स्वर्गयात्राः युधिष्ठिर के साथ कुत्ते की स्वर्गयात्रा

हिंदू धर्म या सनातन धर्म में सभी प्राणियों को बहुत महत्व दिया गया है। वैसे विशेषरुप से गाय को सबसे पवित्र प्राणी माना गया और गाय को माता का दर्जा प्राप्त है, लेकिन ऐसा कोई प्राणी नहीं है जो किसी न किसी भगवान का वाहन न हो। कुत्ते भी सनातन धर्म या हिंदू धर्म में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

सनातन धर्म में कुत्तों का महत्त्व

सनातन धर्म या हिंदू धर्म में कुत्तों का जिक्र ऋग्वेद में भी आता है । ऋग्वेद में ‘सरामा’ नामक एक कुतिया है जो देवताओं के लिए जासूसी का कार्य करती है। वाल्मीकि रामायण में राजकुमार भरत के नाना कैकयराज भरत को दो हजार कुत्तों का उपहार देते हैं। महाभारत की शुरुआत सरामा नामक कुतिया के शाप से होती है। महाभारत में कई अन्य स्थानों पर भी कुत्तों का जिक्र आता है । कुत्ता भगवान भैरव का वाहन भी है ।

पांडवों की स्वर्ग यात्रा

‘महाभारत’ के ‘महाप्रास्थानिक पर्व’ से पांडवों की स्वर्गयात्रा की कथा शुरु होती है। प्रसंग कुछ इस प्रकार शुरु होता है, कि द्वारिका में आपसी गृहयुद्ध में यादववंश का नाश हो जाता है और श्रीकृष्ण भी शरीर त्याग कर वैकुँठ चले जाते हैं। अर्जुन श्रीकृष्ण के प्रप्रौत्र वज्र और बाकी महारानियों को लेने के लिए द्वारिका जाते हैं।

जब अर्जुन इन सबको लौट कर वापस हस्तिनापुर आते हैं तो उनका इस संसार से मोहभंग हो जाता है । श्रीकृष्ण के बिना अर्जुन को इस संसार से विरक्ति हो जाती है। वह युधिष्ठिर को कहते हैं कि अब शरीर को त्याग देने का समय आ चुका है। युधिष्ठिर भी अर्जुन की बात का समर्थन करते हैं।

युधिष्ठिर के बाद परिक्षित बने राजा

युधिष्ठिर सबसे पहले कौरवों के सबसे छोटे भाई युयुत्सु को बुलाते हैं और उन पर सारा राज्य कार्य सौंप देते हैं। युधिष्ठिर अपने प्रपौत्र परिक्षित को सम्राट बनाते हैं और उसे हस्तिनापुर का राजसिंहासन देकर वनवास के लिए तैयार हो जाते हैं। युधिष्ठिर ही श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्र को इंद्रप्रस्थ का सिंहासन सौंप कर उसे इंद्रप्रस्थ का राजा बनाते हैं।

युधिष्ठिर के साथ भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी भी सांसारिक जीवन की मोहमाया को त्याग देती है और इन सबके साथ वन की तरफ चल देती है। अर्जुन की दो पत्नियों में उलुपी, गंगा में समाधि ले लेती है और चित्रांगदा वापस अपने मायके मणिपुर चली जाती है । सुभद्रा अपने प्रपौत्र राजा परिक्षित के साथ हस्तिनापुर में ही रह जाती है ।

