छठी मैया

Chhath Puja: Who is Goddess Chhathi or Shashthi ?छठी मैया या षष्ठी देवी कौन हैं और क्यों मनाते हैं छठ पूजा

सनातन धर्म हमेशा से उत्सवधर्मी रहा है। हरेक मास में कोई न कोई बड़ा पर्व या त्यौहार जरुर मनाया जाता है। हरेक प्रांत के लोग कोई न कोई ऐसा विशिष्ट पर्व मनाते हैं, जो दूसरे प्रांतों में नहीं मनाया जाता है । ऐसा ही लोकआस्था का महान पर्व है छठ पूजा। छठी मैया या षष्ठी देवी की पूजा बिहार, बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हजारों वर्षों से हो रही है। छठी मैया या षष्ठी देवी कौन हैं, क्यों इनकी पूजा छठ पर की जाती है?

छठी मैया या षष्ठी देवी का परिचय

 महाभारत के वन पर्व में हम पहली बार ‘षष्ठी देवी’ छठी मैया का नाम सुनते हैं। महाभारत के वन पर्व के अध्याय 223 से कार्तिकेय या स्कंद के जन्म की कथा शुरु होती है। कथा के मुताबिक दैत्य केशी इंद्र की मौसेरी बहन देवसेना का हरण कर लेता है। इंद्र अपनी बहन देवसेना को बचाते हैं और दैत्य केशी के कब्जे से छुड़ाते हैं।

देवसेना इंद्र से एक ऐसे पति का वरदान मांगती है जिसे कोई देवता, दैत्य , दानव, यक्ष और गंधर्व पराजित न कर सकें। इंद्र भी उस वक्त देवताओं के लिए ऐसे ही सेनापति की तलाश कर रहे थे, जो उनकी सेना का नेतृत्व कर सके।

 तब अग्नि और भगवान शिव की कृपा से स्कंद का जन्म होता है। स्कंद को देवताओं को सेनापति बनाया जाता है और इंद्र अपने वचन के मुताबिक देवसेना का विवाह स्कंद से कर देते हैं।

षष्ठी देवी या छठी मैया का जिक्र ऋग्वेद में भी है

देवसेना को महाभारत में कूहू, सिनावली, षष्ठी, लक्ष्मी, अपराजिता, आशा, सुखप्रदा और सद्वृत्ति के नाम से पुकारा गया है । देवसेना के एक नाम ‘सिनिवाली’ बताया गया है। सिनिवाली का जिक्र ऋग्वेद में भी आता है और उनका आह्वान सरस्वती के साथ किया जाता है। सिनिवाली को संतान देने वाली देवी कहा गया है और वो ही गर्भ में संतान को रखने वाली कही गई हैं।

इसका अर्थ ये है कि सिनिवाली ही बाद में देवसेना के नाम से महाभारत में दिखती हैं और स्कंद की पत्नी देवसेना षष्ठी कही गई हैं।

महाभारत में देवसेना को प्रजापति की पुत्री कहा गया है । महाभारत का ये श्लोक पढ़ने योग्य है-

अहं प्रजापतेः कन्या देवसेनेति विश्रुता ।
भगिनि दैत्यसेना में सा पूर्वं केशिना ह्र्ता ।।

अर्थः- देवसेना कहती हैं कि “मैं प्रजापति की पुत्री हूँ और मुझे देवसेना कहते हैं। मेरी बहन का नाम दैत्यसेना है जिसका हरण पूर्वकाल में ही दैत्यकेशी ने कर लिया था।

इंद्र इसके बाद देवसेना को बताते हैं कि वो दोनों एक दूसरे के रिश्तेदार हैं-

मम मातृष्वसेयी त्वं माता दाक्षायणी मम ।
आख्यातुं त्वहमिच्छामि स्वयमात्मबलं त्वया ।।

अर्थः “हे देवसेना ! तुम मेरी मौसेरी बहन हो और मेरी माता भी दक्ष की पुत्री हैं।  मेरी इच्छा है कि तुम स्वयं ही अपने बल का परिचय दो।

हालांकि ये प्रजापति उपाधि कई देव शक्तियों के लिए प्रयुक्त होता रहा है । ब्रह्मा को भी प्रजापति कहा जाता है, दक्ष को भी प्रजापति की उपाधि हासिल है। इंद्र सहित देवताओं और दैत्यों के पिता कश्यप को भी कई स्थानों पर प्रजापति कहा गया है।

इंद्र की मां अदिति देवताओं की माता और ऋषि कश्यप की पहली पत्नी हैं। दैत्यों की माता दिति भी ऋषि कश्यप की ही पत्नी हैं। अगर देवसेना को दक्ष की पुत्री माना जाए तो वो रिश्ते से अदिति की बहन लगेंगी और वो रिश्ते में इंद्र की मौसी होंगी।

इस श्लोक से यही लगता है कि यहां प्रजापति उपाधि का प्रयोग ऋषि कश्यप के लिए ही हुआ है। देवसेना ऋषि कश्यप की किसी अन्य पत्नी से उत्पन्न पुत्री होंगी, इसलिए इंद्र देवसेना को अपनी मौसेरी बहन बता रहे हैं।

षष्ठी देवी या छठी मैया ही देवी देवसेना हैं?

बिहार, पूर्वांचल और उत्तर भारत के कई स्थानों पर छठ पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिये जाने की प्रथा है और साथ में एक देवी की अराधाना भी की जाती है जिन्हें छठी मैया या षष्ठी मैया कहा जाता है। क्या ये छठी मैया ही कार्तिकेय या स्कंद की पत्नी देवी देवसेना हैं या ये कोई और देवी हैं?

