सनातन धर्म के सबसे महान महाकाव्यों में एक रामायण में रावण को एक खलनायक की तरह दिखाया गया है । कुछ लोगों का ये मानना है कि रावण एक मनुष्य था और उसकी जाति ब्राह्म्ण थी। शुद्ध सनातन में आज हम इस बात को देखते हैं कि क्या सच में रावण ब्राह्म्ण था और मनुष्य जाति से संबंध रखता था?
Table of Contents
रावण मनुष्य नहीं राक्षस था
वाल्मीकि रामायण में रावण जब माँ सीता का हरण करके अशोकवाटिका में रखता है तो रावण माँ सीता को अपनी पत्नी बनाने के लिए उन्हें मनाता है और धमकाता भी है । रावण राक्षसियों को ये भी कहता है कि सीता को मेरे साथ विवाह करने के लिए मनाओ।
तब माँ सीता को अशोकवाटिका की राक्षसियाँ धमकाने लगती हैं और रावण से विवाह करने के लिए बार बार कहती हैं। तब माँ सीता कई बार एक ही बात कहती हैं कि –
न मानुषि राक्षसस्य भार्यां भवितुर्महति।।
अर्थात : कोई मानुषि यानि मनुष्य जाति की स्त्री का किसी राक्षस से विवाह नहीं हो सकता है ।
इसका अर्थ ये है कि रावण राक्षस योनि से था और उसका विवाह किसी भी मनुष्य जाति की स्त्री से नहीं हो सकता था। तो इसका साफ अर्थ है कि रावण मनुष्य जाति से नहीं आता था।
मनुष्यों की उत्पत्ति कैसे हुई?
- मानव या मनुष्य शब्द मनु से बना है । शास्त्रों के अनुसार मनुष्य सूर्य के पुत्र मनु और उनकी पत्नी शतरुपा से मैथुनि संबंध से उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्मा जी ने दो प्रकार की सृष्टियों का निर्माण किया था । पहली सृष्टि अमैथुनी सृष्टि मानी जाती है
- इसके अनुसार ब्रह्मा के शरीर से 7 मानस पुत्रों का जन्म हुआ । इन सातों को प्रजापति की संज्ञा दी गई जिनसे देवता, दानव, दैत्य, पशु , पक्षी आदि पैदा हुए।
- ब्रह्मा के मानस पुत्र प्रजापति मरीचि से ऋषि कश्यप उत्पन्न हुए जिन्होंने ब्रह्मा जी के ही एक अन्य मानस पुत्र दक्ष प्रजापति की 13 कन्याओं से विवाह किया । कश्यप की प्रमुख पत्नियों में दिति , अदिति, दनु, कद्रू ,और विनता का नाम आता है ।
- कश्यप की पत्नी दिति से दैत्यों की उत्पत्ति बताई जाती है। दिति के पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप थे । हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद हुए और प्रह्लाद के पुत्र विरोचन के पुत्र दैत्यराज बलि हुए। इस प्रकार दैत्यों की वंशावली चली ।
- कश्यप की एक दूसरी पत्नी अदिति से 12 आदित्यों का जन्म हुआ। इन 12 आदित्यों को ही देवता कहा गया । इन 12 आदित्यों मे सबसे बड़े इंद्र हैं और इसके बाद वरुण , सूर्य , धाता, विधाता, अयर्मा, और वामन हुए।
सूर्य देव से मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है
इन्हीं सूर्य देव के पुत्र विवस्वान मनु हुए जिनसे मानवों की उत्पत्ति हुई। मनु तक सारे संसार के जीवों की उत्पत्ति अमैथुनी हुई यानि इनका जन्म स्त्री पुरुष के शारीरिक संयोग से नहीं हुआ था। सृष्टि के अमैथुनी होने की वजह से सृष्टि का विकास नहीं हो पा रहा था।
तब ब्रह्मा जी ने अपने शरीर से पुरुष मनु और स्त्री के रुप में शतरुपा को उत्पन्न किया । इन्ही शतरुपा और मनु के शारीरिक संयोग यानि मैथुनी सृष्टि से मानवों की उत्पत्ति मानी जाती है ।
राक्षसों की उत्पत्ति कैसे हुई
वाल्मीकी रामायण के उत्तरकांड के अनुसार ब्रह्मा जी ने पानी के अंदर रहने वाले जीवों की रक्षा और उन्हें आचार विचार से संस्कारित करने के लिए एक अलग ही प्रकार के प्राणियों की उत्पत्ति की । इन प्राणियों में कुछ ने पानी के अंदर रहने वाले जीव जंतुओं को आचार विचार सिखाने और उन्हें संस्कारित करने का जिम्मा उठाया । इन प्राणियों के समुदाय को यक्ष कहा गया ।
जिन प्राणियों के समुदाय ने पानी के अंदर रहने वाले जीव जंतुओं की रक्षा का जिम्मा उठाया उन्हें राक्षस कहा गया।
रावण राक्षस था या फिर मनुष्य था या फिर कोई और जीव था?
