सनातन धर्म में एकादश रुद्र की महिमा का वर्णन है। इन्हें भगवान शिव का स्वरुप माना गया गया। लेकिन कई धर्मग्रंथों के अध्ययन से हमें कई भिन्न बातों का पता चलता है। कहीं इन्हें भगवान ब्रह्मा जी से उत्पन्न बताया गया है तो कहीं इन्हें भगवान विष्णु का स्वरुप भी कहा गया है। तो आखिर प्रश्न यही उठता है कि एकादश रुद्र को भगवान शिव से कैसे संयुक्त किया गया है।
वेदों में रुद्र की महिमा का वर्णन
वैदिक वांग्मय के अनुसार रुद्र एक ही हैं। ऋग्वेद में रुद्र को झंझावातो का देवता माना गया है जिसके बाण रोग उत्पन्न करते हैं।ऋग्वेद में रुद्र को तीनों लोकों का पिता भी माना गया है –
भुवनस्य पितरं गीर्भिराभी
रुद्रं दिवा वर्धया रुद्रमक्तौ।
बृहन्तमृष्वमजरं सुषुम्नं
ऋधग्हुवेम कविनेषितार:॥ (-ऋग्वेद ६.४९.१०)
अर्थः -दिन में और रात्रि में इन स्तुति के वचनों से इन भुवनों के पिता बड़े रुद्र देव की (वर्धय) प्रशंसा करो, उस (ऋष्वं) ज्ञानी (अ-जरं सुषुम्नं) जरा रहित और उत्तम मनवाले रुद्र की (कविना इषितार:) बुद्धिवानें के साथ रहकर उन्नति की इच्छा करनेवाले हम (ऋषक् हुवेम) विशेष रीति से उपासना करेंगे।
33 करोड़ या 33 कोटि देवता :
शुद्ध सनातन धर्म में 33 कोटि देवताओं का उल्लेख है। इन्हें कई बार भ्रमवश 33 करोड़ देवता माना जाता रहा है ,लेकिन सत्य यही है कि ये 33 कोटि अर्थात 33 प्रकार के देवता हैं। ये 33 कोटि देवता मुख्यतः 12 आदित्यों, 11 रुद्र, 8 वसुओं और 2 अश्विनकुमारों के रुप में विभक्त किये गए हैं।
12 आदित्यों की उत्पत्ति ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी अदिति से बताई गई हैं। ये 12 आदित्य हैं- सूर्य, अँशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु , पर्जन्य, पूषा, मित्र , भग ,वरुण, विव्सवान और विष्णु( वामन)।
8 वसुओं की उत्पत्ति ब्रह्मा के ह्द्य से उत्पन्न धर्म देवता और उनकी पत्नी वसु से हुआ है। इनके नाम हैं- अप्, घर, ध्रुव, सोम,अनल, अनिल, प्रत्युष तथा प्रभाष हैं। हालांकि कई अलग- अलग ग्रंथों में इनके नामों को लेकर विभिन्नता है।
2 अश्विनी कुमार जुड़वां भाई हैं जो औषधियों के देवता माने जाते हैं।
अर्थववेद में भी रुद्र को एक ही मानते हुए उनकी महिमा और स्तुति गाई गई है-
स्तुहि श्रुतं गर्तसंद जनानां
राजानं भीममुपहलुमुग्रम्।
मृडा जरित्रे रुद्र स्तवानो
अन्यमस्मत्ते निवपन्तु सैन्यम्॥ (-अथर्व १८.१.४०)
अर्थः – (उग्रं भीमं) उग्रवीर और शक्तिमान् होने से भयंकर (उपहलुं) प्रलय करनेवाला, (श्रुतं) ज्ञानी (गर्तसदं) सबके हृदय में रहनेवाला, सब लोगों का राजा रुद्र है, उसकी (स्तुहि) स्तुति करो। हे रुद्र! तेरी (स्तवान:) प्रशंसा होने पर (जरित्रे) उपासना करनेवाले भक्त को तू (मृड) सुख दे। (ते सैन्यं) तेरी शक्ति (अस्मत् अन्यं) हम सब को बचाकर दूसरे दुष्ट का (निवपन्तु) विनाश करे।’ इस मंत्र में ‘जनानां राजांन रुद्र’ ये पद विशेष विचार करने योग्य हैं। ‘सब लोगों का एक राजा’ यह वर्णन परमात्मा का ही है, इसमें संदेह नहीं है।
उपनिषदों में भी एक ही रुद्र को विभिन्न नामों वाला बताया गया है-
एको रुद्र न द्वितीयाय तस्यु:।
