श्रीराम और नानक देव जी के बीच क्या रिश्ता है। सिख धर्म और हिंदू धर्म के बीच क्या संबंध है। हम सभी जानते हैं कि सिख धर्म हिंदू धर्म से ही निकली एक शाखा है। सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी हैं । श्रीराम का उल्लेख गुरुग्रंथ साहिब जी में कई बार आया है। राम नाम जप और राम नाम की महिमा का गुणगान सिख धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब जी में किया गया है। अक्सर ये प्रश्न किया जाता है कि क्या गुरु नानक जी के राम दशरथ पुत्र राम हैं या फिर वो निराकार राम हैं जिनकी महिमा सिख धर्म में भी गाई गई है।
पिछले कुछ वर्षों से सिख धर्म और हिंदू धर्म के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश की जाती रही है, कुछ लोगों के अनुसार नानक के राम निराकार परब्रह्म हैं और उनका हिंदू धर्म के श्रीराम से कोई संबंध नहीं है। लेकिन कई ऐसे उल्लेख मिलते हैं जो गुरु नानक देव जी का संबंध दशरथ पुत्र श्रीराम से जोड़ते हैं।
सनातन धर्म में सूर्य वंश और चंद्र वंश का विशेष उल्लेख है। सूर्य वंश में जहां भगवान विष्णु ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रुप में जन्म लिया, वहीं चंद्र वंश में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रुप में जन्म लिया। इन दोनों ही वंशो में श्रीराम और श्रीकृष्ण के अलावा भी कई महान व्यक्तियों, राजाओं, संतों और मनीषियों ने जन्म लिया है। सूर्य वंश में ही मनु,ययाति, रघु, भगीरथ, दिलीप जैसे महान राजाओं ने जन्म लिया है। चंद्र वंश में नहुष, युधिष्ठिर, यदु जैसे महान राजाओं ने जन्म लिया है। इन दोनों ही वंशों ने अनेक ऐसी विभूतियों को जन्म दिया है जिन्होंने सनातन धर्म को मजबूत किया है।
राम के वंशज थे गुरु नानक :
जब -जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का उत्थान होता है भारतभूमि में धर्म की बार- बार संस्थापना के लिए महान आत्माओं, साधुओं और ईश्वर ने अवतार लिया है। कलियुग में भी सूर्य वंश में एक ऐसे महान अवतारी आत्मा ने जन्म लिया, जिन्होंने सिख धर्म की स्थापना की। उन महान आत्मा का नाम था गुरु नानक देव जी।
गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ :
गुरु नानक देव जी का जन्म बेदी परिवार में हुआ था, जिनका मूल भगवान श्रीराम के कुल सूर्य वंश से जोड़ा जाता है। बेदी का अर्थ है ‘वेदों के ज्ञाता’। गुरु नानक जी का संबंध सूर्य वंश से कैसे है, हम इसकी जानकारी आपको देने जा रहे हैं। सिखों के दशम गुरु और खालसा पंथ के संस्थापक पूज्य गुरु गोविंद सिहं जी ने पवित्र ‘दशम ग्रंथ’ की रचना की थी। उन्होंने पवित्र ‘दशम ग्रंथ’ में अपनी बानियों के जरिए सभी पूज्य गुरुओं के वंश पर प्रकाश डाला है। हालांकि कुछ लोगों का ये मानना है कि पवित्र दशम ग्रंथ की रचना गुरु गोबिंद सिंह जी ने नहीं की है और ये बाद की रचना है। हम सभी की भावना का सम्मान करते हैं, लेकिन जो लोग ये मानते हैं कि पवित्र दशम ग्रंथ की रचना गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही की थी, ये लेख उनके लिए है।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बताया था कि सभी गुरुओं का संबंध सूर्य वंश और भगवान श्रीराम से है। पवित्र ‘दशम ग्रंथ’ के एक भाग ‘बिचित्र नाटक’ में गुरु गोबिंद सिंह जी ने भगवान श्रीराम के सूर्य वंश का पूरा लेखा जोखा दिया है। गुरु नानक देव जी जहां बेदी कुल से थे, वहीं गुरु गोबिंद सिंह जी सोढ़ी कुल से आते थे। इन दोनों कुलों का संबंध श्रीराम के दोनो पुत्रों लव और कुश से माना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी कहते हैं !
