भीष्म प्रतिज्ञा

श्रीराम की भीष्म प्रतिज्ञा | जो सीता हरण की वजह बनी

क्या रावण ने अचानक ही माता सीता का हरण कर लिया था? क्या इसके पीछे लक्ष्मण के द्वारा सिर्फ शूर्पनखा का नाक- कान काटना ही प्रमुख वजह थी या फिर इसके पीछे श्रीराम की कोई भीष्म प्रतिज्ञा थी । वो कौन सा महान उद्देश्य था जिसे पूरा करने के लिए श्रीराम ने भीष्म प्रतिज्ञा की और इसके बाद ही माता सीता का हरण हुआ । श्रीराम की वह कौन सी भीष्म प्रतिज्ञा थी जिसने  राक्षसों के साथ उनका सीधा युद्ध निश्चित हो गया  था।

श्रीराम की भीष्म प्रतिज्ञा

भगवान श्रीराम ऋषियों के उपर हो रहे इस अत्याचार से दुःखित हो जाते हैं। उनकी आँखे क्रोध से लाल हो जाती हैं। वो ऋषियों पर हो रहे अत्याचार से द्रवित हो जाते हैं और ऋषियों से कहते हैं –

न एवम् अर्हथ माम् वक्तुम् आज्ञाप्यः अहम् तपस्विनाम् |
केवलेन स्व कार्येण प्रवेष्टव्यम् वनम् मया || 3.6.22

अर्थः- हे ऋषियों ! आपने मुझसे अपनी रक्षा करने के लिए कह कर बहुत ही अच्छा किया । आप मुझे आदेश दें । हालांकि मैं अपने निजी कारणों से इस वन में आया था( अर्थात पिता के आदेश का पालन करने के लिए वन आया था) ।

तपस्विनाम् रणे शत्रून् हन्तुम् इच्छामि राक्षसान् |
पश्यन्तु वीर्यम् ऋषयः सः ब्रातुर् मे तपोधनाः || 3.6.25

अर्थः मैं युद्ध के द्वारा ऋषियों की रक्षा के लिए राक्षसों के वध की इच्छा रखता हूँ।सभी ऋषिगण मेरी और मेरे भाई लक्ष्मण दोनों की वीरता के साक्षी होंगे। राम ने ऋषियों को यह वचन दिया।

श्रीराम क्या सिर्फ रावण के वध के लिए अवतरित हुए थे ?

भगवान श्रीहरि विष्णु ने धर्म संस्थापना के महान कार्य के लिए हरेक युग में अवतार लिया है। धर्म की मर्यादा स्थापित करने के लिए त्रेतायुग में श्रीराम के रुप में भगवान विष्णु ने अवतार लिया था।

 वाल्मीकि रामायण में भगवान श्री वाल्मीकि ने अपनी रामायण को लिखने के दो उद्देश्य बताए हैं –

काव्यं रामायणं कृत्स्न्नं सीतायाश्चरितं महत् |
पौलस्त्यवधमित्येवं चकार चरितव्रतः || 1.4.7

इस श्लोक में भगवान वाल्मीकि ने रामायण लिखने का पहला उद्देश्य माता सीता के महान चरित्र की स्थापना करना लिखा है, और दूसरा उद्देश्य है पौलस्त्य वध अर्थात पुलस्त्य के वँश में जन्में राक्षसराज रावण और उसके समूचे वंश और सेना का अंत करना। भगवान श्रीराम राक्षसों का विशेषकर पुलस्त्य ऋषि के वँशज रावण, उसके वँश और समूची सेना का संहार क्यों करना चाहते थे। क्या सिर्फ माता सीता के हरण से इसका संबंध था या फिर कोई और वजह थी?

ऋषियों की प्रार्थना पर श्रीराम ने ली भीष्म प्रतिज्ञा

 शुद्ध सनातन आपको बता रहा है कि रावण, उसके वँश और उसकी सेना के वध की वजह थी, ऋषियों की वह प्रार्थना जिसने श्रीराम को एक ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा करने के लिए विवश कर दिया जिसके द्वारा रावण, रावण के वँश, उसकी सेना और समूची राक्षस जाति का अंत निश्चित हो गया। ‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘अरण्यकांड’ में जब श्रीराम दंडकारण्य में प्रवेश करते हैं, तब कई ऋषि उनके पास आते हैं और बताते हैं कि राक्षस बड़ी संख्या में निरपराध ऋषियों का वध करते रहते हैं-

