भगवान शिव और श्री कृष्ण का महायुद्ध

शुद्ध सनातन धर्म में पौराणिक कथाओं का विशेष महत्व है । इन कथाओं में जहां भगवान शिव और विष्णु के बीच एक सामंजस्य दिखाया गया है वहीं उनके बीच कभी -कभी संघर्षों को भी दिखाया गया है । शुद्ध सनातन धर्म में कई ऐसे दैत्यों का भी वर्णन है जो शक्तिशाली होने के साथ ही ईश्वर के महान भक्त भी रहे हैं। भगवान शिव ने जहां दैत्यो और असुरों की रक्षा का वचन दिया है वहीं भगवान श्री हरि विष्णु देवताओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं । यही कारण है कि कई बार भगवान शिव और श्री हरि विष्णु के बीच अपने दैत्य और देव भक्तों के लिए संघर्ष छिड़ा है । 

इन संघर्षों के मूल में हमेशा भगवान ब्रम्हा की योजनाएं और वरदान रही हैं जिसकी वजह से कई बार संसार संकट में पड़ा भी है और कई बार उन संकटों का अंत कल्याणकारी भी रहा है ।  ऐसा ही संघर्ष भगवान श्री हरि विष्णु के पूर्णावतार श्री कृष्ण और भगवान भोलेनाथ के बीच भी हुआ जब अपने भक्त बाणासुर की रक्षा के लिए शिव और अपने पौत्र अनिरुद्ध की रक्षा के लिए श्री कृष्ण आमने सामने आ गए ।

कौन था बाणासुर ?

बाणासुर दैत्यराज बलि के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था । जहां राजा बलि भगवान श्री हरि विष्णु के सबसे महान भक्तों में एक थे और उन्होंने भगवान विष्णु के वामन अवतार को तीन पग भूमि दान कर दी थी । वहीं बाणासुर की भक्ति भगवान शिव के प्रति थी ।  बाणासुर वर्तमान असम के तेजपुर का राजा था । तेजपुर को प्राचीनकाल में शोणितपुर भी कहा जाता था । कहा जाता है कि बाणासुर ने ब्रम्हा से तपस्या कर यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथों ही हो । 

महान शिव भक्त था बाणासुर :

बाणासुर ने भगवान शिव की तपस्या भी की थी और वरदान के फलस्वरुप उसे हजारों शक्तिशाली भुजाएं प्राप्त हो गई थीं। बाणासुर भगवान शिव का इतना बड़ा भक्त था कि उसने भगवान से यह आशीर्वाद भी प्राप्त किया कि वो उसे कार्तिकेय के छोटे भाई का दर्जा दें और उसके राज्य के पहरेदार बन कर उसकी हमेशा रक्षा करें। भगवान शिव ने बाणासुर की यह इच्छा भी पूरी कर दी ।

लेकिन बाणासुर ने अपने तपस्या के दंभ में आकर शिव को अप्रसन्न भी कर दिया । उसने भगवान शिव से कहा कि वो उससे युद्ध करें। ऐसे में भगवान शिव ने उस पर क्रोध करते हुए कहा कि जब तेरे किले का ध्वज गिर जाए तब समझना कि तुझसे युद्ध करने वाला शत्रु पैदा हो चुका है । जैसे ही शिव ने यह वरदान दिया उसके किले का ध्वज इंद्र के वज्र से गिर गया । 

माता पार्वती का कन्याकुमारी के रुप में अवतार :

इसके बाद बाणासुर ने सभी देवताओं से युद्ध किया और इंद्र सहित सभी देवताओं को पराजित कर दिया । सभी देवता माता पराशक्ति पार्वती की शरण में गए और उनसे वरदान मांगा कि बाणासुर का वध करने के लिए वो पृथ्वी पर कुंवारी कन्या के रुप में अवतार धारण करें। माता पार्वती ने सूदूर दक्षिण भारत में जहां आज कन्याकुमारी है,वहीं एक कन्या के रुप में अवतार लिया । 

कन्याकुमारी और शिव का अपूर्ण विवाह :

कन्याकुमारी के रुप में अवतरित माता पार्वती को श्री बाला और भद्रकाली के रुप में भी जाना जाता है । वो बचपन से भी भगवान शिव के प्रति आकर्षित थीं और उनसे विवाह करने के लिए उन्होंने तपस्या की । भगवान शिव उनसे विवाह के लिए जब तैयार हो गए और कैलाश से दक्षिण की तरफ प्रस्थान करने लगे तो देवता चिंतित हो गए । देवताओं को लगा कि अगर शिव और कन्याकुमारी देवी का विवाह हो गया तो फिर बाणासुर का वध असंभव हो जाएगा ।

