देव दीपावली

Dev deepawali of Banaras: बनारस की देव दीपावली का विष्णु और शिव से संबंध

बनारस की देव दीपावली पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के पावन अवसर पर बनारस के गंगा तट पर धूमधाम से देव दीपावली मनाने की प्रथा हज़ारों सालों से चली आ रही है। इस पर्व का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन काशी के गंगा तट पर सम्सत देवी देवता देव दीपावली मनाने के लिए अदृश्य रुप में पधारते हैं। सनातन धर्म में बनारस की देव दीपावली का कई कारणों से महत्व है।

देव दीपावली का महत्व

बनारस की देव दीपावली का महत्व :

पौराणिक कथाओं में देव दीपावली का महत्व कई कारणों से है। पौराणिक ग्रंथों में इस पर्व को लेकर कई कथाएं दी गई हैं। मान्यता है कि देव दीपावली को बनारस के घाटों पर स्वयं देवी देवता दिवाली का पर्व मनाते हैं । मनुष्यों की दिवाली तो कार्तिक अमावस्या की रात को मनाई जाती है लेकिन देवतागण अपनी दिवाली कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा की रात को मनाते हैं।

एक पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान विष्णु ने वामन अवतार के दौरान दैत्यराज बलि से तीनों लोक ले लिया था । बदले में वरदान के फलस्वरुप दैत्यराज बलि ने भगवान विष्णु को पाताल में अपने पास ही रहने के लिए मना लिया था। इसके बाद विष्णु वैकुँठ लोक छोड़कर पाताल में ही वास करने लगे जिससे पूरी सृष्टि में असंतुलन उत्पन्न हो गया और सभी देवतागण चिंतित हो गए कि जब विष्णु दैत्यों के पक्ष में चले गए तो उन्हें संकट से कौन उबारेगा?

माँ लक्ष्मी भी वैकुँठ में विष्णु के बिना अकेली हो गईं। माँ लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को फिर से प्राप्त करने का रास्ता निकाला। माँ लक्ष्मी राजा बलि के पास गईं और उन्होंने राजा बलि को रक्षाबंधन सूत्र से बाँध दिया और अपना भाई बना लिया। राजा बलि ने माँ लक्ष्मी से इसके बदले कुछ मांगने के लिए कहा तो माँ लक्ष्मी ने राजा बलि से विष्णु को पुनः माँग लिया और उन्हें पाताल से आजाद करने का वचन ले लिया।

दैत्यराज बलि ने विष्णु को माता लक्ष्मी को सौंप दिया और विष्णु वापस वैकुँठ पधारे। विष्णु के वैकुँठ लौटने के उपलक्ष्य में सभी देवतागणों ने दीप जलाकर उनका अभिनंदन किया था ,तभी से बनारस में देव दीपावली की प्रथा शुरु हुई। देव दीपावली के अवसर पर सभी देवी-देवता बनारस के गंगा घाट पर आते हैं और दीप जलाकर विष्णु के पाताल से वैकुँठ पधारने का उत्सव मनाते हैं।

एक दूसरी मान्यता ये भी है कि विष्णु आषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा अर्थात देवशयनी एकादशी के दिन से चार महीने अर्थात देवोत्थान एकादशी या देवउठनी एकादशी तक योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस बीच चूँकि विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं इसलिए दीपावली के दिन विष्णु की जगह लक्ष्मी के साथ उनके पुत्र गणेश की पूजा की जाती है। लेकिन, जैसे ही विष्णु योगनिद्रा त्यागते हैं , देवतागण लक्ष्मी और भगवान विष्णु के साथ दीपावली मनाते हैं। विष्णु और लक्ष्मी के साथ देवताओं के द्वारा मनाई जाने वाली दिवाली को ही देव दीपावली कहते हैं।

भगवान महादेव ने त्रिपुरासुर का वध

बनारस की देव दीपावली और शिव का संबंध

एक मान्यता ये भी है कि देव दीपावली के दिन ही शिव ने त्रिपुरों को नष्ट किया था और तारकासुर के तीनों पुत्रों का वध किया था। शिव त्रिपुरों को नष्ट करने के बाद विश्व में त्रिपुरांतक के नाम से जाने गए।। तारकासुर के पुत्रों के वध के उपलक्ष्य में ही देवताओं ने जो दीपावली मनाई उसे देव दीपावली कहते हैं। तारकासुर के तीनों पुत्रों ने ब्रह्मा के वरदान से तीन ऐसे नगरों का निर्माण किया था जो आकाश में ही उड़ते रहते थे।

महाभारत की कथा के अनुसार तारकासुर के तीनों पुत्रों ने स्वर्ण, चांदी और लोहे से बने तीन नगरों का निर्माण किया था। ये तीनों नगर आकाश, पाताल और अंतरिक्ष में उड़ सकते थे। ये नगर तभी नष्ट हो सकते थे, जब तीनों एक खास तिथि पर एक ही पंक्ति में खड़े हो जाएँ। इन तीनों नगरों को एक ही बाण से मारना जरुरी था। ये कार्य शिव के अलावा कोई नहीं कर सकता था।

भगवान शिव के लिए एक रथ का निर्माण किया गया जिसके सारथि स्वयं ब्रह्मा बने। शिव के बाण में साक्षात विष्णु विराजमान हुए और सभी देवता उनके रथ के सहयोगी बनें। भगवान शिव ने एक ही बाण से तीनों नगरों को नष्ट कर दिया और तारकासुर के तीनों पुत्र भी मारे गए। भगवान शिव के इस महान कार्य को महाभारत के अलावा कई पुराणों में दोहराया गया है।

शिव का संबंध बनारस से हैं इसलिए तारकासुर के तीनों पुत्रों और त्रिपुरों के नष्ट होने की खुशी में देवतागण प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा की रात बनारस में ही देव दीपावली मना कर शिव को प्रसन्न करते हैं। एक प्रकार से बनारस की देव दीपावली का महापर्व विष्णु, लक्ष्मी, और भगवान शिव तीनों की उपासना का महापर्व है।

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