राम की अयोध्या

अयोध्या की प्राचीन कथा। Story of Ayodhya

अयोध्या की प्राचीन कथा क्या है? किसने बसाई अयोध्या नगरी? क्यों पुराणों मेंअयोध्या को 7 सबसे पवित्र नगरों में एक माना जाता है ? किसने अयोध्या नगर की स्थापना की थी ? अयोध्या किस वंश ने सर्वप्रथम शासन किया था?। अयोध्या नगर में ही विष्णु ने श्रीराम के रुप में अवतार क्यों लिया था ?अयोध्या के पवित्र सरयू नदी का क्या महत्व है ? कैसे स्थापित हुआ अयोध्या का वैभव और कैसे खत्म हो गई अयोध्या ? यह एक प्राचीन कथा है जिसका श्रवण करने वालों को अखंड पुण्य की प्राप्ति होती है । 

अयोध्या की प्राचीन कथा के अनुसार मनु ने इसकी स्थापना की थी :

सनातन पौराणिक ग्रंथों के अलावा वेदों में भी अयोध्या का जिक्र आता है। अयोध्या की प्राचीन कथा का जिक्र एक महान नगर के रुप में ‘अर्थववेद’ में भी है – 

अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरोध्यया !
तस्यां हिरण्यमयः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः !!

अर्थात : ‘अयोध्या’ देवताओं की नगरी है ,जो अष्टचक्रो और नौ द्वारो से घिरी है । इसके मध्य में सोने का खजाना है और यह अपने प्रकाश से स्वर्ग के समान दिखती है । 

अयोध्या का जिक्र उपनिषदों में भी है :

अयोध्या की प्राचीन कथा का जिक्र कई उपनिषदों में भी आया है । ‘केनोपनिषद्’ में अयोध्या को ब्रह्मा से जोड़ा गया है । ऐसा ही वर्णन ‘तैत्तरीय आरण्यक’ में भी आता है । कई जैन और बौद्ध ग्रंथो में भी ‘अयोध्या’ को एक महान नगर के रुप में दिखाया गया है । ऐसा माना जाता है कि जैन धर्म के प्रारंभिक पांच तीर्थंकरो का जन्म अयोध्या में ही हुआ था । कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपनी एक शिष्या को अयोध्या में ही दीक्षित किया था । 

वाल्मीकि रामायण में अयोध्या का वर्णन :

अयोध्या नगर के वैभव का वर्णन वाल्मीकि रामायण में विस्तार से आता है। ऋषि वाल्मीकि रामायण के ‘बालकांड’ में अयोध्या का वर्णन करते हुए कहते हैं – 

कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान् ।
निविष्ट सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान ।।
अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता ।
मनुना मानवेंद्रेण या पुरी निर्मिता स्वयंम् ।।
आयता दश च द्वे च योजनानि महापुरी ।
श्रीमती त्रीणि विस्तीर्णा सुविभक्तमहापथा ।।

अर्थात : “सरयू नदी के तट पर एक खुशहाल कोशल राज्य था । वह राज्य धन और धान्य से भरा पूरा था । वहां जगत प्रसिद्ध अयोध्या नगरी है । जिसका निर्माण स्वयं मानवों में इंद्र मनु ने किया था । वह नगरी बारह योजनों में फैली हुई थी ।” 

महाभारत में अयोध्या का जिक्र :

महाभारत के ‘वनपर्व’ मे भी ‘अयोध्या’ का वर्णन आता है । ‘अयोध्या’ को महाभारत में एक महान तीर्थ के रुप में दिखाया गया है –

गोप्रतारं ततो गच्छेत सरव्यास्तीर्थमुत्तमम् !
यत्र रामो गतः स्वर्गं सभृत्यबलवाहन !!
स च वीरो महाराज तस्य तीर्थस्य तेजसा !
रामस्य च प्रसादेन व्वसायाच्च भारत !!

