पुष्पक विमान की चर्चा रामायण में कई बार आई है। पुष्पक विमान को किसने बनाया और रावण ने पुष्पक विमान को किससे छीना ये कथाएं भी वाल्मीकि रामायण में आती हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार पुष्पक विमान उस पर सवारी करने वाले की मन की इच्छा से चलता था। कुछ कथाओं के अनुसार रावण ने माता सीता का हरण कर पुष्पक विमान से ही लंका ले गया था। लेकिन यह सत्य नहीं है। अगर पुष्पक विमान से सीता का हरण नहीं हुआ था, तो आखिर रावण माता सीता को लंका कैसे ले गया ?
रावण माता सीता का हरण करने पुष्पक विमान से नहीं तो कैसे पहुंचा ?
वाल्मीकि रामायण के ‘अरण्यकांड’ में माता सीता का हरण होता है। लेकिन इसके पहले रावण को जब शूर्पनखा माता सीता की सुंदरता के बारे में बताती है औऱ अकंपन रावण को माता सीता का हरण करने का सुझाव देता है, तो रावण पहले मारीच से सहायता लेने के लिए जाता है।
रावण इसके लिए पहले अपने एक शिल्पी को दिव्य रथ बनाने के लिए कहता है
यान शालाम् ततो गत्वा प्रच्छन्नम् राक्षस अधिपः |
सूतम् संचोदयामास रथः संयुज्यताम् इति || 3.35.4
अर्थः- राक्षसो का अधिपति रावण अपने रथों की शाला में गुप्त रुप से गया और उसने रथ बनाने वाले सूत को एक दिव्य रथ बनाने का आदेश दिया।
कांचनम् रथम् आस्थाय कामगम् रत्न भूषितम् |
पिशाच वदनैः युक्तम् खरैः कनक भूषणैः ||
3.35.6 मेघ प्रतिम नादेन स तेन धनद अनुजः |
राक्षसाधिपतिः श्रीमान् ययौ नद नदी पतिम् || 3.35.7
अर्थः- वह रथ सोने का बना हुआ था और उसे पिशाचों जैसे मुख वाले गधे जोत रहे थे। वह रथ उस पर सवार होने वाले की मन की इच्छा के अनुसार चल सकता था उस रथ पर सवार होकर रावण समुद्र पार करने के लिए उड़ चला।
माता सीता का हरण कैसे हुआ
जब माता सीता के अनुरोध पर श्रीराम स्वर्ण मृग बने मारीच को मारने के लिए जाते हैं , तो मारीच श्रीराम का बाण लगते हिए श्रीराम की आवाज़ की नकल कर लक्ष्मण को पुकारते हैं। माता सीता उस नकली आवाज़ को श्रीराम की आवाज़ समझ कर लक्ष्मण को श्रीराम की सहायता के लिए जबरन भेजती हैं।
माता सीता को अकेला पा कर रावण माता सीता के पास परिव्राजक बन कर आता है और माता सीता का हरण कर लेता है। –
स च मायामयो दिव्यः खर युक्तः खर स्वनः |
प्रत्यदृश्यत हेमांगो रावणस्य महारथः || 3.49.19
अर्थः- जैसे ही रावण ने माता सीता का हरण किया तो पिशाच के मुख वाले गधों से जुता हुआ वह मायावी रथ, जो अपने स्वामी की इच्छा से प्रगट और अदृश्य हो सकता था और सोने से बना हुआ था, वह रावण के सामने एक बार फिर प्रगट हो गया।
इसके बाद रावण ने माता सीता को उस रथ पर जबरन बिठाया और आकाश मार्ग से लंका की तरफ उड़ चला।
ताम् अकामाम् स काम आर्तः पन्नग इन्द्र वधूम् इव |
विवेष्टमानाम् आदाय उत्पपात अथ रावणः || 3.49.22
अर्थः- रावण जो अपनी कामवासना से भरा हुआ था और सीता को जो उसके लिए श्रीराम रुपी एक भयंकर नाग की पत्नी के समान विनाशकारी थीं, जबरन उस रथ पर बिठा लिया और आकाश मार्ग से उस दिव्य रथ से उड़ चला।
जटायु ने रावण के रथ को नष्ट कर दिया
जब रावण माता सीता को उस दिव्य रथ से आकाश मार्ग से लंका ले कर जा रहा था तो जटायु ने रावण का विरोध किया और उससे युद्ध कर रावण को बुरी तरह से घायल भी कर दिया। जटायु ने रावण के दिव्य रथ को नष्ट कर दिया और उसके सारथि को भी मार डाला।
कांचन उरः छदान् दिव्यान् पिशाच वदनान् खरान् |
तान् च अस्य जव संपन्नान् जघान समरे बली || 3.51.15
अर्थः- रावण के स्वर्ण से बने उस रथ को जिसे पिशाचों के मुख वाले गधे चला रहे थे, उस पर जटायु ने आक्रमण कर दिया
