शुद्ध सनातन धर्म में देवों के देव महादेव और आदि जगदंबा माता पार्वती का विवाह सिर्फ एक दैविक घटना ही नहीं थी बल्कि इसके चार ऐसे महान उद्देश्य थे जिनसे आज भी कई भक्त अनजान हैं। शुद्ध सनातन आपके लिए ले कर आया है महाशिवरात्रि के अवसर पर इन चारों महान उद्देश्यों का रहस्योद्घाटन। पौराणिक ग्रंथों के अध्ययन से जो चार महान रहस्य सामने आते हैं वो इस प्रकार हैं –
शिव अब कभी भी संसार का संहार नहीं करेंगे :
पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक भगवान ब्रम्हा बार बार सृष्टि की रचना करते और एक खास वक्त बीतने के बाद भगवान शिव बार बार सृष्टि का संहार कर देते ।भगवान ब्रम्हा ने पाया कि चूंकि भगवान शिव वैरागी हैं और उनका कोई सांसारिक जीवन नहीं है इसीलिए वो बिना किसी मोह माया के सृष्टि का संहार कर देते हैं। ऐसे में ब्रम्हा जी ने युक्ति लगाई कि अगर शिव पार्वती विवाह करा दिया जाए और उनका अपना सांसारिक जीवन और परिवार स्थापित हो जाए तो भगवान शिव भी उनकी बनाई सृष्टि से प्रेम करने लगेंगे और वो फिर कभी सृष्टि का संहार नहीं करेंगे। इसी युक्ति के तहत ब्रम्हा जी ने हिमालय के घर में माता पार्वती का जन्म कराया और उनके अंदर भगवान शिव को पति बनाने की इच्छा प्रगट कर दी। माता पार्वती ने भगवान शिव की प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की और भगवान शिव को अपने पति के रुप में प्राप्त कर लिया। भगवान शिव और माता पार्वती से कार्तिकेय, गणेश, अशोक सुंदर जैसे पुत्र और पुत्री हुए जिनके अपने परिवार बने। भगवान शिव जो वैरागी थे अब उनका परिवार हो गया और इसके बाद भगवान शिव ने सृष्टि का संहार कार्य बंद कर दिया ।
कामदेव ही संसार को अपने वश में रखेंगे :
माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह का दूसरा उद्देश्य कामदेव का व्यक्ति के रुप में नाश और संसार में अवयक्त रुप से उसकी सत्ता स्थापना था। जब माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हो गया इसके बाद भी भगवान शिव माता पार्वती की तरफ वैरागी भाव ही रखते थे। चूंकि ब्रम्हा चाहते थे कि भगवान शिव का अपना परिवार हो इसलिए ये जरुरी था कि भगवान शिव माता पार्वती की तरफ आकर्षित हों। तब इसके लिए ब्रम्हा और अन्य देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव के अंदर प्रेम और काम भावना के जागरण के लिए भेजा। भगवान शिव जब समाधि में थे तब कामदेव ने उन पर प्रेम का बाण चलाया जिससे भगवान शिव की समाधि टूट गई। भगवान रुद्र ने क्रोध मे अपना तीसरा नेत्र खोल दिया और कामदेव भष्म हो गया। कामदेव के भष्म होने पर उसकी पति रति ने विलाप शुरु कर दिया । इसके देख कर माता पार्वती भी भावुक हो गईं। तब भगवान शिव ने कामदेव को वरदान दिया को अगले जन्म में वो भगवान श्री कृष्ण के पुत्र प्रदुम्न के रुप में जन्म लेंगे और रति से फिर से विवाह करेंगे। शिव पार्वती विवाह दूसरे कामदेव अब शरीरधारी नहीं रहे तो इनकी शक्ति कई गुणा बढ़ जाएगी और से सारे प्राणियों ने अंदर निवास करेंगे और सभी के अंदर काम भावना का उदय करेंगे जिससे संसार में प्रेम का यानि कामदेव का राज होगा। रति ने इस वरदान से पहले ही माता पार्वती को शाप दे दिया कि उनकी कोख से संतान का जन्म नहीं होगा। हालांकि कामदेव को भगवान शिव ने भस्म कर दिया लेकिन कामदेव का बाण व्यर्थ नहीं गया । भगवान शिव माता पार्वती की तरफ आकर्षित हो गए। यहीं से माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह के तीसरे महान उद्देश्य का प्रारंभ होता है।
