वैष्णव मत के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु से ही सारे धर्मों और जीवों की उत्पत्ति हुई है। भगवान के इच्छा मात्र से ही भक्ति संप्रदायों का उद्भव हुआ। विष्णु के चक्रावतार निम्बार्काचार्य निम्बार्क संप्रदाय को इसी लिए सबसे प्राचीन संप्रदाय की संज्ञा दी जाती है
विष्णु के चक्रावतार निम्बार्काचार्य संप्रदाय की उत्पत्ति :
निम्बार्काचार्य संप्रदाय उत्पत्ति भगवान श्री विष्णु के सुदर्शन चक्र से उत्पन्न अवतार निम्बार्काचार्य से हुई है। वैसे इतिहासकारों के मुताबिक निम्बार्काचार्य संप्रदाय की उत्पत्ति 13 वी सदी में हुई है। लेकिन इस संप्रदाय के मुताबिक इसकी उत्पत्ति भगवान विष्णु द्वारा सनकादि ऋषियों की शंकाओं के निवारण हेतु हुई है। निम्बार्क संप्रदाय के प्रथम आचार्य स्वामी निम्बार्क का जन्म भी दक्षिण भारत के वर्तमान आंध्र प्रदेश में हुआ । निम्बार्क स्वामी का जन्म नाम नियमानंद था। उनके पिता का नाम ऋषि अरुण और मां का नाम जयंती था।
स्वामी नियमानंद काफी कम उम्र में ही व्रज में आकर बस गए । कहा जाता है कि एक दीवा यति ( ऐसा संन्यासी जो दिन में ही एक बार भोजन करे) के साथ सत्संग के दौरान जब रात्रि हो गई तो उन्होंने यति को रात में ही एक नीम के पेड़ के पास सूर्य को उदित कर उसे भोजन करा दिया था। उस नीम के पेड़ पर सूर्य का तेज प्रगट करने की वजह से ही उनका नाम निम्बार्क पड़ गया। निम्बार्क स्वामी को ही राधा और कृष्ण की पूजा कराने का श्रेय दिया जाता है।