आद्या शक्ति

क्या है शक्ति का रहस्य, कौन हैं आद्या शक्ति ?

शुद्ध सनातन धर्म विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमें ईश्वर के स्वरुप को लेकर सबसे व्यापक विवेचना हुई है । ईश्वर निराकार हैं या साकार है, नर हैं या नारी हैं, एक हैं या अनेक हैं इसको लेकर वेदों, पुराणों से लेकर महाकाव्यों और कई महान ग्रंथों में अलग अलग विवेचनाएं की गई है । विश्व में शुद्ध सनानत धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जहां ईश्वर की संकल्पना स्त्री रुप में भी की गई है । ईश्वर के स्त्री स्वरुप को ही शक्ति भी कहा गया है ।

आद्या शक्ति कौन हैं :

इनका क्या स्वरुप है ,इनका प्राक्ट्य किन रुपों में हुआ है , इसकों लेकर आज भी विद्वान एकमत नहीं हो पाए हैं। आज शुद्ध सनातन ईश्वर के शाक्त स्वरुप की व्याख्या सरल शब्दों में करने का प्रयास करने जा रहा है। सबसे पहले हम वेदों और अन्य ग्रंथों में ईश्वर के अद्वैत स्वरुप के बारे में पाते हैं । अद्वैत सिद्धांत के अनुसार ईश्वर निराकार , निर्गुण और अव्यक्त है । अर्थात ईश्वर का न तो कोई साकार स्वरुप है , न ही कोई स्त्री या पुरुष गुण है और न ही वो प्रगट हो सकता है । ऐसी व्याख्याएं ईसाई और इस्लाम में भी की गई हैं । लेकिन ईश्वर के द्वैत और द्वंद्वात्मक स्वरुप को लेकर भी वेदों- पुराणों- ग्रंथो में काफी कुछ कहा गया है । इस सिद्धांत के अनुसार ईश्वर साकार , सगुण, और व्यक्त हो सकता है । अर्थात ईश्वर स्त्री या पुरुष के गुणों या दोनों ही गुणों से युक्त हो सकता है ।

इस सिद्धांत में सबसे पहले प्रकृति और पुरुष की अवधारणा का विकास हुआ । अर्थात ईश्वर अपने आप को दो स्वरुपों स्त्री स्वरुप प्रकृति और शिव स्वरुप पुरुष के रुप में व्यक्त करता है । प्रकृति में शक्ति या उर्जा होती है जिस वजह से प्रकृति को ही आद्या शक्ति कहा जाता है । पुरुष या शिव स्वरुप पदार्थ के रुप में अभिव्यक्त होता है । शिव बिना शक्ति के शव है ठीक उसी प्रकार जैसे पदार्थ बिना उर्जा के अचेतन है या निर्जीव है । शिव और शक्ति ही मिल कर संसार की सृष्टि का निर्माण, पालन और संहार करते हैं। कहीं – कहीं शिव को ही आदिशिव और प्रकृति को ही परा पकृति कहा गया है ।

अब शिव बिना शक्ति के अधूरे हैं तो शक्ति को ही शाक्त परंपरा में ज्यादा मह्त्व दिया गया है और आदि शक्ति को मां का दर्जा दिया गया है । अब यही आद्या शक्ति शिव सहित सभी ईश्वरीय सत्ताओं ब्रम्हा, विष्णु और अन्य देवताओं का निर्माण करती हैं और उनके द्वारा सृष्टि का संचालन करती हैं । इन्ही आद्या शक्ति को शास्त्रों में महामाया या योगमाया कह कर उनकी स्तुति की गई है ।

  • यही आद्या शक्ति अपने आप को तीन स्वरुपों में प्रगट करती हैं। ये तीन स्वरुप हैं – महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली ।
  • महासरस्वती के रुप में आद्या शक्ति ब्रम्हा को सृष्टि निर्माण की विद्या देती हैं जिसके द्वारा ब्रम्हा सृष्टि का निर्माण करते हैं।
  • महालक्ष्मी के रुप में वो भगवान श्री हरि विष्णु को मोहित कर उन्हें योगनिद्रा में सुला देती हैं और सृष्टि का पालन कार्य अपने हाथ में ले लेती हैं। महाकाली के रुप में वो संहार कार्य में शिव की सहायिका सिद्ध होती हैं।

इसके अलावा आद्या शक्ति ने खुद को कई स्वरुपों में प्रगट किया है । भगवान विष्णु की सहायिका के रुप में आद्या शक्ति महालक्ष्मी बन कर अवतरीत होती हैं और इसके अलावा वही वाराही, नृसिंही, नारायणी आदि शक्ति के रुप में प्रगट होती हैं ।
ब्रम्हा की सहायिका के रुप में आद्या शक्ति महासरस्वती के अलावा ब्रम्हाणी और गायत्री आदि देवियों के रुप में प्रगट होती हैं।
शिव के साथ आद्या शक्ति कई स्वरुपों में प्रगट होती हैं। शिव की दो पत्नियों सती और पार्वती आद्या शक्ति के ही दो अवतरण हैं। सती के शरीर से आद्या शक्ति खुद को दस महाविद्याओं- काली. तारा, षोड़शी, मातंगी, भैरवी, त्रिपुरसुंदरी, धूमावती, कमला, छिन्नमस्ता और बगला के रुप में प्रगट होती हैं। माता पार्वती के रुप में आद्या शक्ति खुद को नौ रुपों में प्रगट करती हैं जो हैं –

