श्रीराम जन्म की अद्भुत और अनसुनी कथा

श्री हरि विष्णु के मर्यादापुरुषोत्तम अवतार श्रीराम के जन्म की अद्भुत कथा सनातन धर्म की सबसे प्रिय कथाओं में एक है। श्री हरि विष्णु ने श्रीराम के रुप में अवतार क्यों लिया? किन लोगों की तपस्या के फलस्वरुप श्रीराम के रुप में श्री हरि विष्णु ने अवतार लिया। वो कौन लोग थें जिन्होंने श्री हरि विष्णु से श्रीराम के रुप में जन्म लेने के लिए प्रार्थना की? वो कौन सी परिस्थितियां थीं जिनकी वजह से श्री हरि विष्णु को श्रीराम के रुप में त्रेता युग में पृथ्वी पर आना पड़ा?

रावण के वरदान के फलस्वरुप श्रीराम जन्म हुआ

‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘बालकांड’ और ‘उत्तरकांड’ में दी गई कथाओं के अनुसार रावण ने ब्रह्मा जी के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी और ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा था। ‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘बालकांड’ के सर्ग 15 में दी गई कथा के अनुसार जब दशरथ पुत्रकामेष्टि अनुष्ठान कर रहे थे. तब सभी देवता ब्रम्हा जी के पास जाते है और उनसे रावण के अत्याचारों की कथा सुनाते हैं।

देवता ब्रम्हा जी से कहते हैं कि “आपने रावण को जो वरदान दिया है उसकी वजह से वह तीनों लोकों के प्राणियों पर अत्याचार कर रहा है।“ देवता ब्रम्हा जी को उस वरदान की याद दिलाते हैं तो ब्रम्हा जी कहते हैं कि –

तेन गन्धर्वयक्षाणां देवतानां च रक्षसाम् |
अवध्योऽस्मीति वागुक्ता तथेक्तं च तन्मया || 1.15.13

अर्थः- रावण ने कहा कि मैं गंधर्व, देवता, दैत्यों और यक्षों के द्वारा अवध्य हो जाऊँ। मैंने (ब्रम्हा जी) कहा कि ऐसा ही होगा।

‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘उत्तरकांड’ के ‘दशम सर्ग’ में भी ब्रम्हा जी से रावण के वरदान मांगने की कथा दोबारा आती है, लेकिन यहां दिए गए श्लोक में थोड़ा अंतर भी दिखाई देता है –

सुपर्णनागयक्षाणां दैत्यदानवरक्षसाम।
अवध्योSहं प्रजाध्यक्ष कृतांजलिरथाग्रतः।।19

अर्थः- सनातन प्रजापते! मैं गरुड़, नाग, यक्ष, दैत्य, दानव, राक्षस तथा देवताओं के लिए अवध्य हो जाऊँ ।

‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘बालकांड’ के ‘सर्ग 15’ के मुताबिक रावण अपने वरदान में मनुष्यों के द्वारा अपनी मृत्यु होने का वरदान मांगना भूल गया। जबकि ‘उत्तरकांड’ में सर्ग 10 के श्लोक 20 में रावण कहता है कि “उसे मनुष्य आदि तुच्छ प्राणियों से अपनी जान का भय नहीं है।“

 रावण के अत्याचारों की वजह से श्रीराम का जन्म हुआ

रावण इस वरदान को प्राप्त करने के बाद इतना अत्याचारी हो गया था कि तीनों लोक उसके भय से कांपने लगें। वाल्मीकि रामायण के बालकांड में जब भगवान विष्णु के पास देवतागण जाते हैं तो वो उन्हें रावण के अत्याचारों के बारे में बताते हैं –

एवं पितामहात्तस्माद्वरदानेन गर्वितः || १-१६-६
उत्सादयति लोकांस्त्रीन् स्त्रियश्चाप्यपकर्षति |
तस्मात्तस्य वधो दृष्टो मानुषेभ्यः परन्तप || १-१६-७

अर्थः- पितामह ब्रह्मा का वरदान प्राप्त करने के बाद रावण ने घमंड में आकर तीनों लोकों पर अत्याचार शुरु कर दिया है। वह औरतों का अपहरण भी करता है।

देवताओं की प्रार्थना के बाद विष्णु ने श्रीराम अवतार लिया

वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस, कम्ब रामायण और लगभग सभी राम कथाओं में श्रीराम के जन्म की एक बड़ी वजह देवताओं की वो प्रार्थना थी, जो उन्होंने भगवान विष्णु से की थी।

देवताओं की प्रार्थना के बाद भगवान विष्णु ने इन देवताओं से ही पूछा कि रावण के वध का उपाय क्या है। इस पर देवताओं ने कहा –

उपायः को वधे तस्य राक्षसाधिपतेः सुराः |
यमहं तं समास्थाय निहन्यामृषिकण्टकम् || १-१६-२

अर्थः हे देवताओं! राक्षसों के अधिपति रावण के वध का उपाय क्या है? मैं किस विधि से ऋषियों पर अत्याचार करने वाले रावण के वध के लिए जन्म लूं ?