  युधिष्ठिर के साथ एक कुत्ता भी चलता है
  • सत्यवादी युधिष्ठिर के साथ जब बाकी पांडव और द्रौपदी वन के लिए निकल पड़ते हैं तो उनके पीछे- पीछे एक कुत्ता भी चल पड़ता है । ये कुत्ता कौन है? वो क्यों युधिष्ठिर के साथ गया? यह आखिरी में पता चलता है ।
  • युधिष्ठिर का कुत्तों के साथ संबंध पुराना है। पांडवों के बीच यह नियम था कि जिस वर्ष में द्रौपदी जिस पांडव के साथ पत्नी के रुप में रहती थी, उस वर्ष उनके अंतःपुर में किसी का भी प्रवेश वर्जित था।
  • जो कोई भी उस अंतःपुर में बिना अनुमति लिये प्रवेश करता उसे एक वर्ष का वनवास लेना पड़ता था। एक बार अर्जुन अचानक युधिष्ठिर और द्रौपदी के अंतःपुर में चले गए थे। इस वजह से अर्जुन को भी एक वर्ष के लिए वन में रहना पड़ा था।
  • एक बार एक कुत्ता युधिष्ठिर के अंतःपुर में प्रवेश कर गया । उस वक्त युधिष्ठिर अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ एकांत के क्षणों में प्रेम कर रहे थे। युधिष्ठिर को उस कुत्ते को देख कर क्रोध आ गया और उन्होंने समस्त कुत्ता जाति को शाप दे दिया । वह शाप था कि भविष्य में कुत्ते और कुतिया के प्रजनन कार्य को सभी लोग देख सकेंगे।

सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु हुई

जब पांडव अपनी स्वर्गयात्रा के लिए हिमालय की तरफ आगे बढ़ रहे थे , तो सबसे आगे युधिष्ठिर थे ।उनके पीछे भीम थे। भीम के पीछे अर्जुन थे। अर्जुन के पीछे नकुल और सहदेव थे। सबसे पीछे द्रौपदी थीं। हां! द्रौपदी के पीछे वो कुत्ता था।

सबसे पहले द्रौपदी का पांव लड़खड़ाया और वो गिर पड़ीं। युधिष्ठिर ने उन्हें उठाने से मना किया। जब भीम ने युधिष्ठिर के पूछा कि द्रौपदी तो एक महान नारी थी, द्रौपदी ने कभी कोई पाप नहीं किया था, फिर उसकी मौत सबसे पहले क्यों हुई?

भीम के इस प्रश्न के जवाब में युधिष्ठिर ने कहा कि “वो सभी पांडव भाइयों से एक समान प्रेम नहीं करती थी। द्रौपदी अर्जुन को ज्यादा प्रेम करती थी। यही वजह थी कि द्रौपदी की मृत्यु सबसे पहले हुई।”

सहदेव की मृत्यु कैसे हुई?

द्रौपदी की मृत्यु के बाद भी पांडव भाई आगे बढ़ते रहे । द्रौपदी के बाद अचानक सहदेव गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई। भीम ने एक बार फिर युधिष्ठिर से पूछा कि “सहदेव तो सदा हम सभी की सेवा करता था और उसमें तो अहंकार भी नहीं था। फिर सहदेव की मृत्यु क्यों हो गई।” इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि “सहदेव को यह अहंकार था कि उससे ज्यादा बुद्धिमान कोई नहीं था। इसी दोष की वजह से उसकी मृत्यु हो गई।”

नकुल की मृत्यु का कारण

जब द्रौपदी और सहदेव की मृत्यु हो गई और युधिष्ठिर के साथ नकुल, भीम और अर्जुन ही बच गए तो ये सभी फिर आगे की तरफ चल पड़े। थोड़ी दूर जाने के बाद नकुल भी गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई। भीम ने फिर युधिष्ठिर से पूछा कि “नकुल तो सबसे ज्यादा रुपवान था और हम सभी की आज्ञा का पालन भी करता था। फिर उसकी मृत्यु क्यों हो गई?”

भीम के इस प्रश्न का जवाब देते हुए युधिष्ठिर ने कहा कि “नकुल को अपने रुप पर बहुत अभिमान था। उसे लगता था कि उसके सिवा संसार में कोई भी सुंदर नहीं है। उसके अपने रुप पर अभिमान ने ही उसकी ये हालत कर दी और उसकी मृत्यु हो गई।”

अर्जुन का अहंकार उसकी मृत्यु की वजह बना?

