शुद्ध सनातन धर्म में तुलसीदास जी द्वारा रचित श्री हनुमान चालीसा ऐसा अद्भुत स्त्रोत है जिसे प्रतिदिन पाठ करने से श्री राम, माता जानकी और महावीर हनुमान जी की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है। समस्त संकटों को दूर कर जीवन में मंगल को लाने वाले इस स्त्रोत की व्याख्या बहुत कम की गई है।
माता सीता की वंदना से शुरु होती है
आज शुद्ध सनातन हनुमान चालीसा की इस महान भक्ति स्त्रोत की व्याख्या करने के लघु प्रयास कर रहा है। आइये हम सभी इस व्याख्या को देखते हैं-
पहला दोहा- श्री गुरु चरण सरोज रज,निज मन मुकुरु सुधारी।
बरनउं रघुवर विमल जसु जो दायकु फल चारी।।
यहां श्री गुरु में श्री वस्तुत: लक्ष्मी स्वरुपा मां जानकी के लिए प्रयोग किया गया है जो श्री हनुमान जी की गुरु हैं।
हनुमान चालीसा की केंद्र हैं माता सीता :
आगे हनुमान चालीसा में स्पष्ट ये बात स्पष्ट हो जाती है जब माता सीता के द्वारा हनुमान जी को अष्ट सिद्धि नव निधि का ज्ञान दिये जाने की बात आती है-
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस वर दीन जानकी माता
अर्थात: माता जानकी ही हनुमान जी की गुरु हैं और उनके ही चरणों के रज को लेकर वो अपने मन रुप पर पड़े माया रुपी धूल को साफ कर रहें हैं ताकि वो तुलसी और हनुमान जी दोनों रघुवर के विमल यश का गान कर सकें । उन रघुवर के विमल यश का जो चारों फलों अर्थात धर्म, यज्ञ, जाप और ज्ञान से मिलते है। उन चारों फलों को जिन्हें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्री राम की भक्ति ने बनाया हनुमान जी को महान
हनुमान चालीसा में बरनउं रघुवर विमल जसु यानि रघुवर के विमल यश के गान में ही हनुमान जी के सारे पराक्रम छिपे हुए थे। रघुवर से मिलन के पूर्व हनुमान जी सिर्फ सुग्रीव के मंत्री या चाकर थे लेकिन प्रभु श्री राम के दर्शन के बाद ही हनुमान जी अपने पराक्रमो को दिखाने की शक्ति मिलती है। इसलिए हनुमान जी के सारे पराक्रम दरअसल प्रभु श्री राम के ही विमल यश का विस्तार है।
माता सीता से मिली हनुमान को राम भक्ति
इसलिए तुलसीदास जी ने हनुमान जी की वंदना प्रारंभ करने से पहले श्री स्वरुपा और हनुमान जी की गुरु मां जानकी का स्मरण कर श्री राम सेवक हनुमान जी ह्द्य में रघुवर के विमल यश को स्थापित कर उन्हें प्रसन्न कर लिया ।
दूसरा दोहा- बुद्धि हीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोही हरहु कलेस विकार।।
इस दोहे को सुंदरकांड में श्री हनुमाज की जो समर्पित प्रथम श्लोक से जोड़ कर देख सकते हैं। तुलसीकृत रामचरित्रमानस में हनुमान जी की वंदना इस श्लोक से की गई है-
अतुलित बलधामं, हेमशैलाभदेहं। दनुजवन कृषानु I
ज्ञानिनाम अग्रगण्यम। सकलगुणनिधानम वनारामधीशं ।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नामामि।।
बल, बुद्धि और विद्या में सबसे आगे हैं हनुमान जी
तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान जी हमारे शरीर को बुद्धिहीन जानके बल, बुद्धि, विद्या प्रदान करें और हमारे क्लेष और विकारों को खत्म कर दें। हनुमान जी अतुलित बलधामं हैं अर्थात खुद भी बलशाली हैं और ज्ञानियों में भी सबसे प्रथम हैं। वही सक्षम है हमें बल और बुद्धि दोनों प्रदान करने के लिए। इसलिए वही बल और बुद्धि देकर हमारे पांच क्लेषों ( अविद्या,अस्मिता, राग, द्वेष और मरण) और छह विकारों(काम, क्रोध, लोभ, मोह और मद) को दूर कर सकते हैं।
दोषों को दूर करने वाले हनुमान जी
हमारे ग्यारह दोषो को एकादश रुद्रावतार हनुमान जी ही दूर कर सकते है। इसीलिए तुलसी श्री जानकी माता और श्री राम के बाद हनुमान जी के गुणों का वर्णन शुरु करते हैं।
तीसरा दोहा- जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपिस तिहुं लोक उजागर
रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवनसुत नामा।।
इस दोहे में हनुमान जी को ज्ञानी कहा गया है क्योंकि वो तुलसीकृत रामचरितमानस में तो ज्ञानिनाम अग्रगण्यम कहे ही गए हैं साथ ही वाल्मीकि रामायण के किष्किंधाकांड में भी श्री राम के द्वारा ज्ञानी कहे गए हैं।
वेदों के ज्ञाता हैं महावीर हनुमान
जब हनुमान जी सुग्रीव का संदेश लेकर एक साधु के वेष में श्री राम के पास जाते हैं तो वो जिस प्रकार से ज्ञान की बातें करते हैं उससे प्रसन्न होकर श्री राम लक्ष्मण जी से हनुमान जी के ज्ञानी होने की प्रशंसा करते हैं –
न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ\-\-यजुर्वेद धारिणः |
न अ\-\-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् ||
अर्थात: जिसने ऋग्वेद को नहीं जाना हो, जिसे यजुर्वेद का स्मरण न हो और जो सामवेद का ज्ञाता न हो वो क्या ऐसी बातें कर सकता है।
शिव के अवतार महावीर हनुमान जी
हनुमान चालीसा से जय कपिस तिहुं लोक उजागर – तुलसी यहां हनुमान जी की प्रशंसा करते हुए उन्हें सभी कपियों का ईश्वर बताते हैं। वाल्मिकी रामायण के मुताबिक ब्रम्हा जी ने रावण का संहार करनें में श्री हरि विष्णु के अवतार श्री राम की सहायता के लिए सभी देवताओं को वानर के रुप में अवतार लेने का आदेश दिया था लेकिन भगवान शिव को वो कोई आदेश दे नहीं सकते थे।
- भगवान शिव ने हनुमान के रुप में वानर रुप अवतार लिया। भले ही इंद्र पुत्र वालि और बाद में सूर्य पुत्र सुग्रीव वानरों के राजा बने लेकिन सभी देवताओं के ईश्वर शिव हनुमान रुप में थे।
- इसीलिए तुलसीदास जी ने उन्हें कपियों का राज नहीं बल्कि कपियों अर्थात वानरों का (जो असल में देवता थे) ईश (शिव) कह कर संबोधित किया है। उन कपिश यानि हनुमान जी कि जो त्रिपुरातंक हैं और तीनों लोक में उजागर हैं।
- इसके बाद तुलसीदास जी हनुमान जी को उनके इस संसार में स्थित माता पिता अंजनी और केसरी अवतार में पवनपुत्र से जोड़ते हैं।
श्री राम और माता जानकी के सेतु हैं हनुमान जी
तुलसी ने उन्हें रामदूत कहा है । वास्तव में वो माता सीता और श्रीराम के बीच सेतु हैं। माता सीता के पास वही श्री राम का संदेश लेकर जाते हैं और माता सीता का संदेश लेकर श्रीराम के पास आते हैं।
रामचरितमानस के सुंदरकांड में भी हनुमान जी माता जानकी से कहते है – रामदूत मैं मातु जानकी सत्य शपथ करुणानिधान की।
वीरों में महावीर हैं हनुमान
दोहा- महावीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन वरन विराज सुवेसा कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हनुमान चालीसा से तुलसी हनुमान जी के गुणों के वर्णन करते हुए कहते हैं कि वो महावीर है, विक्रम हैं और व्रजांग यानि वज्र जैस शरीर वाले हैं। महावीर से तात्पर्य उस वीरता से है जो आंतरिक और बाहरी दोनों संसारों को जीत सकता है।
विक्रमादित्य हैं महावीर हनुमान
विक्रम का अर्थ है जो सारे संसार को एक बार में पार सकते हैं। जैसे भगवान विष्णु के वामन अवतार को विक्रमावतार भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने तीन पगों में सभी लोगों को नाम लिया था। एक विशेष क्रम में संसार को तीन पगो में नापने के लिए भगवान सूर्य को भी विक्रम कहा जाता है। इसी प्रकार हनुमान जी ने भी अपने विक्रम गुण के कारण सागर को लांघ लिया था।
महावीर हनुमान की भक्ति से कुंडलीनी जागरण
वज्रांग या बजरंगी से तात्पर्य सिर्फ उनके शरीर का वज्र जैसा मजबूत होना नहीं है बल्कि वज्रांग से तात्पर्य कुंडलीनि जागरण में वज्र का मूलाधार में स्थित होना भी है। वज्रांग के ईश्वर होने की वजह से ही महावीर हनुमान जी की साधना के द्वारा कुमतियों का निवारण और सुमितियों का आगमन बताया गया है।
क्या ब्राह्म्ण वर्ण के हैं महावीर हनुमान ?
