श्रीमद् भगवद्गीता | कर्मयोग की परंपरा और वर्णव्यस्था का उद्भव
श्रीमद् भगवद्गीता के अध्याय 4 का प्रारंभ दरअसल अध्याय 3 का ही विस्तार है, जिसमें भगवान ने अर्जुन को कर्मयोग की महिमा समझाई है। अध्याय 3 में भगवान ने अर्जुन को कर्मयोग या यज्ञकर्म रुपी तत्त्व का ज्ञान दिया है ,जिसके द्वारा अपनी बुद्धि को समत्व भाव में लाकर अविनाशी सत् की प्राप्ति के लिए कर्म किया जाता है । …