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भगवान श्री राम के सबसे प्रिय भाई भरत

शुद्ध सनातन धर्म में श्री राम और उनके भाइयों के आपसी प्रेम की महिमा पूरे संसार के लिए अनुकरणीय है । श्री राम ने अपने भाई भरत के लिए सिंहासन का त्याग कर दिया । भरत ने अपने भाई श्री राम के इस त्याग के बदले और भी महान त्याग का प्रदर्शन किया और श्री राम की चरण पादुका लेकर अयोध्या पर शासन किया चौदह वर्षों के बाद श्री राम के अयोध्या का शासन वापस सौंप दिया । भरत ही नहीं श्री राम के सारे भाइयों में अद्भुत आपसी प्रेम का वर्णन रामायण में मिलता है जो आज भी संसार में भातृ प्रेम के लिए अनुकरणीय है ।

श्री राम के दूसरे भाई लक्ष्मण ने अपने भाई के लिए अयोध्या को छोड़ कर वनवास धारण कर लिया और चौदह वर्षों तक अपने बड़े भाई श्री राम के साथ वन में ही रहे ।

लक्ष्मण जिसे राम जान से ज्यादा प्यार करते है

लंका में माता सीता को रावण के कैद से छुड़ाने के लिए लक्ष्मण जी ने अपनी जान की बाजी लगा ली । श्री राम के प्रति लक्ष्मण जी का प्रेम भी अनुकरणीय है । लेकिन हमेशा से यह प्रश्न उठता रहा है कि श्री राम को अपने तीनों भाइयों में सबसे ज्यादा प्रेम किससे था । तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में दिखाया है कि श्री राम अपने हनुमान जी के कार्यों से प्रसन्न होकर उन्हें गले लगा लेते हैं और उनकी तुलना अपने भाई भरत जी से करते हैं –

 तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई !

इसके बाद से जनसाधारण को यही लगता रहा है कि श्री राम के सबसे प्रिय भरत ही थे । वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में भी जब वनवास के दौरान भरत जी श्री राम से चित्रकूट में मिलने आते हैं तो श्री राम भरत को अपने प्राणों से भी प्रिय बताते हैं –

मन्येऽहमागतोऽयेध्यां भरतो भ्रातृवत्सलः |
मम प्राणात्र्पियतरः कुलधर्ममनुस्मरन् || २-९७-९

अर्थात: हे लक्ष्मण, लगता है कि भरत अपने नानी घर से अपने भाइयों के प्रति प्रेम के वश में आकर अयोध्या लौट गए हैं । भरत तो मुझे अपने प्राणों से भी प्रिय हैं ।

श्री राम यहां अपने भाइयों के प्रति प्रेम का इज़हार करते हुए वाल्मीकि रामायण में यहां तक कहते हैं कि बिना भाइयों के उन्हें संसार की सारी खुशियां भी त्याज्य हैं

यद्विना भरतं त्वां च शत्रुघ्नं चापि मानद |
भवेन्मम सुखं किंचिद्भस्म तत्कुरुतां शिखी || २-९७-८

अर्थात : हे लक्ष्मण यदि मुझे भरत, शत्रुघ्न और तुम्हारे बिना संसार की सारी खुशियां भी मिल जाएं तो वो अग्नि में राख हो जाएं , मुझे वो खुशियां नहीं चाहिएं

अब हम देखते हैं कि श्री राम का अपने प्रिय भाई लक्ष्मण के प्रति क्या भाव था, जब लक्ष्मण जी को शक्तिबाण लगता है और वो मूर्छित हो जाते हैं तब श्री राम के विलाप में उनका लक्ष्मण जी के प्रति प्रेम प्रकट होता है । जहां भरत को वो अपने प्राणों से भी प्रिय मानते हैं , लक्ष्मण जी के प्रति श्री राम का प्रेम एक और उंचाई के स्तर पर पहुंच जाता है । वाल्मीकि रामायण में इसका बहुत ही सुंदर चित्रण हुआ है –

शोणितार्द्रमिमन् वीरं प्राणैरिष्टतरं मम |
पश्यतो मम का शक्तिर्योद्धुं पर्याकुलात्मनः || ६-१०१-४

अर्थात : श्री राम कहते हैं – लक्ष्मण को रक्त से यूं सने देख कर मेरी युद्ध करने की उर्जा खत्म हो रही है। लक्ष्मण मुझे अपने प्राणों से भी ज्यादा प्रिय हैं ।

यथैव मां वनं यान्तमनुयाति महाद्युतिः |
अहमप्युपयास्यामि तथैवैनं यमक्षयम् || ६-१०१-१३

अर्थात : अगर लक्ष्मण को कुछ हो जाता है तो मैं भी उसी प्रकार मृत्यु के पथ पर अपने भाई लक्ष्मण के साथ चला जाउंगा जैसे वो वन में मेरे पीछे – पीछे चले आए थे

जब लक्ष्मण जी संजीवनी बूटी से वापस मूर्छा से वापस लौट आते हैं तब श्री राम उनसे कहते हैं

न हि मे जीवितेनार्थः सीतया च जयेन वा || ६-१०१-५०
को हि मे जीवितेनार्थस्त्वयि पञ्चत्वमागते |

अर्थात : तुम्हें अगर कुछ हो जाता तो मेरे लिए फिर इस संसार में कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं रह जाता , न तो मेरे जीवन का कोई उद्देश्य रह जाता , न सीता और न ही विजय मेरे लिए महत्वपूर्ण रह जाती

तुलसीदास जी ने भी श्रीराम और लक्ष्मण के प्रेम का अद्भुत वर्णन किया है । जब लक्ष्मण जी को शक्तिबाण लगता है तब श्री राम के विलाप का वर्णन तुलसी ने भी अपने रामचरितमानस में विस्तार से किया  ।इस वर्णन में से यह पता चलता है कि श्री राम के लिए लक्ष्मण से प्यारा संसार में कुछ भी नहीं था –

जौं जनतेउं वन बंधु बिछोहू, पिता बचन मनतेउं नहिं ओउं !

अर्थात : अगर मुझे ये पता रहता कि वनवास में मुझे लक्ष्मण का वियोग सहना होगा तो मैं अपने पिता के आदेश का भी पालन नहीं करता । देखिए श्री राम अपने भाई लक्ष्मण के लिए रघुकुल रीत सदा चली आई , प्राण जाए पर बचन न जाई से भी मुकरने के लिए तैयार हो गए । श्री राम के लिए लक्ष्मण से बढ़कर कुछ भी नहीं था ।

सुत बित नारी भवन परिवारा, होहिं जाहि जग बारहिं बारा !
अस बिचारी जियं जागहु ताता, मिलई न जगत सहोदर भ्राता !!

अर्थात : श्री राम कहते हैं कि पत्नी, पुत्र, परिवार इस संसार मे बार – बार मिल सकते हैं लेकिन सहोदर भाई बार बार नहीं मिलते ।

लक्ष्मण जी के लिए श्री राम के प्रेम सारी सीमाओं को पार करने वाला है । इसीलिए श्री राम के नाम के साथ लक्ष्मण जी का नाम हमेशा साथ लिया जाता रहा है ।

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