सो अयम् ब्राह्मण भूयिष्ठो वानप्रस्थ गणो महान् |
त्वम् नाथो अनाथवत् राम राक्षसैः हन्यते भृशम् || 3.6.15

अर्थः- हे राम! यद्यपि आप वन में रहने वाले संन्यासियों और ब्राह्म्णों के रक्षक हैं लेकिन हम सभी राक्षसों के द्वारा सताए जा रहे हैं।

एहि पश्य शरीराणि मुनीनाम् भावित आत्मनाम् |
हतानाम् राक्षसैः घोरैः बहूनाम् बहुधा वने || 3.6.16

अर्थः- हे राम!  इन मृत मुनियों के शरीरों को देखिए । ये सभी राक्षसों के द्वारा मारे गए हैं।

एवम् वयम् न मृष्यामो विप्रकारम् तपस्विनाम् |
क्रियमाणम् वने घोरम् रक्षोभिः भीम कर्मभिः || 3.6.18

अर्थः- अब हम ऋषियों के उपर हो रहे अन्याय और अत्याचार को सहन करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं।

ततः त्वाम् शरणार्थम् च शरण्यम् समुपस्थिताः |
परिपालय नः राम वध्यमानान् निशाचरैः || 3.6.19

अर्थः- अतः हम आपके सामने खुद को प्रस्तुत करते हैं और आपसे रक्षा की गुहार करते हैं। कृपया हमारी रक्षा कीजिए ।

सीता जी के द्वारा श्रीराम की भीष्म प्रतिज्ञा का विरोध

श्रीराम जब प्रतिज्ञा ले लेते हैं तो माता सीता उस वक्त तो कुछ भी नहीं कहतीं हैं, लेकिन जब श्रीराम, लक्ष्मण और सीता ऋषि सुतीक्ष्ण के आश्रम से आगे बढ़ते हैं तो माता सीता श्रीराम की प्रतिज्ञा का विरोध करते हुए कहती हैं –

प्रतिज्ञातः त्वया वीर दण्डकारण्य वासिनाम् |
ऋषीणाम् रक्षणार्थाय वधः संयति रक्षसाम् || 3.9.10

अर्थः- हे राम! ऋषियों की रक्षा के लिए आपने उन्हें यह वचन दिया है कि आप राक्षसों से युद्ध कर उन्हें समाप्त कर देंगे।

एतन् निमित्तम् च वनम् दण्डका इति विश्रुतम् |
प्रस्थितः त्वम् सह भ्रात्रा धृत बाण शराअसनः || 3.9.11

अर्थः हे राम! ऐसा मुझे लगता है कि आप सिर्फ इसी उद्देश्य ( राक्षसों के वध और ऋषियों की सुरक्षा) से दंडकाराण्य में स्वयं और अपने भाई के साथ धनुष बाण लेकर प्रवेश कर रहे हैं।

ततः त्वाम् प्रस्थितम् दृष्ट्वा मम चिन्त आकुलम् मनः |
त्वत् वृत्तम् चिन्तयन्त्या वै भवेत् निःश्रेयसम् हितम् || 3.9.12

अर्थः- आपको ऐसा करते देख कर मुझे चिंता हो रही है और मुझे लग रहा है कि यह आपके लिए शुभ और लाभकारी नहीं है।

स्नेहात् च बहुमानात् च स्मारये त्वाम् न शिक्षये |
न कथंचन सा कार्या गृहीत धनुषा त्वया || 3.9.24
बुद्धिः वैरम् विना हन्तुम् राक्षसान् दण्डक आश्रितान् |
अपराधम् विना हन्तुम् लोको वीर न कामये || 3.9.25

अर्थः- आपके प्रति प्रेम की वजह से मैं आपको स्मरण दिला रही हूं, कि ये गलत होगा कि आप धनुष लेकर उन राक्षसों का वध करें जिनके साथ आपकी अभी कोई सीधी शत्रुता नहीं है। किसी भी निरपराध को मारना उचित नहीं है।

श्रीराम के द्वारा अपनी प्रतिज्ञा के औचित्य को सिद्ध करना

श्रीराम, माता सीता के इस विरोध को सुनकर जो कहते हैं वो बड़ा ही अद्भुत है । श्रीराम, माता सीता को कहते हैं कि “तुम्हारी चिंता जायज है, लेकिन क्षत्रिय का कर्म ही दुखी लोगों के आँसुओं को पोंछना है।“ श्रीराम आगे कहते हैं कि “मैंने स्वयं आगे बढ़कर राक्षसों के वध की प्रतिज्ञा नहीं की है , बल्कि ऋषियों ने ही मुझसे ऐसा करने की प्रार्थना की है । अगर राक्षसों के अत्याचार से त्रस्त ऋषियों के दुःख को मैं कम नहीं करता तो क्या करता ?”