अर्थात : “वहां से सरयू तीर्थ ग्रोप्रतार जाए । वहां अपने सैनिकों, सेवकों और वाहनों के साथ गोते लगाकर उस तीर्थ के प्रभाव से वे वीर श्री राम चंद्र जी अपने नित्य धाम को पधारे थे। उस सरयू को गोप्रतार तीर्थ में स्नान करके मनुष्य श्रीराम की कृपा से सब पापों से शुद्ध होकर स्वर्गलोक में सम्मानित होता है ।” 

दक्षिण भारत के ग्रंथो में अयोध्या की चर्चा :

  • अयोध्या की प्राचीन कथा की चर्चा न केवल वाल्मीकि ने रामायण ग्रंथ में की, बल्कि बाणभट्ट , कालिदास , भास आदि कवियों ने भी अयोध्या की महिमा का वर्णन किया है ।
  • अयोध्या की प्राचीन कथा की चर्चा उत्तर भारत के संतों के अलावा दक्षिण भारत के भी कई संतों ने की है।
  • अयोध्या नगरी की पवित्रता की चर्चा सुनकर अलावार संत ‘मधुरकवि’ भगवान श्री राम की उपासना करने के लिए स्वयं अयोध्या आए थे ।
  • अयोध्या की प्राचीन कथा की चर्चा का वर्णन दो महान तमिल ग्रंथो ‘शिल्पादिकारम’ और ‘मणिमैखले’ में भी आता है ।
  • अयोध्या की प्राचीन कथा की चर्चा जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने अपनी रचना ‘सौंदर्यलाहिरी’ में भी की है । उन्होंने ‘अयोध्या’ का जिक्र देवी के एक अंग के रुप में किया है । 

अयोध्या की प्राचीन कथा
अयोध्या को महापुरी अर्थात महानगर का दर्जा दिया गया है ।

कश्मीर मे अयोध्या का वर्णन :

कश्मीर प्राचीन काल से सनानत धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है । कश्मीर की वादियों में रचे गए महान ग्रंथ ‘नीलमत पुराण’ में अयोध्या को ‘महापुरी’ अर्थात महानगर का दर्जा दिया गया है । ‘नीलमत पुराण’ मे भगवान शिव के द्वारा वाराणसी से कश्मीर तक की यात्रा का वर्णन है, जिसमें भगवान शिव अयोध्या की यात्रा भी करते हैं – 

स प्रयागमतिक्रम्य तथायोध्यां महापुरीम् ।

अर्थात : भगवान शिव ने प्रयाग और अयोध्या की यात्रा की । 

नीलमत पुराण अयोध्या में श्रीराम के जन्म की चर्चा भी है – 

चतुर्विंशतिसंख्याया त्रेतायां रघुनंदनः ।
हरिर्मनुष्यो भविता रामों दशरथात्मजः ।।

अर्थात : “भगवान श्री हरि दशरथ पुत्र श्रीराम के रुप में त्रेतायुग में जन्म लेंगे ।” 

रामचरितमानस में अयोध्या :

तुलसीदास जी ने ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ और ‘उत्तरकांड’ दोनों ही अध्यायों में अयोध्या नगरी की पवित्रता और महानता का वर्णन किया है । तुलसीदास के राम अयोध्या नगरी के थे और इसी वजह से तुलसीदास के लिए अयोध्या सबसे पावन नगरी थी । ‘बालकांड’ में अयोध्या का वर्णन करते हुए तुलसीदास जी लिखते हैं –

अवधपुरीं रघुकुलमुनि राउ ।
बेद बिदित तेहि दसरथ नाउं ।।
धरम धुरंधर गुननिधि ग्यानि।
ह्द्यं भगति भति सारंगपानि ।।

तुलसीदास जी के लिए जब भी कोई हर्ष या विषाद का पल आता है तब वो अयोध्या के निवासियों की खुशी और दुख का भी वर्णन करते हैं। जब राम का राजतिलक होने लगता है तो पूरी अयोध्या को सजाया जाता है । तुलसीदास जी इसका वर्णन ‘अयोध्याकांड’ में बहुत ही सुंदर तरीके से करते हैं . –