छठी मैया या षष्ठी देवी से संतान प्राप्ति और संतानों को स्वास्थ्य प्रदान करने का वरदान देने के लिए छठ महापर्व पर कई लोकगीत गाये जाते हैं। ये छठी मैया कौ  न हैं और क्यों इनकी पूजा की जाती हैं , कब से इनकी पूजा शुरु हुई और शास्त्रों में छठी या षष्ठी देवी के बारे में क्या कहा गया है? इसकी खोज़  जरुरी है।


छठी मैया या षष्ठी देवी को लेकर अलग- अलग कथाएं हैं

षष्ठी देवी या छठी मैया को कई ग्रंथों में देवी दुर्गा के छठे अँश से उत्पन्न देवी बताया गया है। कई ग्रंथों में उन्हें पार्वती देवी का अँश भी बताया गया है और उन्हें स्कंदमाता कहा गया है। हालांकि महाभारत में देवसेना को षष्ठी कहा गया है तो इस हिसाब में पार्वती जो कि स्कंद की माता हैं उन्हें षष्ठी से जोड़ना भ्रम पैदा करता है।

षष्ठी तिथि के दिन किस देवी की पूजा का विधान है

दरअसल छठी या षष्ठी एक तिथि हैं। प्रत्येक कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष के छठे दिन को षष्ठी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि षष्ठी तिथि के दिन संतान की रक्षा के लिए देवी की प्रार्थना की जानी चाहिए। जिस भी देवी की उपासना इस दिन की जाएगी उन्हें षष्ठी की देवी या षष्ठी देवी कहा जाता रहा होगा।

  • संतान उत्पन्न होने के छठे दिन भी षष्ठी देवी की अराधना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि षष्ठी देवी की कृपा से ही संतान की प्राप्ति होती हैं और संतान को स्वास्थ लाभ मिलता है, संतानें जीवित रहती हैं।
  • अब षष्ठी देवी को संतानों के स्वास्थ्य से क्यों जोड़ा गया और किन देवियों को षष्ठी देवी के रुप में एकीकृत किया गया इस पर शोध जरुरी है।

षष्ठी देवी –  एक ही देवी के कई नाम या कई देवियों का एक रुप?

महाभारत में देवसेना के कई नामों में कुछ ऋग्वैदिक हैं, जैसे कूहू और सिनावली। सिनावली संतान की रक्षा करने वाली देवी हैं। महाभारत मे स्कंद के जन्म के साथ ही कई प्रकार के उत्पात शुरु होते हैं और बच्चों को खा जाने वाली सप्तमातृकाएँ सामने आती हैं। ये मातृका देवी मालिनी, काकी ,हलिमा, मालिनी, बृहंता, आर्या, पलाला और वैमित्रा।

इसके अलावा कुमार कार्तिकेय  के जन्म के साथ ही स्कंद के शरीर से कई कुमारग्रह भी निकलते हैं। ये कुमारग्रह और ये मातृकाएं बच्चों के लिए महाअनिष्टकारी बताई गई हैं।

इन मातृकाओं के बारे में कहा गया है कि ये बच्चों को माँ के गर्भ से ही चुरा लेती है, बच्चों को प्रसूतिग्रह में ही मार डालती हैं। सोलह वर्षों तक बच्चों को जो भी बीमारियाँ होती हैं वो स्कंद के शरीर से निकले इन कुमारग्रहों की वजह से होती हैं। इन सातों माताओं, स्कंद और कुमारग्रहों को संयुक्त रुप से स्कंदग्रह कहा जाता है। ये बच्चों को बीमार करते हैं और यहां तक कि मार भी डालते हैं।

  • स्कंद के जन्म को महाभारत में एक महान उद्देश्य के अलावा एक उत्पाति घटना के रुप में भी दिखाया गया है । स्कंद को कई ग्रँथों में विघ्नकर्ता के रुप में दिखाया गया है। लेकिन उनके विघ्नकर्ता से विघ्नहर्ता बनने की वजह देवसेना से उनका विवाह होना है।
  • देवसेना को महाभारत में षष्ठी और सिनिवाली के नाम से पुकारा गया है । देवसेना प्रजापति की पुत्री हैं और देवताओं की बहन भी हैं। ऐसे में उनके साथ शुभता का जुड़ना स्वाभाविक था। देवसेना से स्कंद के विवाह और स्कंद के देवसेनापति बनने की वजह से स्कंद के स्वरुप में परिवर्तन होता है । वो भी शुभता के प्रतीक हो जाते हैं।
  • हालांकि मातृका देवियाँ अभी भी बच्चो के लिए बुरी ही दिखाई गई हैं, लेकिन सिनिवाली जो बच्चों की रक्षा करने वाली देवी है, वो देवसेना के रुप मे स्कंद की पत्नी बन जाती हैं और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी के रुप में स्थापित होती हैं।
  • इस प्रकार स्कंद के एक तरफ अशिवा यानि अशुभ मातृकाएं हैं तो दूसरी तरफ बच्चों की रक्षा करने वाली स्कंद की पत्नी देवसेना या षष्ठी हैं। महाभारत के अनुसार पंचमी तिथि को स्कंद श्री से युक्त हुए थे और षष्ठी तिथि को देवसेना से उनका विवाह हुआ था इसलिए षष्टी तिथि को महातिथि कहते हैं और देवसेना को षष्ठी की देवी कहते हैं।
  • यही देवसेना स्कंद को भी शुभता प्रदान करती हैं और मातृकाओं से संतानों की रक्षा करने वाली देवी के रुप मे प्रतिष्ठित होती हैं। इन्हीं षष्ठी देवी की पूजा छठी मैया के रुप में छठ के पावन अवसर पर किया जाता है। इसके अलावा बच्चों के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी देवी की पूजा की जाती है और उनसे बच्चों की रक्षा करने के लिए प्रार्थना की जाती है।
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