नारद और देवताओं का षड़यंत्र :

देवताओं ने नारद जी को कन्याकुमारी देवी को भ्रमित करने के लिए भेजा ।नारद ने देवी को बताया कि शिव नहीं बल्कि बाणासुर शिव का रुप धर कर उनसे विवाह करने आ रहा है । ऐसे में देवी उसकी परीक्षा लें और उससे तीन चीजें लाने के लिए कहें – 

पहली चीज थी बिना आंख वाला नारियल , दूसरी थी बिना जोड़ वाला गन्ना और तीसरी थी बिना रेखाओं वाला पान का पत्ता । लेकिन वो तो असली शिव थे उन्होने तीनों चीजे माता कन्याकुमारी के सामने ला कर रख दीं ।  इसके बाद जब शिव रात को बारात लेकर निकले तो देवताओं ने मुर्गा बन कर बांग दे दी जिससे शिव को भ्रम हो गया कि अब विवाह का मूहूर्त बीत चुका है और सुबह हो चुकी है । ऐसे में शिव वापस लौट गए । माता कन्याकुमारी को जब यह पता चला कि शिव वापस लौट गए हैं तो क्रोध में आकर उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का व्रत ले लिया । 

बाणासुर की पुत्री उषा और अनिरुद्ध का विवाह :

बाणासुर की पुत्री उषा अत्यंत रुपवान और विद्वान थीं । उनके गुरु दैत्यराज शुक्राचार्य थे जिन्होंने उसे तंत्र और मायाविद्या की शिक्षा दी थी। जब वो बड़ी हुई तो बाणासुर ने उससे विवाह के लिए उत्सुक सभी योग्य वरों को भगा दिया बाणासुर को भय था कि कहीं उषा का पति ही उसका असली शत्रु न हो । उसने अपनी पुत्री उषा को भी एक अग्नि के घेरे से बने महल में कैद कर लिया । एक बार उषा ने एक वन में भगवान शिव और माता पार्वती को रमण करते देखा तो उसके अंदर भी कामभावना का जन्म हो गया । 

उषा ने माता पार्वती के प्रार्थना की कि उसे भी सुयोग्य और मनवांछित वर प्राप्त हो और वो भी अपने पति के साथ इसी प्रकार रमण कर सकें । माता पार्वती ने उसे आशीर्वाद दिया कि शीघ्र ही उसे स्वप्न में अपना होने वाला पति दिखेगा ।  उषा को स्वप्न में एक अत्यंत सुंदर पुरुष के दर्शन हुए जिसका जिक्र उसने अपनी मायावी सखी चित्रलेखा से किया । चित्रलेखा ने अपनी माया से उसे बताया कि वो पुरुष और कोई नहीं बल्कि श्री कृष्ण का पौत्र और कामदेव के अवतार प्रद्युम्न का पुत्र अनिरुद्ध है। चित्रलेखा ने माया से सोते हुए अनिरुद्ध का अपहरण कर लिया और उसे उषा के महल में पहुंचा दिया । अनिरुद्ध जब जागे तो उन्हें भी उषा को देख कर प्रेम हो गया और दोनों ने केदारनाथ के पास एक मंदिर में गंधर्व विवाह कर लिया । इसके बाद जैसे ही अनिरुद्ध गुप्त रुप से बाणासुर के राज्य में रहने लगे वैसे ही उसके किले का ध्वज एक बार फिर से गिर गया । 

बाणासुर और अनिरुद्ध का युद्ध :

बाणासुर को पता चल गया कि उषा का पति कौन है । उसके अनिरुद्ध को युद्ध के लिए ललकारा । अनिरुद्ध और बाणासुर के बीच भयंकर संग्राम हुआ तब बाणासुर ने उसे नागपाश में कैद कर लिया ।  जब श्री कृष्ण को पता चला कि बाणासुर ने उनके पौत्र अनिरुद्ध का अपहरण कर लिया है तो उन्होंने शोणितपुर पर चढ़ाई कर दी और बाणासुर को युद्ध के लिए ललकारा । बाणासुर और श्री कृष्णु के बीच भयंकर युद्ध शुरु हो गया और श्री कृष्ण ने बाणासुर की हजारों भुजाओं को काटना शुरु कर दिया । ऐसे में अपने भक्त बाणासुर को दिये वरदान के अनुसार शिव स्वयं कृष्ण से युद्ध करने के लिए सामने आ खड़े हुए। 

श्रीकृष्ण और शिव का महायुद्ध :

