छठ पूजा

छठ पूजा : भाई – बहन के प्रेम का महापर्व है

शुद्ध सनातन धर्म में प्रत्येक रिश्ते का अपना है महान महत्व बताया गया है।इसी प्रकार भाई-बहन के बीच के प्रेम छठ पूजा पर आधारित हैं जिनमें रक्षाबंधन और भाई दूज प्रमुख हैं। लेकिन कम ही लोगों को पता है कि दिवाली के पर्व के दौरा दो ऐसे पर्व मनाए जाते हैं जिनका सीधा संबंध भाई-बहन के प्रेम से जुड़ा हुआ है । पहला पर्व है – यम द्वीतीया जिसे भाई दूज के नाम से जाना जाता है और दूसरा है बिहार में मनाया जाने वाला छठ पर्व

छठ पर्व में किसकी पूजा की जाती है :

छठ पूजा दिवाली के छटे दिन मनाया जाता है और इस दौरान भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। लेकिन भगवान सूर्य की उपासना के दौरान षष्ठी देवी की भी पूजा की जाती है। ये षष्ठी देवी कौन हैं? इसको लेकर वेद और पुराणों में कई कथाए हैं। 

कौन है षष्ठी देवी (छठ पूजा) :

षष्ठी देवी का पहला उल्लेख सामवेद में आता है जहां उन्हें प्रकृति का छठा अंश माना गया है। ये संतान देने वाली देवी के रुप में पूजित होती हैं।कई पुराणों में उन्हें आद्य़ा शक्ति का छठा अवतार कात्यायनी भी माना जाता है जो आद्या शक्ति के छठे अंश से प्रगट होने की वजह से भी षष्ठी देवी के नाम से जानी जाती हैं। यहां भी इन्हें संतान की रक्षा करने वाली देवी के रुप में पूजने की बात कही गई है।

लेकिन ब्रम्ह वैवर्त पुराण की कथा के अनुसार षष्ठी देवी भगवान सूर्य की बहन हैं और वो भगवान सूर्य के साथ हमेशा उनकी अरुणिमा के रुप में रहती हैं। वो भगवान सूर्य के साथ सूर्योदय के वक्त और सायंकाल में सूर्यास्त के वक्त आती हैं। इसी वजह से छठ पूजा के दौरान षष्ठी देवी को सूर्योदय और सायंकाल में अर्घ्य दिया जाता है। यहां भी वो संतानों की रक्षा करने वाली देवी के रुप में पूजित हैं 

लेकिन महाभारत और कई दूसरे ग्रंथों में षष्ठी देवी को प्रजापति की पुत्री के देवसेना के रुप में दिखाया गया है। महाभारत के वन पर्व के अध्याय 244 में भगवान कार्तिकेय के जन्म के  छठे दिन देवसेना के साथ विवाह की कथा हैं।इसलिए भी उन्हें षष्ठी देवी (छठ पूजा) कहा जाता है । 

महाभारत में षष्ठी देवी की कथा :

महाभारत के वन पर्व में एक कथा आती है जिसमे इंद्र केशी नामक असुर को एक स्त्री का अपहरण करते देखते हैं। इंद्र केशी को भगा देते हैं और फिर उस स्त्री का परिचय पूछते हैं। तब वह स्त्री अपना परिचय देवसेना के रुप में देती हैं और अपने पिता का परिचय प्रजापति के रुप में बताती है। 

इंद्र देवसेना को आश्वस्त करते हैं और कहते हैं कि वो प्रजापति की पुत्री होने की वजह से उनकी मौसेरी बहन हैं। इंद्र और सूर्य दोनों ही देवी अदिति के पुत्र हैं इसलिए देवसेना इन दोनों की मौसेरी बहन के रुप में महाभारत में दिखाई गई हैं। 

इंद्र देवसेना से पूछते हैं कि वो कैसे पुरुष से विवाह करना चाहती हैं। तब देवसेना बताती है कि वो ऐसे महान वीर पुरुष से विवाह करेगी जिसे कोई पराजित नहीं कर सकता है। तब बाद में जब कार्तिकेय का जन्म होता है तो इंद्र देवसेना का विवाह कार्तिकेय से कर देते हैं। 

शिव- पार्वती की बहू हैं छठी मैया :

