सनातन धर्म के महान ग्रंथ महाभारत के सर्वश्रेष्ठ और महान वीरों में अभिमन्यु का नाम आदर से लिया जाता है । 16 वर्ष की आयु में ही वो महान कार्य कर दिखाया था जो आज तक किसी ने नहीं किया था । वो कार्य था चक्रव्यूह भेदन। अभिमन्यु को चक्रव्यूह के अंदर घुसना तो आता था, लेकिन उसे चक्रव्यूह से बाहर निकलना नहीं आता था। इसकी वजह यह बताई जाती हैं कि उसने यह विद्य़ा अपनी मां के गर्भ से अधूरी ही सीखी थी । क्या है यह कथा और क्या सच में अभिमन्यु ने मां की कोख से यह विद्या सीखी भी थी या यह एक लोकश्रुति ही है ?
अभिमन्यु ने मां के गर्भ से नहीं सीखी चक्रव्यूह भेदन विद्या :
आमतौर पर यही कथा प्रचलित है कि एक बार अर्जुन अपनी गर्भवती पत्नी सुभद्रा को युद्ध में इस्तेमाल होने वाले व्यूह रचनाओं को बारे में बता रहे थे। उस वक्त अभिमन्यु सुभद्रा की गर्भ में ही थे । जब अर्जुन ने सुभद्रा को चक्रव्यूह के भेदने की रणनीति सुनाना शुरु किया तो सुभद्रा बड़े ध्यान से इसे सुनने लगी । गर्भ में पल रहे अभिमन्यु ने भी इस रणनीति को सुनना शुरु किया । सुभद्रा ने चक्रव्यूह के अंदर जाने की कथा तो ध्यान से सुनी लेकिन चक्रव्यूह से बाहर निकलने की रणनीति सुनते वक्त उन्हें नींद आ गई । अर्जुन ने सुभद्रा को सोए देखा तो उन्होंने चक्रव्यूह से बाहर निकलने की रणनीति बतानी बंद कर दी और चले गए ।
अभिमन्यु माँ सुभद्रा के सो जाने के बाद चक्रव्यूह भेदन और उससे बाहर निकलने की पूरी रणनीति को सुनने से वंचित रह गए। जब उनका जन्म हुआ तब वो इस अधूरी रणनीति से ही वाकिफ रह गए ।
महाभारत में नहीं है चक्रव्यूह भेदन की ये कथा :
महाभारत में सुभद्रा को चक्रव्यूह की रणनीति समझाने का कोई वर्णन नहीं है । यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि इसके बाद भी यह कथा संसार में प्रसिद्ध हो गई है । हो सकता है कि लोकश्रुतियों में इस कथा का वर्णन आया हो या फिर किसी बाद के ग्रंथ में इस कथा को विस्तार से बताया गया हो लेकिन यह तो तय है कि महाभारत में ऐसी कोई कथा का वर्णन नहीं है ।
अभिमन्यु को किसने दिया चक्रव्यूह भेदन का ज्ञान :
महाभारत के ‘द्रोण पर्व’ में द्रोणाचार्य दुर्योधन से यह प्रतिज्ञा करते हैं कि वो युधिष्ठिर को बंदी बना लेंगे । लेकिन, द्रोणाचार्य यह शर्त रखते हैं कि अर्जुन को युद्ध भूमि में युधिष्ठिर से दूर करना होगा । इसके लिए त्रिगर्त के राजा सुशर्मा प्रतिज्ञा करते हैं कि वो अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारेंगे और युधिष्ठिर से दूर कर देंगे । इसके बाद द्रोण चक्रव्यूह की रचना करते हैं। युधिष्ठिर अर्जुन को साथ में न पाकर चिंतित हो जाते है और अभिमन्यु को कहते हैं कि तुम्हें , श्रीकृष्ण, प्रद्युम्न और अर्जुन को छोड़कर किसी को भी चक्रव्यूह के भेदन का ज्ञान नहीं है । इसलिए तुम इसका नेतृत्व करो ।
इस आदेश पर अभिमन्यु युधिष्ठिर के सामने यह राज़ खोलते हैं कि उन्हें चक्रव्यूह भेदन तो आता है, लेकिन बाहर निकलने का मार्ग उन्हें अर्जुन ने नहीं बताया था –
उपदिष्टो हि में पित्रा योगोSनिकविशातते ।