बनता कद्रू दिति अदिति ए रिख बरी बनाइ।।
नाग नागरिप देव सभ दईत लए उपजाइ।। 2.18 ।।
अर्थात : दक्ष प्रजापति की चार पुत्रियों वनिता, कद्रू, दिति और अदिति(जो कश्यप ऋषि की पत्नियां थीं), उनमें अदिति के गर्भ से देवताओं की, कद्रू से नागों की और दिति के गर्भ से दैत्यों की उत्पत्ति हुई
ताते सूरज रूप को धरा। जाते बंस प्रचुर रवि करा।।
जो तिन के कहि नाम सुनाऊं। कथा बढन ते अधिक डराऊं।। 2.19 ।।
इन्हीं देवताओं में अदिति के पुत्र सूर्य से सूर्य वंश की शुरुआत मानी जाती है।
तिन के बंस बिखै रघु भयो। रघुबंसहि जिह जगहि चलयो।।
ताते पुत्र होत भयो अज बर। महारथी अरु महा धनुरधर।। 2.20 ।।
इन्हीं सूर्य वंश में राजा रघु हुए, जिनके नाम से सूर्यवंश को रघुवंश भी कहा जाने लगा। इसी वंश में भगवान श्रीराम का जन्म हुआ।
प्रिथम जयो तिह राजकुमारा। भरथ लच्छमन सत्र बिदारा।।
बहुत काल तिन राज कमायो। काल पाइ सुरपुरहि सिधायो।। 2.22 ।।
सीअ सुत बहुरि भये दुइ राजा। राज-पाट उनही कउ छाजा।।
मद्र देस एस्वरज बरी जब। भाँति भाँति के जग्ग कीए तब।। 2.23 ।
श्रीराम की पत्नी माता सीता से लव और कुश नाम से दो पुत्र हुए। इन्होंने मद्र देश की राजकुमारियों से विवाह किया और कई यज्ञों को भी किया।
तही तिनै बाँधे दुइ पुरवा। एक कसूर दुतीय लहुरवा।।
अधक पुरी ते दोऊ बिराजी। निरख लंक अमरावति लाजी।। 2.24 ।।
राम के दोनों पुत्रों लव और कुश ने दो नगरों की स्थापना की। लव ने लवपुर( वर्तमान लाहौर) और कुश ने कुशपुर( वर्तमान कसूर) नगर बसाए।
बाद में कुश के वंशज कालकेतु और लव के वंशज काल राय के बीच युद्ध हुआ। कालराय बाद में सनौढ़ जाकर बस गए और वहां की राजकुमारी से विवाह किया, जिससे जो पुत्र हुआ उसका नाम सोढ़ीराय रखा गया। इन्हीं सोढ़ी राय से सोढ़ी वंश की उत्पत्ति मानी जाती है, जिस वंश में गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ।
लवी सरब जीते कुसी सरंब हारे। बचे जे बली प्रान लै कै सिधारे।
चतुरबेद पठियं कीयो कासि बासं। घनै बरख कीने तहां ही निवासं।। 3.52 ।।
लव के वंश के हारे हुए वंशजों ने एक बार फिर से कुश के वंशजों को हरा दिया और कुश के वंशज भाग कर काशी चले गए, जहां उन्होंने वेदों का अध्ययन किया और बेदी कहलाए। इन कुश वंशी बेदियों को एक बार फिर से लव के वंश के सोढ़ियों ने बुलाया और कहा कि दोनों भगवान श्री राम के ही वंशज हैं, इसलिए दोनों को वैर का त्याग कर देना चाहिए। उनके बुलावे पर कुश वंशी बेदी पंजाब आए और उन्होंने लव वंश के सोढ़ी राजा को वेदों का ऐसा ज्ञान दिया कि लव वंशीय सोढ़ी राजा ने अपना सारा राजपाट कुश वंशीय बेदियों को दे दिया।
बेदी भयो प्रसंन राज कह पाइकै। देत भयो बरदान हीऐ हुलसाइकै।
जब नानक कल मै हम आन कहाइ है। हो जगत पूज करि तोहि परम पद पाइ है।। 4.7 ।।
कुश वंशीय बेदी प्रमुख ने लव वंशीय सोढ़ी राज़ा को वरदान दिया कि जब भविष्य में कुश वंशीय बेदियों में नानक जी का अवतार होगा, तब वो लव वंशीय सोढ़ी वंश को फिर से एक बार उच्च अवस्था प्रदान करेंगे।
तिन बेदीयन के कुल बिखे प्रगटे नानक राइ।
सभ सिक्खन को सुख दए जह तह भए सहाई।। 5.4 ।।
कालांतर में कुश वंश के बेदियों के यहां गुरु नानक जी ने अवतार लिया और सभी सिखों को सुख दिया।
जब बर दानि समै वहु आवा। रामदास तब गुरु कहावा।
तिह बरदानि पुरातनि दीआ। अमरदासि सुरपुरि मगु लीआ।। 5.8 ।।
लव वंशीय सोढ़ी कुल में गुरु रामदास जी हुए और उन्हीं के कुल में बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ ।पवित्र ‘दशम ग्रंथ’ का ही एक और दोहा है, जिसमें जब पूज्य गुरु नानक जी मक्का मदीना में पधारे थे तब वहाँ भी उन्होंने अपने वंश का परिचय यूं दिया था !
सूरज कुल ते रघु भय्या- रघुवंश होआ राम।
रामचंद्र के दो सुत लवि कुसि तिह नाम।।
एक हमाते बड़े हैं- जुग जुग अवतार।
इन्ही के घर उपजु नानक कल अवतार।
अर्थः सूर्यवंश में राजा रघु और श्रीराम का जन्म हुआ। रामचंद्र के दो पुत्रों के नाम लव और कुश हैं। इन्हीं के घर में नानक ने अवतार लिया है।
आदि अंत हम ही भये- दूजा आप खुदाय। होर न कोई दूसरा- नानक सच्च अनाए।
हालांकि कई मतों का मानना है कि बिचित्र नाटक की भाषा गुरु गोबिंद सिंह जी की भाषा से अलग है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसकी रचना नहीं की थी। लेकिन कुछ लोग इसे गुरु गोबिंद सिंह के द्वारा ही रचित मानते हैं। हम सभी मतों का सम्मान करते हैं।
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