चूंकि कार्तिकेय को भगवान शिव और माता पार्वती का पुत्र कहा जाता है इस तर्क से षष्ठी देवी या छठ पूजा भगवान शिव और माता पार्वती की बहू भी हैं। देवसेना को ही षष्ठी के अतिरिक्त आशा, लक्ष्मी, अपराजिता आदि नामों से भी जाना जाता है। लक्ष्मी इसलिए क्योंकि षष्ठी देवी कात्यायनी की अंशावतार हैं और कात्यायनी आद्या शक्ति महालक्ष्मी की ही छठा अंश हैं। 

छठ पर सूर्य की पूजा क्यों की जाती है :

भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं। हम और आप किसी भी अन्य देवता का दर्शन प्राप्त करने के लिए तपस्या करते हैं लेकिन भगवान भाष्कर बिना किसी तपस्या के सभी को अपना दर्शन देते हैं। वहीं जीवन का आधार हैं। एक भगवान आदित्य एक पल के लिए अदृश्य हो जाएं तो संसार में जीवन का अंत हो जाएगा। भगवान सूर्य की इन्हीं कृपा का आभार प्रगट करने के लिए बिहार में छठ का पर्व मनाने की प्रथा मागी ब्राह्मणों के द्वारा शुरु की गई।

कौन हैं मागी ब्राह्म्ण और क्या है इनका छठ पर्व से रिश्ता :

भविष्यत् पुराण और कई अन्य पुराणों में भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब से जुड़ी एक कथा है । कहा जाता है कि साम्ब भगवान श्री कृष्ण की तरह दिखते हैं। उन्ही की तरह अत्यंत रुपवान थे । लेकिन उन्हें एक शाप की वजह से कुष्ठ रोग हो गया । तब भगवान कृष्ण ने उनसे सूर्य की उपासना करने को कहा । भगवान सूर्य साम्ब की तपस्या पर प्रसन्न हुए और कहा कि शकद्वीप में सूर्य की उपासना करने वाले वैद्य ब्राम्हण रहते हैं। उन्हें आमंत्रित किया जाए और वही साम्ब के कुष्ठ रोग को दूर कर सकते हैं। 

साम्ब के कुष्ठ रोग को दूर करने के लिए स्वयं भगवान श्रीकृष्ण शकद्वीप गए और गरुड़ पर शकद्वीप के सूर्योपासक ब्राहमणों के लेकर आए । उन्होंने अपनी सूर्य चिकित्सा से साम्ब का कुष्ठ रोग ठीक कर दिया। इन ब्राह्मणों को मगध के 72 गांवों या पुरों में बसाया गया। कहा जाता है कि तभी से इन ब्राह्म्णों को मागी ब्राम्हण कहा जाने लगा और इन्ही लोगों ने बिहार में छठ पूजा की परंपरा की शुरुआत की । 

छठ पूजा आस्था का पर्व है :

छठ प्रतीक है आस्था  का। छठ प्रतीक है सद्भावना का। छठ प्रतीक है सर्वधर्म समभाव का। सूर्य की उपासना का प्रतीक है यह पर्व। अनेकता में एकता का प्रतीक है छठ पर्व। 36 घंटे का उपवास इसे जीवटता का पर्व भी बनाता है। यह एक ऐसा पर्व है जो अपनी विशेषताओं की वजह से बिहार यूपी से शुरू होकर आज पूरे विश्व के कोने-कोने में मनाई जाती हैं। 

किस- किस को मिला छठ पूजा का फल :

आखिर यह क्यों है इतना विशिष्ट? आखिर क्यों लोगों की आस्था छठ के प्रति इतनी असीम है। इसे जानने और समझने के लिए हमें ग्रंथों और पुराणों पर नजर डालनी पड़ेगी। जहां तक इसके शुरुआत की बात है तो यह महाभारत काल से होती है। 