हनुमान चालीसा से उनके कंचन वर्ण से तात्पर्य उनका ब्राह्मण होना सिद्ध तो होता है और महावीर हनुमान जी को यज्ञोपवितधारी भी बताया गया है । इससे उनका ब्राह्मण वर्ण का सिद्ध होना स्पष्ट होता है। क्योकि इसके अगले ही दोहें में उन्हें कांधे मूंज जनेउ साजै से उपमित किया गया है। हनुमान जी ब्राह्मण के रुप में ही श्रीराम और विभीषण जी के पास सबसे पहले पहुंचते हैं।
लेकिन रामचरितमानस के सुंदरकांड के एक दोहे में यह भी स्पष्ट लिखा है कि महावीर हनुमान जी कुलीन जाति से नहीं आते थे –
कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥
प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥
तो इसका अर्थ क्या हो सकता है । इसके दो अर्थ हो सकते हैं। पहला ये कि उस वक्त वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी और भले ही जन्म से महावीर हनुमान जी निम्न जाति वर्ग से आते थे लेकिन कर्म और भक्ति के द्वारा वो इतने ज्ञानी बन गए कि वो ब्राम्ह्ण कहे जाने लगे ।
दूसरे यह भी होना सिद्ध हो सकता है कि उस वक्त आज की तरह सिर्फ ब्राहम्णों को ही यज्ञोपवित पहनने का अधिकार नहीं था । सभी वर्णों के लोग यज्ञुपवित पहन सकते थे । महावीर हनुमान जी किसी भी वर्ण के रहे हों लेकिन वो भक्ति शिरोमणि थे और साक्षात ईश्वरीय सत्ता थे । ऐसे में इस विवाद का कोई महत्व नहीं रह जाता है ।
क्या महावीर हनुमान शिव के अवतार हैं ?
दोहा- संकर सुवन केसरीनंदन तेज प्रताप महाजगवंदन।
अर्थात: वो स्वयं शंकर ही हैं जो वानर का रुप धारण करके श्री राम की लीला में सहायक बने हैं। केसरी पुत्र के रुप में स्वयं शंकर जी ने ही अवतार धारण किया है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि वाल्मीकी रामायण में कहीं भी महावीर हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार नहीं बताया गया है । हम यह कह सकते हैं कि वो शंकर सुवन अर्थात भगवान शंकर के सभी गुणों से युक्त थे ।
महावीर हनुमान क्यों हैं इतने चतुर
दोहा- विद्यावान गुणी अति चातुर राम काज करिबै को आतुर।
इस संसार में राम के काज को करने से ज्यादा बुद्धिमानी का कोई कार्य है ही नहीं । हनुमान चालीसा से इसीलिए विद्यावान और गुणी है हनुमान जी क्योंकि जानते हैं कि श्रीराम के कार्य से बड़ा कोई कार्य संसार में नहीं है।
श्री राम के गुणगान के रसिया है हनुमान जी
दोहा- प्रभु चरित्र सुनिबै को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
हनुमान चालीसा से श्री राम के चरित्र को सुनने के लिए हनुमान जी इतने उत्सुक रहते हैं कि उन्हें कामनेमी राक्षस ने जब मारने के लिए श्री राम का गुणगान करने का षड़यंत्र भी किया तो पहले हनुमान जी ने श्री राम का गुणगान उस मायावी राक्षस से सुन लिया इसके बाद ही उसकी हत्या की। हनुमान जी के हद्य में अगर किसी का वास है तो सिर्फ श्री राम, मां जानकी और प्रिय भाई स्वरुप लक्ष्मण जी का।
दोहा- सूक्ष्म रुप धरि सियहीं दिखावा , विकट रुप धरि लंक जरावा।
भीम रुप धरि असुर संहारे । रामचंद्र के काज संवारे।
लाय संजीवन लखन जीयाए। श्री रघुवीर हरषि उर लाए।
रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।