सुनत राम अभिषेक सुहावा ।
बाज गहागह अवध बधावा ।।

अर्थात: “राम के अभिषेक की खबर सुनते ही अयोध्या में धूम धड़ाके से बधावे बजने लगे । जब राम का राज्याभिषेक कैकयी की साजिश के फलस्वरुप टल जाता है और राम को वनवास मिलता है तो पूरी अयोध्या नगरी में निराशा का माहौल छा जाता है  –

एहि विधि करत प्रलाप कलापा।
आए अवध भरे परितापा ।

 जब राम वापस अयोध्या लौटते हैं तो पूरी अयोध्या में दिवाली मनाई जाती है । पूरी अयोध्या में उत्सव मनाए जाते हैं । इसका वर्णन भी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के ‘उत्तरकांड'(Uttarkand) में किया है – 

अवधपुरी प्रभु आवत जानी।
भई सकल सोभा के खानी ।।
बहई सुहावन त्रिविध समीरा ।
भई सरजू अति निर्मल नीरा ।।

अर्थात : “राम के आने का समाचार सुनते ही पूरी अयोध्या शोभा की खान हो गई । तीनों प्रकार की सुंदर वायु बहने लगी और सरयू का पानी भी निर्मल हो गया ।” 

रामचरितमानस में रामराज्य का वर्णन :

जब राम सिहांसन पर बैठते है और ‘रामराज्य’ की स्थापना करते हैं ,तब अयोध्या में किसी भी प्रकार के दुख और दरिद्रता का नामों निशान नहीं रहा ।  रामराज्य के दौरान अयोध्या में न तो अकाल मृत्यु होती थी और न ही कोई दुष्ट व्यक्ति वहां रहता था । राम के अयोध्या के सिंहासन पर बैठते ही वहां चारो तरफ आनंद ही आनंद का वातावरण था – 

अवधपुरी बासिन्ह कर सुख संपदा समाज ।
सहस सेष नहीं कहीं सकहिं जहं नृप राम बिराज ।।

 अर्थात : “जहां राम राजा के रुप में विराज रहे हैं, उस अयोध्या के लोगों की सुख संपदा का वर्णन हजारों शेषनाग भी अपने मुख से नहीं कर सकते हैं।

वाल्मीकि रामायण में रामराज्य का वर्णन :

श्रीराम के राज्य का ऐसा ही वर्णन वाल्मीकि भी अपने रामायण में करते हैं। जब राम सिंहासन पर बैठते हैं तो इसके बाद अयोध्या में कोई दुख नहीं रह जाता है –

न पर्यदेवन्विधवा न च व्यालकृतं भयम् |
न व्याधिजं भयन् वापि रामे राज्यं प्रशासति ||

वाल्मीकि रामायण , युद्ध कांड 

अर्थात: “जब राम अयोध्या के राजा थे, तब वहां कोई भी स्त्री विधवा नहीं होती थी, न किसी को जंगली जानवरों का भय रहा और न ही किसी रोग का ही भय रहा । “

निर्दस्युरभवल्लोको नानर्थः कन् चिदस्पृशत् ।
न च स्म वृद्धा बालानां प्रेतकार्याणि कुर्वते ।।

 

अर्थःः “जब राम का शासन अयोध्या में था तो वहां किसी भी प्रकार की चोरी और लूट की घटनाएं नहीं होती थीं।”

सर्वं मुदितमेवासीत्सर्वो धर्मपरोअभवत्।
राममेवानुपश्यन्तो नाभ्यहिन्सन्परस्परम् ।।

वाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड

अर्थात : “जब राम का शासन था, तब सभी धर्म के अनुसार ही चलते थे। सभी राम का अनुसरण करते थे और कोई प्राणी दूसरे प्राणी की हत्या नहीं करता था I ” 

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