  1. शैलबाला
  2. ब्रम्हचारिणी
  3. चंद्रघंटा
  4. कुष्मांडा
  5. स्कंदमाता
  6. कात्याययनी
  7. कालरात्रि
  8. महागौरी
  9. सिद्धिदात्री

इन्हें ही कहीं – कहीं नवदुर्गा भी कहा गया है ।

इसके अलावा आद्या शक्ति सभी देवताओं के शरीर के अंदर स्त्री तत्व के रुप मे भी स्थित रहती हैं। जब महिषासुर को सिर्फ एक नारी के द्वारा ही मारा जा सकता था तब सभी देवताओं के शरीर से स्त्री तत्व निकले और एक शक्तिपुंज का निर्माण हुआ । इसी शक्ति पुंज से अम्बिका देवी का निर्माण हुआ जिन्होंने महिषासुर का वध किया ।आद्या शक्ति कई बार इन्ही देवियों को भी अपना माध्यम बनाती हैं और नई देवी के रुप में प्रगट होती हैं । जब शुम्भ और निशुम्भ का वध करने में देवता असहाय हो गए और आद्या शक्ति की आराधना करने लगे तब माता पार्वती ने उन्हें देखा और पूछा कि वो किसकी अराधना कर रहे हैं । तब आद्या शक्ति ने उनके शरीर से निकल कर कहा कि वो उनकी अराधना कर रहे हैं। आद्या शक्ति का जो स्वरुप माता पार्वती के शरीर से निकला तब आद्या शक्ति के उस स्वरुप को कौशिकी कहा गया ।कौशिकी के माता पार्वती के शरीर से निकलने पर माता पार्वती का शरीर काला हो गया और वो कालिका देवी के रुप मे परिणत हो गईं।
अब कौशिकी देवी जगदंबा के रुप में जब शुम्भ और निशुम्भ के साथ युद्ध कर रही थीं तब क्रोध के फलस्वरुप उनके तीसरे नेत्र और शरीर से आद्या शक्ति ने एक और देवी का स्वरुप प्रगट किया जिन्होंने चण्ड और मुण्ड का संहार किया । इन्ही देवी को चण्डिका या चामुण्डा देवी भी कहा जाता है । ये देवी भी जगदंबिका देवी के शरीर से आद्या शक्ति के एक अन्य स्वरुप के रुप में ही प्रगट की गईं।

अब रक्तबीज का वध करने के लिए वही कालिका देवी वापस आती हैं जो माता पार्वती के शरीर के काले होने से कालिका देवी के रुप में परिणत हो जाती हैं। आद्या शक्ति का ये स्वरुप महाभयंकर है । ये कालिका देवी श्मशान वासिनी हैं और रक्तबीज़ का वध करती हैं। ये संभवत दस महाविद्या की काली से अलग हैं हालांकि आद्या शक्ति होने की वजह से उनका स्वरुप मां काली के आम स्वरुप की तरह ही हैं। इसी प्रकार आद्या शक्ति एक और अन्य काली जिन्हें भद्रकाली भी कहा जाता है उनको प्रगट करती हैं। ये भद्रकाली शिव की जटाओं से उस वक्त प्रगट होती हैं जब दक्ष के यज्ञ का नाश करने के लिए शिव अपनी जटाओं से वीरभद्र को प्रगट करते हैं। इसके अलावा महाकाली का एक और स्वरुप भगवान ब्रम्हा की स्तुति से प्रगट होता है। जब भगवान श्री हरि विष्णु के कानो की मैल से मधु और कैटभ प्रगट होते हैं और वो ब्रम्हा को मारने के लिए बढ़ते हैं तब ब्रम्हा आद्या शक्ति योगमाया की स्तुति करते हैं। तब आद्या शक्ति दश पैरों वाली दशभुजा महाकाली के रुप में भगवान श्री हरि विष्णु के हदय से निकलती हैं। ये भी काली का आम स्वरुप ही धारण करती हैं ।

इस विवेचना से यही लगता है कि आद्या शक्ति मूल रुप से काले रंग के स्वरुप को धारण करती हैं और वहीं वक्त -वक्त पर कालिका देवी, चामुण्डा देवी , चण्डिका देवी , भद्रकाली, दसमहाविद्या वाली काली के रुप में खुद के असली स्वरुप में प्रगट करती हैं।

तो इस प्रकार अगर हम देखें तो ब्रम्हा से आद्या शक्ति सरस्वती, ब्रम्हाणी और गायत्री के रुप में प्रगट होती हैं। विष्णु के शरीर से दशभुजा काली, महालक्ष्मी, वाराही, नृसिंही और नारायणी के रुप में प्रगट होती हैं । शिव की पहली पत्नी सती से दसमहाविद्या – काली, तारा, षोड़शी, मातंगी, छिन्नमस्ता धूमावती, बगला, कमला, भैरवी और त्रिपुरसुंदरी के रुप में प्रगट होती हैं। शिव की दूसरी पत्नी पार्वती से नौ दुर्गा- शैलबाला, ब्रम्हचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के रुप में अवतरीत होती हैं। स्वयं शिव के शरीर से भद्रकाली के रुप में अवतरीत होती हैं

देवताओं के शरीर के स्त्री तत्वों से अम्बिका के रुप में अवतरीत होती हैं। पार्वती के शरीर से कौशिकी या जगदंबिका के रुप में और कालिका के रुप में भी प्रगट होती हैं। जगदंबिका ही कालांतर में दुर्गा के रुप में प्रगट होंगी । अगर इस प्रकार आद्या शक्तियों के प्रगटीकरण को समझने का प्रयास करें तो संभवत हम उनकी अराधना स्पष्ट रुप में कर सकेंगे । अस्तु ।

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