तारकासुर का वध :
माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह का तीसरा महान उद्देश्य था तारकासुर का वध। तारकासुर नामक दैत्य ने भगवान ब्रम्हा से वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे भगवान शिव के पुत्र के अलावा और कोई नहीं मार सके। जिस वक्त तारकासुर ने ये वरदान प्राप्त किया था उस वक्त भगवान शिव माता सती के योगाग्नि में भस्म हो जाने के बाद पूर्ण रुप से वैरागी हो चुके थे। लेकिन ब्रम्हा ने माता पार्वती ने अदंर भगवान शिव को पति के रुप में पाने की अकांक्षा को जन्म दे दिया। माता पार्वती ने तपस्या कर भगवान शिव को अपने पति के पुप में प्राप्त कर लिया। कामदेव के बाण के प्रभाव में भगवान शिव और माता पार्वती एक दूसरी तरफ आकर्षित तो हो गए लेकिन रति के शाप की वजह से माता पार्वती गर्भ धारण करने में असमर्थ थीं। इसके अलावा देवताओ को ये डर भी हो गया कि अगर भगवान शिव और माता पार्वती के संयोग से कोई पुत्र पैदा हो गया तो वो शिव और पार्वती से भी ज्यादा शक्तिशाली होगा और देवताओं का सारा साम्राज्य छीनन लेगा। ऐसे में देवताओं ने माता पार्वती और शिव के प्रेम में विघ्न पैदा कर दिया। माता पार्वती इससे इतनी रुष्ट हो गई कि उन्होंने सभी देवताओं को शाप दे दिया कि वो भी संतान पैदा करने में असमर्थ होंगे। प्रेम में विघ्न पैदा होने के बाद भगवान शिव ने अपना तेज अग्नि को दे दिया और अग्नि के जरिए वो गंगा के पास पहुंचा और आखिरकार जिस पुत्र का जन्म हुआ उसका पालन छह कृतिकाओं ने किया और वो कार्तीकेय कहलाया ।कार्तीकेय ने तारकासुर का वध कर दिया।
भगवान श्री राम की सेना का निर्माण :
माता पार्वती के देवताओं को शाप देने से शिव पार्वती के विवाह का चौथा महान उद्देश्य प्रगट होता है। जब देवताओ को माता पार्वती ने संतान पैदा करने में अक्षम होने का शाप दे दिया तब ब्रम्हा जी ने उनके शाप को एक नए उद्देश्य में बदल दिया। ब्रम्हा ने देवताओं को कहा कि जब त्रेता युग में भगवान विष्णु श्री राम के रुप में अवतार लेंगे तो रावण वध में उनकी सहायता करने के लिए सभी देवता धरती पर वानरों और रीक्ष के रुप में जन्म लेंगे। उनकी पत्नियां भी उनके साथ अवतार लेंगी। पृथ्वी पर इन वानर रुपी सभी देवताओं से वानर वीरों जैसे सुग्रीव , बालि, हनुमान , जाम्बवंत, नल और नील आदि का जन्म होगा जो श्री राम की सेना बनेंगे और रावण वध में सहयोगी बनेगे। सूर्य के पुत्र के रुप में सुग्रीव का जन्म हुआ। पवन पुत्र के रुप में हनुमान जी ने जन्म लिया, इंद्र के पुत्र के रुप में बालि का जन्म हुआ और नल और नील विश्वकर्मा के पुत्र बने। बालि को छोड़कर सभी श्री राम की सेना बने और रावण का वध संभव हुआ।