कौन हैं माँ तारा : नवरात्रि के दूसरे दिन जिन महामाया शक्ति के स्वरुप की अराधना की जाती है वो हैं माँ तारा। माँ तारा देवी सती से उत्पन्न दूसरी महाविद्या है। माँ काली जहां पंचतत्वों से परे हैं और सृष्टि के निर्माण की प्रथम क्रियात्मक शक्ति हैं। वहीं माँ तारा सृष्टि के निर्माण की प्रक्रिया को प्रारंभ करने वाली आद्या शक्ति हैं।
पंच तत्वों की शक्ति हैं माँ तारा :
माँ तारा से ही पंच तत्वों – आकाश, जल, वायु, पृथ्वी और अग्नि उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता के मुताबिक जब मधु- कैटभ का संहार हो गया तो इन दोनों दैत्यों के शरीर से ही पृथ्वी के भूमि क्षेत्र का निर्माण किया गया, तब इन दैत्यों के शरीर के पापों की वजह से भूमि पर जीवन का विकास नहीं हो पा रहा था। तब महामाया देवी सती ने माँ तारा के रुप में महादेव शिव के साथ अवतार लिया। भगवान शिव दक्षिणेश्वर भगवान या अक्षोभ्य भगवान के रुप में अवतरित हुए। माँ तारा और अक्षोभ्य ने भगवान सूर्य को उत्पन्न किया। भगवान सूर्य को माँ तारा से आदेश दिया कि वो पृथ्वी पर जीवन लाने के लिए नित्य प्रकाशित हो। इस प्रकार तारा और महादेव की शक्ति से पृथ्वी पर जीवन का आविर्भाव हुआ।
माँ काली का सौम्य रुप हैं माँ तारा :
‘अद्भुत पुराण’ के मुताबिक श्रीराम को जब रावण वध करने में मुश्किल आ रही थी तो माता सीता ने राक्षस रावण का वध करने के लिए माँ काली का स्वरुप धारण किया। माता सीता उस वक्त भयंकर क्रोध में थीं। ऐसे में ब्रह्मा सहित कई देवताओ ने उनहें अपना क्रोध शांत करने की प्रार्थना की। इस प्रार्थना से प्रसन्न होकर माँ काली ने अपना सौम्य रुप धारण किया। भगवान शिव ने उनसे प्रार्थना की कि वो उनको ज्ञान प्रदान करें। माँ तारा ने भगवान शिव की छाती पर अपना बायां पैर रख कर उन्हे ज्ञान प्रदान किया।
माँ तारा ने किया हयग्रीव राक्षस का वध :
एक अन्य मान्यता के अनुसार जब हयग्रीव राक्षस ने सभी देवताओ को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया तब माँ काली ने ब्रह्मा की स्तुति से प्रसन्न होकर खुद को माँ तारा के रुप में प्रगट किया । तब माँ तारा ने हयग्रीव को मार कर देवताओं को कष्टों से मुक्त किया।
माँ तारा ने शिव को दूध पिलाया :
एक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने हलाहल अग्नि से उत्पन्न कालकूट विष को अपने कंठ में धारण किया तो माँ पार्वती ने उनके गले को पकड़ लिया ताकि वो विष भगवान शिव के पेट में न पहुंच जाए। इससे भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वो संसार में नीलकंठ महादेव के रुप में विख्यात हो गए। लेकिन, भगवान शिव के कंठ में विष की वजह से जलन शुरु हो गई। ऐसी स्थिति में माँ पार्वती ने माँ तारा का रुप धारण किया और माँ के भाव से बालक बने शिव को स्तनपान करा कर दूध पिलाया जिससे भगवान शिव के कंठ में अटका विष समाप्त हो गया।
बौद्ध धर्म में माँ तारा
माँ तारा को सनातन धर्म में ही नही बौद्ध धर्म में भी ज्ञान और महाविद्या की शक्ति के रुप में मान्यता दी गई है। वज्रयानी बौद्ध संप्रदाय बौद्ध धर्म का तांत्रिक संप्रदाय माना जाता है और बिहार , बंगाल से लेकर तिब्बत तक फैला है।इसी वज्रयानी बौद्ध संप्रदाय में मा तारा को बुद्ध की शक्ति के रुप में दिखाया गया है और तिब्बत में आज भी उनकी पूजा की जाती है।
माँ तारा के महान भक्त संत वामाखेपा(वामाक्षेपा)
माँ तारा के महान भक्तों में बंगाल के बीरभूम जिले के संत वामाखेपा सबसे प्रसिद्ध हैं। वामाखेपा या वामाक्षेपा माँ तारा के इतने महान भक्त थे कि उनका जूठन भी माँ तारा खाती थीं। वामाखेपा( वामाक्षेपा) तारापीठ मंदिर के पुजारी थे और उन्होंने अपनी सरल भक्ति के द्वारा माँ तारा को प्रसन्न कर लिया था। कहते हैं कि माँ तारा के साथ उनका माँ- बेटे सा रिश्ता था, बिना माँ वामाखेपा के भोजन को जूठा किये मा तारा प्रसाद ग्रहण ही नहीं करती थीं।