नोत्सहे हि विनिर्गंतुमहं कस्यांचिदापदि ।।
महाभारत , द्रोण पर्व , अध्याय 35, श्लोक 19
अर्थात: “मुझे मेरे पिता ने चक्रव्यूह भेदन की विधि का उपदेश तो दिया था लेकिन किसी आपत्ति में पड़ जाने पर मैं उस व्यूह से बाहर नहीं निकल सकता ।”
यहां अभिमन्यु यह स्पष्ट नहीं करते कि उन्हें चक्रव्यूह की विधि का उपदेश अर्जुन ने कब दिया था? क्या उस वक्त जब वो अपनी मां सुभद्रा के गर्भ में थे या फिर उन्हें यह ज्ञान जन्म के बाद मिला था ।
अभिमन्यु को जन्म के बाद मिला था चक्रव्यूह भेदन का ज्ञान :
जब अभिमन्यु का वध महाभारत के युद्ध में हो जाता है और अर्जुन को यह बात पता चलती है, तो वो विलाप करने लगते हैं। इसी विलाप करते वक्त वो यह बात भी बताते हैं कि उन्होंने ही अभिमन्यु को चक्रव्यूह भेदन का ज्ञान तो दिया था, लेकिन उसे उससे बाहर निकलने का उपाय नहीं बताया था –
मया श्रुतश्च द्रोणेन चक्रव्यूह विनिर्मितः ।
न च वस्तस्य भेत्तास्ति विना सौभद्रमभर्कम ।।
महाभारत, द्रोण पर्व, अध्याय 72 श्लोक 20
अर्थात- “अर्जुन कहते हैं कि मैंने सुना है कि द्रोणाचार्य ने आज चक्रव्यूह की रचना की थी । आप लोगों में बालक अभिमन्यु के सिवा दूसरा कोई भी इस व्यूह का भेदन नहीं कर सकत था ।”
इसके बाद अर्जुन यह भी बताते हैं कि उन्होंने कैसे अभिमन्यु को इसके बाहर निकलने का मार्ग नहीं बताया था –
न चोपदिष्टस्तस्यासीन्मयानीकाद् विनिर्गमः।
कश्चिन्न बालो युष्माभिः परानीकं प्रवेशितः ।।
महाभारत , द्रोण पर्व , अध्याय 72, श्लोक 21
अर्थात – “परंतु मैंने उसे व्यूह से निकलने की विधि अभी तक नहीं बताई थी । कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि आप लोगों ने उस बालक को शत्रु के व्यूह में भेज दिया हो ?”
इस प्रसंग के अलावा कहीं भी अभिमन्यु के द्वारा चक्रव्यूह भेदन के विधि को जानने की जानकारी नहीं मिलती है । महाभारत में यह बिल्कुल ही स्पष्ट नहीं है कि अभिमन्यु को यह शिक्षा अर्जुन ने आखिर कब दी थी ?
अभिमन्यु के गुरु कौन थे ? :
महाभारत से अभिमन्यु की अस्त्र शिक्षा को लेकर जो भी जानकारी प्राप्त होती है उसके मुताबिक उन्हें अस्त्र शस्त्र की सारी शिक्षाएं कई महान गुरुओं से मिली थी जो उस वक्त के महान योद्धा थे।
- अभिमन्सयु के प्रथम गुरु स्वयं उनके मामा और नारायण अवतार श्रीकृष्ण थे । जब पांडव वनवास में थे, तब अभिमन्यु द्वारिका में ही रह कर अपने मामाओं से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे । साक्षात श्रीकृष्ण ने ही उन्हें धनुष बाण चलाने की शिक्षा दी थी ।
- अभिमन्यु के दूसरे गुरु उनके ही ममेरे भाई और श्रीकृष्ण के महान वीर पुत्र प्रद्युम्न थे । उन्होंने अभिमन्यु को साम्ब, अनिरुद्ध के साथ -साथ शस्त्रों की शिक्षा दी थी ।
- अभिमन्यु के तीसरे गुरु हलधर और श्रीकृष्ण के भाई बलराम जी थे । उन्होंने अभिमन्यु को भगवान शंकर से प्राप्त धनुष प्रदान किया था और गदा युद्ध की शिक्षा भी दी थी ।
- अर्जुन स्वयं पिता के साथ-साथ अभिमन्यु के गुरु भी थे । उन्होंने अपने पुत्र को सभी दिव्यास्त्रों की शिक्षा दी थी और वो अर्जुन की तरह ही लगभग सभी प्रकार के व्यूहों की रचना करने में समर्थ थे ।