रावण ब्रह्मा के अमैथुनी सृष्टि के द्वारा उत्पन्न मानस पुत्र पुलत्स्य ऋषि के पुत्र विश्रवा और पानी के अंदर रक्षा का कार्य संभालने वाले विशिष्ट प्रकार के प्राणियों अर्थात राक्षसों की पुत्री कैकसी का मिश्रित पुत्र था। रावण पिता की तरफ से ब्रह्मा के कुल से था और माँ की तरफ से राक्षसों के कुल से था। सनातन धर्म में पुत्रिका धर्म नामक एक सिद्धांत लागू होता है जिसके अनुसार कोई पिता अपनी पुत्री के संतानों को अपना कर उन्हें अपने कुल में शामिल कर लेता है ।
रावण की माँ कैकसी से ब्रह्मा के मानस पुत्र पुलत्स्य के पुत्र विश्रवा के साथ संबंध बना कर रावण , कुंभकर्ण , विभीषण और शूर्पनखा को जन्म दिया था। लेकिन कैकसी के पिता सुमाली ने पुत्रिका धर्म के अनुसार कैकसी से ये वचन ले लिया था कि वो उनकी संतानो को उसे सौंप देगी । इस प्रकार रावण और उसके भाइयों और बहन शूर्पनखा को उसके नाना सुमाली के राक्षस कुल में शामिल कर लिया गया।
रावण एक राक्षस था जो ब्रह्मा के कुल से था
जो लोग रावण को ब्राह्म्ण कहते हैं वो इस बात पर गलती कर जाते हैं । दरअसल रावण ब्राह्म्ण नहीं था बल्कि वो पिता की तरफ से ब्रह्मा के कुल से था । ठीक उसी तरह जैसे ब्रह्मा के कुल से कश्यप ऋषि की संतानें दैत्य , देवता, दानव आते थे । अगर रावण को ब्राह्म्ण माना जाए तो इस सिद्धांत के अनुसार दैत्यों , दानवों और देवताओ को भी बाह्म्ण माना जाना चाहिए क्योंकि ये सभी तो पिता और माता दोनो ही कुलों की तरफ से ब्रह्मा के कुल से आते हैं। देवता, दानव और दैत्यों की माताएं ब्रह्मा के मानस पुत्र दक्ष की पुत्रियाँ अदिति, दनु और दिति थीं और पिता की तरफ से कश्यप ब्रह्मा के पुत्र मरीचि के पुत्र थे ।
किसी भी प्रामाणिक ग्रंथ में रावण को ब्राह्म्ण नहीं कहा गया
अगर वाल्मीकि रामायण की बात की जाए तो रावण के लिए हरेक स्थान पर राक्षस संबोधन का प्रयोग किया गया है क्योंकि वो पुत्रिका धर्म के सिद्धांत के अनुसार राक्षस सुमाली के कुल से आता था। कई स्थानो पर उसे ऋषि विश्रवा का पुत्र बताया गया है लेकिन कहीं भी न तो ऋषि विश्रवा के लिए ब्राह्म्ण संबोधन का प्रयोग किया गया है और न ही रावण के लिए ब्राह्म्ण शब्द आया है ।
रावण को पूरे वाल्मीकि रामायण में राक्षस, राक्षसाधिपति, निशाचर आदि कह कर ही संबोधित किया गया है । यहाँ तक कि 600 साल पहले लिखे गए तुलसीदास के रामचरितमानस में भी रावण को कहीं भी ब्राह्म्ण कह कर संबोधित नहीं किया गया है ।