य इमाल्लोकानीशत ईशनीभि:॥ ( श्वेताश्वतर उप. ३.२)
अर्थः- एक ही रुद्र है, दूसरा रुद्र नहीं है। वह रुद्र अपनी शक्तियों से सब लोगों पर शासन करता है।
पुराणों और महाकाव्यों में 11 रुद्र की कथा :
लेकिन पुराणों और महाकाव्यों के काल तक आते- आते रुद्र के जन्म और उनकी संख्या को लेकर कई प्रकार की विभिन्नताएं दिखने लगती हैं। कहीं एक रुद्र से अनेक रुद्र के जन्म की कथा मिलती है तो कहीं उन्हें प्रजा का सृष्टिकर्ता कहा गया है। वाल्मिकी रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत, शिव पुराण, स्कंद पुराण आदि में रुद्र को लेकर कई अलग- अलग कथाएं मिलती हैं।
वाल्मीकि रामायण मे श्री राम भी रुद्रावतार हैं
वाल्मीकि रामायण में श्रीराम को एकादश रुद्र में एक माना गया है। वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड में माता सीता की अग्नि परीक्षा के वक्त जब ब्रह्मा, शिव , इंद्र, वरुण और यम आदि देवता आते हैं तो वो श्री राम को उनके दैवीय स्वरुप का अहसास कराते हैं।
रुद्राणामष्टमो रुद्रः साध्यानामपि पञ्चमः।
अश्विनौ चापि कर्णौ ते सूर्याचन्द्रामसौ दृशौ।।
वाल्मीकि रामायण, युद्धकांड, सर्ग 117, श्लोक 8
अर्थः – हे राम आप एकादश रुद्र में आठवें रुद्र हैं, साध्य गणदेवताओं में आप पांचवे( वीर्यवान) हैं और दोनों अश्विन कुमार आपके दोनों कान हैं और सूर्य और चंद्रमा आपके दोनों नेत्र हैं।
महाभारत में एकादश रुद्र का वर्णन :
महाभारत के आदि पर्व के अध्याय 66 में ग्यारह रुद्र का उल्लेख मिलता है। इन रुद्र शक्तियों को ब्रह्मा के सातवें मानस पुत्र स्थाणु से उत्पन्न बताया गया है। इनके नाम हैं – मृगव्याध, सर्प, महायशस्वी नऋति, अजैकपाद, अहिर्बुघ्न्य, पिनाकी, दहन, ईश्वर, कपाली,स्थाणु और भव।
इसमें स्थाणु को रुद्र का पिता भी बताया गया है और स्थाणु को ग्यारह रुद्र में एक भी कहा गया है। महाभारत के ही विष्णुसहस्त्रनाम में विष्णु के हजार नामों में स्थाणु का भी कई बार नाम आता है जिससे यह पता चलता है कि स्थाणु विष्णु का एक नाम है। महाभारत के भीष्म पर्व में श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने खुद को एकादश रुद्रों में एक बताया है और श्रीमद्भागवत पुराण में भी श्रीकृष्ण खुद को एकादश रुद्रों में एक रुद्र नीललोहित बताते हैं।
विभिन्न पुराणों में एकादश रुद्र के अलग- अलग नाम हैं
- श्रीमद्भागवत (३।१२।१२) में एकादश रुद्र के नाम इस प्रकार हैं— मन्यु, मनु, महिनस, महान्, शिव, ऋतध्वज, उग्ररेता, भव, काल, वामदेव, और धृतव्रत।
- मत्स्यपुराण और पद्मपुराण में समान रूप से एकादश रुद्र के नाम मिलते हैं; परन्तु ये नाम महाभारत के खिल भाग हरिवंश तथा अग्निपुराण, गरुडपुराण आदि की उपरिलिखित सूची से कुछ भिन्न हैं- अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य,विरूपाक्ष,रैवत,हर,बहुरूप,त्र्यम्बक,सावित्र,जयन्त,पिनाकी और अपराजित।
- जबकि स्कंदपुराण में यह सूची थोड़ी अलग है। इस सूची में कई नाम गायब है और कई नए नाम दिखाई पड़ते हैं। ये नाम हैं -भूतेश, नीलरुद्र, कपालिन्, वृषवाहन, त्र्यंबक, महाकाल, भैरव, मृत्युंजय, कामेश, एवं योगेश।