अब सिर्फ युधिष्ठिर के साथ भीम और अर्जुन जीवित रह गए। युधिष्ठिर के साथ – साथ अभी भी वह कुत्ता चलता जा रहा था। अचानक पहाड़ी पर अर्जुन भी गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई। भीम ने कहा कि “अर्जुन तो महान सत्यवादी थे। उन्होंने तो कभी मजाक में भी असत्य नहीं बोला। आखिर वो अर्जुन के वो कौन से कर्म थे कि वो सशरीर स्वर्ग जाने से पहले ही मृत हो गए।”

 इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि ” अर्जुन को अपनी वीरता का अभिमान था। अपने इसी घमंड में उन्होंने एक बार  कह दिया था कि ‘मैं एक ही दिन में सभी दुश्मनों को मार डालूंगा, लेकिन वो ऐसा कर नहीं सके।‘उनके इसी मिथ्याभाषण की वजह से आज उनकी मृत्यु हो गई।”

इसके अलावा अर्जुन बाकी सभी धनुर्धरों को अपने से कम आंकते थे और उनका अपमान किया करते थे। उनका यह अभिमान भी उनकी मृत्यु का कारण बना ।

भीम की मृत्यु और उनकी मृत्यु का कारण

अब स्वर्गयात्रा में सिर्फ तीन ही प्राणी बच गए थे। युधिष्ठिर , भीम और वह कुत्ता। तीनों स्वर्ग की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे कि अचानक भीम का पैर फिसला और वो गिर पड़े। भीम ने पूछा कि ” मैंने ऐसा क्या दुष्कर्म किया है कि मैं भी अब मरने वाला हूं।”

इस पर भीम की तरफ नज़र किए बिना युधिष्ठिर ने कहा कि “तुम खाते बहुत थे और तुम्हें अपनी ताकत का बहुत ही ज्यादा घमंड था । यही वजह है कि तुम अब मरने वाले हो।“ भीम ने इस जवाब को सुनते ही प्राण त्याग दिये।

युधिष्ठिर के स्वागत में इंद्र का आगमन

युधिष्ठिर अब सिर्फ उस कुत्ते के साथ स्वर्ग की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे कि अचानक देवराज इंद्र अपने रथ को लेकर युधिष्ठिर के स्वागत में आ पहुंचे। इंद्र ने युधिष्ठिर से कहा कि “आप सशरीर स्वर्ग में आने के योग्य हैं और आपका स्वागत है। इंद्र ने युधिष्ठिर से रथ में बैठने का आग्रह किया। इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि “मैं अकेला नहीं जाउंगा मेरे साथ यह कुत्ता भी स्वर्ग जाएगा।

कुत्ता हिंदू धर्म में अशुभ है

जब युधिष्ठिर ने बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने से मना कर दिया तो इंद्र ने युधिष्ठिर को समझाने की कोशिश की कुत्ता एक अशुभ जानवर है। इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि “वो उनका आखिरी तक साथ देने वाला भक्त है।“ वह उस कुत्ते के बिना किसी भी स्थिति में स्वर्ग नहीं जाएंगे। इस पर इंद्र ने कहा –

अमर्त्यत्वं मत्समत्वं च राजन् श्रियं कृत्सन्नां महति चैव सिद्धिम् ।
संप्राप्तोSद्य स्वर्गसुखानि च त्वं त्यज श्वानं नृशंसमस्ति ।।

अर्थः-  इंद्र ने कहा – राजन् तुम्हें अमरता और मेरी समानता, पूर्ण लक्ष्मी और बहुत बड़ी सिद्धि प्राप्त हुई है। इसके साथ ही तुम्हें स्वर्गीय सुख भी प्राप्त हुए हैं। अतः इस कुत्ते को छोड़ो इसमें किसी प्रकार की कठोरता की बात नहीं है।