  • द्रौपदी ने उपासना की सूर्य की : जब पांडव द्युतक्रीड़ा में राजपाट समेत सब कुछ हार जाते हैं, तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी को सूर्य की उपासना करने की सलाह दी थी ताकि उन्हें फिर से अपना वैभव और राजपाठ मिल सके। कृष्ण की सलाह के बाद द्रौपदी ने सूर्य देव की पूजा की। कहा जाता है द्रौपदी की इस पूजा के पूण्यफल ने भी पांडवों को अपना राजपाट वापस पाने में मदद किया। 
  • कर्ण हर दिन पूजते थे सूर्य को : महाभारत का महारथी और दानवीर कर्ण सूर्य पूत्र थे। कर्ण सूर्य की हर दिन पूजा करते थे। वह जल में खड़े होकर सूर्य की उपासना किया करते थे और फल आदि का भोग लगाते थे। सूर्य उपासना के बाद वह हमेशा दान करते थे। यह सूर्य का ही प्रभाव था कि दुर्योधन जो अधर्म का प्रतीक था, उसकी तरफ से लड़ने के बाद भी कर्ण के यश में कोई कमी नहीं हुई। आज भी दुर्योधन और कर्ण की दोस्ती की मिसाल दी जाती है। सूर्य के प्रभाव से ही वह एक परमवीर योद्धा बने। कहा जाता है इसके बाद से ही सूरज की पूजा करने की छठ परंपरा शुरू हुई। 
  • श्रीराम ने रामराज्य के लिए की सूर्य पूजा: एक अन्य मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान राम और सीता माता ने उपवास रखा और सूर्य की आराधना की। सप्तमी को सूर्यउदय के वक्त फिर से अनुष्ठान किया और सूर्यदेव से प्रार्थना की। इसे भी कई विद्वान छठ पर्व से जोड़कर देखते हैं।
  • षष्ठी थीं ब्रह्माजी की मानस पुत्री: पुराणों में वर्णित एक  कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्त करने के लिए यज्ञ का आयोजन किया।  यज्ञ में आहुति देने के लिए दूध से बना हुआ खीर को प्रसाद के रूप में रानी मालिनी को खाने के लिए दी। उसे खाने के बाद मालिनी को एक बेटा हुआ, लेकिन वह मृत था। इसे देखकर राजा शोकाकुल हो गए और अपना प्राण त्यागने की चेष्टा करने लगे। उसी समय ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और कहा कि सृष्टि के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हैं। आप मेरी पूजा करें और अपने मृत पुत्र को जीवित करें। यह पूजा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को हुई थी, तभी से यह छठ पूजा लोक आस्था का प्रतीक बन चुका है।
कैसे मनाते हैं छठ पूजा :

इस पर्व में मुख्य रूप से सूर्य की उपासना की जाती है। भक्ति और आध्यात्म से पूर्ण यह पर्व 4 दिनों तक चलता है। इसकी शुरुआत नहाए खाए दिन  से होती है। इस दिन व्रती सुबह-सुबह स्नान करके घाट पर या घर में ही कद्दू दाल और भात चावल बनाते हैं और उसी का सेवन करते हैं।  दूसरे दिन खरना की पूजा होती है। इस दिन व्रती दिनभर निर्जला रहते हैं। रात को खीर-रोटी, खजूर फल को प्रसाद के रूप में चढ़ाकर पूजा की जाती है। व्रती पूजा स्थान पर ही प्रसाद खाते हैं। उसके बाद व्रती निर्जला रहकर ही शाम और सुबह को सूर्य का अर्ध्य देने के बाद ही व्रत तोड़ते हैं।

छठ पूजा के प्रसाद की विशेषताएं :

 इस पर्व में बांस निर्मित सूप,  मिट्टी के बर्तन, गेहूं से बना प्रसाद ठेकुआ, गन्ना, फल, नारियल, मिठाई आदि का भगवान सूर्य को भोग लगाया जाता है। यह एक मात्र ऐसा पर्व है जिसे करने के लिए किसी पंडित या पुरोहित की जरूरत नहीं होती है। 

स्वच्छता से जुड़ा है छठ पूजा का महान पर्व :

यह पर्व एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। लोग स्वयं आगे आकर नगरों की सफाई, रास्तों का प्रबंधन, घाटों की सफाई एवं तैयारी करते हैं। लोग धर्म जाति से ऊपर उठकर इस व्रत को संपन्न करने में सभी एक दूसरे को सहयोग प्रदान करते हैं। संतान प्राप्ति के साथ-साथ यह घर परिवार में सुख समृद्धि के लिए भी इस व्रत को किया जाता है। इस पर्व को स्त्री-पुरुष जवान बूढ़े सभी मनाते हैं। क्योंकि यह व्रत, उत्सव की तरह मनाया जाता है। इसलिए इस उत्सव से संबंधित कई लोकगीत हैं जो घर घर में गाय बजाए जाते हैं।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Translate »