आदि देव हैं भगवान सूर्य : भगवान सूर्य की महिमा शुद्ध सनातन धर्म के सभी ग्रंथों में गाई गई है । भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार श्री राम ने भी रावण से युद्ध के पहले महर्षि अगत्स्य के कहने पर भगवान सूर्य की अराधना की थी । इस अराधना को आदित्य ह्र्दय स्त्रोत्र कहा जाता है । इसी स्तुति के बाद भगवान सूर्य ने सूर्य कुल भूषण श्री राम को विजय का आशीर्वाद दिया था और एक ऐसा बाण प्रदान किया था जिससे भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था ।
महावीर हनुमान के गुरु हैं सूर्य :
भगवान सूर्य महावीर हनुमान जी के गुरु भी रहे हैं और भगवान सूर्य ने ही महावीर हनुमान जी को सारी सिद्धियां प्रदान की थीं, दक्षिण भारत की परंपराओं के मुताबिक भगवान सूर्य ने महावीर हनुमान जी का विवाह अपनी पुत्री वर्चस्वला से भी कराया था ।
महाभारत में है भगवान सूर्य की महिमा :
महाभारत में कुंती ने भी भगवान सूर्य की अराधना कर ही कवच कुंडल धारी कर्ण को पुत्र रुप में प्राप्त किया था । लेकिन महाभारत में ही एक अन्य प्रसंग भी आता है जब भगवान सूर्य अन्नदाता के रुप में पांडवों की लाज की रक्षा करते हैं ।
युधिष्ठिर ने की थी सूर्य की तपस्या :
महाभारत के वन पर्व के अध्याय 3 और 4 में भगवान सूर्य की स्तुति की गई है । कथा है कि जब पांडवो जुए में सब कुछ हार कर वन को चले गए तब उनके साथ कई ब्राह्णण भी थे । राजा युधिष्ठिर को चिंता हो गई कि वो इन ब्राह्णणो के भोजन की व्यवस्था कैसे करेंगे । तब वन में उनके पुरोहित ऋषि धौम्य ने उन्हें भगवान सूर्य की स्तुति करने का आदेश दिया ।
ऋषि धौम्य ने कहा कि भगवान सूर्य ही सभी जीवों के प्राणदाता हैं । धौम्य कहते हैं
एवं भानुमयं द्यन्नं भूतानां प्राणधारणं ! पितैष सर्वभूतानां तस्मात तं शरणं वज्र !! भावार्थ: सभी जीवों की प्राणरक्षा करने वाला अन्न सूर्यस्वरुप ही है,अत भगवान सूर्य ही सभी प्राणियों के पिता है इसलिए उन्ही की शरण में जाओ ।
सूर्य अष्टशतनाम स्त्रोत्र :
इसके बाद ऋषि धौम्य ने युधिष्ठिर को भगवान सूर्य के 108 नाम बताएं और उनकी अराधना कर अन्न प्राप्ति के लिए वरदान मांगने को कहा । इसे ही सूर्य अष्टोत्तरशतनाम स्त्रोत्र भी कहते हैं
सूर्योऽर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क: सविता रवि:।
गभस्तिमानज: कालो मृत्युर्धाता प्रभाकर:।।
पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वायुश्च परायणम्।
सोमो बृहस्पति: शुक्रो बुधो अंगारक एव च।।
इन्द्रो विवस्वान् दीप्तांशु: शुचि: शौरि: शनैश्चर:।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वै वरुणो यम:।।
वैद्युतो जाठरश्चाग्नि रैन्धनस्तेजसां पति:।
धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदांगो वेदवाहन:।।
कृतं त्रेता द्वापरश्च कलि: सर्वमलाश्रय:।
कला काष्ठा मुहूर्त्ताश्च क्षपा यामस्तथा क्षण:।।
संवत्सरकरोऽश्वत्थ: कालचक्रो विभावसु:।
पुरुष: शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्त: सनातन:।।
कालाध्यक्ष: प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुद:।
वरुण: सागरोंऽशश्च जीमूतो जीवनोऽरिहा।।
भूताश्रयो भूतपति: सर्वलोकनमस्कृत:।
स्रष्टा संवर्तको वह्नि: सर्वस्यादिरलोलुप:।।
अनन्त: कपिलो भानु: कामद: सर्वतोमुख:।
जयो विशालो वरद: सर्वधातुनिषेचिता।।
मन:सुपर्णो भूतादि: शीघ्रग: प्राणधारक:।
धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवो दिते: सुत:।।
द्वादशात्मारविन्दाक्ष: पिता माता पितामह:।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम्।।
देहकर्ता प्रशान्तात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुख:।
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेय: करुणान्वित:।।
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सूर्य ने दिया युधिष्ठिर को अक्षयपात्र :
इस स्त्रोत्र को करने के बाद भगवान सूर्य युधिष्ठिर पर प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें अक्षय पात्र प्रदान करते हैं । भगवान सूर्य युधिष्ठिर को बताते हैं कि इस पात्र के द्वारा वो युधिष्ठिर को अगले बारह वर्षों तक अन्न प्रदान करते रहेंगे । सूर्य भगवान ने कहा कि इस पात्र में साग, फल , मूल और भोजन योग्य अन्य पदार्थों से जो भी भोजन तैयार होगा वो तब तक खत्म नहीं होगा जब तक द्रौपदी स्वयं इससे भोजन ग्रहण नहीं कर लेती ।
इसके बाद भगवान सूर्य युधिष्ठिर को उनका राज्य चौदह वर्ष बाद फिर से प्राप्त कर लेने का वरदान देते हैं । इस पात्र को अक्षय पात्र कहा गया । इस पात्र से तैयार होने वाले भोजन को सबसे पहले युधिष्ठिर ब्राह्णणो और अतिथियों को भोजन कराते थे और इसके बाद उनके चारो भाई इस पात्र से भोजन ग्रहण करते थे । आखिर में द्रौपदी इस पात्र से अन्न ग्रहण करती थी ।
ऐसी मान्यता है कि जो भी इस सूर्य अष्टोत्तर शतनाम का पाठ नित्य करता है उसके घर में धन और धान्य की कभी भी कमी नहीं होती और कोई भी अतिथि कभी भी भूखा वापस नहीं जाता है ।