धूमावती

Navratri: 7th Mahavidya Dhumavati:10 महाविद्या की 7 वीं महाशक्ति – माँ धूमावती

10महाविद्याओं में 7 वीं महाशक्ति माँ धूमावती हैं। माँ धूमावती विरुपता, कुरुपता, वैराग्य, अशुभता, जर्जरता बुढ़ापा, वैधव्य और दरिद्रता का प्रतीक हैं। माँ धूमावती सृष्टि के निर्माण से ठीक पहले और प्रलय के ठीक बाद शून्य के रुप में प्रगट होती हैं। माँ धूमावती को मान्यताओं के मुताबिक वैदिक देवी नऋति से जोड़ा जाता है,जो मृत्यु और क्षय की देवी हैं। कई मान्यताओं में वो अलक्ष्मी या दरिद्रता से भी जोड़ कर देखी जाती रही हैं।

शुद्ध सनातन धर्म में दो विपरीतों के बीच गज़ब का साम्य है। शुद्ध सनातन धर्म में मंदिर भी पूजनीय है और श्मशान भी साधना का स्थल है। शुभता का भी सम्मान है और अशभुता को भी प्रवेश है। भगवान श्री हरि विष्णु के चरणों में माँ लक्ष्मी भी विराजमान है और माँ अलक्ष्मी या दरिद्रता को भी सम्मानीय स्थान दिया गया है।

माँ धूमावती मृत्यु और क्षय की देवी हैं :

इसी प्रकार आद्य महाशक्ति से उत्पन्न दस महाविद्याओं में 7 वीं महाशक्ति हैं माँ धूमावती। माँ धूमावती विरुपता, कुरुपता, वैराग्य, अशुभता, जर्जरता बुढ़ापा, वैधव्य और दरिद्रता का प्रतीक हैं। माँ धूमावती सृष्टि के निर्माण से ठीक पहले और प्रलय के ठीक बाद शून्य के रुप में प्रगट होती हैं। माँ धूमावती को मान्यताओं के मुताबिक वैदिक देवी नऋति से जोड़ा जाता है,जो मृत्यु और क्षय की देवी हैं। कई मान्यताओं में वो अलक्ष्मी या दरिद्रता से भी जोड़ कर देखी जाती रही हैं।

माँ धूमावती और विष्णु के मत्स्य अवतार में संबंध :

‘गुह्यातिगुह्य पुराण’ के मुताबिक माँ धूमावती भगवान विष्णु के प्रथम अवतार मत्स्य अवतार से भी जोड़ी गई हैं। इस पुराण की मान्यताओं के अनुसार धूमावती से ही मस्त्य अवतार का जन्म होता है।

माँ धूमावती देवी सती के योगाग्नि का धुआं हैं :

“शक्ति समागम तंत्र’ के मुताबिक माँ धूमावती देवी सती से उत्पन्न हुई हैं। कथा के मुताबिक जब माँ सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में खुद को यज्ञाग्नि में भस्म कर देती हैं, तब उनके जले हुए शरीर से धूमावती धुएं के रुप में जन्म लेती हैं।

माँ धूमावती भगवान शिव को खा कर विधवा हो गई :

“प्राणतोषिणी तंत्र” के मुताबिक माँ धूमावती एक विधवा के रुप में दिखाई गई हैं। इस तांत्रिक पुस्तक के मुताबिक एक बार देवी सती को जब भूख लगी तब महादेव शँकर से उन्होंने भोजन मांगा। महादेव शँकर के भोजन न देने पर उन्होंने भगवान शिव को ही खा लिया। लेकिन भगवान शिव को खा जाने के बाद उन्हें पश्चाताप हुआ और उन्होने फिर से भगवान शिव को अपने मुख से निकाल लिया। भगवान शिव के बिना होने की वजह से कुछ समय के लिए माँ धूमावती विधवा हो गई और भगवान शिव ने उन्हें शाप भी दे दिया। वैधव्य और दरिद्रता की वजह से माँ धूमावती हमेशा पुराने जर्जर फटे कपड़ों मे बिखरे हुए बालों के साथ दिखाई गई हैं। माँ धूमावती को श्मशान में विराजित दिखाया गया है। कभी कभी वो बिना घोड़े वाले रथ पर सवार दिखाई गई हैं, जिसका अर्थ जीवन की अनिश्चित यात्रा से है। कभी कभी वो कौए से जुते रथ पर सवार भी दिखाई गई हैं

संतान देने वाली माँ धूमावती :

इन तमाम अशुभताओं के बावजूद माँ धूमावती वर मुद्रा में दिखाई गई हैं। उन्हें संतान देने वाली देवी के रुप में भी पूजा जाता है। वो सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली माँ हैं। वो मानव जीवन की सभी समस्याओं का समधान करके उसे मोक्ष प्रदान करने वाली महाशक्ति हैं।

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