श्रीमद्भगवद्गीता या भगवद्गीता सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में एक है। श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद विश्व की लगभग सारी भाषाओं में किया गया है । श्रीमद्भगवद्गीता के कई भाष्य भी सनातन धर्म के महान संतो, ऋषियों, विद्वानों और दार्शनिकों के द्वारा लिखे गए हैं। फारसी भाषा में इसका अनुवाद सबसे पहले मुगल राजकुमार दारा शिकोह के द्वारा किया गया।
शुद्ध श्रीमद्भगवद्गीता पूरे विश्व के लिए आवश्यक है
श्रीमद्भगवद्गीता के अंग्रेजी अनुवाद सबसे पहले चार्ल्स विलिकन्स में किया था। श्रीमद्भगवद्गीता के अंग्रेजी अनुवाद के बाद पाश्चात्य दार्शनिकों में इस महान ग्रंथ में दिए गए दार्शनिक सिद्धांतों को लेकर उत्सुकता पैदा हो गई और पूरे विश्व में इसे सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक ग्रंथ का दर्जा दिया गया। श्रीमद्भगवद्गीता के विभिन्न भाषाओं में अनुवादों का मूल आधार अंग्रेजी भाषा में छपी श्रीमद्भगवद्गीता ही थी, इससे इसकी शुद्ध व्याख्या को लेकर हमेशा संशय किया गया।
शुद्ध श्रीमद्भगवद्गीता की गलत व्याख्या किसने की?
सिर्फ पाश्चात्य लेखकों और दार्शनिकों के द्वारा ही श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों की मनमानी व्याख्या नहीं की गई, बल्कि कई हिंदू संप्रदायों ने भी अपनी सुविधा के हिसाब से इसके श्लोकों के अर्थों से छेड़खानी की है। शुद्ध सनातन वेबसाइट के द्वारा यही प्रयास किया गया है कि संस्कृत के शब्दकोषों की सहायता से और बिना किसी पूर्वग्रह और पक्षपात के श्रीमद्भगवद्गीता के अर्थों को और उसकी व्याख्या को शुद्ध रुप से प्रस्तुत किया जा सके ।
हमारा प्रयास है कि हम श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों के अर्थ और उसकी व्याख्या, मूल संस्कृत के शब्दकोषों में दिए गए संस्कृत के शब्दों के अर्थों और संस्कृत व्याकरण के सिद्धांतों का प्रयोग करते हए करें ताकि हम श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों के अर्थों में हुए मिलावट को दूर सकें और आपके समक्ष शुद्ध भगवद्गीता(Pure Bhagavad Gita) प्रस्तुत कर सकें।
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् ।
विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ।।4.1।।
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः ।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप।।4.2।।
स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्।।4.3।
अर्थः – श्री भगवान् बोले – “मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, फिर सूर्य ने (अपने पुत्र) वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने (अपने पुत्र) राजा इक्ष्वाकु से कहा, हे परंतप ! इस तरह परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, परन्तु बहुत समय बीत जाने के कारण वह योग नष्ट हो गयातू मेरा भक्त और प्रिय सखा है, इसलिये वही यह पुरातन योग आज मैंने तुझसे कहा है; क्योंकि यह बड़ा उत्तम रहस्य है।”
श्रीमद्भगवद्गीता की शुद्धता का उद्देश्य :
सनातन धर्म लाखों वर्षों से अपने अनंत ज्ञान के द्वारा विश्व को प्रकाशित करता रहा है । सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथों ने हरेक धर्म, समाज और देश को प्रेरणा दी है । परंतु जैसा कि भगवान ने स्वयं उपर दिए गये श्लोक में कहा है, कि “समय आने पर कोई भी विचार , दर्शन और ज्ञान या तो दूषित कर दिये जाते हैं या फिर वो लुप्त होने लगते हैं ।” इसलिए हमारा भी यही प्रयास है कि श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों के अर्थ और उनकी व्याख्या में जो मिलावट की जा रही है ,उसे दूर कर आपके समक्ष शुद्ध गीता रख सकें।
हो सकता है कि हमारे प्रयास में कोई त्रुटि रह जाए, पर हमारा उद्देश्य सनातन धर्म की मर्यादा को कायम रखते हुए, बिना किसी लोभ और पक्षपात के भगवान के इस गीतको शुद्ध रुप में आपके सामने प्रस्तुत कर सकें। शुद्ध भगवद्गीता(Pure Bhagavad Gita) के श्लोकों के शुद्ध अर्थों और उसकी शुद्ध व्याख्या के लिए आपके सुझाव भी आमंत्रित हैं।
नीचे दिए गए टेबल में हर अध्याय और उसमे उल्लेखित विशेषताओं का लिंक दिया गया है, जिसे आप क्लिक करके पढ़ सकते हैं :