पर्यावरण को समर्पित एकमात्र धर्म – हिंदू धर्म : शुद्ध सनातन हिंदू धर्म शायद विश्व का इकलौता ऐसा धर्म है जिसमें प्रकृति को मां कहा गया है और प्रकृति के संरक्षण के लिए भी ईश्वरीय सत्ताएं हमेशा संलग्न रहती है । शुद्ध सनातन धर्म के सांख्य दर्शन में सृष्टि का उद्भव ही प्रकृति और पुरुष के संयोग से होता है ।
शास्त्रो में पर्यावरण का मह्त्व :
वेदों , पुराणों, अरण्यकों और उपनिषदों में प्रकृति के संरक्षण को पुण्य अर्जन का कार्य माना गया है । शास्त्रों के मुताबिक वृक्षों और पशुओ में देवताओं का वास है । उन्हें नष्ट कर हम पृथ्वी माता को रसातल में ले जाते हैं । भगवान श्री हरि विष्णु को हरेक बार अधर्म के द्वारा विनष्ट की गई पृथ्वी के उद्धार के लिए धरती पर बार बार अवतार लेना पड़ता है ।
प्रकृति को मां मानता है सनातन धर्म :
शुद्ध सनातन धर्म के सभी पंथो में प्रकृति और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने पर जोर दिया है । अब्राहमिक धर्मों जैसे ईसाइयत और इस्लाम में सृष्टि को मनुष्य के उपभोग के लिए बनाया गया है । यहां मनुष्य को जंगलों को काटने , पशुओं के वध ( धर्मानुसार ) और प्रकृति के अनियंत्रित उपभोग की स्वतंत्रता दी गई है । लेकिन सनातन धर्म में प्रकृति को मां बताते हुए उसके दोहन को पाप बताया गया है ।
माता पार्वती हैं प्रकृति स्वरुपा :
पंच तत्वों यानि वायु, अग्नि, जल , गगन और आकाश को शुद्ध रखने के लिए प्रार्थनाएं की गई हैं। भगवान शिव को वनस्पतियों का देवता माना गया है । माता पार्वती को साक्षात प्रकृति बताया गया है । ऐसे में प्रकृति के साथ किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार को शिव की पत्नी पार्वती के साथ दुर्व्यवहार माना गया है और इसी से रुष्ट होकर शिव क्रोध में आ जाते हैं और संहार का कार्य आरंभ कर देते हैं ।
पर्यावरण शुद्धि के लिए हैं प्रार्थनाएं :
शुद्ध सनातन धर्म में पर्यावरण, वनस्पतियों, पशुओं की रक्षा के लिए अनेक मंत्र दिये गए हैं । इनकी शांति के लिए प्रार्थना की गई है –
उं द्यो शांति , अंतरिक्ष शांति, आप शांति वनस्पतय शांति, पृथ्वी शांति , ओषधय शांति..!!
भावार्थ : आकाश , अंतरिक्ष , अग्नि, वनस्पति, पृथ्वी और औषध सबमें शांति का वास हो ऐसी प्रार्थना की गई है ।
पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा ।
बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥
भगवान शिव को पशुपति कहा गया है । सभी देवी – देवताओं के वाहन कोई न कोई पशु -पक्षी हैं ताकि उनका संरक्षण किया जा सके और उनका वध न हो ।
वायु शुद्धि के लिए वैदिक मंत्र :
पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए शुद्ध वायु और वायुमंडल का होना अति आवश्यक बताया गया है । ऐसा वैज्ञानिकों का भी मत है । लेकिन हजारों साल पहले हमारे वैदिक ऋषियों ने इस महत्व को समझ लिया था । ऋग्वेद की यह ऋचा शुद्ध वायु के महत्व को बतलाती है –
वात आ वातु भेषजं शम्भु मयोभु नो हृदे।
प्र ण आयूंषि तारिषत्।। -ऋ० 10/186/1
भावार्थ : वायु हमें ऐसा औषधि प्रदान करे, जो हमारे हृदय के लिए शांतिकर एवं आरोग्यकर हो, वायु हमारे आयु के दिनों को बढ़ाए।
इसके अतिरिक्त ऋग्वेद की इस ऋचा को भी पढ़िये –
यददो वात ते गृहेऽमृतस्य निधिर्हित: ।
