शुद्ध सनातन धर्म में आद्या शक्ति और नारायण के द्वारा संमय समय पर अवतार लेकर संसार में धर्म की स्थापना और दुष्टों का संहार करने की अनेक कथाएं हैं। आद्या शक्ति जब भी किसी स्वरुप में आकर दुष्टों का संहार करती हैं तो उनके साथ सात मताएं भी सहयोग करती दिखती है। इन्हें ही सप्त मातृका देवियां कहा जाता है । ये सप्तमातृकाएं हैं – ब्रम्हाणी, वाराही, माहेश्वरी, कौमारी, एंद्राणी, चामुंडी और वैष्णवी । इनमें ब्रम्हाणी त्रिदेवों में प्रथम ब्रम्हा की स्त्री शक्ति हैं, माहेश्वरी महेश की शक्ति हैं, कौमारी युद्ध के देवता कुमार कार्तिकेय की स्त्री शक्ति हैं, ऐन्द्राणी इंद्र की स्त्री शक्ति हैं , चामुण्डी मां पार्वती की शक्ति हैं, वैष्णवी और वाराही विष्णु की स्त्री शक्तियां है ।
सप्तमातृकाओं को लेकर वेद- पुराणों में मतभेद है
वैसे तो सप्तमातृकाओ का पहला जिक्र ऋग्वेद में ही आता है और इन्हें सोमरस तैयार करने वाली देवियों के रुप में पूजा जाता है । हड़प्पा सभ्यता के भी कई स्थानों पर इनकी मूर्तियां मिली हैं लेकिन हड़प्पा सभ्यता के लोग इन्हें किस रुप में पूजते हैं ये अभी तक पता नहीं चल पाया है । लेकिन देवी महात्म्य अग्नि पुराण, महाभारत आदि ग्रंथों में सप्तमातृकाओं को विशेष रुप से तीन प्रकार से दिखाया गया है । एक रुप में वो कार्तीकेय की माताओं के रुप में हैं और दूसरे वो चंडिका देवी की सहयोगी के रुप में दिखाई गई हैं। तीसरे वो अंधकासुर राक्षस को मारने के लिए शिव की सहयोगी के रुप में दिखाई गई हैं
कुमार कार्तीकेय की सप्त माताएं
महाभारत के वन पर्व की कथा के अनुसार जब कार्तीकेय स्कंद का जन्म हुआ तो देवताओं में भय समा गया क्योंकि कार्तिकेय बाल रुप में ही सबसे महान वीर थे और युद्ध के लिए सभी देवताओं को ललकार रहे थे । ऐसे में देवताओं ने लोक मातृकाओं या सप्तमातृकाओं से प्रार्थना की कि वो स्कंद अर्थात कार्तीकेय के मार डालें । लेकिन इन लोक मातृकाओं में स्कंद को देख कर वात्सल्य उमड़ आया और उन्होंने स्कंद को अपना पुत्र बना लिया ।
शिव की सहायिकाएं हैं सपत मातृकाएं
शैव मत की कथा के अनुसार जब भगवान शिव अंधकासुर से युद्ध कर रहे थे तब अंधकासुर के रक्त की जितनी भी बूंदे गिरती थीं उससे एक नया अंधकासुर पैदा हो जाता था । इन अंधकासुरों को खत्म करने के लिए शिव के मुख से योगेश्वरी देवी का प्रागट्य होता है । इन योगेश्वरी देवी की सहयोगी के रुप में विष्णु, ब्रम्हा, इंद्र, कार्तिकेय आदि अपनी स्त्री शक्तियों अर्थात सप्तमातृकाओं को भेजते हैं । भगवान शिव योगेश्वरी और सप्तमातृकाओं के साथ मिल कर अंधकासुर का वध करते हैं ।
चंडिका देवी की सहयोगिनी शक्ति हैं सप्तमातृकाएं
श्री दुर्गा सप्तशती में महामाया, योगमाया, अंबिका, चंडिका और कालिका देवियों के स्वरुपो के अलावा एक अन्य देवी समूह का भी वर्णन आता है जिन्हें हम सप्तमातृका देवियां कहते हैं। है। श्री दुर्गा सप्तशती के आठवें अध्याय में इन सातों माताओं के प्रगट होने का उल्लेख है। कहा जाता है कि शुम्भ और निशुम्भ की सेना को मारने के लिए चंडिका देवी ने अपने शरीर से इन सातों माताओं को प्रगट किया था। ये देवियां हैं ब्रम्हाणी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नृसिंही और इंद्राणी। ब्रम्हाणी ब्रम्हा की स्त्री शक्ति हैं। महेश्वरी भगवान शंकर यानि महेश की स्त्री शक्ति हैं , कौमारी कुमार कार्तिकेय की स्त्री शक्ति हैं, वैष्णवी, वाराही और नृसिंहि भगवान विष्णु की स्त्री शक्तियां हैं जबकि इंद्राणी इंद्र की स्त्री शक्ति हैं। ये सातों माताएं चंडिका और कालिका देवी के साथ मिल कर शुम्भ और निशुम्भ की सेना का संहार करती हैं।
कहां होती है सप्तमातृकाओं की पूजा
आज भी हरेक गांव में देवी स्थान नामक एक मंदिर होता है जहां पिंड के रुप में सात देवियां विराजमान रहती हैं। इन्हें ही ग्राम देवियां भी कहा जाता है। इन ग्राम देवियों को स्थापना का श्रेय कुमारिल भट्ट को जाता है। उन्होंने ही बौद्ध धर्म की अहिंसा की नीति के फलस्वरुप कायर हो चुके समाज में फिर से वीरता का संचार करने के लिए इन देवियों की फिर से स्थापना की और यहां बलि प्रथा की शुरुआत कराई। हालांकि सप्तमातृकाओं की चर्चा जैन धर्मों और बौद्ध धर्मों में भी है लेकिन इन माताओं की विशेष पूजा सनातन धर्म में ही की जाती है ।
कहीं – कहीं सप्तमातृका देवियों के साथ एक आठवीं देवी भी दिखती हैं इन्हें योगेश्वरी देवी कहा जाता है जो भगवान शिव के मुख से उत्पन्न हुई हैं। सप्तमातृकाओं के साथ वीरभद्र को भी देखा जा सकता है जो भगवान शिव के एक प्रमुख गण हैं। इस संदर्भ में सप्तमातृकाओं को मूल रुप से शैव और शाक्त मतों की देवी माना जा सकता है । महाभारत के शल्य पर्व में ही कार्तीकेय की माता के रुप में सप्तमातृकाओं के अलावा 90 और भी देवियों का उल्लेख आया है । महाभारत में कई पर्वों में इसके उल्लेख से यह साफ है कि सप्तमातृकाओं की पूजा उस काल प्रत्येक घर में होती थी और उस वक्त सप्तमातृकाएं सबसे लोकप्रिय देवियों के रुप मे पूजित थीं । भरतमुनि के द्वारा रचित नाट्य शास्त्र में नाटक करने से पहले मंच पर सप्तमातृकाओं की वंदना करने की विधि दी गई है। दैनिक और विशिष्ट पूजा के दिनों में सप्तमातृकाओं की पूजा दिक्पालों और नवग्रहों की पूजा के साथ करने का विधान है । इनकी पूजा विशेष शक्ति प्राप्त करने के लिए की जाती है । राजाओं के द्वारा इनकी पूजा युद्ध के पहले करने की परंपरा रही है ।