मया च एतत् वचः श्रुत्वा कार्त्स्न्येन परिपालनम् || 4.10.16
ऋषीणाम् दण्डकारण्ये संश्रुतम् जनकाअत्मजे |

अर्थः- ऋषियों के उन दुःखित शब्दों को सुन कर ही मैंने दंडकवन में उन्हें सुरक्षा का वचन दिया है ।

संश्रुत्य न च शक्ष्यामि जीवमानः प्रतिश्रवम् || ४-१०-१७
मुनीनाम् अन्यथा कर्तुम् सत्यम् इष्टम् हि मे सदा |

अर्थः- अब ऋषियों को यह वचन देने के बाद जब तक मैं जीवित हूं, मैं इससे मुकर नहीं सकता हूं। तुम (सीता) जानती हो कि सत्य का पालन मुझे कितना प्रिय है?

अपि अहम् जीवितम् जह्याम् त्वाम् वा सीते स लक्ष्मणाम् || 4.10.18
न तु प्रतिज्ञाम् संश्रुत्य ब्राह्मणेभ्यो विशेषतः |

अर्थः- मैं अपने जीवन का त्याग कर सकता हूं। मैं लक्ष्मण का भी त्याग कर सकता हूं और यहां तक कि तुम्हें(सीता) भी त्याग सकता हूँ ,लेकिन उस प्रतिज्ञा का त्याग नहीं कर सकता जो विशेषकर मैंने ब्राह्म्णों ( ऋषियों) को दी है ।

तत् अवश्यम् मया कार्यम् ऋषीणाम् परिपालनम् || 4.10.19
अनुक्तेन अपि वैदेहि प्रतिज्ञाय कथम् पुनः |

अर्थः श्रीराम कहते हैं कि सीते ! यही वह कारण है (वचन को पूरा करना ) कि मैं अपनी कही गई प्रतिज्ञा से पीछे नहीं हट सकता , अगर ऋषियों ने मुझसे अपनी व्यथा नहीं भी कही होती, तो भी मैं उनकी रक्षा के लिए जरुर प्रतिज्ञा करता ।

इस प्रतिज्ञा के बाद श्रीराम ऋषि अगस्त्य के आश्रम में जाते हैं, जहां ऋषि अगस्त्य उन्हें भगवान विष्णु का महान धनुष देते हैं और अक्षय तरकश भी भेंट करते हैं। ऋषि अगस्त्य की आज्ञा से श्रीराम पंचवटी जाते हैं जहां शूर्पनखा आती है । इसके बाद शूर्पनखा के नाक- कान लक्ष्मण के द्वारा काटे जाते हैं। शूर्पनखा के अपमान का बदला लेने के लिए खर- दूषण श्रीराम से टकराते हैं और खर- दूषण सहित चौदह हज़ार राक्षसों का संहार श्रीराम के हाथों होता है। इसके बाद ही रावण आता है और फिर माता सीता का हरण और अंत में रावण का वध होता है।

श्रीराम की प्रतिज्ञा के बिना भी राक्षसों से उनका युद्ध तय था

श्रीराम ने माता सीता से पिछले श्लोक में यह कहा कि अगर ऋषियों ने मुझसे रक्षा की गुहार नहीं की होती तो भी वो जरुर राक्षसों का वध करते । श्रीराम ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि श्रीराम का जन्म ही इस हेतु हुआ था।

श्रीराम की बाल्यावस्था से ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी। ऋषि विश्वामित्र के हाथों ताटका का वध हो चुका था और रावण की सेना से जुड़े सुबाहु को श्रीराम ने मार गिराया था। मारीच जो रावण का रिश्तेदार था वह भी श्रीराम के हाथों मरते- मरते बचा था।

चित्रकूट में श्रीराम और राक्षस खर का युद्ध टल गया

जब श्रीराम को वनवास मिला और वो चित्रकूट आए तब से राक्षस खर ने उन पर नज़रें रखनी शुरु कर दी थीं। अप्रत्यक्ष रुप से श्रीराम और उनका संघर्ष होने ही वाला था । जब चित्रकूट में श्रीराम ने अचानक एक दिन ऋषियों को घबराहट में भागते हुए देखा