- महाभारत में अभिमन्यु को अर्जुन और श्रीकृष्ण के बराबर वीर माना गया है । स्वयं अर्जुन के शब्दो में वो उनसे भी बड़े वीर थे। द्रोण ने भी अभिमन्यु को अर्जुन के बराबर का वीर माना है ।
अभिमन्यु का वध कैसे हुआ ? :
महाभारत के ‘द्रोण पर्व’ मे अभिमन्यु के वध की कथा मिलती है। अभिमन्यु का वध बड़ी ही निर्दयता और कायरतापूर्ण तरीके से किया गया था । जब अभिमन्यु ने दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण को युद्ध में मार डाला , कर्ण को युद्ध में पराजित कर दिया, दुःशासन को मूर्छित कर दिया और कई दूसरे योद्धाओं को मार डाला तब दुर्योधन अपना आपा खो बैठा । अभिमन्यु को इसके बाद द्रोण, कर्ण, दुःशासन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, और वृहद्ल ने घेर लिया । इसके बाद भी अभिमन्यु ने सबको पराजित कर दिया । तब कर्ण ने घबरा कर द्रोण से पूछा कि एक – एक करके तो अभिमन्यु को कोई भी पराजित नहीं कर सकते तो इसका क्या उपाय करें ?
- द्रोण ने कहा कि “अभिमन्यु के धनुष को तोड़ कर इसके रथ को भी तोड़ डालो ।” कर्ण ने ऐसा ही किया । तब भी अभिमन्यु ने हाथ में तलवार और ढाल लेकर युद्ध जारी रखा । कर्ण ने तलवार और ढाल को भी तोड़ दिया । इसके बाद निहत्थे अभिमन्यु पर लगातार छह महारथी बाणों से प्रहार करते रहे । अभिमन्यु जब रक्त से लथपथ था, तब भी बाणों से उस बिंधा जा रहा था ।
- ऐसी अवस्था में दुःशासन के पुत्र से अभिमन्यु का गदा युद्ध होता है । गदा युद्ध के दौरान भी अभिमन्यु पर द्रोण, कर्ण पीछे से प्रहार करते रहते हैं। तब अभिमन्यु मूर्छित हो जाता है । जब अभिमन्यु मूर्छित था तो उसी अवस्था में ही दुशासन का पुत्र अपनी गदा से उसका सिर तोड़ देता है । इस गदा के प्रहार से अभिमन्यु की मृत्यु हो जाती है।
- महाभारत के अनुसार अभिमन्यु अपने वध से पहले दो हजार से ज्यादा रथियों को मार डालता है और कई हजार सैनिकों का वध कर चुका होता है ।
अभिमन्यु के पूर्वजन्म की कथा ? :
महाभारत के ‘आदि पर्व’ के अनुसार अभिमन्यु पूर्व जन्म में चंद्रमा के पुत्र वर्चस थे । ऐसी कथा है कि जब ब्रह्मा के आदेश के अनुसार भविष्य में दुर्योधन और कौरवों का संहार करने के लिए देवताओं को अपने अंशावतार भेजने थे। तब चंद्रमा के पुत्र वर्चस को भी अवतार लेना था
धर्म, इंद्र आदि के पुत्र के रुप में युधिष्ठिर , अर्जुन आदि ने जन्म लिया । चंद्रमा को अपने पुत्र का पृथ्वी पर अवतार लेना सहन नहीं हो रहा था, क्योंकि वो अपने पुत्र से बहुत प्यार करते थे। ऐसे में चंद्रमा ने ब्रह्मा जी के सामने एक शर्त रखी कि उनका पुत्र पृथ्वी पर अवतार तो लेगा, लेकिन उसे जल्द ही वापस बुला लिया जाए। तब ब्रह्मा जी ने चंद्रमा के पुत्र को अभिमन्यु के रुप में अवतार लेने के लिए कहा और यह वर दिया कि 16 साल में ही वो अपने पिता के पास लौट जाएगा । यही वजह थी कि अभिमन्यु का वध इतनी कम उम्र में हो गया ।
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