- स्कंदपुराण के अनुसार सतयुग(कृतयुग) में आठ रुद्र उत्पन्न हुए जो बाद में कलियुग में ग्यारह रुद्र के रुप में सामने आए।
शैव संप्रदाय में रुद्र के अलग नाम हैं
- जहां वैष्णव संप्रदाय और दूसरे ग्रंथों में रुद्र की ब्रह्मा जी या कश्यप जी या फिर ब्रह्मा जी के पुत्र स्थाणु से बताई गई है वहीं शैवागमों में रुद्र को भगवान शिव का स्वरुप बताया गया है। शिव पुराण में रुद्र के नाम इस प्रकार हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुध्न्य, शम्भु, चण्ड, और भव।
- विष्णु सहस्त्रनाम में शास्ता भगवान विष्णु का एक नाम है जबकि दक्षिण भारत की परंपरा में भगवान अयप्पा का एक नाम शास्ता है जो धर्मानुसार शासन करने वाले देवता हैं।
- शैवागम के अनुसार एकादश रुद्र के नामों में भी नयापन दिखता है। शैवागम के अनुसार एकादश रुद्र के नाम हैं -शैवागम के अनुसार एकादश रुद्र के नाम हैं— शम्भु, पिनाकी, गिरीश, स्थाणु, भर्ग, सदाशिव, शिव, हर, शर्व, कपाली, और भव, हम देखते हैं कि प्रारंभ में भगवान शिव का नाम किसी भी रुद्र के रुप में नहीं लिया गया था लेकिन शैवागम में भगवान शिव और उनके दूसरे नाम जैसे शम्भु, हर और सदाशिव, गिरीश इसमें शामिल हो गए।
एकादश रुद्र के जन्म और उनके ईश्वरत्व को लेकर चर्चा
वैदिक वांग्मय में जहां रुद्र एक ही है वो प्राकृतिक शक्तियों के देवता के रुप में दिखलाए गए हैं। वो महाशक्तिशाली हैं और तीनों लोकों के राजा भी हैं। लेकिन पुराणों में आते- आते एक से ग्यारह रुद्र हो जाते हैं और उनके जन्म को लेकर अलग- अलग कथाएं मिलती हैं।
ज्यादातर पुराणों जैसे विष्णुपुराण, ब्रम्हांड पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में ब्रह्मा जी के क्रोध के फलस्वरुप रुद्र की उत्पत्ति बताई गई है। ब्रह्मा से जब रुद्र उत्पन्न हुए तो वो रुदन करने लगे इसलिए वो रुद्र अर्थात रुदन करने वाले कहलाये। इन पुराणों की कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने सबसे पहले रुद्र को सृष्टि को उत्पन्न करने और उसका विस्तार करने की आज्ञा दी। एक रुद्र से हजारों रुद्र उत्पन्न हुए और वो अपनी ही प्रजा का संहार करने लगे। ऐसे में ब्रह्मा जी ने उन्हें सृष्टि का विस्तार करने से रोक दिया। कुछ पुराणों विशेषकर स्कंदपुराण, ब्रह्मपुराण और शिव पुराण में कश्यप और उनकी पत्नी सुरभि से रुद्र के उत्पन्न होने की कथा है।
क्या रुद्र को अपने संप्रदाय में शामिल करने की होड़ मची थी
महाभारत में दस विनायकों का उल्लेख है जो उपद्रव और विघ्न करने वाली शक्तियों के रुप मे दिखाए गए हैं। बाद में इन विनायकों को भगवान गणेश के साथ संयुक्त कर दिया गया। इसी प्रकार लगता है कि एकादश रुद्र को अपने संप्रदायों में शामिल करने की होड़ सी मची थी। रुद्र पहले ब्रह्मा जी से उत्पन्न और उनसे संयुक्त थे लेकिन बाद में ब्रह्मा जी की पूजा समाप्त होने के बाद वैष्णव संप्रदायों ने एकादश रुद्र को विष्णु के साथ संयुक्त किया तो शैव संप्रदायों ने भगवान शिव के साथ रुद्र को संयुक्त कर लिया। हालांकि रुद्र प्राकृतिक शक्तियों के ही देवता थे लेकिन बाद में ऐसा लगता है कि सभी ने उनकी शक्तियों को अपने देवताओं के साथ जोड़ दिया।