ततो नो देहि जीवसे।। -ऋ० 10/186/3
अर्थात : हे वायु! जो तेरे घर में अमृत की निधि रखी हुई है, उसमें से कुछ अंश हमें भी प्रदान कर, जिससे हम दीर्घजीवी हों ।
वृक्षों को बचाने के लिए मंत्र :
वेदों में बार – बार यह प्रार्थना की गई है कि पर्यावरण के लिए जंगलों में वनस्पतियों को उगाया जाए,वेद कहते हैं –
वनस्पति वन आस्थापयध्वम अर्थात वनों में वनस्पतियों को उगाओ ।
विज्ञान के बहुत पहले ही शुद्ध सनातन धर्म में पेड़ों में जीवन होने की बात कही जा चुकी थी ।यहां तक कि अगर किसी कारणवश किसी पेड़ को काटने की जरुरत भी पड़े तो उसके पहले उस पेड़ से प्रार्थना अनिवार्य है और उसे इस प्रकार काटे जाने का आदेश दिया गया है कि वो फिर से दोबारा बड़ा हो सके और वनस्पतियों के प्राण न जाएं –
अथो त्वं दीर्घायुर्भूत्वा शतवल्शा विरोहतात्। -यजुर्वेद/100
भावार्थ : हे ओषधि, तू दीर्घायु होती हुई शत अंकुरों से बढ़ ।
यहां स्पष्ट है कि आधुनिक विज्ञान से हजारों साल पहले से ही हमारे ऋषियों ने यह जान लिया था कि पेड़ों में भी जीवन होता है । इसीलिए पेड़ों को काटने को जीव हत्या के बराबर माना गया । आज भी पीपल के पेड़ को काटने का पाप पुत्र हत्या के बराबर माना जाता है । यजुर्वेद में विशेषकर पेड़ों को काटने से पहले उनकी प्रार्थना की गई है –
अयं हि त्वा स्वधितिस्तेतिजान: प्रणिनाय महते सौभगाय ।
अतस्त्वं देव वनस्पते शतवल्शो विरोह, सहस्रवल्शा वि वयं रुहेम ।। -यजुर्वेद 05/43
भावार्थ : हे वनस्पति, इस तेज कुल्हाड़े ने महान सौभाग्य के लिए तुझे काटा है, तू शतांकुर होती हुई बढ़, तेरा उपयोग करके हम सहस्रांकुर होते हुए वृद्धि को प्राप्त करें।
जल प्रदूषण के खिलाफ सनातन धर्म :
आज पर्यावरण प्रदूषण का शिकार है । आज जल , वायु, ध्वनि सभी के प्रदूषण से हजारों बिमारियां फैल रही हैं । लेकिन हमारे वेदों में जल को भी प्रदूषण से बचाने के लिए प्रार्थना की गई है । यजुर्वेद जल से हिंसा न करने के लिए कहता है –
आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन।
महे रणाय चक्षसे।। -ऋग्वेद10/9/1
भावार्थ : शुद्ध जल आरोग्यदायक होते हैं, शरीर में ऊर्जा उत्पन्न करते हैं, वृद्धि प्रदान करते हैं, कण्ठस्वर को ठीक करते हैं तथा दृष्टि-शक्ति बढ़ाते हैं।
ऋ्ग्वेद तो यहां तक कहता है कि अगर जल में प्रदूषण हो गया है तो सभी को मिल कर इसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए.!!
यन्नदीषु यदोषधीभ्य: परि जायते विषम्। विश्वेदेवा निरितस्तत्सुवन्तु ।। -ऋग्वेद 7/50/3
भावार्थ : यदि नदियों में विष उत्पन्न हो गया है तो सब विद्वान लोग एक साथ मिलकर उसे दूर कर लें ।
भूमि प्रदूषण के खिलाफ है सनातन धर्म :
वेदों में पृथ्वी को मां कहा गया है और उसके साथ हिंसा को पाप बताया गया है । यहां तक कहा गया है कि कृषि करने के पहले भी भूमि को पोषक तत्वों से पूर्ण किया जाए और उसके साथ किसी अन्य प्रकार की हिंसा न की जाए, शुद्ध सनातन धर्म हमेशा से ही पर्यावरण और प्रकृति को मनुष्य के लिए नहीं बल्कि मनुष्य को पर्यावरण के लिए माना है । अर्थात हमें यह अधिकार ही नहीं है कि हम अपनी प्रकृति के साथ किसी भी प्रकार ही हिंसा करें, उसे प्रदूषित करें और उसके साथ कोई छेड़छाड़ करें ।