रुप में तपस्या में लीन हो गए। स्वाभाविक है कि धर्म और रुचि अर्थात प्रेम से ही सुख और शांति संभव है। इससे यही संदेश भी निकलता है। 

विष्णु के अवतार हैं नर और नारायण :

नर और नारायण के स्वरुप में भगवान श्री विष्णु ने संसार को सुखमय बनाने के लिए तपस्या का मार्ग स्थापित किया। तपस्या से तृष्णा या सांसारिक लगावों जिससे सभी दुखों का जन्म होता है , नष्ट हो जाती हैं। नर – नारायण ने इसे और स्थापित करने के लिए हिमालय पर तपस्या आरंभ की। नर और नारायण की इस कठोर तपस्या को देख कर माता लक्ष्मी द्रवित हो गई । माता लक्ष्मी ने देखा कि इस तपस्या की वजह से नर और नारायण स्वरुप उनके पति विष्णु का शरीर हिम यानि बर्फ से ढंक गया है।

तो नर और नारायण के उपर लक्ष्मी माता ने एक बदरी यानि बेर के पेड़ का स्वरुप धारण कर उन पर छाया कर दी और बर्फ से उन्हें बचाया। जब नर – नाराय़ण की यह तपस्या पूर्ण हुई तो उन्होंने माता लक्ष्मी को वदरी या वेर के पेड़ के रुप में देखा तो उन दोनों का ह्दय सुख से भर गया और उन्होंने कहा कि आज से यह स्थान बदरीनाथ अर्थात लक्ष्मी के नाथ के रुप में प्रसिद्ध तीर्थ बनेगा। नारायण ने तपस्या के द्वारा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खोल दिया। 

विष्णु के दो अवतार कृष्ण और हरि :

उधर भगवान श्री विष्णु के दो अन्य स्वरुप हरि और कृष्ण भी धर्म और रुचि से ही उत्पन्न हुए थे। हरि और कृष्ण ने योग के द्वारा संसार के कल्याण का मार्ग बताया। उन्ही कृष्ण के अवतार द्वापर युगीन मथुरावासी श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया । श्री विष्णु के दूसरे अवतार श्री हरि भक्तों पर सहज कृपा बरसाते हैं। उन्होंने ही गज्र को ग्राह से बचाया था । 

चार अवतार, चार गुण :

  • भगवान विष्णु के इन चार स्वरुपों के चार महान गुण हैं जो इनके कार्यों और इनकी कृपा को अलग – अलग करते हैं। नारायण की साधना के द्वारा जन्म और मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। 
  • भगवान नर के महान गुण : नर के स्वरुप कि विशेषता यह है कि यह स्त्री के गुणों से पूरी तरह से रहित है औऱ इनकी कृपा से संसार में सुख की प्राप्ति होती है। इन्ही के पास अमृत कलश होता है जिससे वो प्राणियों को अमर कर देने में सक्षम हैं। अर्जुन को भगवान नर का ही अवतार माना जाता है। 
  • भगवान हरि की कृपा : भगवान हरि शरणागतों की रक्षा के लिए जाने जाते हैं। उनकी कृपा से सारे दुखों, कष्टों और विपदाओं का अंत हो जाता है। गज और ग्राह की कथा में  हाथी ने मगरमच्छ से बचाने के लिए हरि का ही आह्वान किया था। 
  • गोलोक वासी श्री कृष्ण : भगवान श्री कृष्ण गोलोक वासी है जिनके अवतार के रुप में मथुरा वासी और द्वारिकाधीश श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया था। भगवान श्री कृष्ण की कृपा से सभी प्रकार के योगों – सांख्य योग, कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग की प्राप्ति हो जाती है और योगेश्वर कृष्ण के प्रति समर्पण कर कोई भी कर्ता के भाव से मुक्त हो कर निष्काम कर्म कर सकता है।

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