अथ त्रिवेणु संपन्नम् कामगम् पावक अर्चिषम् |
मणि सोपान चित्र अंगम् बभंज च महारथम् || 3.51.16
अर्थः- दिव्य रथ जो बांस से बना हुआ था, जो अपने स्वामी की इच्छा से गमन कर सकता था और जिसमें स्वर्ण और कई रत्न लगे हुए थे, जो यज्ञ की अग्नि की तरह चमकता था। उस रथ पर जयायु ने ऐसा हमला किया कि वह रथ अपने सारथि सहित पृथ्वी की ओर वेग से गिरने लगा ।
सारथेः च अस्य वेगेन तुण्डेन च महत् शिरः |
पुनः व्यपाहरत् श्रीमान् पक्षिराजो महाबलः || 3.51.18
अर्थः- महाशक्तिशाली पक्षीराज जटायु ने वेग से गिरते हुए उस रथ के सारथि के सिर पर अपनी चोंच से प्रहार किया।
स भग्न धन्वा विरथो हत अश्वो हत सारथिः |
अंकेन आदाय वैदेहीम् पपात भुवि रावणः || 3.51.19
अर्थः- अब रावण जिसका धनुष जटायु ने तोड़ डाला था, जिसके रथ को नष्ट कर दिया था और जिसके सारथि को भी जटायु ने मार डाला था, वह रावण माता सीता को लेकर पृथ्वी पर कूद पड़ा ।
उस दिव्य रथ से जटायु को मिला सम्मान
जब श्रीराम, माता सीता के हरण के बाद उनकी तलाश में निकले तब उन्होंने रास्ते में घायल अवस्था में जटायु मिलते हैं। श्रीराम को पहले जटायु पर संदेह हुआ लेकिन जब जटायु ने उन्हें रावण का वह रथ , धनुष और मरा हुआ सारथि दिखाया तब श्रीराम को पता चला कि रावण ने माता सीता का हरण किया है-
याम् ओषधिम् इव आयुष्मन् अन्वेषसि महा वने |
सा देवी मम च प्राणा रावणेन उभयम् हृतम् || 3.67.15
अर्थः- हे आयुष्मान श्रीराम! जिन्हें तुम इस वन में खोज रहे हो उस देवी( सीता) को और मेरे प्राणों को रावण ने हर लिया है।
सीताम् अभ्यवपन्नो अहम् रावणः च रणे मया |
विध्वंसित रथः च अत्र पातितो धरणी तले || 3.67.17
अर्थः- मैं सीता की रक्षा के लिए उनके पास पहुंचा और रथ पर बैठे रावण से मेरा युद्ध हुआ। मैंने रावण को उसके रथ के सहित पृथ्वी पर गिरा दिया ।
एतत् अस्य धनुः भग्नम् एतत् अस्य शरावरम् |
अयम् अस्य रणे राम भग्नः सांग्रामिको रथः || 3.67.18
अर्थः- यह रावण का धनुष है जो नष्ट हो गया । यह उसका नष्ट हुआ कवच भी है और यह रथ है, जो मेरे द्वारा नष्ट कर दिया गया
अयम् तु सारथिः तस्य मत् पक्ष निहतो भुविः |
परिश्रान्तस्य मे पक्षौ छित्त्वा खड्गेन रावणः || 3.67.19
अर्थः-यह वह रथ है जो मेरे परों के द्वारा नष्ट कर दिया गया । लेकिन मैं जब युद्ध में थक गया तो रावण ने अपने खड्ग से मेरे दोनों पंख काट दिये और सीता को आकाश मार्ग से लेकर चला गया ।
रावण, माता सीता को बिना किसी रथ के जबरन हाथ पकड़ कर आकाश मार्ग से लंका गया था। जहां तक पुष्पक विमान की बात है उस पर माता सीता जरुर चढ़ी थीं, लेकिन ऐसा तब हुआ जब श्रीराम ने रावण को मार डाला था। विभीषण के आग्रह पर श्रीराम और माता सीता पुष्पक विमान से ही अयोध्या वापस लौटे थे।
पुष्पक विमान की कथा
वाल्मीकि रामायण से ही पता चलता है कि पुष्पक विमान का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था। जब कुबेर ने ब्रह्मा की तपस्या की थी तो ब्रह्मा ने कुबेर को लोकपाल बना दिया और उपहार के रुप में पुष्पक विमान दिया। यह विमान सात मंजिलों का था और यह भी अपने स्वामी की इच्छा से कहीं भी आकाश. जल या थल मार्ग से चल सकता था।
रावण ने कुबेर के राज्य अलकापुरी पर आक्रमण कर यह पुष्पक विमान उससे छीन लिया था और इसके बाद उसी पुष्पक विमान के अंदर बने एक भवन में अपनी पत्नी मंदोदरी के साथ रहता था। यह पुष्पक विमान इतना बड़ा था कि इसमें कई महलें, बगीचें और कई सरोवर भी थे।