भगवान शिव हैं सबके स्वामी

भगवान शिव जिन्हें आदिदेव, महादेव, ईश्वर, महेश्वर, रुद्र, शंकर ,भोलेनाथ , पशुपतिनाथ आदि अनंत नामों से भक्त पुकारते हैं वो कौन हैं? क्या वो सिर्फ सृष्टि के संहार के देवता हैं? क्या वो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव में तीसरी ईश्वरीय शक्ति हैं? क्या वो वही शिव हैं जो भष्म लपेटे, गंगा को अपने सिर पर धारण करने वाले और …

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Maha Shivratri क्या शिव पार्वती का विवाह राम ने करवाया

शुद्ध सनातन धर्म में दो विवाहों को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। पहला विवाह है भगवान शिव का और दूसरा विवाह है भगवान श्री राम का,भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह और भगवान श्री राम और माता जानकी का विवाह लोकश्रुतियों और विवाहों के मंगल गीतों में भी बार बार आता है। आम तौर पर अगर देखा जाए …

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Shiva the creator of Universe।भगवान शिव हैं सृष्टि के रचयिता, कहलाते हैं आदिदेव

सृष्टि के रचयिता को लेकर जितना गहन दर्शन सनातन धर्म के पास है, वैसा गहरा दर्शन शायद ही किसी और अन्य धर्म के पास है। ऋग्वैदिक युग से से लेकर पौराणिक युग तक सृष्टि की उत्पत्ति के विषय पर सभी ग्रंथों में बहुत कुछ लिखा गया है। सनातन धर्म के ऋषियों ने सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में अलग- अलग …

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श्रीमद् भगवद्गीता, यज्ञ क्या है और यज्ञ की महिमा क्या है श्लोक- 9-16

भगवान श्रीमद् भगवद्गीता के तृतीय अध्याय में आसक्ति रहित कर्मयोग की महिमा बताते हैं। भगवान अर्जुन से कहते हैं कि समत्व बुद्धि ये युक्त होकर और स्थितिप्रज्ञता की अवस्था को प्राप्त कर आसक्ति रहित कर्म कर। लेकिन भगवान किस कर्म को करने के लिए कह रहे हैं, वो ये हमें श्लोक 9- 16 में बताते हैं। यज्ञ किसे कहते हैं? …

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ऋषि, मुनि, संत, महात्मा, साधु, योगी और सिद्ध किन्हें कहते हैं

आमतौर पर हम ऋषि- मुनि, संत, महात्मा, साधु, महंत, पुरोहित, पुजारी, आचार्य, गुरु, सिद्ध, योगी, पंडित, ब्राह्म्ण, और ज्ञानी के बीच भेद नहीं कर पाते हैं। किसी भी धार्मिक और आध्यात्मिक कर्म से जुड़े व्यक्ति के लिए इनमें से कोई भी संज्ञा प्रयुक्त कर लेते हैं। जबकि मूल रुप से अगर देखें तो इन सबके अर्थ, कार्य और विशेषताएं एक …

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संत रविदास- ईश्वर से बराबरी का संबंध स्थापित करने वाले महान संत

सनातन धर्म में ईश्वर के जिन दो स्वरुपों की वंदना की परंपरा है वो हैं निर्गुण और सगुण परंपरा। वैदिक ग्रंथों में ईश्वर को प्रकृति स्वरुप निर्गुण रुप में भी पूजने की प्रथा रही है। लेकिन वक्त आने पर पौरोहित्य कर्मों और कर्मकांड के प्रचलनों ने मूर्ति पूजा की परंपरा डाली। मूर्ति पूजा के लिए मंदिर की आवश्यकता होती थी। …

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श्री मद् भगवद्गीता तृतीय अध्याय – कर्मयोग, श्लोक 1-8

श्री मद् भगवद्गीता के अध्याय 1 और अध्याय 2 में भगवान ज्ञानयोग के द्वारा अवनाशी सत् का अनुभव करने और अपनी बुद्धि को समत्व भाव में स्थिर करने हेतु कर्मयोग की महिमा बताते हैं। भगवान कहते हैं कि अविनाशी सत् को अनुभव करने के लिए स्थितिप्रज्ञ होना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए समत्व बुद्धि से युक्त हो कर कर्म करने …

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शुद्ध श्रीमद्भगवद्गीता।अध्याय 2, बुद्धि को स्थिर कैसे रखें?Bhagavad Gita: How to Control Mind?

