सूर्य देव कौन हैं? क्या ये वही सूर्य हैं जो आकाश में चमकते हैं?

सूर्य को ‘आदि देव’ भी कहा जाता है। ‘आदि देव’ का अर्थ होता है जो सृष्टि के निर्माण में सबसे पहले उत्पन्न होने वालों में हों। अजन्मा और ‘आदि देव’ होने में एक बहुत बड़ा फर्क ये है कि अजन्मा कभी जन्म नहीं लेते और कभी उनकी मृत्यु नहीं होती।

संसार में निराकार ईश्वर के अलावा कोई ऐसा नहीं है जिसका जन्म नहीं होता। विष्णु, शिव और ब्रह्मा सभी अलग अलग सृष्टि निर्माण के दौर में उस निराकार ईश्वर से जन्म लेते हैं।

जब निराकार ईश्वर अपनी इच्छा और तप से स्वयं काल का निर्माण करता है और इसके बाद त्रिगुणात्मक (सत, रज और तम) माया का निर्माण करता है । इस माया के द्वारा वो पांच महाभूतों ( पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश ) का निर्माण करता है।

इसके बाद वो निराकार ईश्वर स्वयं को काल के अधीन कर उस माया (सत, रज और तम) के आवरण में प्रवेश कराता है।

माया के इस आवरण को ही हिरण्यगर्भ कहा गया है। ये एक अंडे के आकार का होता है । ये ब्रह्म(निराकार ईश्वर) का आवरण या अंडा है इसलीए इसे ब्रह्मांड कहा जाता है।

स्वयं को जब वो निराकार ईश्वर ( ऋग्वेद में इस निराकार सत्ता का कोई नाम नहीं है) काल और माया के अधीन कर लेता है तो वो ही हिरण्यगर्भ में विराट पुरुष या परमपुरुष के रूप में खुद को प्रकट करता है।
इन्हीं विराट पुरूष या परम पुरूष को वैष्णव नारायण का नाम देते हैं तो शैव मत के लोग सदाशिव का नाम देते हैं और अपने मतों के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति नारायण से या सदाशिव से मानते हैं। लेकिन ऋग्वेद इस परम पुरूष को सिर्फ ‘वह एक’ की संज्ञा से संबोधित करता है।

इसके बाद उस विराट पुरुष की नाभि से ब्रह्मा उत्पन्न होते और उस विराट पुरूष के शरीर के अंगों से इस सृष्टि का निर्माण करते हैं।

चूंकि ब्रह्मा भी उसी विराट पुरूष के अंग है इसलिए ब्रह्मा के शरीर से विभिन्न प्रकार के प्राणियों की उत्पत्ति भी होती है। ब्रह्मा के शरीर से रुद्र या शिव निकलते हैं तो विराट पुरूष के शरीर से विष्णु का जन्म होता है।

फिर ब्रह्मा के शरीर से सूर्य , चंद्र , और उनके कुछ मानस पुत्रो (अत्रि, मरीचि, पुलत्स्य, पुलह, धर्म, अधर्म ,दक्ष, नारद आदि) का जन्म होता है। ब्रह्मा , विष्णु , सूर्य ,चंद्र के साथ ये सभी भी सृष्टि के आदि(प्रारंभ ) में उत्पन्न होने की वजह से आदिदेव कहे जाते हैं।

जब प्रलय होती है तो ब्रह्मा, विष्णु , शिव , सूर्य ,चंद्र सहित सभी प्राणी उस निराकार ईश्वर में विलीन हो जाते हैं । फिर नई सृष्टि के निर्माण के दौरान उसी निराकार ईश्वर के शरीर से फिर इनका प्राकट्य होता है। ये दौर लगातार चलता रहता है।

अब हम आते हैं सूर्य पर। एक सूर्य तो ब्रह्मा के शरीर से उत्पन्न हुए हैं जो आदि देव हैं और आकाश में चमकते हैं।

दूसरे सूर्य हैं मरीचि के पुत्र कश्यप और उनकी पत्नी अदिति से उत्पन्न 12 आदित्यों (जिन्हें देवता कहा जाता है) में एक।

अदिति ने ब्रह्मा से उत्पन्न आदि देव सूर्य की आराधना से उनके जैसा एक पुत्र पैदा किया जिन्हें विवस्वान सूर्य कहा जाता है। ये एक देवता हैं । अदिति के 12 अदित्य पुत्रो में एक ।

अदिति के अन्य 12 आदित्य पुत्रो में इंद्र, मित्र, अयरमा, धाता और वामन(विष्णु के एक अवतार जिन्हें अदिति ने विष्णु की तपस्या से प्राप्त किया था) प्रमुख हैं।

अब अदिति के पुत्र विवस्वान सूर्य के ही पुत्र यमराज, और मनु हैं ।
इन मनु से ही मानव जाति बनी है। मनु के के पुत्र इक्ष्वाकु हुए । इक्ष्वाकु के ही वंश में श्रीराम हुए।

चूंकि विवस्वान सूर्य ( अदिति पुत्र) मूल रूप से आदि देव सूर्य (ब्रह्मा से उत्पन्न) के ही अवतार हैं और उनके ही सरनेम को धारण करते हैं इसलिए हमें भरम हो जाता है कि सूर्य वंश का मूल आकाश में चमकने वाले सूर्य से है । जबकि सूर्य वंश का मूल अदिति और कश्यप के पुत्र विवस्वान सूर्य से है।

इसलिए गीता में जब श्रीकृष्ण कहते हैं कि” ये जो ज्ञान मैंने तुमको दिया है उसे सबसे पहलेविवस्वान सूर्य ने जाना , सूर्य से मनु ने और मनु से इक्ष्वाकु ने और फिर ये राजर्षियों की परंपरा से होते हुए कालक्रम से लुप्त हो गया जिसे मैं तुम्हे फिर से बता रहा हूँ ।”

तो उसका मतलब ये नहीं कि भगवान कृष्ण ने ये ज्ञान उन आदि देव सूर्य को दिया था जो आकाश में रहते हैं बल्कि ये अदिति के पुत्र सूर्य की बात है जिनसे मनु हुए और मानव जाति का निर्माण हुआ । उन्हीं विवस्वान सूर्य के जन्मदिन को अचला सप्तमी पर्व के नाम से मनाया जाता है I

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