प्रतिप्रयाते भरते वसन् रामः तपो वने |
लक्षयाम् आस स उद्वेगम् अथ औत्सुक्यम् तपस्विनाम् || 2.116.1

अर्थः- भरत के अयोध्या लौट जाने के पश्चात जब श्रीराम तपोवन में रहने लगे तो एक दिन अचानक उन्होंने देखा कि ऋषिगण परेशानी के साथ कहीं चले जा रहे हैं।

नयनैर् भृकुटीभिः च रामम् निर्दिश्य शन्किताः |
अन्योन्यम् उपजल्पन्तः शनैः चक्रुर् मिथः कथाः || 2.116.3

अर्थः- वे परेशान ऋषिगण आपस में किसी रहस्यात्मक कथा के बारे में बात करते हुए , श्रीराम की तरफ इशारा करते हुए धीरे- धीरे चले जा रहे थे।

श्रीराम ने उन्हें इस प्रकार उनकी तरफ इशारा कर आपस में चुपके- चुपके बात करते देख पूछा कि “क्या उनसे, लक्ष्मण या सीता से कोई अपराध हो गया है?”

राक्षसों से सीधी शत्रुता का प्रारंभ

तब एक ऋषि ने श्रीराम से कहा कि वो उन्हीं को लेकर चिंतित हैं और फिर ऋषि ने एक महत्त्वपूर्ण बात बताई-

त्वन् निमित्तम् इदम् तावत् तापसान् प्रति वर्तते |
रक्षोभ्यः तेन सम्विग्नाः कथयन्ति मिथः कथाः || 2.116.10

अर्थः- हे राम! हम उन राक्षसों के बारे में बात कर रहे थे जो तुम्हारे प्रति शत्रुता रखते हैं और इसी कारण हम ऋषियों को सता रहे हैं। ऋषिगण आपस में यही बात कर रहे कि वो कैसे  तुम्हारी(श्रीराम)  और इन राक्षसों की शत्रुता से दूर रख कर खुद को सुरक्षित रखें।

रावण अवरजः कश्चित् खरो नाम इह राक्षसः |
उत्पाट्य तापसान् सर्वान् जन स्थान निकेतनान् || 2.116.11
धृष्टः च जित काशी च नृशंसः पुरुष अदकः |
अवलिप्तः च पापः च त्वाम् च तात न मृष्यते || 2.116.12

अर्थः  हे प्रिय राम !यहां एक खर नामक राक्षस रहता है। वह रावण का भाई है। वह वीर लेकिन नरभक्षी और आतातायी है।उसने कई आश्रमों को उजाड़ कर ऋषियों की हत्या कर दी है । अब वो तुम्हें भी सहन नहीं कर पा रहा है ।

त्वम् यदा प्रभृति ह्य् अस्मिन्न् आश्रमे तात वर्तसे |
तदा प्रभृति रक्षांसि विप्रकुर्वन्ति तापसान् || 2.116.13

अर्थः हे राम! जब से तुम चित्रकूट में आये हो, उसी वक्त से राक्षस खर ने फिर से ऋषियों को मारना शुरु कर दिया है ।

श्रीराम का चित्रकूट से पलायन और दंडकारण्य में प्रवेश

इन ऋषियों ने श्रीराम को भी चित्रकूट छोड़ने के लिए कहा । हालांकि श्रीराम चाहते तो उसी वक्त राक्षस खर का वध कर सकते थे। लेकिन उन्होंने इस युद्ध को तब तक के लिए टाल दिया जब तक खुद राक्षसों की तरफ से पहल न हो। श्रीराम चित्रकूट को छोड़कर दंडकारण्य आ गए ।

श्रीराम को वैसे भी चित्रकूट ज्यादा वक्त के लिए नहीं रहना था क्योंकि कैकयी ने वनवास के लिए श्रीराम को दंडकारण्य ही भेजने का वचन दशरथ से लिया था –

नव पञ्च च वर्षाणि दण्डकारण्यमाश्रितः || 2.11.26
चीराजिनजटाधारी रामो भवतु तापसः |

अर्थः कैकयी ने कहा कि हे दशरथ श्रीराम  चौदह वर्ष के लिए दंडकारण्य में जटाधारण कर तपस्वियों के कपड़े पहन कर रहें।

श्रीराम चित्रकूट छोड़कर दंडकारण्य चले तो गए, लेकिन वही हुआ जिसके लिए श्रीराम का अवतार हुआ था। शूर्पनखा के नाक- कान काटने के साथ ही रावण सहित राक्षसों का वध का प्रारंभ हो गया 

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