श्रीमद्भगवद्गीता में ज्ञानलब्ध होने से पूर्व मनुष्य को एक विशेष प्रक्रिया से गुज़रने की अनिवार्यता की बात कही गई है। श्रीमद्भगवद्गीता में मनुष्य को सत् की प्राप्ति हेतु एक विशेष स्थिति तक पहुंचने की बात कही गई है। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार मनुष्य बिना स्थितिप्रज्ञ हुए उस अविनाशी सत् को प्राप्त नहीं कर सकता है जो सृष्टि का मूल तत्व है। …

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कर्मयोग और ज्ञानयोग में से किस मार्ग को चुने

भगवान द्वारा ज्ञानयोग (ज्ञान) व कर्मयोग (कर्म) की बात बताने से अर्जुन संशय में पड़ गया और भगवान को कहने लगा कि अगर आपको कर्मयोग से ज्यादा श्रेष्ठ ज्ञानयोग लगता है तो मुझे कर्मयोग में क्यों फंसाते हैं..लेकिन फिर अपनी गलती सुधारते हुए कहता है कि भगवान मेरे लिए जो कल्याणकारी है उस बात को बताइये इस अध्याय में भगवान …

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शरीर व आत्मा की सत्यता – तत्व गीता (Lesson 2)

कैसे हो कर्म बंधनों से मुक्ति इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने शरीर और आत्मा की सत्यता को बताया है..या यूं कहें कि भगवान ने शरीर और आत्मा के रहस्य से पर्दा उठाया है (इसे हम आत्मज्ञान का भी नाम दे सकते हैं)। भगवान ने कहा है कि यह शरीर नाशवान है अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ता: शरीरिण: । अनाशिनोSप्रमेयस्य तस्माद्दुध्यस्व …

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सरस्वती देवी- जिनके स्वरुप को लेकर आज भी है भ्रम

माता सरस्वती, जिन्हें हम मां शारदे, वाग्देवी और वीणावादिनी आदि नामों से जानते हैं उनके स्वरुप को लेकर आज भी बहुत सारे भ्रम हैं। शायद ही किसी देवी के चरित्र पर इतने आरोप लगें हों जितने मां सरस्वती पर लगे हैं। मां ज्ञान और विद्या की देवी हैं उनके चरित्र पर लांछन लगाने का कुकृत्य सैकड़ों वर्षों से किया गया …

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एकादश रुद्र क्या भगवान शिव के स्वरुप हैं

सनातन धर्म में एकादश रुद्र की महिमा का वर्णन है। इन्हें भगवान शिव का स्वरुप माना गया गया। लेकिन कई धर्मग्रंथों के अध्ययन से हमें कई भिन्न बातों का पता चलता है। कहीं इन्हें भगवान ब्रह्मा जी से उत्पन्न बताया गया है तो कहीं इन्हें भगवान विष्णु का स्वरुप भी कहा गया है। तो आखिर प्रश्न यही उठता है कि …

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तत्व गीता ( Tatv Geeta Lesson 1)

अगर हम अर्जुन को हमारी तरह एक साधारण मनुष्य मानें तो प्रथम अध्याय में अर्जुन को भी उस सांसारिक व प्राकृतिक संवेदनाओं (मोह-माया) से ग्रसित दिखाया गया है जिसे हम लोग अपने जीवन में महसूस करते हैं। परिवार से अत्यधिक मोह, संबंधियों व गुरुजनों के प्रति अत्यधिक आदर, वस्तुओं व रिश्तों को अहमियत देना, प्रकृतिजन्य दोष जैसे भय, भम्र, दुख-सुख, …

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मृत्यु क्या है और क्यों हम सबको एक दिन मरना ही है

संसार में जो भी जन्म लेता है उसकी एक न एक दिन मृत्यु अवश्य होती है। कहते हैं कि मृत्यु अटल है। देवताओं को छोड़कर सभी प्राणियों को एक न एक दिन मरना ही है। मरने के बाद हम कहां चले जाते हैं, क्यों मरने के बाद फिर कोई वापस नहीं लौटता? अध्यात्म और धर्म से लेकर विज्ञान तक आज …

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वालि वध : श्री राम ने क्यों छिप कर वालि को मारा

श्री राम कथा में प्रभु श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप मे दिखाया गया है। शुद्ध सनातन धर्म में श्री हरि विष्णु पृथ्वी पर धर्म की मर्यादा को स्थापित करने के लिए श्री राम के रुप में अवतरित हुए थे । लेकिन श्री राम के जीवन के कुछ ऐसे प्रसंग भी हैं जिन पर कई सवाल उठाए जाते रहे …

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