हनुमान चालीसा से चूंकि मां जानकी उनकी गुरु हैं इसलिए वो सबसे पहले अपने पराक्रम से माता जानकी को प्रसन्न करते हैं। इसके लिए वो अपना सूक्ष्म स्वरुप लेकर माता जानकी के पास जाते हैं। सूक्ष्म स्वरुप यानि विनम्र स्वरुप। अपने गुरु के पास जाने के लिए सबसे पहले जिस विनम्रता की आवश्यकता होती है वहीं सूक्ष्म विनम्रता हनुमान जी में भी है।
- लेकिन जब श्री राम के कार्य को संवारने की जरुरत है तो फिर वो रौद्र रुप भी धारण करने से नहीं हिचकते हैं। अपनी गुरु माता जानकी के लिए कार्य करने के पश्चात वो अपने प्रभु श्री राम का कार्य संवारते हैं इसके बाद वो अपने प्रिय भाई स्वरुप और श्री राम के भाई लखन जी के लिए संजीवनी लाते हैं।
- हनुमान चालीसा से यही वजह है कि हनुमान जी के लिए तुलसी ने लिखा है राम लखन सीता मन बसिया। इन तीनों का कार्य ही हनुमान जी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि श्री राम को भी माता जानकी, लक्ष्मण और भरत सबसे ज्यादा प्रिय हैं।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरों मंत्र विभिषण माना, लंकेश्वर भये सब जग जाना।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु लिल्यो ताहि मधुर फल जानु
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहिं , जलधि लांधि गए अचरज नाहीं।
इसके बाद हनुमान जी सुग्रीव और विभीषण के कार्यों को करते हैं।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरों मंत्र विभिषण माना, लंकेश्वर भये सब जग जाना।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु लिल्यो ताहि मधुर फल जानु
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहिं , जलधि लांधि गए अचरज नाहीं।
असंभव को संभव बनाने वाले महावीर हनुमान
इसके बाद के दोहों में हनुमान जी के द्वारा किए गए असंभव कार्यों का विशद वर्णन तुलसीदास जी ने कहा है। किष्किंधा कांड में भी जब जाम्बवंत हनुमान जी को कहते हैं कि –
कवन सो काज कठिन जग माहि , जो नहीं होत तात तुम्ह पाही।
हनुमान जी को मिली श्री राम की कृपा
हनुमान चालीसा से हनुमान जी के गुणों का वर्णन दरअसल श्री राम की कृपा प्राप्ति के फलों का ही वर्णन है। अत जो भी हनुमान जी के गुणों और कार्यों का वर्णन करता है उस पर रघुवर की कृपा की प्राप्ति होनी तय है और अंतकाल में वो रघुवर के पास ही जाता है-
अंतकाल रघुवर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई।
भगवान शिव को प्रिय है
अंत में तुलसीदास जी ने इस पूरे स्त्रोत के फलों के लिए साक्षात भगवान शिव को गवाह बनाया है
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा होये सिद्ध साखि गौरीसा।
हनुमान चालीसा से रामचरितमानस भी भगवान शिव के मानस में जो प्रभु श्री राम का चरित्र वर्णन है उसी की कथा है । इसी प्रकार भगवान शिव ही श्री राम के चरित्र और उनके भक्तों के कार्यों को अपने तीसरे नेत्र से देखते रहते हैं। चूंकि भगवान शिव के ह्द्य में श्री राम का वास है इसलिए जो भी श्रीराम और उनके सेवकों का वर्णन करेगा उसे भगवान शिव सब कुछ प्रदान करेंगे।
पवन तनय संकट हरण , मंगल मूरति रुप । राम लखन सीता सहित हद्य बसहुं सूर भूप।
हनुमान चालीसा से अंत में भगवान श्री राम, माता जानकी और लखन भइया के साथ ह्द्य में हनुमान जी को वास करने का आह्वान किया गया है जो संकटों को हरने वाले और मंगल के मूर्ति हैं।