श्रीकृष्ण और भगवान शिव की सेनाओं के बीच महायुद्ध शुरु हो गया । श्री कृष्ण के साथ उनकी नारायणी सेना और उनके बंधु बांधव भी थे। बलराम जी और प्रद्युम्न भी युद्ध के लिए आए थे । वहीं शिव के सेना में उनके गणों के साथ उनके महापराक्रमी पुत्र कार्तिकेय और गणपति गणेश भी थे। दोनों पक्षो के बीच महान संहारक युद्ध होने लगा । भगवान कार्तिकेय को प्रद्युम्न ने घायल कर दिया । 

नारायणास्त्र और पशुपातास्त्र का प्रयोग :

जब सारे अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग एक दूसरे पर निष्फल हो गया तो भगवान शिव ने क्रोध में आकर पशुपातास्त्र चला दिया । जवाब में श्री हरि कृष्ण ने भी नारायणास्त्र चला दिया जिससे संसार के नष्ट होने का संकट लगने लगा ।  दोनों ही महाअस्त्रो ने एक दूसरे को काट दिया जिससे संसार बच गया । 

श्री कृष्ण का शिव जी को सुला देना :

इसके बाद श्री कृष्ण ने भगवान शिव पर जृंभास्त्र चलाया जिससे शिव को जम्हाई आई और वो सो गए । इस बीच भगवान श्री कृष्ण ने बाणासुर की भुजाओं को काटना शुरु कर दिया । जब बाणासुर की चार भजाएं ही शेष रह गईं तब शिव जी की निद्रा टूट गई और वो श्री कृष्ण के साथ युद्ध करने लगे । भगवान शिव ने श्री कृष्ण पर माहेश्वर ज्वर नामक अस्त्र चलाया जिससे चारो तरफ ज्वर की अग्नि फैल गई । इस पर श्री कृष्ण ने भी शीतज्वर या वैष्णव ज्वर नामक अस्त्र चलाया जिससे चारो तरफ शीत ज्वर फैल गया । सभी तरफ हाहाकार मच गया । 

माता दुर्गा के द्वारा श्रीकृष्ण-शिव का युद्ध रोकना :

जब चारो तरफ हाहाकार फैल गया तब पृथ्वी ब्रम्हा जी के पास गई और उनसे युद्ध रोकने की प्रार्थना करने लगीं। ब्रम्हा जी की प्रेरणा से माता दुर्गा युद्ध के मैदान में प्रगट हुई और श्री कृष्ण और शिव दोनों को एक मे ही समाहित कर दिया । दोनों ने यह जान लिया कि वे एक ही सत्ता के दो स्वरुप हैं । जो हरि हैं वही हर भी हैं। अर्थात तो विष्णु हैं वही शिव भी हैं।  इसके बाद माता पराशक्ति दुर्गा ने दोनों को युद्ध रोकने के लिए कहा । तब शिव जी ने कहा कि वो अपने भक्त की रक्षा के लिए कटिबद्ध हैं उसके प्राण नहीं जाने देंगे । तब श्री कृष्ण ने भी कहा कि वो बाणासुर के प्राण नहीं हरना चाहते बल्कि सिर्फ अनिरुद्ध की आजादी चाहते हैं। 

शिव जी का बाणासुर को समझाना :

तब शिव जी ने बाणासुर को भगवान श्री कृष्ण के नारायण अवतार की बात बताई और कहा कि वो उनसे क्षमा मांग ले। बाणासुर को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांग कर उषा को अनिरुद्ध को सौंप दिया । श्री कृष्ण के अपने पौत्र अनिरुद्ध और वधू उषा को लेकर द्वारिका लौटने के बाद तक बाणासुर शांत रहा । तभी उसे पता चला कि कन्याकुमारी में एक अद्भुत रुपवती देवी हैं। उसने वहां जाकर देवी से विवाह के लिए प्रस्ताव किया । देवी ने कहा कि वो आजीवन कुंवारी रहने का व्रत ले चुकी हैं। ऐसे में बाणासुर ने उनका अपहरण करने की कोशिश की तब दोनों में महायुद्ध शुरु हो गया । पराशक्ति मां पार्वती की अवतार मां श्री बाला या कन्याकुमारी ने अपने चक्र से बाणासुर का वध कर दिया । 

कन्याकुमारी देवी का शिव से मिलन :

जैसे ही कन्याकुमारी देवी ने बाणासुर का वध किया वो अपने पुराने स्वरुप अर्थात माता पार्वती के स्वरुप में आ गईं और इसके बाद फिर भगवान शिव के पास चली गईं। बाणासुर ने मृत्यु के वक्त जब माता पार्वती का स्वरुप देखा तो उसने उनसे क्षमा मांगी । तब देवी ने उसे मोक्ष प्रदान कर दिया । 

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