भगवान विष्णु के द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर देवताओं ने उन्हें मानव रुप में अवतार लेने के लिए कहा –

एवमुक्ताः सुराः सर्वे प्रत्यूचुर्विष्णुमव्ययम् |
मानुषं रूपमास्थाय रावणं जहि संयुगे || १-१६-३

अर्थः- भगवान विष्णु के इस प्रकार पूछने पर देवताओं ने कहा कि हे विष्णु! आप मनुष्य रुप में जन्म लेकर रावण का वध करें।

इसकी वजह यही थी कि रावण को देवता, दैत्य, दानव, पिशाच, राक्षस, गंधर्व मार नहीं सकते थे, सिर्फ उसका वध मनुष्य रुप में ही अवतार लेकर किया जा सकता था।

दशरथ के यहां क्यों हुआ श्रीराम का जन्म?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार उस वक्त दशरथ पुत्र प्राप्ति हेतु पुत्रकामेष्टि अनुष्ठान कर रहे थे। भगवान विष्णु ने दशरथ के यहां पुत्र रुप में जन्म लेना निश्चित किया –

इत्येतद्वचनं श्रुत्वा सुराणां विष्णुरात्मवान् |
पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम् || १-१६-८

अर्थः- देवताओं की प्रार्थना को सुनकर दयालु विष्णु ने दशरथ को अपने पिता के रुप में चुन लिया और वहीं जन्म लेना निश्चित किया।

लेकिन उन्होंने दशरथ के यहां ही क्यों जन्म लिया इस बारे में न तो वाल्मीकि रामायण के बालकांड में और न ही कम्ब रामायण के बालकांड में कोई विशेष प्रकाश डाला गया है।

लेकिन रामचरितमानस में इस बात की व्याख्या मिलती है कि आखिर क्यों दशरथ के यहां ही श्रीराम ने जन्म लिया था। रामचरितमानस की कथा के अनुसार दशरथ और कौशल्या पूर्वजन्म में ऋषि कश्यप और अदिति थे।

जहां कश्यप को देवताओं, दानवों, दैत्यों के पिता माना जाता है वहीं उनकी पत्नी अदिति को देवताओं की माता माना जाता है। कश्यप और अदिति ने पूर्वकाल में कठिन तप किया था और विष्णु जी को पुत्र रुप में प्राप्त करने का वरदान मांगा था –

कस्यप अदिति महातप कीन्हा। तिन्ह कहुँ मैं पूरब बर दीन्हा।।
ते दसरथ कौसल्या रुपा। कोसलपुरीं प्रगट नर भूपा।।
तिन्ह के गृह अवतरिहहुं जाई। रघुकुल तिलक चारिउ भाई।।
नारद बचन सत्य सब करिहहुं। परम सक्ति समेत अवतरिहहुं।

भगवान विष्णु नारद से कहते हैं कि चूंकि मुझे पुत्र रुप में पाने के लिए ऋषि कश्यप और देवी अदिति ने तप किया था और इस जन्म में ये दोनों ही दशरथ और कौशल्या के रुप मे अयोध्या के राजा और रानी हुए हैं। इसलिए मैं इनके घर पर ही अवतार लूंगा। विष्णु जी कहते हैं कि मैं चारों भाइयों के रुप में इनके घर पर अवतार लूंगा।

एक ऋषि की शक्ति से हुआ श्रीराम का जन्म

वाल्मीकि रामायण और अन्य रामकथाओं के अनुसार जब निःसंतान दशरथ को यह चिंता होने लगी कि आखिर उनके बाद उनका राज्य कौन संभालेगा, तब उन्होंने अपने कुलगुरु वशिष्ठ से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। इस पर वशिष्ठ ने उनसे अश्वमेध यज्ञ कराने के लिए कहा। वशिष्ठ ने उन्हें सलाह दी कि सिर्फ ऋष्यश्रृंग ऋषि ही अश्वमेध यज्ञ को करा सकते हैं और दशरथ को संतान प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्टि अनुष्ठान करवा सकते हैं।

ऋष्यश्रृंग उस वक्त अंग देश में रहते थे जहां के राजा रोमपाद दशरथ के मित्र भी थे। रोमपाद की पुत्री से ऋष्यश्रृंग का विवाह हुआ था। दशरथ उन्हें अपने राज्य में निमंत्रित करते हैं। ऋष्यश्रृंग इस प्रकार यज्ञ को करवाते हैं जिससे यज्ञ से एक दिव्य भूत निकलता है और वो दशरथ को एक पात्र में खीर देता है। इसी खीर को खाने के बाद दशरथ तीनों पत्नियों कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी के गर्भ से चार पुत्रों की प्राप्ति होती है।

कौशल्या जी के गर्भ से श्रीराम का जन्म होता है, कैकयी से भरत का जन्म होता है और सुमित्रा जी की दो संताने लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म होता है।

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