युधिष्ठिर ने कहा कि “मुझे ऐसी लक्ष्मी और ऐसा स्वर्ग नहीं चाहिए जो बिना इस कुत्ते के साथ अपकार करके प्राप्त हो।“

कुत्ता पालने वालों को स्वर्ग नहीं मिलता

युधिष्ठिर की जिद को देखते हुए इंद्र उन्हें समझाते हुए कहते हैं कुत्ता एक अशुभ जानवर है और स्वर्ग प्राप्ति में बाधक है। इंद्र कहते हैं –

स्वर्गे लोके श्वावतां नास्ति धिष्ण्य- मिष्टापूर्ते क्रोधवशा हरन्ति ।
ततो विचार्य क्रियतां धर्मराज त्यज श्वानं नृशंसमस्ति ।।

अर्थः- धर्मराज! कुत्ता पालने वालों के लिए स्वर्गलोक में स्थान नहीं है। उनके यज्ञ करने से, कुआं और जलाशय आदि बनवाने से जो पुण्य प्राप्त होता है, उसे क्रोधवश नामक राक्षस छीन लेते हैं। इसलिए सोंच समझ कर काम करो । इस कुत्ते को छोड़ दो । इसमें किसी प्रकार की निर्दयता की बात नहीं है।

इंद्र के समझाने पर युधिष्ठिर कहते हैं कि “ये कुत्ता मेरा भक्त है। भक्त का त्याग ब्रह्महत्या के समान माना गया है । अतः मैं अपने सुख के लिए इस कुत्ते का त्याग नहीं करुंगा।“

युधिष्ठिर के इस जवाब के बाद एक बार फिर इंद्र उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि –

शुनां दृष्टं क्रोधवशा हरन्ति यद्यत्त मिष्टं विवृतमथो हुतं च ।
तस्माच्छुनस्यागमिमं कुरुष्व शुनस्त्यागमिमं प्राप्स्यसे देवलोकम् ।।

अर्थः- वीरवर ! मनुष्य जो कुछ दान, यज्ञ, स्वाध्याय और हवन आदि पुण्यकर्म करता है , यदि उस पर कुत्ते की दृष्टि भी पड़ जाए तो उसके फल को क्रोधवश नामक राक्षस छीन कर ले जाता है। इसलिए इस कुत्ते का त्याग कर दो। इस कुत्ते का त्याग करने के बाद ही तुम देवलोक जा सकोगे।

युधिष्ठिर इंद्र की बात से असहमत हो कर कहते हैं कि ” शरण देने वाले को भय देना, स्त्री का वध करना , ब्राह्म्ण का धन लूटना  और मित्रों के साथ द्रोह करना – ये चार अधर्म और अपने भक्त का त्याग दूसरी तरफ हो तो मेरी समझ से यह अकेला ही इन चारों पापों के बराबर है । इसलिए मैं अपने इस भक्त कुत्ते का त्याग किसी भी स्थिति में नहीं करुंगा।”

कुत्ता ही धर्म है और वही युधिष्ठिर के पिता भी थे

युधिष्ठिर की इन बातों को सुनकर वह कुत्ता अचानक एक देवता में बदल गया । युधिष्ठिर ने देखा कि वह कुत्ता और कोई नहीं बल्कि साक्षात धर्मराज थे। वही, जो युधिष्ठिर के पिता भी माने जाते हैं। धर्मराज युधिष्ठिर की इन धर्मयुक्त बातों को सुनकर प्रसन्न हो गए। धर्मराज ने युधिष्ठिर को कहा कि वह उनकी परीक्षा लेने के लिए ही कुत्ते का रुप धारण कर उनके पीछे चल रहे थे।

धर्मराज और इंद्र दोनों ही युधिष्ठिर पर प्रसन्न हो गए और उन्हें सशरीर स्वर्ग ले जाने के लिए तैयार हो गए ।

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